Monday 28 February 2022

दोनों पक्ष के योद्धाओं का द्वंदयुद्ध तथा भीमसेन का पराक्रम

धृतराष्ट्र ने पूछा_संजय ! पांडवों और पांचालों की मार खाने से हमारी सेना दु:खी होकर भागने लगी, उस समय कौरवों ने क्या किया ?
संजय ने कहा_महाराज ! उस समय महाबाहु भीमसेन पर कर्ण की दृष्टि पड़ी। उन्हें देखते ही उसकी आंखें क्रोध से लाल हो गयीं और वह उनपर चढ़ आया। उसने भीमसेन के डर से भागती हुई आपकी सेना को बड़ी कोशिश करके रोका और उसे व्यवस्थापूर्वक खड़ी करके पाण्डवों की ओर बढ़ा। यह देख पाण्डवों के महारथी भीमसेन, सात्यकि, शिखण्डी, जन्मेजय, धृष्टद्युम्न तथा प्रभद्रक आदि  क्रोध में भरकर आपकी सेना का संहार करने के लिये उसपर चारों ओर से टूट पड़े। उस युद्ध में शिखण्डी ने कर्ण का सामना किया और धृष्टद्युम्न ने बहुत बड़ी सेना से घिरे हुए दु:शासन का मुकाबला किया। नकुल ने वृषसेन पर और युधिष्ठिर ने चित्रसेन पर धावा किया। सहदेव उलूक से भिड़ गया। सात्यकि का सहदेव पर और द्रौपदी के पुत्रों का कौरवों पर आक्रमण हुआ। अर्जुन का सामना महारथी अश्वत्थामा ने किया। कृपाचार्य का युधामन्यु से और कृतवर्मा का उत्तमौजा से युद्ध हुआ। भीमसेन ने अकेले ही समस्त कौरवों तथा उनकी सेनाओं का वेग रोका। महाराज ! शिखण्डी ने रणभूमि में निर्भय विचरते हुए कर्ण को अपने बाणों का निशाना बनाया और उसे आगे बढ़ने से रोक दिया। बाधा पाकर रोष के मारे कर्ण के ओंठ फड़कने लगे। उसने शिखण्डी की दोनों भौंहों के बीच तीन बाण मारे। उनसे अत्यन्त आहत होकर शिखण्डी ने भी कर्ण को तेज किये हुए नब्बे बाण मारे। तब महारथी कर्ण ने तीन बाणों से शिखण्डी के सारथि और घोड़ों को मार डाला। इससे शिखण्डी को बड़ा क्रोध हुआ। उसने अपने रथ से कूदकर कर्ण के ऊपर शक्ति का प्रहार किया। कर्ण ने तीन बाणों से उस शक्ति के टुकड़े_टुकड़े कर डाले और नौ तीखे बाण मारकर उसे भी बींध डाला। शिखण्डी के शरीर में बहुत घाव हो गये थे; इसलिये वह कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों का वार बचाता हुआ तुरंत भाग निकला। अब कर्ण पाण्डव सैनिकों को अपने बाणों से गिराने लगा। दूसरी ओर आपके पुत्र दु:शासन ने धृष्टद्युम्न को बहुत पीड़ित किया। तब धृष्टद्युम्न ने दु:शासन की छाती में तीन बाण मारे। फिर दु:शासन ने भी एक तीखे भल्ल से धृष्टद्युम्न की बायीं भुजा को बींध डाला, इससे धृष्टद्युम्न क्रोध में भर गया और एक तीखा क्षुरप्र मारकर दु:शासन का धनुष काट दिया। यह देख पांचाल योद्धा उच्च स्वर से गर्जना करने लगे। अब आपके पुत्र ने दूसरा धनुष हाथ में लिया और हंसते हंसते बाणों की झड़ी लगाकर धृष्टद्युम्न को चारों ओर से घेर लिया। तदनन्तर पांचालदेशीय सैनिकों ने भी अपने सेनापति को बचाने के लिये आपके पुत्र पर घेरा डाल दिया। फिर तो आपके योद्धाओं का शत्रुओं के साथ घोर संग्राम होने लगा। इसी बीच अपने पिता के पास खड़े हुए वृषसेन ने नकुल को पहले पांच और फिर आठ बाण मारे तब शूरवीर नकुल ने भी हंसते_हंसते एक तीखे नारायण