Saturday 25 September 2021

कौरव_व्यूहनिर्माण, कर्ण और शल्य की बातचीत, अर्जुन द्वारा संशप्तकों का, कर्ण द्वारा पांचालों का तथा भीम द्वारा भानुसेन का संहार के और सात्यकि से वृषसेन की पराजय

संजय कहते हैं_महाराज ! तदनन्तर कर्ण ने पाण्डवों का अनुपम व्यूह देखा, जो शत्रुसेना का आक्रमण सहने में सर्वथा समर्थ था। धृष्टद्युम्न उस व्यूह की रक्षा कर रहा था। उसे देखते हुए कर्ण सिंह के समान गर्जना करते हुए आगे बढ़ा।
अपनी युद्ध चातुरी का परिचय देते हुए उसने पाण्डवों के मुकाबले में कौरव_सेना की व्यूह रचना की और पाण्डव सैनिकों का संहार करते हुए कर्ण ने राजा युधिष्ठिर को अपने दाहिने भाग में कर दिया। धृतराष्ट्र ने पूछा_संजय ! राधानन्दन कर्ण ने पाण्डवों तथा धृष्टद्युम्न आदि महान् धनुर्धरों का सामना करने के लिये कैसा व्यूह बनाया था ?  व्यूह के दोनों बगल में तथा आस_पास कौन_कौन वीर खड़े थे ? पाण्डवों ने मेरे पुत्रों के मुकाबले कैसा व्यूह रचा था ? फिर दोनों सेनाओं का अत्यन्त दारुण युद्ध कैसे आरंभ हुआ ? उस समय अर्जुन कहां थे, जो कर्ण ने युधिष्ठिर पर चढ़ाई कर दी। यदि अर्जुन निकट होते तो युधिष्ठिर के पास कौन फटकने पाता ?
संजय ने कहा_महाराज ! आपकी सेना का व्यूह निर्माण जिस तरह हुआ था उसे सुनिये।
कृपाचार्य मगधदेश के योद्धा और कृतवर्मा_ये व्यूह के दाहिने पार्श्व में मौजूद थे। इनके पक्षपोषक थे महाराज शकुनि और उनका पुत्र उलूक। ये दोनों चमचमाते भाले लिये हुए गांधारदेशीय घुड़सवारों  तथा पर्वतीय योद्धाओं के साथ आपकी सेना का संरक्षण कर रहे थे। इसी तरह संग्राम में कुशल चौबीस हजार संशप्तक व्यूह के व्यूह के वामपक्ष की रक्षा में खड़े थे। इनके पक्षपोषक थे काम्बोज, शक और यवन। ये लोग रथ, घोड़े और पैंथरों की सेना से युक्त थे।,बीच में कर्ण था जो सेना के मुहाने की रक्षा कर रहा था। कर्ण के पुत्र कर्ण की रक्षा में खड़े थे; और पीली आंखों वाला दु:शासन हाथी पर सवार हो अनेकों सेनाओं से घिरा हुआ व्यूह के पृष्ठभाग में खड़ा था। उसके पीछे था स्वयं राजा दुर्योधन, जिसकी रक्षा के लिये उसके महाबली भाई मद्र और केकयवीरों की सेना लेकर उपस्थित थे। अश्वत्थामा, कौरवों के प्रधान महारथी, मतवाले गजराज और शूरवीर म्लेच्छ_ये दुर्योधन की रथ_सेना के पीछे चल रहे थे। इस प्रकार अनेक घुड़सवारों, रथों और हजारे हुए हाथियों से भरा हुआ वह व्यूह देवता और असुरों के व्यूह के समान शोभा पा रहा था।
तत्पश्चात् सेना के मुहाने पर कर्ण को उपस्थित देख राजा युधिष्ठिर धनंजय से कहने लगे_’अर्जुन ! देखो तो सही, संग्राम में कर्ण ने कितना विशाल व्यूह बना रखा है ? पक्ष और प्रपेक्षों से युक्त यह शत्रुसेना कैसी सुशोभित हो रही है ! इसे देखकर हमें ऐसी नीति  बर्तनी चाहिते, जिससे शत्रुओं की यह महासेना हमलोगों को परास्त न कर सके।‘
राजा के ऐसा कहने पर अर्जुन ने हाथ जोड़कर कहा_’आपने जैसी आज्ञा की है, वैसा ही किया जायगा।‘ युधिष्ठिर बोले_’तुम कर्ण के साथ, भीमसेन दुर्योधन के साथ, नकुल वृषसेन के साथ और सहदेव शकुनि के साथ युद्ध करें।
