Sunday 20 September 2020

विन्द_अनुविन्द और चित्रसेन का चित्रक का वध, अश्त्थामा और भीमसेन का भयंकर युद्ध

तदनन्तर श्रुतकर्मा ने क्रोध में भरकर पचास बाणों से राजा चित्रसेन को घायल किया। अभिसारनरेश चित्रसेन ने भी नौ बाणों से श्रुतकर्मा को बींधकर पाँच सायकों से उसके सारथि को भी पीड़ित किया। तब श्रुतकर्मा ने चित्रसेन के मर्मस्थान में तीखे नाराच से वार किया। उसकी गहरी चोट लगने से वीरवर चित्रसेन को मूर्छा आ गयी। थोड़ी देर में जब होश हुआ तो उसने एक भल्ल मारकर श्रुतकर्मा का धनुष काट दिया और फिर सात बाणों से उसे भी बींध डाला। श्रुतकर्मा को पुनः क्रोध आ गया, उसने शत्रु के धनुष के दो टुकड़े कर डाले और तीन सौ बाण मारकर उसे खूब घायल किया। फिर एक तेज किये हुए भाले से चित्रसेन का मस्तक काट गिराया। अभिसारनरेश चित्रसेन मारा गया_ यह देखकर उसके सैनिक श्रुतकर्मा पर टूट पड़े। परंतु उसने अपने सायकों की मार से उन सबको पीछे हटा दिया। दूसरी ओर प्रतिविन्ध्य ने चित्र को पाँच बाणों से घायल करके तीन सायकों से उसके सारथि को बींध दिया और एक बाण मारकर उसकी ध्वजा काट डाली। तब चित्र ने उसकी बाँहों और छाती में नौ भल्ल मारे। यह देख प्रतिविन्ध्य ने उसका धनुष काट दिया और पचीस बाणों से उसे भी घायल किया। फिर चित्र ने भी प्रतिविन्ध्य पर एक भयंकर शक्ति का प्रहार किया, किन्तु उसने उस शक्ति  को हँसते हँसते काट दिया। तब उसने प्रतिविन्ध्य पर गदा चलायी। उस गदा ने प्रतिविन्ध्य के घोड़े और सारथि को मौत के घाट उतार  उसके रथ को भी चकनाचूर कर दिया।
प्रतिविन्ध्य पहले से ही कूदकर पृथ्वी पर आ गया था, उसने चित्र पर शक्ति का प्रहार किया। शक्ति को अपने ऊपर आते देख चित्र ने उसे हाथ से पकड़ लिया और तुरत प्रतिविन्ध्य पर ही चलाया। वह शक्ति प्रतिविन्ध्य की दाहिनी भुजा पर चोट करती हुई भूमि पर जा पड़ी। इससे प्रतिविन्ध्य को बड़ा क्रोध हुआ, उसने चित्र को मार डालने की इच्छा से तोमर का प्रहार किया। वह तोमर उसकी छाती और कवच को छेदता हुआ जमीन में घुस गया तथा राजा चित्र अपनी बाँहें फैलाकर भूमि पर ढ़ह पड़ा। चित्र को मारा गया देख आपके सैनिकों ने प्रतिविन्ध्य पर बड़े वेग से धावा किया, परन्तु उसने अपने सायकसमूहों की वर्षा करके उन सबको पीछे भगा दिया। उस समय, जबकि कौरव_सेना के समस्त योद्धा भागे जा रहे थे, केवल अश्त्थामा ही महाबली भीमसेन का सामना करने के लिये आगे बढ़ा। फि उन दोनों में घोर संग्राम होने लगा। अश्त्थामा ने पहले एक बाण मारकर भीमसेन को बींध दिया। फिर नब्बे बाणों से उसके मर्मस्थानों में आघात किया। 
तब भीमसेन ने भी एक हजार बाणों से द्रोणपुत्र को आच्छादित करके सिंह के समान गर्जना की। किन्तु अश्त्थामा ने अपने सायकों से भीमसेन के बाणों से द्रोणपुत्र को आच्छादित करके सिंह के समान गर्जना की। किन्तु अश्त्थामा ने अपने सायकों से भीमसेन के बाणों को रोक दिया और मुस्कराते हुए उसने भीम के ललाट में एक नाराच मारा। यह देख भीम ने भी तीन नाराचों से अश्त्थामा के ललाट को बींध डाला। तब द्रोणकुमार ने सौ बाण मारकर को पीड़ित किया, किन्तु इससे भीम तनिक भी विचलित नहीं हुए। इसी प्रकार भीम ने भी अश्त्थामा को तेज भीमसेन किये हुए सौ बाण मारे, परन्तु वह डिग न सका। अब उसने बड़े_बड़े अस्त्रों का प्रयोग आरम्भ किया और भीमसेन अपने असेत्रों से उनका नाश करने लगे। इस तरह उन दोनों में भयंकर अस्त्रयुद्ध छिड़ गया। उस समय भीमसेन और अश्त्थामा के छोड़े हुए बाण आपस में टकराकर आपकी सेना के चारों ओर संपूर्ण दिशा में प्रकाश फैला रहे थे। सायकों से आच्छादित हुआ आकाश बड़ा भयंकर दिखायी देता था। बाणों के टकराने से आग पैदा होकर दोनों सेनाओं को दग्ध कर रही थी। उन दोनों वीरों का अद्भुत एवं अचिंत्य पराक्रम देख सिद्ध और चारणों के समुदायों को बड़ा विस्मय हो रहा था।
देवता, सिद्ध तथा बड़े_बड़े ऋषि उन दोनों को शाबाशी दे रहे थे।  वे दोनों महारथी मेघ के समान जान पड़ते थे; वे बाणरूपी जल को धारण किये शस्त्ररूपी बिजली की चमक से प्रकाशित हो रहे थे और बाणों की बौछार से एक_दूसरे को ढ़के देते थे। दोनों ने दोनों की ध्वजा काटकर सारथि और घोड़ों को बींध डाला, फिर एक_दूसरे को बाणों से घायल करने लगे। बड़े वेग से किये हुए परस्पर के आघात से जब वे अत्यन्त घायल हो गये तो अपने_अपने रथ के पिछले भाग में गिर पड़े। अश्त्थामा का सारथि उसे मूर्छित जानकर रणभूमि से दूर हटा ले गया। भीम के सारथि ने भी उन्हें अचेत जानकर ऐसा ही किया।

No comments:

Post a Comment