Sunday 27 January 2019

शकटव्यूह के मुहाने पर कौरव और पाण्डवपक्ष के वीरों का संग्राम तथा कौरवपक्ष के कई वीरों का वध

राजा धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! जब अर्जुन जयद्रथ की ओर चला गया, तो आचार्य द्रोण द्वारा रोके हुए पांचालवीरों ने कौरवों के साथ किस प्रकार युद्ध किया ?
संजय ने कहा___राजन् ! उस दिन दोपहर के बाद कौरव और पांचालों में जो रोमांचकारी युद्ध हुआ, उसके प्रधान लक्ष्य आचार्य द्रोण ही थे। सभी पांचाल और पाण्डववीर द्रोण के रथ के पास पहुँचकर उनकी सेना को छिन्न_भिन्न करने के लिये बड़े_बड़े शस्त्र चलाने लगे। सबसे पहले केकय महारथी बृहच्क्षत्र पैने_पैने बाण बरसाता हुआ आचार्य के सामने आया। उसका मुकाबला सैकड़ों बाण बरसाते हुए क्षेमधूर्ति ने किया। फिर चेदिराज धृष्टकेतु आचार्य पर टूट पड़ा। उसका सामना वीरधन्वा ने किया। इसी प्रकार सहदेव को दुर्मुख ने, सात्यकि को व्याघ्रदत्त ने, द्रौपदी के पुत्रों को सोमदत्त के पुत्र ने और भीमसेन को राक्षस अलम्बुष ने रोका।
इसी समय राजा युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य पर नब्बे बाण छोड़े। तब आचार्य ने सारथि और घोड़ों के सहित उन पर पच्चीस बाणों से वार किया। परंतु धर्मराज ने अपने हाथ की फुर्ती दिखाते हुए उन सब बाणों को अपनी बाणवर्षा से रोक दिया। इससे द्रोण का क्रोध बहुत बढ़ गया। उन्होंने महात्मा  युधिष्ठिर की धनुष काट डाला और बड़ी फुर्ती से हजारों बाण बरसाकर उन्हें सब ओर से ढक दिया। इससे अत्यन्त खिन्न होकर धर्मराज ने वह टूटा हुआ धनुष फेंक दिया तथा एक दूसरा प्रचण्ड धनुष लेकर आचार्य को छोड़े हुए सहस्त्रों बाणों को काट डाला। फिर उन्होंने द्रोण के ऊपर एक अत्यन्त भयानक गदा छोड़ी और उल्लास में भरकर गर्जना करने लगे। गदा को अपनी ओर आते देख आचार्य ने ब्रह्मास्त्र प्रकट किया। वह गदा को भष्म करके राजा युधिष्ठिर के रथ की ओर चला। तब धर्मराज ने ब्रह्मास्त्र से ही उसे शान्त कर दिया तथा पाँच बाणों से आचार्य को बींधकर उनका धनुष काट डाला।तब द्रोण ने वह टूटा हुआ धनुष फेंककर धर्मपुत्र युधिष्ठिर पर गदा फेंकी। उसे अपनी ओर आते देख धर्मराज ने भी एक गदा उठाकर चलायी। वे गदाएँ आपस में टकरा उठीं, उनसे चिनगारियाँ निकलने लगीं और  फिर वे पृथ्वी पर जा पड़ीं। अब द्रोणाचार्य का क्रोध बहुत ही बढ़ गया। उन्होंने चार पैने बाणों से युधिष्ठिर के घोड़े मार डाले। एक भल्ल से उनका धनुष काट दिया, एक से ध्वजा काट डाली और तीन बाणों से स्वयं उन्हें भी बहुत पीड़ित कर दिया। घोड़ों के मारे जाने ये महाराज युधिष्ठिर बड़ी फुर्तीसेे रथ से कूद पड़े और सहदेव के रथ पर चढ़कर घोड़ों को तेजी से बढ़ाकर युद्ध के मैदान से चले गये।
दूसरी ओर महापराक्रमी केकयराज बृहच्क्षत्र को आते देख क्षेमधूर्ति ने बाणों द्वारा उसकी छाती पर चोट की। तब बृहच्क्षत्र ने बड़ी फुर्ती से क्षेमधूर्ति को नब्बे बाण मारे। इस पर क्षेमधूर्ति ने एक पैने भल्ल से केकयराज का धनुष काट डाला और स्वयं उसे भी एक बाण से घायल कर दिया। केकयराज ने एक दूसरा धनुष लेकर हँसते_हँसते महारथी क्षेमधूर्ति के घोड़े, सारथि और रथ को नष्ट कर डाला तथा एक पैने भल्ल से उसके कुण्डलमण्डित मस्तक को धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद वह पाण्डवों के हित के लिये अकस्मात् आपकी सेना पर टूट पड़ा। चेदिराज धृष्टकेतू को वीरधन्वा ने रोका था। वे दोनों वीर आपस में भिड़ सहस्त्रों बाणों से एक_दूसरे को घायल कर रहे थे। तब वीरधन्वा ने कुपित होकर एक भल्ल से धृष्टकेतू के धनुष के दो टुकड़े कर दिये। चेदिराज ने उसे फेंककर एक लोहे की शक्ति उठायी और उसे दोनों हाथों से वीरधन्वा पर फेंका। उसकी भयंकर चोट से वीरधन्वा की छाती फट गयी और वह रथ से पृथ्वी पर गिर गया।
