Tuesday, 20 February 2018

भीष्मजी का पाण्डव वीरों के साथ घोर युद्ध तथा श्रीकृष्ण का चाबुक लेकर भीष्मजी पर दौड़ना

संजय ने कहा___राजन् ! अब भीष्मजी अपनी विशाल वाहिनी लेकर चले और उन्होंने सर्वतोभद्र नामक व्यूह बनाया। कृपाचार्य, कृतवर्मा, शैब्य, शकुनि, जयद्रथ, सुदक्षिण और आपके सभी पुत्र भीष्मजी के साथ सारी सेना के आगे खड़े हुए। द्रोणाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य और भगदत्त व्यूह के दाहिनी ओर रहे। अश्त्थामा, सोमदत्त और दोनों अवन्तिराजकुमार अपनी विशाल सेना के सहित बायीं ओर खड़े हुए। त्रिगर्तवीरों से घिरा हुआ राजा दुर्योधन व्यूह के मध्यभाग में रहा तथा महारथी अलम्बुष और श्रुतायु सारी व्यूहबद्ध सेना के पीछे खड़े हुए। इस प्रकार आपकी सेना के सभी वीर व्यूहरचना की रीति से खड़े होकर युद्ध के लिये तैयार हो गये।
दूसरी ओर राजा युधिष्ठिर, भीमसेन, नकुल और सहदेव___ये सारी सेना के व्यूह के मुहाने पर खड़े हुए तथा धृष्टधुम्न, विराट, सात्यकि, शिखण्डी, अर्जुन, घतोत्कच, चेकितान, कुन्तिभोज, अभिमन्यु, द्रुपद, युधामन्यु और  केकयराजकुमार___ये सब वीर भी कौरवों के मुकाबले पर अपनी सेना का व्यूह बनाकर खड़े हो गये। अब आपके पक्ष के वीर भीष्मजी को आगे करके पाण्डवों की ओर बढ़े। इसी प्रकार भीमसेन आदि पाण्डव योद्धा भी संग्राम में विजय पाने की लालसा से भीष्मजी के साथ युद्ध करने के लिये आगे आये। बस, दोनों ओर से घोर युद्ध होने लगा। दोनों ओर के वीर एक_दूसरे की ओर दौड़कर प्रहार करने लगे। उस भीषण शब्द से पृथ्वी डगमगाने लगी। धूल के कारण देदीप्यमान सूर्य भी प्रभाहीन मालूम पड़ने लगा। उस समय भारी भय की सूचना देता हुआ बड़ा प्रचण्ड पवन चलने लगा। गीदड़ियें बड़ा भयंकर चीत्कार करने लगीं। इससे ऐसा जान पड़ता था मानो बड़ा भारी संहारकाल समीप आ गया है। कुत्ते तरह_तरह के शब्द करके रोने लगे। आकाश से जलती हुई उल्काएँ पृथ्वी की ओर गिरने लगीं। इस अशुभ मुहूर्त में आकर खड़ी हुई हाथी, घोड़ों और राजाओं से युक्त उन दोनों सेनाओं का शब्द बड़ा ही भयंकर हो उठा।सबसे पहले महारथी अभिमन्यु ने दुर्योधन की सेना पर आक्रमण किया। जिस समय वह उस अनन्त सैन्यसमुद्र में घुसने लगा, आपके बड़े_बड़े वीर भी उसे रोक न सके। उसके छोड़े हुए बाणों ने अनेक क्षत्रिय वीरों को यमलोक भेज दिया। वह क्रोधपूर्वक यमदण्ड के समान भयंकर बाण बरसाकर अनेकों रथ, रथी, घोड़े, घुड़सवार तथा हाथी और गजारोहियों को विदीर्ण करने लगा। अभिमन्यु का ऐसा अद्भुत पराक्रम देखकर राजालोग प्रसन्न होकर उसकी प्रशंसा करने लगे। इस समय वह कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, अश्त्थामा, बृहद्वल और जयद्रथ आदि वीरों को भी चक्कर में डालता हुआ बड़ी