शतानीक का दु:शासन से, सात्यकि का कृतवर्मा से, धृष्टद्युम्न का अश्वत्थामा से तथा मेरा कृपाचार्य से युद्ध होगा। द्रौपदी के सभी पुत्र शिखण्डी को साथ लेकर धृतराष्ट्र के अन्य पुत्रों के साथ युद्ध करें। इस प्रकार हमारे पक्ष के प्रधान_प्रधान वीर शत्रुओं के वीरों का संहार करें। धर्मराज के ऐसा कहने पर धनंजय ने ‘तथास्तु’ कहकर उनकी आज्ञा स्वीकार की और सैनिकों को वैसा ही करने का आदेश देकर वे स्वयं सेना के मुहाने पर चले। महारथी अर्जुन को आते देख शल्य ने रणोन्मत कर्ण से पुनः इस प्रकार कहा_’कर्ण ! तुम जिन्हें बारंबार पूछते थे, वे कुन्ती नन्दन अर्जुन आ पहुंचे। उनके रथ का तुमुलनाद सुनाई दे रहा था। इधर यह अपशकुन होने लगा। वह देखो, रोंगटे खड़े कर देनेवाला अत्यंत भयंकर कबन्धाकार केतु नामक ग्रह सूर्यमंडल को घेरकर खड़ा है। तुम्हारी ध्वजा हिल रही है, घोड़े थर_थर कांपते हैं। मुझे तो इन अपशकुनों से ऐसा जान पड़ता है कि आज सैकड़ों और हजारों राजा मरकर रणभूमि में शयन करेंगे। जिनके हाथों में शंख, चक्र, गंदा और शार्ंगधनुष शोभा पाते हैं तथा वक्ष:स्थल में कौस्तुभ मणि देदिप्यमान रहती है, वे भगवान् श्रीकृष्ण हवा से बातें करने वाले सफेद घोड़ों को हांकते हुए इधर ही आ रहे हैं। यह देखो, गाण्डीव धनुष की टंकार होने लगी। अर्जुन के छोड़े हुए तीखे बाण शत्रुओं के प्राण ले रहे हैं। 
युद्ध में डटे हुए वीर राजाओं के मस्तकों से रणभूमि पटती जा रही है। जरा अपनी सेना की ओर तो दृष्टि डालो जो अर्जुन की मार से अत्यन्त व्याकुल हो रही है ! ये पाण्डववीर दौड़-दौड़कर तुम्हारे पक्ष के राजाओं का संहार करते हैं और हाथी, घोड़े, रथी तथा पैदल के समूह का नाश कर रहे हैं। यह देखो, अब महाबली अर्जुन संशप्तकों की ललकार सुनकर उधर ही बढ़ गये हैं और उन सभी शत्रुओं का संहार कर रहे हैं। महाराज शल्य की ऐसी बातें सुनकर कर्ण ने क्रोध से भरकर कहा_’शल्य ! तुम भी देख लो संशप्तक वीरों ने क्रोध में भरकर अर्जुन को चारों ओर धावा किया है।  अब उनका यहीं खात्मा समझो, वे रण समुद्र में डूब चुके हैं। शल्य ने कहा_अरे ! जो दोनों भुजाओं से पृथ्वी को उठा ले, क्रोध आने पर संपूर्ण प्रजा को भष्म करने की शक्ति रखता हो और देवताओं को स्वर्ग से नीचे गिरा सके, वहीं अर्जुन पर विजय पा सकता है। बेचारे संशप्तकों में इतनी ताकत कहां है ? धृतराष्ट्र ने पूछा_संजय ! जब सेनाओं की मोर्चाबंदी हो गयी, उसके बाद अर्जुन ने संशप्तकों पर और कर्ण ने पाण्डवों पर कैसे धावा किया_इसका वर्णन विस्तार के साथ करो। संजय ने कहा_महाराज ! उस समय शत्रुसेना को व्यूहाकार में खड़े देख अर्जुन ने भी उसके मुकाबले में व्यूह निर्माण किया।
व्यूह के मुहाने पर धृष्टद्युम्न खड़ा था, जो सेना की शोभा बढ़ा रहा था। वह मूर्तिमान काल के समान दिखायी पड़ता था। द्रौपदी के पुत्र चारों ओर से उसकी रक्षा कर रहे थे। तदनन्तर व्यूह बना जाने पर अर्जुन संशप्तकों को देखकर क्रोध में भर गये और गांडीव धनुष टंकारते हुए उनकी ओर दौड़े। संशप्तक भी  युद्ध करते रहने का निश्चय करके मन में विजय की अभिलाषा लेकर अर्जुन का वध करने के लिये उनपर टूट पड़े तथा उनको सब ओर से पीड़ित करने लगे। हमने अर्जुन का निवातकवचों के साथ जैसा भयंकर युद्ध सुना है, संशप्तकों के साथ छिड़ा हुआ वह तुमुल संग्राम वैसा ही भयानक था। अर्जुन ने शत्रुओं के धनुष_बाण, तलवार, चक्र, बरसे, हथियारों सहित ऊपर उठी हुई भुजाएं तथा नाना प्रकार के अस्त्र_शस्त्र काट डाले और हजारों वीरों के मस्तकों को धड़ से अलग कर दिया।