दूसरी ओर दुर्मुख ने सहदेव पर साठ बाण छोड़े और बड़ी भारी गर्जना की। इस पर सहदेव ने हँसते_हँसते उसको अनेकों तीखे बाणों से बींध डाला। दुर्मुख ने उसके नौ बाण मारे। तब सहदेव ने एक भल्ल से दुर्मुख की ध्वजा काट डाली, चार पैने बाणों से चारों घोड़े मार दिये और एक अत्यन्त तीखे बाण से उसका धनुष काट डाला। इसके बाद उसने उसके सारथि का सिर भी उड़ा दिया तथा पाँच बाणों से स्वयं उसको घायल कर दिया। तब दुर्मुख अपने अश्वहीन रथ को छोड़कर निरमित्र के रथ पर चढ़ गया। इस पर सहदेव ने कुपित होकर एक भल्ल से निरमित्र पर प्रहार किया। इस पर त्रिगर्तराज का पुत्र निरमित्र को मरा देखकर त्रिगर्तदेश की सेना में बड़ा हाहाकार होने लगा। इसी समय दूसरी आश्चर्य की बात यह हुई कि नकुल ने एक क्षण में ही आपके पुत्र विकर्ण को परास्त कर दिया। सेना के दूसरे भाग में व्याघ्रदत्त अपने तीखे बाणों से सात्यकि को आच्छादित कर रहा था। सात्यकि ने अपने हाथ की सफाई से उन सबको रोक दिया तथा अपने बाणों द्वारा ध्वजा, सारथि और घोड़ों सहित व्याघ्रदत्त को भी धराशायी कर दिया। उस मगधराजकुमार का वध होने पर मगध देश के अनेकों वीर सहस्त्रों बाण, तोमर भिन्दीपाल, प्रास, मुद्गर और मूसर आदि शस्त्रों का वार करते हुए सात्यकि के साथ युद्ध करने लगे। किन्तु सात्यकि ने हँसते_ हँसते अनायास ही उन सबको परास्त कर दिया। महाबाहु सात्यकि की मार से भयभीत होकर भागी हुई भयभीत  आपकी सेना में से किसी का भी साहस उसके पास ठहरने का नहीं हुआ। यह देखकर द्रोणाचार्यजी को बड़ा क्रोध हुआ और वे स्वयं ही उस पर टूट पड़े।
इधर शल ने द्रौपदी के पुत्रों में से पहले पाँच_पाँच और फिर सात_सात बाणों से बींध दिया। इससे उन्हें बड़ी ही पीड़ा हुई, वे चक्कर में पड़ गये और अपने कर्तव्य के विषय में कुछ निश्चय नहीं कर सके। इतने में ही नकुल के पुत्र शतानीक ने दो बाणों से शल को बींधकर बड़ी भारी गर्जना की। इसी प्रकार अन्य द्रौपदीकुमारों ने भी तीन_तीन बाणों से उसे घायल किया। तब शल ने उनमें से प्रत्येक पर पाँच_पाँच बाण छोड़े और एक_एक बाण से प्रत्येक की छाती पर चोट की। इसपर अर्जुन के पुत्र ने चार बाणों से उसके घोड़े मार डाले, भीमसेन के पुत्र ने उसका धनुष काटकर बड़े जोर से गर्जना की। युधिष्ठिरकुमार ने उनकी ध्वजा काटकर गिरा दी, नकुल के पुत्र ने सारथि को रथ से नीचे गिरा दिया तथा सहदेवकुमार ने एक पैने बाण से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया। उसका सिर कटते देखकर आपके सैनिक भयभीत होकर इधर_उधर भागने लगे।
