Wednesday, 5 February 2025

युद्धभूमि में पहुंचकर स्त्रियों का विलाप करना और गांधारी का श्रीकृष्ण से उनकी दशा का वर्णन करना

श्री वैशम्पायनजी कहते हैं _ जनमेजय ! गांधारी बड़ी ही पतिव्रता, भाग्यवती और तपस्विनी थी।
वह सर्वदा सत्य भाषण ही करती थी। महर्षि व्यास के वर से उसे दिव्यदृष्टि प्राप्त हो गयी थी। उसके प्रभाव से उसे दूर ही से कौरवों की संहारभूमि दिखाई दे रही थी। उसे देखकर वह तरह_तरह से विलाप करने लगी। बहुत दूर होने पर भी उसे वह रणक्षेत्र पास_ही_सा जान पड़ता था। वह बड़ा ही रोमांचकारी था ; हड्डी, केश और चर्बी से भरा हुआ था। उसमें खून की धाराएं बह रही थी; सब ओर सहस्त्रों लोथें पड़ी थीं तथा ख़ून में लथपथ हाथी, घोड़े, रथ और योद्धाओं के मस्तक हीन शरीर एवं श्रीहीन मस्तक पड़े हुए थे।अब भगवान् व्यास की आज्ञा पाकर राजा युधिष्ठिर आदि सब पाण्डव महाराज धृतराष्ट्र और श्रीकृष्ण को आगे कर कुरुकुल की सब स्त्रियों को लेकर रणक्षेत्र की ओर चले। कुरुक्षेत्र में पहुंचकर उन विधवा स्त्रियों ने युद्ध में मरे हुए अपने भाई, पुत्र, पिता और पति आदि को देखा। उस भीषण संहारभूमि को देखकर वे रआजमहइलआएं चित्कार करती हुईं अपने बहुमूल्य रथों से गिर पड़ीं। इस अभूतपूर्व दृश्य को देखकर वे दु:ख से अत्यंत व्याकुल हो गयीं। उनमें से किसी के तो शरीर मुरझा गये और कोई पृथ्वी पर पछाड़ खाने लगीं। वे बहुत थकी हुई थीं और अनाथ हो चुकी थी। इस समय उन्हें कुछ भी होश_हवास नहीं था। पांचाल और करुकुल की स्त्रियों के लिये यह बड़ा ही करुणा पूर्ण प्रसंग था।
तब दु:खिनी महिलाओं के आर्तनाद से उस भीषण युद्धस्थल में बड़ा कोहराम मचा देख धर्मज्ञा गान्धारी ने श्रीकृष्ण को बुलाकर कहा, 'माधव ! देखो तो ये मेरी विधवा बहुएं बाल बिखरे कुर्सियों के समान विलाप कर रही हैं। ये उन भरतकुलभूषणों को याद कर_करके अलग _अलग अपने पुत्र, भाई, पिता और पतियों की ओर दौड़ जाती हैं। वीरवर ! इस ऐसे यद्धस्थल को देखकर तो मैं शोक से जली जाती हूं। मधुसूदन ! इस पांचाल और कौरव वीरों को मारे जाने से मुझे तो ऐसा जान पड़ता है मानो पांचों भूतों का ही नाश हो गया। क्या कोई पुरुष ऐसी कल्पना भी कर सकता था कि इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोण, भीष्म और अभिमन्यु जैसे वीर भी स्वाहा हो जायेंगे ? हाय ! मेरे लिये इससे बढ़कर और क्या दु:ख होगा । अवश्य ही पहले जन्मों में मुझसे कोई पाप कर्म हो गया है। इसी से मुझे अपनी आंखों अपने पुत्र, पौत्र और भाइयों की मृत्यु देखनी पड़ी है। पुत्रशोकाकुला गांधारी ने इसी प्रकार दीनतापूर्वक विलाप करते हुए श्रीकृष्णसे की बातें कही; इतने में ही उसकी दृष्टि अपने मृतक पुत्र दुर्योधन पर पड़ी। दुर्योधन को मारा हुआ देखते ही शोकाकुल गांधारी कटे हुए केले के समान सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ी। होश आने पर जब उसने दुर्योधन को खून में लथपथ हुए पृथ्वी पर पड़ा देखा तो वह उससे लिपटकर 'हा पुत्र ! हां पुत्र!' ऐसा कहकर रोने लगी। फिर उसे अपने आंसुओं से सींचती हुई श्रीकृष्ण से कहने लगी, 'वार्ष्णेय ! जब यह बंधुओं को