उन्होंने पहले पूर्व दिशा में खड़े हुए शत्रुओं का वध करके फिर उत्तर दिशा वालों का संहार किया। इसके बाद दक्षिण और पश्चिम के सैनिकों का सफाया किया। जैसे प्रलयकाल में रुद्र समस्त प्राणियों का संहार करते हैं, उसी प्रकार क्रोध में भरे हुए अर्जुन ने शत्रुओं की सेना का विनाश कर डाला। इसी समय पांचाल, चेदि और सृंजय देश के वीरों का आपके सैनिकों के साथ अत्यंत दारुण संग्राम छिड़ा। कृपाचार्य, कृतवर्मा और शकुनि कोसल, काशी, मत्स्य, करुष, केअर तथा शूरसेनदेशीय शूरवीरों के साथ युद्ध करने लगे।
उस युद्ध में असंख्य वीरों का विनाश हो रहा था। 
दूसरी ओर दुर्योधन अपने भाइयों को साथ लिये मद्रदेशीय महारथियों तथा प्रधान_प्रधान  कौरववीरों से सुरक्षित रहकर पाण्डव, पांचाल एवं चेदिदेशीय योद्धाओं एवं सात्यकि से लड़ते हुए कर्ण की रक्षा कर रहा था। उस समय कर्ण ने तीखे बाणों से पाण्डवों की विशाल सेना का महान् संहार किया और बड़े-बड़े रथियों को रौंदते हुए उसने युधिष्ठिर को अधिक पीड़ा पहुंचायी। हजारों शत्रुओं के प्राण लिये। इसके बाद बाणों की झड़ी लगाकर  उसने प्रभद्रकों के सतहत्तर श्रेष्ठ वीरों का सफाया कर दिया। फिर पच्चीस बाणों से पच्चीस पांचाल वीरों का वध कर डाला तथा सैकड़ों और हजारों चेदिदेशीय योद्धाओं को सायकों के निशाने बनाकर यमलोक पहुंचाया। इस समय झुंड_के_झुंड पांचाल रथियों ने आकर कर्ण को चारों ओर से घेर लिया। तब कर्ण ने पांच दु:सह बाण छोड़कर भानुदेव, चित्रसेन, सेनाबिन्दु, तपन तथा शूरसेन_इन पांच पांचालों को मार डाला। इन शूरवीरों के मारे जाने पर पांचाल_सेना में हाहाकार मच गया। पांचालों के दस रथियों ने कर्ण को घेर लिया। यह देख उसने अपने बाणों से उन्हें तुरंत मार गिराया। उस समय कर्ण के पहियों की रक्षा करनेवाले उसके दुर्जय पुत्र सुषेण और सत्यसेन प्राणों का मोह छोड़कर युद्ध कर रहे थे। कर्ण का ज्येष्ठ पुत्र वृषसेन स्वयं उसके पीछे रहकर पृष्ठभाग की रक्षा करता था। तदनन्तर धृष्टद्युम्न, सात्यकि, द्रौपदी के पांचों पुत्र, भीमसेन, जनमेजय, शिखण्डी, प्रधान_प्रधान प्रभद्रक, चेदि, के केकय, पांचाल तथा मत्स्यदेशीय वीर और नकुल_सहदेव_ये कवच आदि से सुसज्जित हो कर्ण को मार डालने की इच्छा से उनकी ओर दौड़े। पास आते ही उन्होंने कर्ण पर बाणों की झड़ी लगा दी। कर्ण के पुत्रों तथा आपके पक्ष के अन्य योद्धाओं ने उस समय उन वीरों को आगे बढ़ने से रोका। सुषेण ने भल्ल मारकर भीमसेन का धनुष काट डाला और सात नारायणों से उनके हृदय में घाव करके बड़े जोर से गर्जना की तब तो भीमसेन ने दूसरा धनुष हाथ में लिया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाकर सुषेण का धनुष काट दिया।
