Tuesday 5 September 2017

तीसरा दिन___दोनों सेनाओं की व्यूहरचना और घमासान युद्ध

संजय ने कहा___जब रात बीती और सवेरा हुआ तो भीष्म ने अपनी सेना को रणभूमि में चलने की आज्ञा दी। वहाँ जाकर उन्होंने सेना का गरुड़_व्यूह रचा और उस व्यूह के अग्रभाग में चोंच के स्थान पर वे स्वयं ही खड़े हुए। दोनों नेत्रों की जगह द्रोणाचार्य और कृतवर्मा थे। शिरोभाग में अश्त्थामा और कृपाचार्य खड़े हुए। इनके साथ त्रैगर्त, कैकेय और वाटधान भी थे। मद्रक, सिंधुसौवीर और पंचनददेशीय वीरों के साथ भूरिश्रवा, शल, शल्य, भगदत्त और जयद्रथ___ये कण्ठ की जगह खड़े किये गये थे। अपने भाइयों और अनुचरों के साथ दुर्योधन पृष्ठभाग में स्थित हुआ। कम्बोजराज, शक और शूरसेनदेशीय योद्धाओं को साथ लेकर विन्द तथा अनुविन्द उस व्यूह के पुच्छभाग में स्थित हुए। मगध और कलिंगदेश की सेना तथा दासेरकगण उसके दाएँ पंख की जगह खड़े हुए तथा  विकुंज, कुण्डीवृष आदि योद्धा बृहद्वल के साथ बाएँ पंख के स्थान पर स्थित हुआ।अर्जुन ने कौरवसेना की वह व्यूहरचना देखी तो धृष्टधुम्न को साथ लेकर उन्होंने अपनी सेना का अर्धचन्द्राकार व्यूह बनाया। उसके दक्षिण शिखर पर भीमसेन सुशोभित हुए। उनके साथ अनेकों अस्त्र_ शस्त्रों से सम्पन्न भिन्न_भिन्न देशों के राजा थे। भीमसेन के पीछे महारथी विराट और द्रुपद खड़े हुए। उसके बाद नील और नील के बाद धृष्टकेतू थे। धृष्टकेतू के साथ चेदि, काशी और करूष आदि देशों के सैनिक थे। धृष्टधुम्न और शिखण्डी पंचाल एवं प्रभद्रकदेशीय योद्धाओं के साथ सेना के मध्यभाग में स्थित हुए। हाथियों की सेना के साथ धर्मराज युधिष्ठिर भी वहाँ ही थे। उनके बाद सात्यकि और द्रौपदी के पाँच पुत्र थे। फिर अभिमन्यु और इरावान् थे। इसके बाद कैकयवीरों के साथ घतोत्कच था। अन्त में व्यूह के वाम शिखर पर अर्जुन स्थित हुए, जिनके रक्षक भगवान् श्रीकृष्ण थे। इस प्रकार पाण्डवों ने इस महाव्यूह की रचना की।
तदनन्तर युद्ध आरम्भ हो गया। रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड़ गये। रथों  की घरघराहट के साथ मिला हुआ दुंदुभियों का स्वर आकाश में गूँज रहा था। उभयपक्ष के नरवीरों में घमासान युद्ध छिड़ा हुआ था। उसी समय अर्जुन कौरव_पक्ष के रथियों की सेना का संहार करने लगे। कौरव_वीर भी प्राणों की परवा न करके पाण्डवों के मुकाबले में डटे रहे। उन्होंने एकाग्र चित्त से इतना घोर युद्ध किया कि पाण्डवसेना के पैर उखड़ गये, उसमें भगदड़ मच गयी। तब भीमसेन, घतोत्कच, सात्यकि, चेकितान और द्रौपदी के पाँचों पुत्र भी आपके पुत्रों को इस प्रकार भगाने लगे, जैसे देवता जानवरों को। इस प्रकार आपस में मार_काट करते हुए वे खून से लथपथ क्षत्रियवीर बड़े भयंकर दिखायी देते थे।
महाराज ! इसी समय दुर्योधन एक हजार रथियों की सेना लेकर घतोत्कच के सामने आया। इसी प्रकार पाण्डव भी बहुत बड़ी सेना के साथ भीष्म और द्रोणाचार्य के मुकाबले में जा डटे। अर्जुन भी क्रोध में भरकर समस्त राजाओं पर चढ़ आये। उन्हें आते देख राजाओं ने  हजारों रथों के द्वारा चारों ओर से घेर लिया और वे उनके रथ पर शक्ति, गदा, परिघ, प्रास, फरसा एवं बंसल आदि अस्त्र_शस्त्रों की वर्षा करने लगे। किन्तु अर्जुन ने टिड्डियों के समान आती हुई शस्त्रों की उस वृष्टि को अपने बाणों से बीच में ही रोक दिया। उनके इस हस्तलाघव को देखकर देव, दानव, गन्धर्व, पिशाच, सर्प और राक्षस___सभी धन्य_धन्य कहने लगे।
अर्जुन के बाणों से पीड़ित होकर कौरवसेना विषाद और भय से काँपती हुई भागने लगी। उसे भागती देखकर क्रोध में भरे हुए भीष्म और द्रोणाचार्य ने रोका। दुर्योधन को देखकर कुछ योद्धा लौटने लगे। उन्हें लौटते देखकर दूसरे भी लौट आये। सबके लौट आने पर दुर्योधन ने भीष्मजी के पास जाकर कहा, ‘पितामह ! मैं जो निवेदन करता हूँ, उस पर ध्यान दीजिये। जबतक आप और आचार्य द्रोण जीवित हैं, अश्त्थामा तथा कृपाचार्य जबतक मौजूद हैं, तबतक हमारी सेना का इस तरह से भागना आपलोगों के लिये गौरव की बात नहीं है। मैं यह कभी नहीं मान सकता कि पाण्डव आपलोगों के समान योद्धा हैं। अवश्य ही आप उन पर कृपादृष्टि रखते हैं , तभी तो  हमारी सेना मारी जा रही है और आप क्षमा किये बैठे हैं। यदि यही बात थी, तो मुझे पहले ही बता देना उचित था कि ‘मैं पाण्डवों से, धृष्टधुम्न से और सात्यकि से युद्ध नहीं करूँगा।‘ उस समय आपकी, आचार्य की तथा कृप महाराज की बात सुनकर मैं कर्ण के साथ अपने कर्तव्य पर विचार कर लेता और यदि वास्तव में आप इस युद्धरूप संकट के समय मुझे त्यागने योग्य न समझते हो तो आपलोगों को अपने पराक्रम के अनुरूप युद्ध करना चाहिये।‘ दुर्योधन की बात सुनकर भीष्म बारम्बार हँसते हुए क्रोध से आँखें फिराकर बोले___'राजन् ! एक दो बार नहीं, अनेकों बार मैंने तुमसे यह सत्य और हितकर बात बतायी है कि इन्द्र के सहित संपूर्ण देवता भी पाण्डवों को युद्ध में नहीं जीत सकते। आज मैं बूढ़ा हो गया; इस अवस्था में जो कुछ कर सकता हूँ, उसके लिये अपनी शक्तिभर उठा न करूँगा। तुम अपने भाइयों के साथ देखो, आज मैं अकेला ही सबके सामने पाण्डवों को सेना सहित पीछे हटा दूँगा।‘ जब भीष्म ने इस प्रकार कहा तो आपके पुत्र प्रसन्न होकर भेरी और शंख आदि बाजे बजाने लगे। उनकी आवाज सुनकर पाण्डव भी शंख, भेरी और ढोल का तुमुलनाद करने लगे।

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