Friday 11 January 2019

अर्जुन का दुर्योधन तथा अश्त्थामा आदि आठ महारथियों से संग्राम

संजय ने कहा___राजन् ! अब श्रीकृष्ण और अर्जुन निर्भय होकर आपस में जयद्रथ का वध करने की बात करने लगे। उन्हें सुनकर शत्रु बहुत भयभीत हो गये। वे दोनों आपस में कह रहे थे, ‘जयद्रथ को छः महारथी कौरवों ने अपने बीच में कर लिया है; किन्तु एक बार उस पर दृष्टि पड़ गयी, तो वह हमारे हाथ से छूटकर नहीं जा सकेगा। यदि देवताओं के सहित स्वयं इन्द्र भी उसकी रक्षा करेंगे, तो भी हम उसे मारकर ही छोड़ेंगे।‘ उस समय उन दोनों के मुख की कान्ति देखकर आपके पक्ष के वीर यही समझने लगे कि ये अवश्य जयद्रथ का वध कर देंगे। इसी समय श्रीकृष्ण और अर्जुन ने सिंधुराज को देखकर हर्ष से बड़ी गर्जना की। उन्हें बढ़ते देखकर आपका पुत्र दुर्योधन जयद्रथ की रक्षा के लिये उनके आगे होकर निकल गया। आचार्य द्रोण उसके कवच बाँध चुके थे। अतः वह अकेला ही रथ पर चढ़कर संग्रामभूमि में आ कूदा। जिस समय आपका पुत्र अर्जुन को लाँघकर आगे बढ़ा, आपकी सारी सेना में खुशी के बाजे बजने लगे। तब श्रीकृष्ण ने कहा, ‘अर्जुन ! देखो, आज दुर्योधन हमसे भी आगे बढ़ गया है। मुझे यह बड़ी अद्भुत बात जान पड़ती है। मालूम होता है इसके समान कोई दूसरा रथी नहीं है। अब समयानुसार उसके साथ युद्ध करना मैं उचित ही समझता हूँ। आज यह तुम्हारा लक्ष्य बना है__ इसे तुम अपनी सफलता ही समझो; नहीं तो यह राज्य का लोभी तुम्हारे साथ संग्राम करने के लिये क्यों आता ? आज सौभाग्य से ही यह तुम्हारे बाणों का विषय बना है; इसलिये तुम ऐसा करो, जिससे यह शीघ्र ही अपने प्राण त्याग दे। पार्थ ! तुम्हारा सामना तो देवता, असुर, और मनुष्यों सहित तीन लोक भी नहीं कर सकते; फिर इस अकेले दुर्योधन की बात ही क्या है?’ यह सुनकर अर्जुन ने कहा, ‘ ठीक है; यदि इस समय मुझे यह काम करना ही चाहिये, तो आप और सब काम छोड़कर दुर्योधन की ओर ही चलिये।‘
इस प्रकार आपस में बातें करते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन ने प्रसन्न होकर राजा दुर्योधन के पास पहुँचने के लिये अपने सफेद घोड़े बढ़ाये। इस महासंकट के समय भी दुर्योधन डरा नहीं, उसने उन्हें अपने सामने आने पर रोक दिया। यह देखकर उसके पक्ष के सभी क्षत्रिय उसकी बड़ाई करने लगे। राजा को संग्रामभूमि में लड़ते देखकर आपकी सारी सेना में बड़ा कोलाहल होने लगा। इससे अर्जुन का क्रोध बहुत बढ़ गया। तब दुर्योधन ने हँसते हुए उन्हें युद्ध के लिये ललकारा। श्रीकृष्ण और अर्जुन भी उल्लास में भरकर गरजने और अपने शंख बजाने लगे। उन्हें प्रसन्न देखकर सभी कौरव दुर्योधन के जीवन के विषय में निराश हो गये और अत्यन्त भयभीत होकर कहने लगे, ‘हाय ! महाराज मौत के पंजे में जा पड़े, हाय ! महाराज मौत के पंजे में जा पड़े।‘ उनका कोलाहल सुनकर दुर्योधन ने कहा___ ‘डरो मत, मैं अभी कृष्ण और अर्जुन को मृत्यु के पास भेजे देता हूँ।‘
ऐसा कहकर उसने तीन तीखे तीरों से अर्जुन पर वार किया और चार बाणों से उनके चारों घोड़ों को बींध दिया। फिर दस बाण श्रीकृष्ण की छाती में मारे और एक भल्ल से उसके कोड़े को काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया। इस पर अर्जुन ने बड़ी सावधानी से उस पर चौदह बाण छोड़े; किन्तु वे उसके कवच से टकराकर पृथ्वी पर गिर गये। उन्हें निष्फल हुआ देखकर उन्होंने चौदह बाण फिर छोड़े, किन्तु वे भी दुर्योधन के कवच से लगकर जमीन पर जा गिरे। यह देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘आज तो मैं यह अनोखी बात देख रहा हूँ। देखो, तुम्हारे बाण शिला पर छोड़े हुए तीरों के समान कुछ भी काम नहीं कर रहे हैं। पार्थ ! तुम्हारे बाण तो वज्रपात के समान भयंकर और शत्रु के शरीर में घुस जानेवाले होते हैं; परन्तु यह कैसी विडम्बना है, आज इनसे कुछ भी काम नहीं हो रहा है।‘ अर्जुन ने कहा, ‘श्रीकृष्ण ! मालूम होता है दुर्योधन को ऐसी शक्ति आचार्य द्रोण ने दी है। इसके कवच धारण करने की जो शैली है, वह मेरे अस्त्रों के लिये अभेद्य है। इसके कवच में तीनों लोकों की शक्ति समायी हुई है। इसे एकमात्र आचार्य ही जानते हैं या उनकी कृपा से मुझे इसका ज्ञान है। इस कवच को बाणों द्वारा किसी प्रकार भेदा नहीं जा सकता। यही नहीं, अपने वज्र द्वारद्वारा स्वयं इन्द्र भी इसे नहीं काट सकते।