से वृषसेन की छाती छेद डाली। इस चोट से वृषसेन बहुत घायल हो गया। फिर तो वे दोनों वीर हजारों बाणों की बौछार से एक_दूसरे को ढ़कने लगे। इतने में ही कौरव_सेना में भगदड़ पड़ गयी। कर्ण पीछे लौटकर उसे रोकने लगा। उसके लौट जाने पर नकुल ने कौरवों पर चढ़ाई की। कर्णपुत्र वृषसेन भी नकुल का सामना करना छोड़ अपने पिता के पहियों की ही रक्षा में लग गया। इसी प्रकार क्रोध से भरे हुए उलूक को संग्राम में सहदेव ने रोका, उसने उलूक के चारों घोड़ों को मारकर उसके सारथि को भी यमलोक भेज दिया। उलूक रथ से कूदकर भागा और तुरंत त्रिगर्तों की सेना में जा घुसा।
एक ओर सात्यकि और शकुनि में लड़ाई हो रही थी। सात्यकि ने तेज किये हुए बीस बाणों से शकुनि को घायल कर दिया और एक भल्ल मारकर उसकी ध्वजा भी काट डाली। इससे शकुनि को बड़ा कोप हुआ; उसने सात्यकि का कवच काटकर उसकी ध्वजा के भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये। सात्यकि ने शकुनि को पुनः तीन बाणों से घायल किया। तीन ही बाण उसके सारथि को भी मारे। इसके बाद अनेकों बाण मारकर उसने शकुनि के घोड़ों को यमलोक भेज दिया। फिर तो शकुनि सहसा रथ से कूद पड़ा और उलूक के रथ पर बैठकर वहां से चम्पत हो गया। अब सात्यकि आपकी सेना पर बाण बरसाने लगा। उसकी बाणो की चोट से आहत हो आपके सैनिक चारों ओर भागने लगे। बहुतेरे अपने प्राण खोकर रणभूमि में ही गिर गये। दूसरी ओर, आपके पुत्र दुर्योधन ने भीमसेन को रोका। किन्तु भीम ने तुरंत ही उसके घोड़ों और सारथि को मार डाला। फिर रथ ध्वजा की धज्जियां उड़ा दीं। इससे पाण्डव पक्ष के योद्धा बहुत प्रसन्न हुए। इस प्रकार परास्त होकर दुर्योधन भीम के सामने से भाग गया।
इधर युधामन्यु ने कृपाचार्य को घायल करके तुरंत ही उनका धनुष भी काट दिया। तब शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ आचार्य कृप ने दूसरा धनुष हाथ में ले बाण मारकर युधामन्यु के रथ की ध्वजा, सारथि और छत्र को नीचे गिरा दिया। तब तो महारथी युधामन्यु स्वयं ही रथ हांकता हुआ भाग गया।
इसी प्रकार एक ओर उत्तमौजा ने बाणों की झड़ी लगाकर कृतवर्मा को ढ़क लिया। फिर उन दोनों में अत्यन्त भयानक युद्ध छिड़ गया। कृतवर्मा ने उत्तमौजा की छाती में चोट की, वह मूर्छित होकर रथ की बैठक में बैठ गया। उसकी यह अवस्था देख सारथि उसे रणभूमि से हटा ले गया।
तदनन्तर, कौरवों की सारी सेना भीमसेन पर टूट पड़ी। दु:शासन तथा शकुनि हाथियों की बहुत बड़ी सेना से भीमसेन को घेरकर उनपर बाण मारना आरम्भ किया। हाथियों की सेना देखते ही भीमसेन के क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने दिव्यास्त्रों का प्रयोग करते हुए हाथियों का का संहार आरंभ किया। अपने बाणों से हाथियों के हजारों जत्थों का सफाया कर डाला। उस समय बिजली की गड़गड़ाहट के समान भीम के धनुष की टंकार सुनकर हाथी मल_मूत्र त्यागते हुए बड़े वेग से भाग रहे थे। महाराज ! भीमसेन का वह पराक्रम संपूर्ण प्राणियों का संहार करने वाले रुद्र के समान जान पड़ता था।