सफाई और शीघ्रता के साथ रणभूमि में विचर रहा था। उसने अपने प्रताप से शत्रुओं को संतप्त करते देखकर क्षत्रिय वीरों को ऐसा जान पड़ता था मानो इस लोक में दो अर्जुन प्रकट हो गये हैं। इस प्रकार अभिमन्यु ने आपकी विशाल वाहिनी के पैर उखाड़ दिये और बड़े_बड़े महारथियों को समाप्त कर दिया। अभिमन्यु के द्वारा भगायी हुई आपकी सेना अत्यंत आतुर होकर डकराने  लगी। अपनी सेना की वह घोर आर्तनाद सुनकर दुर्योधन ने राक्षस अलम्बुष से कहा, ‘महाबाहो ! वृत्रासुर ने जैसे देवताओं की सेना को तितर_बितर कर दिया था, उसी प्रकार यह अर्जुन का पुत्र हमारी सेना को भगा रहा है। संग्राम में इसे रोकनेवाला मुझे तुम्हारे सिवा और कोई दिखायी नहीं देता; क्योंकि तुम सब विद्याओं में पारंगत हो। इसलिये अब तुम शीघ्र ही जाकर इसका काम तमाम कर दो। इस समय हम भीष्म_द्रोणादि योद्धा अर्जुन का वध करेंगे।‘
दुर्योधन के ऐसा कहने पर वह महाबली राक्षसराज बर्षा_कालीन मेघ के समान महान् गर्जना करता हुआ अभिमन्यु की ओर चला। उसका भीषण शब्द सुनकर पाण्डवों की सारी सेना में खलबली पड़ गयी। उस समय कई योद्धा तो डर के मारे अपने प्राणों से हाथ धो बैठे। अभिमन्यु तुरंत ही,धनुष_बाण लेकर उसके सामने आ गया। उस राक्षस ने अभिमन्यु के पास पहुँचकर उससे थोड़ी ही दूरी पर खड़ी हुई उसकी सेना को भगा दिया। वह एक साथ पाण्डवों की विशाल वाहिनी पर टूट पड़ा और उस राक्षस के प्रहार से उस सेना में बड़ा भीषण संहार होने लगा। फिर वह राक्षस पाँचों द्रौपदीपुत्रों के सामने आया। उन पाँचों ने भी क्रोध में भरकर उस पर बड़े वेग से धावा किया। प्रतिविन्ध्य ने तीखे_तीखे तीर छोड़कर उसे घायल कर दिया। बाणों की बौछार से उसके कवच के भी टुकड़े उड़ गये। अब उन पाँचों भाइयों ने उसे बींधना आरम्भ किया। इस प्रकार अत्यन्त बाणविद्ध होने से उसे मूर्छा हो गयी। किन्तु थोड़ी ही देर में चेत होने पर क्रोध के कारण उसमें दूना बल आ गया। उसने तुरंत ही उनके धनुष, बाण और ध्वजाओं को काट डाला। फिर उसने मुस्कराते हुए एक_एक के पाँच बाण मारे तथा उनके सारथि और घोड़ों को मार डाला। इस प्रकार रथहीन करके उस राक्षस ने मार डालने की इच्छा से उन पर बड़े वेग से आक्रमण किया। उन्हें कष्ट में पड़ा देखकर तुरंत ही अभिमन्यु उसकी ओर दौड़ा। उन दोनों का इन्द्र और वृत्रासुर के समान बड़ा भीषण संग्राम हुआ। दोनों ही क्रोध से तमतमाकर आपस में भिड़ गये और एक_दूसरे की ओर प्रलयाग्नि के समान घूरने लगे।