कृष्ण ! यह सब रहस्य जानते तो आप भी हैं, फिर इस प्रकार प्रश्न करके मुझे मोह में क्यों डालते हैं ? तीनों लोकों में जो कुछ हो चुका है, जो होता है और जो होगा___यह सभी आपको विदित है। आपके समान इन सब बातों को जाननेवाला कोई नहीं है। यह ठीक है, दुर्योधन आचार्य के पहनाये हुए कवच को धारण करके इस समय निर्भय हुआ खड़ा है; किन्तु अब आप मेरे धनुष और भुजाओं के पराक्रम को भी देखें। मैं कवच से सुरक्षित होने पर भी आज इसे परास्त कर दूँगा।‘
ऐसा कहकर अर्जुन ने कवच को तोड़ने वाले मानवास्त्र से अभिमन्त्रित करके अनेकों बाण चढ़ाये। किन्तु अश्त्थामा ने सब प्रकार के अस्त्रों को काट देनेवाले बाणों से उन्हें धनुष के ऊपर ही काट दिया। यह देख अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा, जनार्दन ! इस अस्त्र का मैं दुबारा प्रयोग नहीं कर सकता; क्योंकि ऐसा करने पर यह अस्त्र मेरा और मेरी सेना की संहार ही कर डालेगा।‘ इतने में ही दुर्योधन ने नौ_नौ बाणों से अर्जुन और श्रीकृष्ण को घायल कर दिया तथा उन पर और भी अनेकों बाणों की वर्षा करने लगा। उसकी भीषण बाणवर्षा देखकर आपके पक्ष के वीर बड़े प्रसन्न हुए और बाणों की ध्वनि करते हुए सिंहनाद करने लगे। तब अर्जुन ने अपने काल के समान कराल और तीखे बाणों से दुर्योधन के घोड़े और  दोनों पार्श्वरक्षकों को मार डाला। फिर उसके धनुष और दास्तानों को भी काट दिया। इस प्रकार उसे रथहीन करके दो बाणों से उसकी हथेलियों को बींधा तथा उसके नखों के भीतरी माँस को छेदकर ऐसा व्याकुल कर दिया कि वह भागने की चेष्टा करने लगा। दुर्योधन को इस प्रकार आपत्ति में पड़ा देखकर अनेकों धनुर्धर वीर उसकी रक्षा के लिये दौड़ पड़े। उन्होंने अर्जुन को चारों ओर से घेर लिया। जनसमूह से घिर जाने और भीषण बाणवर्षा के कारण उस समय न तो अर्जुन ही दिखायी देते थे और न श्रीकृष्ण ही। यहाँ तक कि उनका रथ भी आँखों से ओझल हो गया था। तब अर्जुन ने गाण्डीव धनुष खींचकर भीषण टंकार की और भारी बाणवर्षा करके शत्रुओं का संहार करना आरम्भ कर दिया। श्रीकृष्ण उच्च स्वर से पांचजन्य शंख बजाने लगे। उस शंख के नाद और गाण्डीव की टंकार से भयभीत होकर बलवान् और दुर्बल सभी पृथ्वी पर लोटने लगे तथा पर्वत, समुद्र द्वीप और पाताल के सहित सारी पृथ्वी गूँज उठी। आपकी ओर के अनेकों वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन को मारने के लिये बड़ी फुर्ती से दौड़ आये। भूरिश्रवा, शल, कर्ण, वृषसेन, जयद्रथ, कृपाचार्य, शल्य और अश्त्थामा___इन आठ वीरों ने एक साथ ही उनपर आक्रमण किया। उन सबके साथ राजा दुर्योधन ने जयद्रथ की रक्षा के उद्देश्य से उन्हें चारों ओर से घेर लिया। अश्त्थामा ने तिहत्तर बाणों से श्रीकृष्ण पर और तीन से अर्जुन पर वार किया तथा पाँच बाणों से उसकी ध्वजा और घोड़ों पर भी चोट की। इस पर अर्जुन ने अत्यन्त कुपित होकर अश्त्थामा पर सौ बाण छोड़े तथा दस बाणों से कर्ण और तीन से वृषसेन को बींधकर राजा शल्य के बाणसहित धनुष को काट डाला। शल्य ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर अर्जुन को घायल कर दिया। फिर उन्हें भूरिश्रवा ने तीन, कर्ण ने पच्चीस, वृषसेन ने सात, जयद्रथ ने तिहत्तर, कृपाचार्य ने दस और मद्रराज ने दस बाणों से बींध डाला। इस पर अर्जुन हँसे और अपने हाथ की सफाई दिखाते हुए उन्होंने कर्ण पर बारह और वृषसेन पर तीन बाण छोड़कर शल्य के बाणसहित धनुष को काट डाला। फिर आठ बाणों से अश्त्थामा को, पच्चीस से कृपाचार्य को और सौ से जयद्रथ को घायल कर दिया। इसके बाद उन्होंने अश्त्थामा पर सत्तर बाण और भी छोड़े। तब भूरिश्रवा ने कुपित होकर श्रीकृष्ण का कोड़ा काट डाला और अर्जुन पर तिहत्तर बाणों से वार किया। इस पर अर्जुन ने सौ बाणों से उन सब शत्रुओं को आगे बढ़ने से रोक दिया।

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