Tuesday 19 November 2019

द्रोण और कर्ण द्वारा पाण्डवसेना का संहार तथा भयभीत हुए युधिष्ठिर की बात से श्रीकृष्ण का घतोत्कच को कर्ण से युद्ध करने के लिये भेजना

संजय कहते हैं___ महाराज ! जब दुर्योधन ने देखा कि पाण्डव मेरी सेना का विध्वंस कर रहे हैं और वह भागी जा रही है तो उसे बड़ा क्रोध हुआ। वह सहसा द्रोणाचार्य और कर्ण के पास पहुँचा और अमर्ष में भरकर कहने लगा___'इस समय पाण्डवों की सेना मेरी वाहिनी का विध्वंस कर रही है और आप दोनों उसे जीतने में समर्थ होकर भी असमर्थ की भाँति तमाशा देखते हैं; यदि आप मुझे त्याग देना न चाहते हों तो अब भी अपने योग्य पराक्रम करके युद्ध कीजिये।‘ यह उपालम्भ सुनकर वे दोनों वीर पाण्डवों का सामना करने के लिये बढ़े। इसी प्रकार पाण्डव भी अपनी सेना के साथ बारम्बार गर्जना करते हुए इन दोनों पर टूट पड़े। उस समय द्रोणाचार्य ने क्रोध में भरकर दस बाणों से सात्यकि को बींध डाला। साथ ही कर्ण ने दस, आपके पुत्र ने सात, वृषसेन ने दस और शकुनि ने सात बाण मारे। उधर द्रोणाचार्य को पाण्डवसेना का संहार करते देख सोमक क्षत्रिय तुरंत वहाँ पहुँचे और सब ओर से द्रोणाचार्य पर बाण बरसाने लगे। आचार्य द्रोण भी चारों ओर बाणों की झड़ी लगाकर क्षत्रियों के प्राण लेने लगे। उनकी मार से पीड़ित हो पांचाल योद्धा एक_दूसरे की ओर देखकर आर्त चित्कार मचा रहे थे। कोई पिता को छोड़कर भागे, कोई पुत्रों को। किसी को अपने सगे भाई, मामा और भानजों की सुध भी न रही। मित्र, सम्बन्धी और बन्धु_बान्धवों को छोड़_छोड़कर सब लोग तेजी से भाग चले। सबको अपने_ अपने प्राणों की लगी हुई थी। श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीमसेन, युधिष्ठिर तथा नकुल_सहदेव देखते ही रह गये और उनकी सेना द्रोण के प्रहार से पीड़ित हो जलती हुई हजारों मशालें फेंक_ फेंककर उस रात में भाग चलीं। सब ओर अंधकार का राज्य था। कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था, केवल कौरवसेना के दीपकों के प्रकाश से शत्रु भागते दिखायी देते थे। महारथी द्रोण और कर्ण भागती हुई सेना को भी पीछे से बाण बरसाकर मार रहे थे। यह सब देखकर भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा___’अर्जुन ! द्रोण और कर्ण ने धृष्टधुम्न और सात्यकि को तथा संपूर्ण पांचाल योद्धाओं को भी अपने बाणों से अत्यंत घायल कर डाला है। इनकी बाणवर्षा से तुम्हारे महारथियों के पैर उखड़ गये हैं; अब सेना रुकने से भी नहीं रुकती।