Saturday 29 January 2022

अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा, धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध, अश्वत्थामा के द्वारा धृष्टद्युम्न की और अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय

संजय कहते हैं_महाराज ! तदनन्तर, दुर्योधन ने कर्ण के पास जाकर कहा_’राधानन्दन ! यह युद्ध खुला हुआ स्वर्ग का दरवाजा है, जो हमें स्वत: प्राप्त हो गया है। सौभाग्यशाली क्षत्रियों को ही ऐसा युद्ध मिला करता है। यदि तुमलोगों ने युद्ध में पाण्डवों को मारा तो धन_ धान्य से सम्पन्न पृथ्वी प्राप्त करोगे और यदि शत्रुओं के साथ से तुम्ही मारे गये तो वीर पुरुषों के प्राप्त होने योग्य _पुण्य_लोक पाओगे। दुर्योधन की बात सुनकर श्रेष्ठ क्षत्रियों ने हर्ष_ध्वनि की। फिर सब ओर बाजे बजने लगे। उस समय अश्वत्थामा ने वहां पहुंचकर आपके योद्धाओं को हर्षित करते हुए कहा_’आप सब लोगों ने तो देखा ही था मेरे पिता अस्त्र डालकर योग में स्थित हो गये थे, तो भी उन्हें धृष्टद्युम्न ने मारा। इसके कारण तो मुझे अमर्ष है ही, मित्र दुर्योधन का हित भी करना है। 
इसलिये क्षत्रियों ! मैं आपके समक्ष यह प्रतिज्ञा करता हूं धृष्टद्युम्न को मारे बिना अपना कवच नहीं उतारूंगा। यदि मेरी प्रतिज्ञा झूठी हो तो मुझे स्वर्ग न मिले। लड़ाई में अर्जुन या भीमसेन जो भी मेरा सामना करने आयेंगे, उन सबको कुचल डालूंगा_इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।अश्वत्थामा के ऐसा कहने पर कौरवों की सेना ने एक साथ होकर पाण्डवों पर धावा किया। साथ ही पाण्डवों का भी उसपर आक्रमण हुआ। दोनों दलों में घोर संग्राम होने लगा। मनुष्यों का भीषण संहार मचा; प्रलयकाल का दृश्य उपस्थित हो गया। उस समय पाण्डवों के पक्ष में युधिष्ठिर की और हमारे दल में कर्ण की प्रधानता थी। खूब जोर से मार_काट हुई। खून की धारा बह चली। संशप्तकों में अब थोड़े ही बच गये थे। इसलिये धृष्टद्युम्न तथा पाण्डव महारथियों ने सब राजाओं को साथ लेकर कर्ण पर ही धावा किया। किंतु कर्ण ने अकेले ही उन सबका बढ़ाव रोक दिया।
धृष्टद्युम्न ने कर्ण को एक बाण मारकर कहा_’अरे ! खड़ा रह, खड़ा रह, कहां भागा जाता है ?’ यह सुनकर कर्ण क्रोध में भर गया और धृष्टद्युम्न का धनुष काटकर उसने उसको नौ बाण मारे। धृष्टद्युम्न का कवच कट गया। इसके बाद उसने भी दूसरा धनुष लिया और कर्ण को सत्तर बाणों से घायल किया। अब तो कर्ण को बड़ा कोप हुआ, उसने धृष्टद्युम्न पर मृत्युदंड के समान भयंकर बाण का प्रहार किया। उस बाण को धृष्टद्युम्न की ओर आते देख सात्यकि ने अपने हाथ की फुर्ती दिखाते हुए उसके साथ टुकड़े कर डाले। यह देख कर्ण ने बाणों की वर्षा करके सात्यकि को चारों ओर से घेर लिया और सात नाराचों से उसे बींध डाला। सात्यकि ने भी कर्ण का यही हाल किया। फिर उन दोनों में विचित्र प्रकार से घोर युद्ध हुआ, जिससे देखने और सुनने से भी भय होता था। इसी बीच में धृष्टद्युम्न पर अश्वत्थामा ने चढ़ाई की। उसने आते ही क्रोध में भरकर कहा_’ओ ब्रह्महत्यारे ! आज मैं तुझे मौत के मुंह में भेज दूंगा। अगर अर्जुन ने तेरी रक्षा नहीं की, यदि तू लड़ाई में डटा रहा गया और सामना छोड़कर भागा नहीं, तो आज तुझे तेरे पाप का। दण्ड अवश्य मिलेगा, तू कुशल से नहीं रह सकेगा ? उसके ऐसा कहने पर धृष्टद्युम्न बोला_’ तेरी बात का उत्तर मेरी यह तलवार ही देगी, जो तेरे पिता को संग्राम में मुंहतोड़ जवाब दे चुकी है।