अभिमन्यु पहले तीन और फिर पाँच बाणों से अलम्बुष को बींध दिया। इससे क्रोध में भरकर अलम्बुष ने अभिमन्यु की छाती में नौ बाण मारे। इसके बाद उसने हजारों बाण छोड़कर अभिमन्यु को तंग कर दिया। तब अभिमन्यु ने कुपित होकर नौ बाणों से उसकी छाती को छेद दिया। वो उसके शरीर को भेदकर मर्मस्थानों में घुस गये। इस प्रकार अपने शत्रु से मार खाकर उस राक्षस ने रणक्षेत्र में बड़ी तामसी माया फैलायी। उससे सब योद्धाओं के आगे अन्धकार छा गया। उन्हें न तो अभिमन्यु ही दिखायी देता था और न अपने या शत्रु के पक्ष के वीर ही दीखते थे। उस भीषण अंधकार को देखकर अभिमन्यु ने भास्कर नाम का प्रचंड अस्त्र छोड़ा। उससे सब ओर उजाला हो गया। इसी प्रकार उसने और भी कई प्रकार की मायाओं का प्रयोग किया, किन्तु अभिमन्यु ने उन सभी को नष्ट कर दिया। माया का नाश होने पर जब वह  अभिमन्यु के बाणों से बहुत व्यथित होने लगा तो भय के मारे अपने रथ को रणक्षेत्र मे ही छोड़कर भाग गया। उस महायुद्ध करनेवाले राक्षस को इस प्रकार परास्त करके अभिमन्यु आपकी सेना को कुचलने लगा। तब अपनी सेना को भागते देखकर भीष्मजी और अनेकों कौरव महारथी  उस अकेले बालक को चारों ओर से घेरकर बींधने लगे। किन्तु वीर अभिमन्यु बल और पराक्रम में अपने पिता अर्जुन और मामा श्रीकृष्ण के समान था और उसने रणभूमि में उन दोनों के ही समान पराक्रम दिखलाया। इतने में ही वीरवर अर्जुन अपने पुत्र का रक्षा के लिये अपने सैनिकों का संहार करते भीष्मजी के पास पहुँच गये। इसी तरह आपके पिता भीष्मजी भी रणभूमि में अर्जुन के सामने आकर डट गये। तब आपके पुत्र रथ, हाथी और घोड़ों के द्वारा सब ओर से घेरकर भीष्मजी का रक्षा करने लगे। इसी प्रकार पाण्डवलोग भी अर्जुन के आस_पास रहकर भीषण संग्राम के लिये तैयार हो गये।  अब सबसे पहले कृपाचार्यजी ने अर्जुन पर पच्चीस बाण छोड़े। इसके उत्तर में सात्यकि ने आगे बढ़कर अपने पैने बाणों से कृपाचार्य को घायल कर दिया। फिर उसने उन्हें छोड़कर अश्त्थामा पर आक्रमण किया। इस पर अश्त्थामा ने सात्यकि के धनुष के  दो टुकड़े कर दिये और फिर उसे भी बाणों से बींध दिया। सात्यकि ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर अश्त्थामा की छाती और भुजाओं में साठ बाण मारे। उनसे अत्यन्त घायल और व्यथित होने से उन्हें मूर्छा आ गयी और वे अपनी ध्वजा के डंडे का सहारा लेकर रथ के पिछले भाग में बैठ गये। कुछ देर में चेत होने पर प्रतापी अश्त्थामा ने कुपित होकर सात्यकि पर एक नाराच छोड़ा। वह उसे घायल करके पृथ्वी में घुस गया। फिर एक दूसरे बाण से उन्होंने उसकी ध्वजा काट डाली और बड़ी गर्जना करने लगे। इसके बाद वे उस पर बड़े प्रचंड बाणों की वर्षा करने लगे। सात्यकि ने भी उस सारे शरसमूह को काट डाला और तुरंत ही अनेक प्रकार के बाण बरसाकर अश्त्थामा को आच्छादित कर दिया। तब महाप्रतापी द्रोणाचार्य पुत्र की रक्षा के लिये सात्यकि के सामने आये और अपने तीखे बाणों से उसे छलनी कर दिया। सात्यकि ने भी अश्त्थामा को छोड़कर बीस बाणों से