साथ ही क्रोध में भरकर उन्होंने उसको दस बाणों से बींध डाला। इतना ही नहीं, भीम ने कर्ण पर भी सत्तर तीखे बाणों का प्रहार किया और दस बाणों से उसके पुत्र भानुसेन को घोड़े तथा सारथि आदि सहित यमलोक भेज दिया। तत्पश्चात् भीम ने आपकी सेना को पीड़ित करना आरंभ किया। उन्होंने कृपाचार्य और कृतवर्मा के धनुष काटकर उन दोनों को खूब घायल किया। दु:शासन को तीन और शकुनि को छ: बाणों से बींधकर उलूक और पतत्रि दोनों को रथहीन कर डाला। उसके बाद सुषेण से यह कहकर कि ‘ले, अब तुझे भी मारे डालता हूं’ उन्होंने एक सहायक को अपने हाथ में लिया; किन्तु कर्ण ने उसके भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये और भीमसेन को मार डालने की इच्छा से उसने उसपर तिहत्तर बाणों का प्रहार किया। इधर सुषेण ने अपना धनुष लेकर नकुल की दोनों भुजाओं तथा छाती में पांच बाण मारे। तब नकुल ने बीस बाणों से सुषेण को घायल किया और भीषण सिंहनाद करके कर्ण को भी भयभीत कर डाला। यह देख सुषेण के क्रोध की सीमा न रही, उसने नकुल को साठ तथा सहदेव को सात बाणों से घायल कर दिया।
दूसरी ओर सात्यकि और वृषसेन में युद्ध छिड़ा हुआ था सात्यकि ने तीन बाणों से वृषसेन के सारथि को मारकर एक भाले से उसका धनुष काट दिया। फ़िर सात भल्लों से उसके घोड़ों का काम तमाम कर एक बाण से ध्वजा काट दी और तीन साधकों से वृषसेन की छाती में घाव किया।
उस प्रहार से वृषसेन का सारा शरीर सुन्न हो गया। एक क्षण तक बेहोश रहने के बाद वह उठा और हाथ में ढ़ोल तलवार ले सात्यकि को मार डालने की इच्छा से उसकी ओर झपटा। वृषसेन अभी कूदकर आ ही रहा था सात्यकि ने दस बाणों से उसकी ढ़ाल_तलवार के टुकड़े_टुकड़े कर दिये।
इसी समय उधर दु:शासन की दृष्टि पड़ी; उसने वृषसेन को रथ और शस्त्र से हीन देख तुरंत ही अपने रथ पर बिठा लिया और दूर ले जाकर उसे दूसरे रथ पर  इसके बाद महारथी वृषसेन ने वहां आकर द्रौपदी के  पुत्रों को तिहत्तर, सात्यकि को पांच, भीमसेन को चौंसठ, सहदेव को पांच, नकुल को तीस, शतानीक को सात, शिखंडी को दस, धर्मराज को सौ तथा अन्य वीरों को भी अनेकों बाणों से पीड़ित किया। तत्पश्चात् वह पुनः कर्ण के पृष्ठभाग की रक्षा करने लगा। सात्यकि के नये बने हुए लोहे के नौ बाणों से दु:शासन के सारथि, घोड़े, तथा रथ को नष्ट करके उसके ललाट में तीन बाण मारे। तब दु:शासन दूसरे रथ पर सवार हो कर्ण के उत्साह एवं बल को बढ़ाता हुआ पाण्डवों के साथ युद्ध करने लगा। तदनन्तर, कर्ण को धृष्टद्युम्न ने दस, द्रौपदी के पुत्रों ने तिहत्तर, सात्यकि ने सात, भीमसेन ने चौंसठ, सहदेव ने सात, नकुल ने तीस, शतानीक ने सात, शिखण्डी ने दस, धर्मराज ने सौ तथा अन्य वीरों ने भी बहुत से बाण मारे। सबलोगों ने सूतपुत्र को भली-भांति पीड़ित किया। तब कर्ण ने उनमें से प्रत्येक को दस_दस बाणों से बींध डाला। उनके घोड़े, सारथि और रथ जब कर्ण के बाणों से आच्छादित हो गये तो उन्होंने विवश होकर कर्ण को आगे बढ़ने के लिये मार्ग दे दिया। अपने बाणों की बौछार से उन महान् धनुर्धरों का मानमर्दन करता हुआ कर्ण हाथियों की सेना में बेरोक_टोक घुस गया। फिर चेदिवीरों के तीस रथियों का सफाया करके उसने राजा युधिष्ठिर पर धावा किया। उस समय , सात्यकि तथा पाण्डवलोग राजा को सब ओर से घेरकर उनकी रक्षा करने लगे। इसी प्रकार आपके पक्ष वाले शूरवीर योद्धा भी डटकर कर्ण की रक्षा करने लगे। उस समय युधिष्ठिर आदि पाण्डव और कर्ण आदि निर्भय होकर युद्ध में लग गये।