Thursday 10 February 2022

भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन से कौरवों के आक्रमण तथा भीम के पराक्रम का वर्णन

संजय कहते हैं_महाराज ! चलते समय राह में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से युधिष्ठिर को दिखाते हुए कहा_’पाण्डुनन्दन ! ये हैं तुम्हारे भाई युधिष्ठिर। देखो, इन्हें मारने के लिये अत्यन्त बलवान और महान् धनुर्धर कौरव_योद्धा बड़ी तेजी के साथ इनका पीछा कर रहे हैं। साथ ही इनकी रक्षा के लिये पांचालदेशीय वीर भी उनके पीछे-पीछे आ रहे हैं। यह राजा दुर्योधन भी रथियों की सेना से गिरकर राजा युधिष्ठिर पर धावा कर रहा है। इसका भी उद्देश्य यही है कि युधिष्ठिर को मार डाले। इस कार्य में इसके भाई भी साथ दे रहे हैं। ये हाथीसवार, घुड़सवार, रथी और पैदल_सभी इन्हें पकड़ने के लिये जा रहे हैं।अब देखो, सात्यकि और भीम ने पहुंचकर यद्यपि इन्हें बीच में ही रोक दिया है, तो भी ये संख्या में अधिक होने के कारण राजा की ओर बढ़े ही चले जाते हैं। शत्रु को संताप देने वाले राजा युधिष्ठिर भी यद्यपि बड़े बलवान हैं, युद्ध की कला में निपुण हैं, उनका हाथ भी फुर्ती से चलता है, तथापि कर्ण ने उन्हें रण से विमुख कर दिया है। धृतराष्ट्र के पुत्र शूरवीर हैं, उनकी सहायता मिल जाने पर कर्ण अवश्य ही हमारे महाराज को कष्ट पहुंचा सकता है। इनके तथा और भी बहुत से शूरवीरों के साथ ये युद्ध कर रहे थे। उन सब महारथियों ने मिलकर उन्हें परास्त किया है। राजा युधिष्ठिर उपवास करने के कारण बहुत दुर्बल हो गये हैं। ये अधिकतर ब्राह्मबल ( क्षमा ) में ही स्थित रहते हैं; क्षात्रबल ( निष्ठुरता ) में नहीं; जबसे कर्ण के साथ इनकी भिड़ंत हुई है; तबसे ये बड़े संकट में पड़ गये हैं। कर्ण धृतराष्ट्र के महारथी पुत्रों से यह कह रहा है कि ‘तुमलोग पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर को मार डालो।‘
पार्थ ! ये सभी महारथी स्थूणाकर्ण, इन्द्रजाल तथा पाशुपत नामक अस्त्र-शस्त्रों से राजा को आच्छादित कर रहे हैं। वे आतुर हो गये हैं, इस समय उन्हें विशेष सेवा की आवश्यकता है। अब शीघ्रता करने का समय है_यह जानकर  पांचाल तथा पाण्डव वीर बड़ी तेजी से उनके पीछे दौड़ते हैं। उन्हें यह आशा और विश्वास है कि यदि महाराज युधिष्ठिर पाताल में भी डूबते होंगे तो हम उन्हें बलपूर्वक निकाल लायेंगे। वह देखो, अब कर्ण अत्यन्त क्रोध में भरकर पांचालों की ओर दौड़ रहा है। उसके रथ की ध्वजा धृष्टद्युम्न के रथ की ओर जाती दिखायी दे रही है। पार्थ ! इस समय मैं तुम्हें एक परम प्रिय समाचार सुना रहा हूं कि राजा युधिष्ठिर जीवित हैं। उधर वे महाबाहु भीमसेन हैं, जो सृंजयों की वाहिनी तथा सात्यकि के साथ लौटकर अपनी सेना के मुहाने पर खड़े हैं। पांचाल योद्धा तथा भीमसेन अपने तेज बाणों से अब कौरवों पर प्रहार कर रहे हैं। देखो, कौरव_सेना भाग चली। सैनिकों के गांवों से खून की धारा जारी है। उनकी बड़ी दयनीय दशा दिखाती देती है। अब देखो, भीमसेन शत्रुओं की सेना को खदेड़ने लगे। उनकी वजह से कौरव_वाहिनी बड़े संकट में पड़ गयी है। ये रथी लोग भीम के भय से थर्रा उठे हैं। हाथी उनके नाराचों की मार से विदीर्ण हो_होकर जमीन पर गिर रहे हैं। बड़े_बड़े गजराज भीम से घायल होकर अपनी ही सेना को रौंदते कुचलते हुए भागे जा रहे हैं। अर्जुन ! पहचान लो, संग्राम विजयी वीरवर भीमसेन का ही यह दु:सह  सिंहनाद सुनाई देता है ! यह लो, उन्होंने दस बाण मारकर निषादराज के पुत्र को भी मौत के घाट उतार दिया। अब कौरवों की बोलती बन्द हो गयी है, पहले जैसी उनकी गर्जना नहीं सुनाई देती।
भीमसेन ने दुर्योधन को तीन अक्षौहिणी सेनाओं को आगे बढ़ने से रोककर मार डाला है। जिनकी आंखें कमजोर हैं वे जैसे दोपहर के सूर्य की ओर नहीं सकते, वैसे ही कौरव पक्ष के राजा लोग भीमसेन की ओर आंख उठाकर देख नहीं पाते। उनकी बाणों की मार से भयभीत हुए शत्रुओं को कहीं भी चैन नहीं मिलता।‘ भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से ये बातें सुनकर अर्जुन ने भीमसेन के दुष्कर पराक्रम पर दृष्टिपात किया। फिर अपने बचे_खुचे शत्रुओं को तीखे बाणों से मारना आरम्भ किया। संशप्तक योद्धा बड़े बलवान थे तो भी वे अर्जुन की मार से युद्ध में नहीं ठहर सके। भयभीत होकर सब दिशाओं में भाग गये।

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