आचार्य को बींध दिया। इसी समय परम साहसी अर्जुन ने क्रोध में भरकर द्रोणाचार्यजी पर धावा किया। उन्होंने तीन बाण छोड़कर द्रोणाचार्यजी को घायल किया और फिर बाणों की वर्षा करके उन्हें ढक दिया। इससे आचार्य की क्रोधाग्नि एकदम भड़क उठी और उन्होंने बात_ही_बात में अर्जुन को बाणों से छा दिया। तब दुर्योधन ने सुशर्मा को संग्राम में द्रोणाचार्यजी की सहायता करने की आज्ञा दी। इसलिये त्रिगर्तराज ने भी अपना धनुष चढ़ाकर अर्जुन को लोहे की नोकवाले बाणों से आच्छादित कर दिया। तब अर्जुन ने भी भीषण सिंहनाद करके  सुशर्मा और उसके पुत्र को अपने बाणों से बींध दिया तथा वे दोनों भी मरने का निश्चय करके उन पर टूट पड़े और उनके रथ पर बाणों की वर्षा करने लगे। अर्जुन ने उस बाणवर्षा को अपने बाणों से रोक दिया। उनका ऐसा हस्तलाघव देखकर देवता और दानव भी प्रसन्न हो गये। फिर अर्जुन कुपित होकर कौरवसेना के अग्रभाग में खड़े हुए त्रिगर्तवीरों पर वायव्यास्त्र छोड़ा। उससे आकाश में खलबली पैदा करता हुआ प्रचण्ड पवन प्रगट हुआ, जिसके कारण अनेकों वृक्ष उखड़कर गिर गये तथा बहुत से वीर धराशायी हो गये। तब द्रोणाचार्यजी ने शैलास्त्र छोड़ा। इससे वायु रुक गयी और सब दिशाएँ स्वच्छ हो गयीं। इस प्रकार पाण्डुपुत्र अर्जुन ने  त्रिगर्त_रथियों का उत्साह ठंडा कर दिया और उन्हें पराक्रमहीन करके युद्ध के मैदान से भगा दिया।
राजन् ! इस प्रकार युद्ध होते_होते जब मध्याह्न हो गया तो गंगानंदन भीष्मजी अपने पैने बाणों से  पाण्डव_पक्ष के सैकड़ों_हजारों सैनिकों का संहार करने लगे। तब धृष्टधुम्न, शिखण्डी, विराट और द्रुपद भीष्मजी के सामने आकर उन पर बाणों की वर्षा करने लगे। भीष्मजी ने धृष्टधुम्न को बींधकर तीन बाणों से विराट को घायल किया और एक बाण राजा द्रुपद पर छोड़ा। इस प्रकार भीष्मजी के हाथ से घायल होकर वे धनुर्धर वीर बड़े क्रोध में भर गये। इतने में शिखण्डी ने पितामह को बींध दिया। किन्तु उसे स्त्री समझकर उन्होंने उसपर वार नहीं किया। फिर धृष्टधुम्न ने उनकी छाती और भुजाओं में तीन बाण मारे तथा द्रुपद ने पच्चीस, विराट ने दस और शिखण्डी ने पच्चीस बाणों से उन्हें घायल कर दिया। भीष्मजी ने तीन बाणों ये तीनों वीरों को बींध दिया और एक बाण से द्रुपद का धनुष काट डाला। उन्होंने तत्काल दूसरा धनुष लेकर पाँच बाणों से भीष्मजी को और तीन से उनके सारथि को बींध दिया। अब द्रुपद की रक्षा करने के लिये भीमसेन, द्रौपदी के पाँच पुत्र, केकयदेशीय पाँच भाई, सात्यकि, राजा युधिष्ठिर और धृष्टधुम्न भीष्मजी की ओर दौड़े। इसी प्रकार आपकी ओर के सब वीर भी भीष्मजी की रक्षा के लिये पाण्डवों की सेना पर टूट पड़े। अब आपके और पाण्डवों के सेनानियों का बड़ा घमासान युद्ध होने लगा। रथी रथियों से भिड़ गये तथा पैदल, गजारोही और अश्वारोही भी आपस में मिलकर एक_दूसरे को यमराज के घर भेजने लगे। दूसरी ओर अर्जुन ने अपने तीखे बाणों से सुशर्मा के साथी राजाओं को यमराज के घर भेज दिया।  