‘ यों कहकर सेनापति धृष्टद्युम्न ने अमर्ष में भरकर अश्वत्थामा को एक तीखे बाण से बींध डाला। इससे अश्वत्थामा को बड़ा क्रोध हुआ। उसने इतने बाणों की वर्षा की जिससे धृष्टद्युम्न के चारों ओर की दिशाएं ढ़क गयीं। इसी प्रकार धृष्टद्युम्न ने भी कर्ण के देखते_देखते द्रोणकुमार को अपने हाथों से आच्छादित कर दिया  उसका धनुष भी काट डाला। अश्वत्थामा ने वह धनुष फेंक दिया और दूसरा धनुष_बाण हाथ में लेकर उससे धृष्टद्युम्न के शक्ति, गदा, ध्वजा, घोड़े, सारथि तथा रथ को पलक मारते_मारते नष्ट कर दिया। तब धृष्टद्युम्न ने ढ़ाल और तलवार हाथ में ली, किन्तु महारथी अश्वत्थामा ने बल्लों से मारकर उनके भी टुकड़े_टुकड़े कर डाले। साथ ही उसने अनेक बाणों से धृष्टद्युम्न को बहुत घायल कर दिया। यह सब करने पर भी जब वह धृष्टद्युम्न का नाश न कर सका तो धनुष फेंककर धृष्टद्युम्न को पकड़ने के लिये दौड़ा। इसी बीच में श्रीकृष्ण की दृष्टि उधर गयी। उन्होंने अर्जुन से कहा_’पार्थ ! वह देखो, अश्वत्थामा धृष्टद्युम्न को मारने के लिये बड़ा भारी उद्योग कर रहा है। इसमें संदेह नहीं कि वह अश्वत्थामा का ग्रास बना ही चाहता है, इसलिये तुम इसे शीघ्र छुड़ाओ।,' ऐसा कहकर महाप्रतापी भगवान् श्रीकृष्ण ने, जहां अश्वत्थामा था उधर ही अपने घोड़े बढ़ाये। श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख उसने धृष्टद्युम्न को मारने का विशेष उद्योग किया। अर्जुन ने जब देखा कि अश्वत्थामा द्रुपदकुमार को घसीट रहा है, तो उसके ऊपर बहुत से बाण मारे। गाण्डीव से छूटे हुए वे बाण, जैसे सांप अपनी बांबी में घुसते हैं, उसी प्रकार अश्वत्थामा के शरीर में धंस गये। उनसे पीड़ित होकर द्रोणपुत्र ने धृष्टद्युम्न  को तो छोड़ दिया और अपने रथ में बैठकर धनुष हाथ में ले अर्जुन को बींधना आरंभ कर दिया। इतने में सहदेव धृष्टद्युम्न को अपने रथ पर बिठाकर वहां से अन्यत्र हटा दिया। अर्जुन ने भी द्रोणकुमार को बाणों से बींधना आरंभ किया। इससे अश्वत्थामा का क्रोध बहुत बढ़ गया। उसने अर्जुन की भुजाओं तथा छाती में भी बाण मारे। तब अर्जुन ने अश्वत्थामा के ऊपर द्वितीय कालदण्ड के समान एक नाराच चलाया। वह उसके कंधे पर लगा। लगते ही अश्वत्थामा विह्वल होकर रथ की बैठक में बैठ गया। उस समय उसे बड़ी वेदना हुई। उसकी यह अवस्था देख सारथि बड़ी फुर्ती के साथ उसे रणांगण से बाहर ले गया। महाराज ! इस प्रकार धृष्टद्युम्न को संकट से मुक्त और अश्वत्थामा को पीड़ित देख पांचाल वीरों ने बड़े जोर से गर्जना की। हजारों दिव्य बाजे बज उठे। सबलोग सिंहनाद करने लगे। तदनन्तर अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण से बोले_’अब संशप्तकों की ओर चलिये, उनका संहार करना इस समय मेरे लिये प्रधान काम है।‘ उनकी बात सुनकर भगवान् हवा से बातें करनेवाले अपने रथ के द्वारा संशप्तकों की ओर चल दिये।

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