‘ अर्जुन से इस प्रकार कहने के पश्चात् भगवान् कृष्ण और दोनों ने सैनिकों से कहा___ ‘पाण्डवसेना के शूरवीरों ! तुम भयभीत होकर भागो मत। भय को अपने हृदय से निकाल दो। हमलोग अभी व्यूह रचाकर द्रोण और कर्ण को दण्ड देने का प्रयत्न करते हैं। श्रीकृष्ण और अर्जुन इस प्रकार बात कर ही रहे थे कि भयंकर कर्म करनेवाले भीम अपनी सेना को लौटाकर शीघ्र ही वहाँ आ पहुँचे। उन्हें आते देख जनार्दन ने पुनः अर्जुन से कहा___’पाण्डुनन्दन ! यह देखो, सोमक और पांचाल योद्धाओं को साथ लिये भीमसेन बड़े वेग से द्रोण और कर्ण की ओर बढ़े जा रहे हैं। अब सेना को धैर्य बाँधाने के लिये तुम भी इनके साथ होकर युद्ध करो। तदनन्तर अर्जुन और श्रीकृष्ण द्रोण और कर्ण के साथ जाकर सेना के अग्रभाग में खड़े हो गये। फिर युधिष्ठिर की बड़ी भारी सेना लौट आयी। द्रोण और कर्ण ने पुनः शत्रुओं का  संहार आरम्भ किया। दोनों ओर की सेना में घमासान युद्ध होने लगा। उस समय आपके सैनिक भी हाथों से मशालें फेंक_फेंककर उन्मत्त की भाँति पाण्डवों से युद्ध करने लगे। चारों ओर अन्धकार और धूल छा रही थी। जैसे स्वयंवर में राजालोग अपना नाम देकर परिचय देते हैं, उसी प्रकार वहाँ प्रहार करनेवाले योद्धाओं के मुख से उनके नाम सुनायी पड़ते थे। जहाँ_ जहाँ दीपक का प्रकाश दिखायी देता, वहाँ_वहाँ लड़ाकू सैनिक पतंगों की भाँति टूट पड़ते थे। इस प्रकार युद्ध करते_ करते उस महारात्रि का अन्धकार बहुत घना हो गया। तत्पश्चात् कर्ण ने धृष्टधुम्न की छाती में दस मर्मभेदी बाणों का प्रहार किया। धृष्टधुम्न ने भी कर्ण को दस बाणों से बींधकर तुरत ही बदला चुकाया। इस प्रकार वे दोनों एक_दूसरे को सायकों से बींधने लगे। थोड़ी ही देर में कर्ण ने धृष्टधुम्न के घोड़ों को मारकर उसके सारथि को घायल किया, फिर तीखे बाणों से उसका धनुष काटकर उसके सारथि को भी मार गिराया। तब धृष्टधुम्न ने एक भयंकर परिघ के प्रहार से कर्ण के घोड़ों को मार डाला। फिर पैदल ही युधिष्ठिर की सेना में जाकर सहदेव के रथ पर बैठ गया। इधर कर्ण के सारथि ने उसके रथ में नये घोड़े जोत दिये। अब कर्ण पुनः पांचाल महारथियों को अपने बाणों से पीड़ित करने लगा। अत: वह सेेना भयभीत होकर रण से भाग चली। उस समय पांचाल और सृंजय इतने डर गये थे कि पत्ता खड़कने पर भी उन्हें कर्ण के आ जाने का संदेह हो जाता था। कर्ण उस भागती हुई सेना को भी पीछे से बाण मारकर खदेड़ रहा था।
अपनी सेना को भागते देख राजा युधिष्ठिर भी पलायन करने का विचार करके अर्जुन से बोले___’धनंजय ! तुम्हीं जिनके बन्धु एवं सहायक हो, उन हमारे सैनिकों का यह आर्तनाद निरन्तर सुनायी दे रहा है; ये कर्ण के बाणों से पीड़ित हो रहे हैं। अब इस समय कर्ण का वध करने के सम्बन्ध में जो कुछ भी कर्तव्य हो, उसे करो।‘
यह सुनकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा___’ मधुसूदन ! आज राजा युधिष्ठिर कर्ण की पराक्रम देखकर भयभीत हो गये हैं। एक ओर द्रोणाचार्य हमारे सैनिकों को आहत कर रहे हैं, दूसरी ओर कर्ण का त्रास छाया हुआ है; इसलिये वे भाग रहे हैं, उन्हें कहीं ठहरने को स्थान नहीं मिलता। मैं देखता हूँ, कर्ण भागते हुए योद्धाओं को भी मार रहा है। अत: आप जहाँ कर्ण है, वहीं चलिये; आज दो में से एक बात हो जाय, चाहे मैं उसे मार डालूँ या वह मुझे।