तब सुशर्मा भी अपने बाणों से अर्जुन को ोघायल करने लगा। उसने सत्तर बाणों से श्रीकृष्ण पर और नौ से अर्जुन पर वार किया। किन्तु अर्जुन ने उन्हें अपने बाणों से रोककर सुशर्मा के कई वीरों को मार डाला। इस प्रकार कल्पान्तकारी काल के समान अर्जुन की मार से भयभीत होकर वे महारथी मैदान छोड़कर भागने लगे। उनमें से कोई घोड़ों को, कोई रथों को और कोई हाथियों को छोड़कर जहाँ तहाँ भाग गये। त्रिगर्तराज सुशर्मा तथा दूसरे राजाओं ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयत्न किया, परंतु फिर युद्धक्षेत्र में उनके पैर नहीं जमे। सेना को इस प्रकार भागती देखकर आपका पुत्र दुर्योधन त्रिगर्तराज की रक्षा के लिये सारी सेना के सहित भीष्मजी को आगे करके अर्जुन की ओर चला। इसी प्रकार पाण्डवलोग भी अर्जुन की रक्षा के लिये पूरी तैयारी के साथ भीष्मजी की ओर चले। अब भीष्मजी ने अपने बाणों से पाण्डवों का सेना को आच्छादित करना आरम्भ किया। दूसरी ओर से सात्यकि ने पाँच बाणों से कृतवर्मा को बींधा और फिर सहस्त्रों बाणों की वर्षा करते हुए युद्ध में हटकर खड़ा हो गया। इसी प्रकार राजा द्रुपद ने अपने पैने तीरों से द्रोणाचार्य को बींधकर फिर सत्तर बाण उन पर और पाँच उनके सारथि पर छोड़े। भीमसेन अपने परदादा राजा बाह्लीक को घायल करके बड़ा भीषण सिंहनाद करने लगे। अभिमन्यु को यद्यपि चित्रसेन ने बहुत से बाणों से घायल कर दिया था, तो भी वह सहस्त्रों बाणों की वर्षा करता हुआ युद्ध के मैदान में डटा रहा। उसने तीन बाणों से चित्रसेन को बहुत ही घायल कर दिया और फिर नौ बाणों से उसके चारों घोड़ों को मारकर बड़े जोर से सिंहनाद किया।
उधर आचार्य द्रोण ने राजा द्रुपद को बींधकर  उनके सारथि को भी घायल कर दिया। इस प्रकार अत्यन्त व्यथित होने से वे संग्रामभूमि से अलग चले गये। भीमसेन ने बात_की_बात में सारी सेना के सामने ही राजा बाह्लीक के घोड़े, सारथि और रथ को नष्ट कर दिया। इसलिये वे तुरंत ही लक्ष्मण के रथ पर चढ़ गये। फिर सात्यकि अनेक बाणों से कृतवर्मा को रोककर पितामह भीष्म के सामने आया और  उसने अपने विशाल धनुष से साठ तीखे बाण छोड़कर उन्हें घायल कर दिया। तब पितामह ने उसके ऊपर एक लोहे की शक्ति फेंकी। उस काल के समान कपाल शक्ति को,आती देख उसने बड़ी फुर्ती से,उसका वार बचा दिया, इसलिये वह शक्ति सात्यकि तक न पहुँचकर पृथ्वी पर गिर गयी। अब सात्यकि ने अपनी शक्ति भीष्मजी पर छोड़ी। भीष्मजी ने भी दो पैने बाणों से उसके दो टुकड़े कर दिये और वह भी पृथ्वी पर जा पड़ी। इस प्रकार शक्ति को काटकर भीष्मजी ने नौ बाणों से सात्यकि की छाती पर प्रहार किया। तब  रथ, हाथी और घोड़ों की सेना के सहित सब पाण्डवों ने सात्यकि की रक्षा करने के लिये भीष्मजी को चारों ओर से घेर लिया। बस, अब कौरव और पाण्डवों में बड़ा ही घमासान और रोमांचकारी युद्ध होने लगा।