Thursday 10 February 2022

भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन से कौरवों के आक्रमण तथा भीम के पराक्रम का वर्णन

संजय कहते हैं_महाराज ! चलते समय राह में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से युधिष्ठिर को दिखाते हुए कहा_’पाण्डुनन्दन ! ये हैं तुम्हारे भाई युधिष्ठिर। देखो, इन्हें मारने के लिये अत्यन्त बलवान और महान् धनुर्धर कौरव_योद्धा बड़ी तेजी के साथ इनका पीछा कर रहे हैं। साथ ही इनकी रक्षा के लिये पांचालदेशीय वीर भी उनके पीछे-पीछे आ रहे हैं। यह राजा दुर्योधन भी रथियों की सेना से गिरकर राजा युधिष्ठिर पर धावा कर रहा है। इसका भी उद्देश्य यही है कि युधिष्ठिर को मार डाले। इस कार्य में इसके भाई भी साथ दे रहे हैं। ये हाथीसवार, घुड़सवार, रथी और पैदल_सभी इन्हें पकड़ने के लिये जा रहे हैं।अब देखो, सात्यकि और भीम ने पहुंचकर यद्यपि इन्हें बीच में ही रोक दिया है, तो भी ये संख्या में अधिक होने के कारण राजा की ओर बढ़े ही चले जाते हैं। शत्रु को संताप देने वाले राजा युधिष्ठिर भी यद्यपि बड़े बलवान हैं, युद्ध की कला में निपुण हैं, उनका हाथ भी फुर्ती से चलता है, तथापि कर्ण ने उन्हें रण से विमुख कर दिया है। धृतराष्ट्र के पुत्र शूरवीर हैं, उनकी सहायता मिल जाने पर कर्ण अवश्य ही हमारे महाराज को कष्ट पहुंचा सकता है। इनके तथा और भी बहुत से शूरवीरों के साथ ये युद्ध कर रहे थे। उन सब महारथियों ने मिलकर उन्हें परास्त किया है। राजा युधिष्ठिर उपवास करने के कारण बहुत दुर्बल हो गये हैं। ये अधिकतर ब्राह्मबल ( क्षमा ) में ही स्थित रहते हैं; क्षात्रबल ( निष्ठुरता ) में नहीं; जबसे कर्ण के साथ इनकी भिड़ंत हुई है; तबसे ये बड़े संकट में पड़ गये हैं। कर्ण धृतराष्ट्र के महारथी पुत्रों से यह कह रहा है कि ‘तुमलोग पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर को मार डालो।‘
पार्थ ! ये सभी महारथी स्थूणाकर्ण, इन्द्रजाल तथा पाशुपत नामक अस्त्र-शस्त्रों से राजा को आच्छादित कर रहे हैं। वे आतुर हो गये हैं, इस समय उन्हें विशेष सेवा की आवश्यकता है। अब शीघ्रता करने का समय है_यह जानकर  पांचाल तथा पाण्डव वीर बड़ी तेजी से उनके पीछे दौड़ते हैं। उन्हें यह आशा और विश्वास है कि यदि महाराज युधिष्ठिर पाताल में भी डूबते होंगे तो हम उन्हें बलपूर्वक निकाल लायेंगे। वह देखो, अब कर्ण अत्यन्त क्रोध में भरकर पांचालों की ओर दौड़ रहा है। उसके रथ की ध्वजा धृष्टद्युम्न के रथ की ओर जाती दिखायी दे रही है। पार्थ ! इस समय मैं तुम्हें एक परम प्रिय समाचार सुना रहा हूं कि राजा युधिष्ठिर जीवित हैं। उधर वे महाबाहु भीमसेन हैं, जो सृंजयों की वाहिनी तथा सात्यकि के साथ लौटकर अपनी सेना के मुहाने पर खड़े हैं। पांचाल योद्धा तथा भीमसेन अपने तेज बाणों से अब कौरवों पर प्रहार कर रहे हैं। देखो, कौरव_सेना भाग चली। सैनिकों के गांवों से खून की धारा जारी है। उनकी बड़ी दयनीय दशा दिखाती देती है। अब देखो, भीमसेन शत्रुओं की सेना को खदेड़ने लगे। उनकी वजह से कौरव_वाहिनी बड़े संकट में पड़ गयी है। ये रथी लोग भीम के भय से थर्रा उठे हैं। हाथी उनके नाराचों की मार से विदीर्ण हो_होकर जमीन पर गिर रहे हैं। बड़े_बड़े गजराज भीम से घायल होकर अपनी ही सेना को रौंदते कुचलते हुए भागे जा रहे हैं। अर्जुन ! पहचान लो, संग्राम विजयी वीरवर भीमसेन का ही यह दु:सह  सिंहनाद सुनाई देता है ! यह लो, उन्होंने दस बाण मारकर निषादराज के पुत्र को भी मौत के घाट उतार दिया। अब कौरवों की बोलती बन्द हो गयी है, पहले जैसी उनकी गर्जना नहीं सुनाई देती।
भीमसेन ने दुर्योधन को तीन अक्षौहिणी सेनाओं को आगे बढ़ने से रोककर मार डाला है। जिनकी आंखें कमजोर हैं वे जैसे दोपहर के सूर्य की ओर नहीं सकते, वैसे ही कौरव पक्ष के राजा लोग भीमसेन की ओर आंख उठाकर देख नहीं पाते। उनकी बाणों की मार से भयभीत हुए शत्रुओं को कहीं भी चैन नहीं मिलता।‘ भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से ये बातें सुनकर अर्जुन ने भीमसेन के दुष्कर पराक्रम पर दृष्टिपात किया। फिर अपने बचे_खुचे शत्रुओं को तीखे बाणों से मारना आरम्भ किया। संशप्तक योद्धा बड़े बलवान थे तो भी वे अर्जुन की मार से युद्ध में नहीं ठहर सके। भयभीत होकर सब दिशाओं में भाग गये।