एक ओर महाबली भीमसेन के साथ अलम्बुष का युद्ध हो रहा था। भीमसेन ने नौ बाणों से उस राक्षस को घायल कर डाला। तब वह भयानक राक्षस भीषण गर्जना करता हुआ भीमसेन की ओर दौड़ा। उसने उन्हें पाँच बाणों से बींधकर उनकी सेना के तीन सौ रथियों का संहार कर दिया। फिर चार सौ वीरों को और भी मारकर एक बाण से भीमसेन को घायल कर दिया। उस बाण से महाबली भीम के गहरी चोट लगी और वह अचेत होकर रथ के भीतर ही गिर गये। कुछ देर बाद उन्हें चेत हुआ तो वे अपना भयंकर धनुष चढ़ाकर चारों ओर से अलम्बुष को बाणों ये बींधने लगे। इस समय उसे याद आया कि भीमसेन ने ही उसके भाई बक को मारा था। अतः उसने भयानक रूप धारण करके उनसे कहा, ‘दुष्ट भीम ! तूने जिस समय मेरे महाबली भाई बक को मारा था समय मैं वहाँ उपस्थित नहीं था; आज तू उसका फल चख ले।‘ ऐसा कहकर वह अन्तर्धान हो गया तथा भीमसेन के ऊपर भारी बाणवर्षा करने लगा। भीमसेन ने भी सारे आकाश को बाणों से व्याप्त कर दिया। उनसे पीड़ित होकर वह राक्षस अपने रथ पर आ बैठा, फिर पृथ्वी पर उतरा और छोटा सा रूप धारण करके आकाश में उड़ गया। भिन्दीपाल, परशु, शिला, खड्ग, गुड, ऋष्टि और वज्र आदि अनेकों अस्त्र_शस्त्र की वर्षा की। उससे भीमसेन ने कुपित होकर विश्वकर्मास्त्र छोड़ा। उससे सब ओर अनेकों बाण प्रकट हो गये। उससे पीड़ित होकर आपके सैनिकों में बड़ी भगदड़ पड़ गयी। उस शस्त्र ने राक्षस की सारी माया को नष्ट करके उसे भी बड़ी पीड़ा पहुँचायी। इस प्रकार भीमसेन द्वारा बहुत पीड़ित होने पर वह उन्हें छोड़कर द्रोणाचार्यजी की सेना में चला गया। उस महाबली राक्षस को जीतकर पाण्डवलोग सिंहनाद करके सब दिशाओं को हुए जाने लगे।अब हिडिम्बा के पुत्र घतोत्कच ने अलम्बुष के आगे आकर उसे तीखे बाणों से बींधना आरम्भ किया। इससे अलम्बुष का क्रोध बहुत बढ़ गया और उसने घतोत्कच पर भारी चोट की। इस प्रकार उन दोनों राक्षसों का बड़ा भीषण संग्राम छिड़ गया। घतोत्कच ने अलम्बुष की छाती में बीस बाण मारकर बार_बार सिंह के समान गर्जना की तथा अलम्बुष ने रणकर्कश घतोत्कच को घायल करके अपने भारी सिंहनाद से आकाश को गुँजा दिया। दोनों ही सैकड़ों प्रकार की मायाएँ रचकर एक_दूसरे को मोह में डाल रहे थे। मायायुद्ध में कुशल होने के कारण अब उन्होंने उसी का आश्रय लिया। उस युद्ध में घतोत्कच ने जो_जो माया दिखायी, उसी को अलम्बुष ने नष्ट कर दिया। इससे भीमसेन आदि कई महारथियों का क्रोध बहुत बढ़ गया और वे भी अलम्बुष पर टूट पड़े।
अलम्बुष ने अपना वज्र के समान धनुष चढ़ाकर भीमसेन पर पच्चीस, घतोत्कच पर पाँच, युधिष्ठिर पर तीन, सहदेव पर सात, नकुल पर तिहत्तर और द्रौपदीपुत्रों पर पाँच_पाँच बाण छोड़े तथा बड़ा भीषण सिंहनाद किया। इस पर उसे भीमसेन ने नौ, सहदेव ने पाँच, युधिष्ठिर ने सौ, नकुल ने चौंसठ और द्रौपदी के पुत्रों ने पाँच_पाँच बाणों से बींध दिया तथा घतोत्कच ने उस पर पचास बाण छोड़कर फिर सत्तर बाणों का वार करते हुए बड़ी गर्जना की। उस भीषण सिंहनाद से पर्वत, वन, वृक्ष और जलाशयों के सहित सारी पृथ्वी डगमगाने लगी। तब अलम्बुष ने उनमें से प्रत्येक वीर पर पाँच_पाँच बाणों की चोट की। इस पर घतोत्कच और पाण्डवों ने अत्यन्त उत्तेजित होकर उस पर चारों ओर से तीखे_तीखे तीरों की वर्षा की । विजयी पाण्डवों की मार से अधमरा हो जानेसेे वह एकदम किंकर्तव्यविमूढ हो गया। उसकी ऐसी स्थिति देखकर युद्धदुर्मुद घतोत्कच ने उसका वध करने का विचार किया। वह अपने रथ से अलम्बुष के रथ पर कूद गया और उसे दबोच लिया। फिर उसे हाथों से ऊपर उठाकर बार_बार घुमाया और पृथ्वी पर पटक दिया। यह देखकर उसकी सारी सेना भयभीत हो गयी। वीर घतोत्कच के प्रहार से अलम्बुष के सब अंग फट गये और उसका हड्डियाँ चूर_चूर हो गयीं। इस प्रकार महाबली अलम्बुष को मरा देखकर पाण्डवलोग हर्ष से सिंहनाद करने लगे तथा आपकी सेना में हाहाकार होने लगा।

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