यह देखकर राजा दुर्योधन ने दुःशासन से कहा, ‘वीरवर ! इस समय पाण्डवों ने पितामह को चारों ओर से घेर लिया है, इसलिये तुम्हें उनकी रक्षा करनी चाहिये।‘ दुर्योधन का ऐसा आदेश पाकर आपका पुत्र दुःशासन अपनी विशाल वाहिनी ले भीष्मजी को घेरकर खड़ा हो गया। शकुनि एक लाख सुशिक्षित घुड़सवारों को नकुल, सहदेव और राजा युधिष्ठिर को रोकने लगा तथा दुर्योधन ने भी पाण्डवों को रोकने के लिये दस हजार घुड़सवारों की कुमुक भेजी। तब राजा युधिष्ठिर और नकुल_ सहदेव बड़ी फुर्ती से घुड़सवारों का वेग रोकने लगे तथा अपने तीखे बाणों से उनके सिर उड़ाने लगे। उनके धड़ाधड़ गिरते हुए सिर ऐसे जान पड़ते थे मानो वृक्षों से फल गिर रहे हों। इस प्रकार उस महासमर में अपने शत्रुओं को परास्त कर पाण्डवलोग शंख और भेरियों के शब्द करने लगे। अपनी सेना को पराजित देखकर दुर्योधन बहुत उदास हुआ। तब उसने मद्रराज से कहा, ‘राजन् ! देखिये, नकुल_सहदेव के सहित ये ज्येष्ठ पाण्डुपुत्र आपकी सेना को भगाये देते हैं; आप इन्हें रोकने की कृपा करें। आपके बल और पराक्रम को हर कोई सहन नहीं कर सकता।‘ दुर्योधन की यह बात सुनकर मद्रराज शल्य रथसेना लेकर राजा युधिष्ठिर के सामने आये। उनकी सारी विशाल वाहिनी एक साथ युधिष्ठिर के ऊपर टूट पड़ी। किन्तु धर्मराज ने उस सैन्यप्रवाह को तुरंत रोक दिया और दस बाण राजा शल्य की छाती में मारे। इसी प्रकार नकुल और सहदेव ने भी उनके सात_सात बाण मारे। मद्रराज ने,भी उनमें से प्रत्येक के तीन_तीन बाण मारे। फिर साठ बाणों से राजा युधिष्ठिर को घायल किया और दो_दो बाण माद्रीपुत्रों पर भी छोड़े। बस, दोनो ओर से बड़ा ही घोर और कठोर युद्ध होने लगा। अब सूर्यदेव पश्चिम की ओर ढलने लगे थे। अतः आपके पिता भीष्मजी ने अत्यंत कुपित होकर बड़े तीखे बाणों से पाण्डव और उनकी सेना पर वार किया। उन्होंने बारह बाणों से भीम को, नौ से सात्यकि को, तीन से नकुल को, सात से सहदेव को और  बारह से राजा युधिष्ठिर के वक्षःस्थल को बींधकर बड़ा सिंहनाद किया। तब उन्हें बदले में नकुल ने बारह, सात्यकि ने तीन, धृष्टधुम्न मे सत्तर, भीमसेन ने सात और युधिष्ठिर ने बारह बाणों से घायल किया। इसी समय द्रोणाचार्य ने पाँच_पाँच बाणों से सात्यकि और भीमसेन पर चोट की तथा भीम और सात्यकि ने भी उन पर तीन_तीन बाण छोड़े। इसके बाद पाण्डवों ने फिर पितामह को घेर लिया। किन्तु उनसे घिरकर भी अजेय भीष्म वन में लगी हुई