विध्वंस करनेवाला ठन गया तो दुर्योधन ने हाथ जोड़कर मुझसे कहा था, 'माताजी ! मुझे आशीर्वाद दो कि युद्ध में मेरी विजय हो।' तब मैंने यही कहा था कि 'जय तो वहीं रहती है, जहां धर्म रहता है; किन्तु यदि तुम युद्ध करने में घबराये नहीं तो तुम्हे देवताओं के समान शस्त्रों से मरने पर प्राप्त होनेवाले लोक अवश्य मिलेंगे।' इस प्रकार मैंने तो पहले ही दुर्योधन से ऐसी बात कह दी थी। इसलिये मुझे इसके लिये शोक नहीं है। मुझे तो महाराज के लिये चिन्ता है, जिनके सभी सभी संबंधी संग्राम में काम आ गये हैं। जरा काल के उलट_फेर को तो देखो ! जो दुर्योधन मूर्धाभिषिक्त राजाओं के आगे_आगे चलता था, वहीं धूल में पड़ा हुआ है। आज वीरशय्या पर शत्रु के सामने मुंह किये पड़ा है, इसलिये इसे कोई साधारण गति नहीं मिली होगी। ओह ! जो ग्यारह अक्षौहिणी सेना को लेकर युद्ध के मैदान में उतरा था, वह दुर्योधन अपने अन्याय से ही आज मारा गया। यह अभागा बड़ा मूर्ख था। इसने अपने पिता और विदुरजी_जैसे वृद्ध पुरुषों का अपमान किया, इसी से आज काल के गाल में चला गया। जिसने तेरह वर्ष तक पृथ्वी का निष्कण्टक राज किया, वहीं मेरा पुत्र आज मरकर पृथ्वी पर सो रहा है। श्रीकृष्ण ! तुम सुवर्ण की वेदी के समान तेजस्विनी लक्ष्मण की माता को तो देखो। आज उसके भी बाल बिखरे हुए हैं। मेरा यह पुत्रवधू बड़े उदार हृदय की है। पता नहीं इसकी स्थिति कैसी है। यह अपने पति के लिये शोकाकुल है या पुत्र के लाये ? कभी यह पति की ओर देखती है तो कभी पुत्र कि ओर देखने लगती है। किन्तु कुछ भी हो, यदि वेद और शास्त्र सच्चे हैं तो दुर्योधन अवश्य ही अपने बाहुबल के प्रताप से अविनाशी लोक प्राप्त किये होंगे। माधव ! देखो, इधर मेरे सौ पुत्र पड़े हुए हैं। इन सबको भीमसेन ने ही अपनी गदा से पछाड़ा है ! मुझे तो इसी से अधिक दु:ख होता है कि पुत्रों के मारे जाने से आज ये छोटी_छोटी पुत्रवधूएं बाल खोले रणभूमि में फिर रही हैं। हाय ! जो कभी पैरों में आभूषण पहने राजमहल की भूमि पर विचरती थीं, वे ही आज आपत्ति में पड़कर इन खून से लथपथ कठोर रणांगन में घूम रही हैं।
इस सुकुमारी राजदुलारी लक्ष्मण की माता को देखकर तो मेरे मन को किसी प्रकार ढ़ाढ़स नहीं बांधता। देखो ! इन महिलाओं में से कोई भाइयों को, कोई पिताओं को और कोई पुत्रों को पड़ें देखकर उनकी भुजाएं पकड़_पकड़कर पछाड़ खा रही हैं। यही नहीं, इस दारुण संहार में अपने संबंधियों के मारे जाने से तुम्हें कोई मध्यम और वृद्ध अवस्था की स्त्रियों का रुदन सुनाई पड़ेगा। 'इधर देखो, यह दु:शासन पड़ा हुआ है। शत्रुसूदन महावीर भीम ने इसे युद्ध में पछाड़कर इसके शरीर का खून पिया है। हाय ! द्रौपदी के कहने से और जुए के समय सहे हुए दु:खों को याद करके भीम ने मेरू इस पुत्र की कैसी दुर्गति की है। कृष्ण ! मैंने तो दुर्योधन को उसी समय कहा था कि 'तू मौत कई फांसी में बंधे हुए शकुनि का साथ छोड़ दें। अपने इस कुबुद्धि मामा को तू पूरा कलहप्रिय समझ। तू इसे अभी त्यागकर पाण्डवों के साथ संधि कर ले। मूर्ख ! क्या तू नहीं जानता भीमसेन कैसा असहनशील है, जो हाथी को उल्का के समान जलाने के समान तू उसे अपने वावाणों से बींधा करता है ?' आज उसी का फल है कि भीमसेन का पछाड़ा हुआ दु:शासन अपनी लंबी _लंबी भुजाओं को फैलाया हुआ पृथ्वी पर सो रहा है। क्रोधी भीमसेन ने दु:शासन को युद्ध में मारकर उसका खून पिया, यह तो उसका बड़ा ही भीषण काम था। 