संजय कहते हैं_एक ओर तो यह भयंकर संग्राम चल रहा था और दूसरी ओर अर्जुन संशप्तक सेना का विनाश कर रहे थे। शत्रुओं को जीतकर भगवान् श्रीकृष्ण से कहा_’जनार्दन ! ये संशप्तक तो अब युद्ध में मेरे बाणों की चोट न सह सकने के कारण झुंड_के_झुंड भागे जा रहे हैं। दूसरी ओर सृंजयों की बहुत बड़ी सेना भी विदीर्ण हो रही है। उधर कर्ण बड़े आराम से राजाओं की सेना में विचर रहा है, देखिये न, उसकी पताका दिखाई देती है। आप तो जानते ही हैं, कर्ण कितना पराक्रमी और बलवान है। दूसरे कोई महारथी उसे युद्ध में नहीं जीत सकते। यह हमारी सेना को खदेड़ रहा है, इसलिये अब उधर ही चलिये। यहां की लड़ाई बन्द करके महारथी कर्ण के पास चलना चाहिते। मेरी तो यही राय है, आगे आपकी जैसी इच्छा।‘ यह सुनकर भगवान् हंसते हुए बोले_’पाण्डुनन्दन ! अब तुम शीघ्र ही कौरवों का नाश करो’ ऐसा कहकर गोविन्द ने घोड़ों को हांक दिया। वे हंस के समान सफेद रंगवाले घोड़े श्रीकृष्ण और अर्जुन को लिए हुए आपकी विशाल सेना में घुस गये। उनके पहुंचते ही आपकी सेना चारों ओर भागने लगी। अर्जुन को अपनी सेना के भीतर विचरते देख दुर्योधन ने संशप्तकों को पुनः उनसे लड़ने की आज्ञा दी। संशप्तक योद्धा एक हजार रथ, तीन सौ हाथी, चौदह हजार घोड़े तथा दो लाख पैदल सेना लेकर अर्जुन पर आ चढ़े। वे अपनी बाणवर्षा से अर्जुन को आच्छादित करते हुए उन्हें घेरकर खड़े हो गये। अब अर्जुन ने पाश हाथ में लिये यमराज की भांति अपना भयंकर रूप प्रकट किया। वे संशप्तकों का संहार करने लगे। उस समय उनकी झांकी देखने ही योग्य थी। उन्होंने बिजली के समान चमकीले बाणों से वहां के समूचे आकाश को ढ़क दिया, तनिक भी खाली नहीं रखा। उनके धनुष की प्रत्यंचा की आवाज सुनकर ऐसा जान पड़ता मानो पृथ्वी, आकाश, दिशाएं, समुद्र तथा पर्वत_ये सब_के_सब फटे जा रहे हैं। थोड़ी ही देर में अर्जुन ने दस हजार योद्धाओं का सफाया कर डाला। फिर वे बड़ी फुर्ती के साथ उन आततायी शत्रुओं के हथियारसहित हाथ, भुजाएं, जंघा और मस्तक काटने लगे। इस प्रकार अर्जुन संशप्तकों की चतुरंगिणी सेना का नाश कर ही रहे थे कि सुदक्षिण का छोटा भाई वहां पहुंचकर उनके ऊपर बाणों की बौछार करने लगा। उस समय अर्जुन ने दो अर्धचंद्राकार बाणों से उसकी परिचय के समान मोटी भुजाएं काट डालीं तथा क्षुर से मारकर उसके पूर्ण चन्द्रमा के समान मनोहर मस्तक को भी धर से अलग कर दिया। वह लोहूलुहान होकर जमीन पर गिर गया। उसके गिरते ही बड़ा भयंकर संग्राम छिड़ गया। लड़नेवाले योद्धाओं की नाना प्रकार से दुर्दशा होने लगी। अर्जुन ने एक_एक बाण से काम्बोजों, यवनों तथा शकों के घोड़ों का संहार करने लगा, वे कम्बोज आदि स्वयं भी खून से लथपथ हो गये। उनके रुधिर से सारी रणभूमि लाल हो गयी।
रथी, सारथि, घुड़सवार, हाथीसवार और महावत सब मारे गये। इस प्रकार वहां भयानक नरसंहार हुआ। तदनन्तर, अश्वत्थामा अर्जुन का सामना करने के लिये चढ़ आया। उस समय वह क्रोध में भरे हुए काल के समान जान पड़ता था। रथ पर बैठे हुए श्रीकृष्ण पर दृष्टि पड़ते ही उसने भयंकर अस्त्र-शस्त्र की वृष्टि आरंभ कर दी। अश्वत्थामा के छोड़े हुए बाण चारों ओर से आकर श्रीकृष्ण और अर्जुन पर पड़ने लगे। वे दोनों रथ पर बैठे_ही_बैठे ढ़क गये। प्रतापी अश्वत्थामा ने उन दोनों को निश्चेष्ट कर दिया, उनसे कुछ भी करते नहीं बनता था। उनकी यह अवस्था देख समस्त चराचर जगत् में हाहाकार मच गया। संग्राम में श्रीकृष्ण और अर्जुन को आच्छादित करते समय अश्वत्थामा ने जो पराक्रम दिखाया, वैसा इसके पहले मैंने कभी नहीं देखा था। उस समय द्रोणपुत्र की ओर देखकर अर्जुन को बड़ा भारी मोह_सा हो गया। उन्हें यह विश्वास_सा होने लगा कि अश्वत्थामा ने मेरा पराक्रम हर लिया है।
यह देख श्रीकृष्ण ने प्रेममिश्रित क्रोध के साथ कहा_’पार्थ ! तुम्हारे विषय में आज मैं बड़ी अद्भुत बात देख रहा हूं। आज द्रोणकुमार तुमसे बहुत बढ़_चढ़कर पराक्रम दिखा रहा है। अब तुममें पहले जैसी वीरता है या नहीं ? तुम्हारी दोनों भुजाओं में बल का अभाव तो नहीं हो गया है ? हाथ में गाण्डीव है न ? यह सब इसलिये पूछता हूं कि आज द्रोणकुमार तुमसे बढ़ता दिखाती देता है। ‘मेरे गुरु का पुत्र है' यह सोचकर उसकी उपेक्षा न करो। यह उपेक्षा करने का समय नहीं है।‘
श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर अर्जुन ने चौदह भल्ल हाथ में लिये और उनसे अश्वत्थामा के धनुष, ध्वजा, छत्र, पताका, रथ, शक्ति और गदा को नष्ट कर डाला। फिर ‘वत्सदन्त’ नामक बाणों से उसके गले की हंसली में इतने जोर से प्रहार किया कि उसे मूर्छा आ गयी। वह ध्वजा का डंडा थामकर बैठ गया। उसे बेहोश देखकर सारथि अर्जुन से उसकी रक्षा करने के लिये रणभूमि से बाहर हटा लें गया। इस प्रकार अर्जुन ने संशप्तकों का, भीम ने कौरव_योद्धाओं का तथा कर्ण ने पांचालों का एक ही क्षण में विनाश कर डाला। बड़े_बड़े वीरों का संहार करनेवाले उस भयंकर संग्राम में असंख्यों धड़ उठ_उठकर दौड़ रहे थे।
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