आग के समान अपने तेज से शत्रुओं को जलाते रहे। उन्होंने अनेकों पथ, हाथी और घोड़ों को मनुष्यहीन कर दिया। उनकी प्रत्यन्चा की बिजली की कड़क के समान टंकार सुनकर सब प्राणी काँप उठे और उनके अमोघ बाण चलने लगे। भीष्मजी के धनुष से छूटे बाण योद्धाओं के कवचों में नहीं लगते थे, वे सीधे उनके शरीर को फोड़कर निकल जाते थे। चेदि, काशी और करूष देश के चौदह हजार महारथी, जो संग्राम में प्राण देने को तैयार और कभी पीछे पैर नहीं रखनेवाले थे, भीष्मजी के सामने आकर अपने हाथी, घोड़े और रथों के सहित नष्ट होकर परलोक में चले गये। अब पाण्डवों की सेना इस भीषण मार_काट से आर्तनाद करती भागने लगी। यह देखकर श्रीकृष्ण ने अपना रथ रोककर अर्जुन से कहा, “कुन्तीनन्दन ! तुम जिसकी प्रतीक्षा में थे, वह समय अब आ गया है। इस समय यदि तुम मोहग्रस्त नहीं हो तो भीष्मजी पर वार करो। तुमने विराटनगर में राजाओं के एकत्रित होने पर संजय को सामने जो कहा था कि ‘मुझसे संग्रामभूमि में भीष्म_द्रोणादि जो भी धृतराष्ट्र के सैनिक युद्ध करेंगे, उन सभी को मैं उनके अनुयायियोंसहित मार डालूँगा', इस बात को अब सच करके दिखा दो। तुम क्षात्रधर्म का विचार करके बेखटके युद्ध करो।“ इस पर अर्जुन ने कुछ बेमन से कहा, ‘अच्छा, जिधर भीष्मजी हैं, उधर घोड़ों को हाँक दीजिये; मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा और अजेय भीष्मजी को पृथ्वी पर गिरा दूँगा।‘ तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सफेद घोड़ों को भीष्मजी की ओर हाँका। अर्जुन को युद्ध के लिये भीष्म के सामने आते देख युधिष्ठिर की विशाल वाहिनी फिर लौट आयी।
भीष्मजी ने तुरंत ही बाणों की वर्षा करके अर्जुन के रथ को सारथि और घोड़ों के सहित ढक दिया। उनकी घनघोर बाणवर्षा के कारण उनका दीखना बिलकुल बन्द हो गया। किन्तु श्रीकृष्ण इससे तनिक भी नहीं घबराये, वे भीष्मजी के बाणों से बिंधे हुए घोड़ों को बराबर हाँकते रहे। तब अर्जुन ने अपना दिव्य धनुष उठाकर अपने पैने बाणों से भीष्मजी का धनुष काटकर गिरा दिया। तब भीष्मजी ने एक क्षण में ही दूसरा धनुष लेकर चढ़ाया। किन्तु अर्जुन ने क्रोध में भरकर उसे भी काट डाला। अर्जुन के इस फुर्ती की भीष्मजी भी बड़ाई करने लगे और कहने लगे ‘वाह ! महाबाहु अर्जुन, शाबाश ! कुन्ती के वीर पुत्र शाबाश !!’ ऐसा कहकर उन्होंने एक दूसरा धनुष लिया और अर्जुन पर बाणों की झड़ी लगा दी। इस समय घोड़ों की चक्करदार चाल से भीष्मजी के बाणों को व्यर्थ करके श्रीकृष्ण ने,घोड़े हाँकने की कला में अपना अद्भुत कौशल प्रदर्शित किया। किन्तु युद्ध करने में अर्जुन की शिथिलता और भीष्मजी को युधिष्ठिर की सेना के मुख्य_मुख्य वीरों का संहार करके प्रलय_सी मचाते देखकर उन्हें  सहन नहीं हुआ। वे,झट घोड़ों की रास छोड़कर कूद पड़े और सिंह के समान गरजते हुए  पैदल ही चाबुक लेकर भीष्मजी की ओर दौड़े। उनके पैरों की धमक से मानो पृथ्वी फटने लगी और क्रोध से आँखें लाल हो गयीं। उस समय आपकी ओर के वीरों के हृदय तो सुन्न _से हो गये और सब ओर यही कोलाहल होने लगा कि ‘भीष्मजी मरे।‘