'माधव ! देखो, यह मेरा पुत्र विकर्ण पड़ा हुआ है।  इसकी तो सभी बुद्धिमान प्रशंसा करते थे। भीम ने इसे भी सैकड़ों टुकड़े करके मार डाला है। कर्णिक, नाविक और नारायण जाति के बाणों से यद्यपि इसके मर्मस्थान छिन्न-भिन्न हो गये हैं, तो भी इसकी कान्ति अभी तक बनी हुई है। यह शत्रुओं का संहार करने वाला दउर्मउख सोया हुआ है। समरशूर भीम ने अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए इसे भी मार डाला है। श्रीकृष्ण ! इसके सामने तो संग्राम में कोई भी नहीं टिक सकता था। इसे शत्रुओं ने कैसे मार डाला। इधर देखो, यह धृतराष्ट्र नन्दन चित्रसेन मरा पड़ा है; यह तो धनुर्धरों के लिये आदर्श रूप था। 'केशव ! इस अभिमन्यु को तो बल और शौर्य में अर्जुन तथा तुम्हारी अपेक्षा भी श्रेष्ठ कहा जाता था, इसने तो अकेले ही मेरे पुत्र के अभेद्य व्यूह को तोड़ डाला था। सो, देखो यह भी अनेकों को मारकर स्वयं मरा पड़ा है। किन्तु मैं देखती हूं कि मर जाने पर भी अतुलित तेजस्वी अभिमन्यु का तेज फीका नहीं पड़ा है। देखो, यह विराटपुत्री अनिन्दिता उत्तरा अपने वीर और अल्पवयस्क पति को देखकर कैसा शोक कर रही है। यह बार_बार अपने पति के पास आकर आपने हाथ से उसके शरीर पर लगी हुई धूल झाड़ रही है। कृष्ण ! यह अभिमन्यु तो बल, वीर्य, तेज और रूप में बहुत कुछ तुम्हारे ही समान है। किन्तु हाय ! शत्रुओं का शिकार होकर आज यह पृथ्वी पर पड़ा है। देखो ! उत्तरा उसके खून सने हुए बालों को हाथ से सुलझा रही है और गोदी में उसका सिर रखकर मानो वह जीवित है, इस प्रकार पूछ रही है कि 'आप तो साक्षात्  श्रीकृष्ण के भांजे और गाण्डीवधारी अर्जुन के पुत्र हैं ! आपको संग्रामभूमि में उन महारथियों ने कैसे मार डाला ।क्रूरकर्मा कृपाचार्य, कर्ण, जयद्रथ तथा द्रोण और अश्वत्थामा को धिक्कार है, जिन्होंने मुझे विधवा बना दिया। युद्ध में अनेकों योद्धाओं ने मिलकर आपको मार डाला, यह देखकर भी आपके पिता अबतक कैसे जी रहे हैं। 'प्राणनाथ ! आपने शस्त्रों से जिन पुण्य लोकों पर विजय पायी है, वहीं मैं भी धर्म तथा अपने इन्द्रिय_निग्रह के बल पर शीघ्र ही आ रही हूं; आप मेरी बांट देखिये ! सम्भवतः: मृत्युकाल आये बिना किसी का मरना बड़ा कठिन होता है, तभी तो मैं अभागिनि आपको मरा देखकर भी अबतक जी रही हूं। वीर ! इस लोक में तो आपके साथ मेरा छ: महीने का ही सहवास बंदा था। सातवें महीने में ही आप परलोक सिधार गये।'उत्तरा को इस प्रकार विलाप करते देखकर मत्स्यराज की दूसरी स्त्रियां उसे खींचकर अन्यत्र ले जा रही हैं। किन्तु राजा विराट को मरा हुआ देखकर वे स्वयं भी विलाप कर रही हैं। धूप, आयास और परिश्रम के कारण इन सभी के मुंह उतर गये हैं। इधर ये रणभूमि के अग्रभाग में ही उत्तर, कम्बोजकुमार, सुदक्षिण और लक्ष्मण आदि की बच्चे मरे परे हैं। माधव ! जरा इनपर भी तो दृष्टि डालो।'