‘ भगवान् श्रीकृष्ण बोले__अर्जुन ! तुमको और राक्षस घतोत्कच को छोड़कर दूसरा कोई ऐसा नहीं है, जो कर्ण से लोहा ले सके। किन्तु उसके साथ तुम्हारा युद्ध हो, इसके लिये अभी समय नहीं आया है। कारण, उसके पास इन्द्र की दी हुई देदीप्यमान शक्ति है, जो उसने तुम्हारे लिये ही रख छोड़ी है। मेरे विचार से इस समय महाबली घतोत्कच ही कर्ण का सामना करने जाय। उसके पास दिव्य, राक्षस और आसुर___ तीनों प्रकार के अस्त्र हैं। अत: वह अवश्य ही संग्राम में कर्ण पर विजयी होगा। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर अर्जुन ने घतोत्कच को बुलवाया। वह कवच, धनुष, बाण और तलवार आदि से सुसज्जित होकर उनके सामने उपस्थित हुआ और श्रीकृष्ण तथा अर्जुन को प्रणाम करके श्रीकृष्ण की ओर देखते हुए बोला___’मैं सेवा में उपस्थित हूँ; आज्ञा कीजिये, कौन_सा काम करूँ ?’ भगवान् ने हँसकर कहा___’ बेटा घतोत्कच ! मैं जो कहता हूँ, सुनो___आज तुम्हारे पराक्रम दिखाने का समय आया है। यह काम दूसरे के लिये नहीं हो सकता; क्योंकि तुम्हारे पास कई प्रकार अस्त्र हैं, राक्षसी माया तो है ही। हिडिम्बानन्दन !  देखते हो न, जैसे चरवाहा गौओं को हाँकता है उसी प्रकार कर्ण आज पाण्डवसेना को खदेड़ रहा है। वह इस दल के प्रधान_ प्रधान क्षत्रियों को मारे डालता है। उसके बाणों से पीड़ित होकर हमारे सैनिक कहीं ठहर नहीं पाते। मैदान से भागे जाते हैं। इस प्रकार कर्ण संहार में प्रवृत हुआ है। इसे रोकनेवाला तुम्हारे सिवा दूसरा कोई नहीं दिखायी देता। इस समय तुम्हारा बल असीम है और तुम्हारी माया दुस्तर; क्योंकि रात्रि के समय राक्षसों का बल बहुत बढ़ जाता है, उनके पराक्रम की कोई सीमा नहीं रहती। शत्रु उन्हें दबा नहीं सकते। इस आधी रात में तुम अपनी माया फैलाकर महान् धनुर्धर कर्ण को मार डालो, फिर धृष्टधुम्न आदि वीर द्रोण का भी वध कर डालेंगे।‘ भगवान् की बात समाप्त होने पर अर्जुन ने भी घतोत्कच से कहा__'बेटा ! मैं तुमको, सात्यकि को तथा भैया भीमसेन को ही अपने सेना का प्रधान वीर मानता हूँ। इस रात में तुम कर्ण के साथ द्वैरथ युद्ध करो। महारथी सात्यकि पीछे से तुम्हारी रक्षा करेंगे। सात्यकि की सहायता लेकर तुम शूरवीर कर्ण को मार डालो। घतोत्कच बोला___’भारत ! मैं अकेला ही कर्ण, द्रोण तथा अन्य क्षत्रिय वीरों के लिये काफी हूँ। आज रात में सूतपुत्र के साथ ऐसा युद्ध करूँगा, जिसकी चर्चा जबतक यह पृथ्वी रहेगी तबतक लोग करते रहेंगे। आज मैं राक्षसधर्म का आश्रय लेकर संपूर्ण कौरवसेना का संहार करूँगा, किसी को जीता नहीं छोडूँगा। ऐसा कहकर महाबाहु घतोत्कच तुम्हारी सेना को भयभीत करता हुआ कर्ण की ओर बढ़ा। कर्ण ने भी हँसते_हँसते उसका सामना किया। फिर तो गर्जना करते हुए उन दोनों वीरों में घोर संग्राम छिड़ गया।

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