श्रीकृष्ण रेशमी पीताम्बर कारण किये थे। उससे उनका नीलमणि के समान श्यामसुन्दर शरीर सुंदर जान पड़ता था। सिंह जिस प्रकार हाथी पर टूटता है, उसी प्रकार वे गरजते हुए बड़े वेग से भीष्मजी की ओर दौड़े। कमलनयन भगवान् श्रीकृष्ण को अपनी ओर आते देखकर पितामह ने अपना विशाल धनुष चढ़ाया और तनिक भी न घबराते हुए उनसे कहने लगे, ‘कमललोचन ! आइये; देव ! आपको नमस्कार है ! यदुश्रेष्ठ ! अवश्य आज संग्राम में मेरा वध कीजिये। युद्धस्थल में आपके हाथ से मारे जाने से मेरा सब प्रकार से कल्याण ही होगा। गोविन्द ! आज आपके युद्धक्षेत्र में उतरने से मैं तीनों लोक में सम्मानित हो गया हूँ। आप इच्छानुसार मेरे ऊपर प्रहार कीजिये, मैं तो आपका दास हूँ। ‘  इसी समय अर्जुन ने पीछे से जाकर भगवान् को अपनी भुजाओं में भर लिया। किन्तु इस पर भी वे अर्जुन को घसीटते हुए बड़ी तेजी से आगे ही बढ़े चले गये। तब अर्जुन ने जैसे_तैसे उन्हें दसवें कदम पर रोककर दोनों चरण पकड़ लिये और बड़े प्रेम से दीनतापूर्वक कहा, “महाबाहो ! लौटिये; आप जो पहले कह चुके हैं कि ‘मैं युद्ध नहीं करूँगा,’ उसे मिथ्या न कीजिये। यदि आप ऐसा करेंगे तो लोग आपको मिथ्यावादी कहेंगे। यह सारा भार मेरे ही ऊपर रहने दीजिये, मैं पितामह का वध करूँगा। यह बात मैं शस्त्र की, सत्य की और पुण्य की शपथ करके कहता हूँ।‘
अर्जुन की बात सुनकर श्रीकृष्ण कुछ भी न कहकर क्रोध में भरे हुए भी फिर रथ पर बैठ गये। शान्तनुनन्दन भीष्मजी फिर इन दोनों पुरुषश्रेष्ठों पर बाणवर्षा करने लगे। उन्होंने फिर अन्याय योद्धाओं के प्राण लेने आरम्भ कर दिये। पहले जिस प्रकार कौरवों की सेना भाग रही थी, उसी प्रकार अब आपके पितृव्य भीष्मजी ने पाण्डवों के दल में भगदड़ डाल दी। उस समय पाण्डवपक्ष के वीर सैकड़ों और हजारों की संख्या में मारे जा रहे थे। वे ऐसे निरुत्साह हो गये थे कि मध्याह्नकालीन सूर्य के समान तेजस्वी भीष्मजी की ओर ताक भी नहीं सकते थे। पाण्डवलोग भौंचक्के_से होकर भीष्मजी का वह अमानवीय पराक्रम देखने लगे। उस समय दलदल में फँसी हुई गाय के समान भागती हुई पाण्डवसेना को अपना कोई भी रक्षक दिखायी नहीं देता था। इस प्रकार बलवान् भीष्मजी पाण्डवों के बलवान वीरों को चीटी की तरह मसल रहे थे। इसी समय भगवान् सूर्य अस्त होने लगे, इसलिये दिनभर के युद्ध से थकी हुई सेनाओं का युद्ध  बंद करने का मन हो गया।









No comments:

Post a Comment