Wednesday 21 August 2019

अर्जुन के द्वारा कर्ण का पराजय और अश्त्थामा का दुर्योधन के साथ संवाद तथा पांचालों के साथ घोर युद्ध

तदनन्तर पाण्डव और पांचालवीर कर्ण की निंदा करते हुए चारों ओर से एक साथ वहाँ आ पहुँचे। जब कर्ण पर उनकी दृष्टि पड़ी तो वे उच्च स्वर से गर्जना करते हुए बोले___’यह पाण्डवों का कट्टर दुश्मन है, सदा का पापी है। यही सारे अनर्थों की जड़ है; क्योंकि यह दुर्योधन की हाँ_में_हाँ मिलाया करता है। मार डालो इसे।‘ऐसा कहते हुए सभी क्षत्रिय कर्ण का वध करने के लिये उसके ऊपर टूट पड़े और बाणों की भारी वर्षा करके उसे आच्छादित करने लगे। उन सब महारथियों को अपने ऊपर धावा करते देख महाबली कर्ण ने सायकों की मार से पाण्डवसेना को,आगे बढ़ने से रोक दिया।
उस समय हम सब लोगों ने कर्ण की अद्भुत फुर्ती देखी। महारथी कर्ण ने राजाओं के बाणसमूहों का निवारण करके उनके रथों और घोड़ों पर अपने नामवाले बाणों का प्रहार किया। उससे व्याकुल होकर वे इधर_उधर भागने लगे। कर्ण के सायकों के आहत होकर झुण्ड_के_झुण्ड घोड़े, हाथी और रथी मरते दिखायी देते थे।कर्ण की उस फुर्ती को महाबली अर्जुन नहीं सह सके। उन्होंने उसके ऊपर तीन सौ तीखे बाण मारे। फिर उसके बायें हाथ को एक बाण से बींध डाला। इससे उसके हाथ का धनुष छूटकर गिर गया। किन्तु आधे ही निमेष में उसने पुनः वह धनुष उठा लिया और अर्जुन को बाणसमूहों से ढक दिया। किन्तु अर्जुन ने हँसते_हँसते उस बाणवर्षा का संहार कर डाला। वे दोनों एक_दूसरे से भिड़कर परस्पर सायकों की वृष्टि करने लगे। इतने में ही अर्जुन ने कर्ण का पराक्रम देखकर बड़ी शीघ्रता से उसके धनुष को बीच में ही काट डाला। फिर चार भल्ल मारकर उसके चारों घोड़ों को यमलोक भेज दिया। इसके बाद सारथि का भी सिर उतार लिया।
तत्पश्चात् चार बाणों से उसके शरीर को बींध डाला। उन बाणों से कर्ण को बड़ी पीड़ा हुई और वह अपने अश्वहीन रथ से कूदकर कृपाचार्य के रथ पर चढ़ गया। उस समय उसके सब अंगों में बाण धँसे हुए थे, इससे वह कण्टकों से भरी हुई साही के समान जान पड़ता था। कर्ण को परास्त हुआ देख आपके योद्धा धनंजय के बाणों से क्षत_विक्षत हो सब दिशाओं में भाग चले।
उन्हें भागते देख दुर्योधन सान्त्वना देते हुए लौटाने लगा। उसने कहा___’शूरवीरों ! तुमलोग श्रेष्ठ क्षत्रिय हो, तुम्हारे लिये भागना शोभा की बात नहीं है। यह देखो, मैं स्वयं अर्जुन का वध करने के लिये चल कहा हूँ। पांचालों और सोमकों के साथ अर्जुन को मैं स्वयं ही मारूँगा।‘ ऐसा कहकर क्रोध में भरा हुआ दुर्योधन बहुत बड़ी सेना के साथ अर्जुन की ओर बढ़ा। यह देख कृपाचार्य ने अश्त्थामा के पास आकर कहा___’आज यह राजा दुर्योधन अमर्ष में भरा हुआ है, क्रोध से अपनी विचारशक्ति खो बैठा है। जैसे पतंगे जलने के लिये ही दीपक के पास जाते हैं, उसी प्रकार अपना सर्वनाश करने के लिये यह अर्जुन से लड़ना चाहता है। हमलोगों के सामने ही पार्थ से भिड़कर यह अपना प्राण खो बैठे, इसके पहले ही तुम जाकर इसे रोक लो।‘अपने मामा के इस प्रकार कहने पर अश्त्थामा  दुर्योधन के पास आकर बोला____’गान्धारीनन्दन ! मैं तुम्हारा हितैषी हूँ, मेरे जीते_जी मेरी अवहेलना करके तुम्हे अकेले युद्ध नहीं करना चाहिये। तुम अर्जुन को जीतने के विषय में संदेह न करो। चुपचाप खड़े रहो, मैं जाकर अर्जुन को रोकता हूँ।दुर्योधन बोला___विप्रवर ! आचार्य तो अपने पुत्र की भाँति पाण्डवों की रक्षा करते हैं और तुम भी सदा उनकी ओर से लापरवाही दिखाते हो। मैं नहीं जानता तुम्हारा पराक्रम क्यों मन्द हो गया है, शायद मेरा दुर्भाग्य हो अथवा तुम धर्मराज और द्रौपदी का प्रिय करना चाहते होगे। अश्त्थामा ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ और मेरे दुश्मनों का नाश करो। तुम पांचालों और सोमकों को,उनके अनुचरोंसहित मार डालो। इनके बाद जो बाकी रह जायेंगे, उन्हें तुम्हारे संरक्षण में रहकर मैं स्वयं मौत के घाट उतारूँगा। पहले पांचालों, सोमकों और केकयों को जाकर रोको; क्योंकि ये लोग अर्जुन से सुरक्षित होकर मेरी सेना का सफाया किये डालते हैं। पहले करो या पीछे, यह काम तुम्हारे किये ही हो सकता है। अतः पांचालों को तुम उनके सवारियों सहित मार डालो। तुम इस जगत् को पांचालरहित कर दोगे___ ऐसा सिद्ध पुरुषों ने कहा है। यह बात कभी मिथ्या नहीं हो सकती। इन्द्रसहित देवता भी तुम्हारे बाणों का प्रहार नहीं सह सकते; फिर तो पाण्डवों और पांचालों की तो बात ही क्या है ? वीरवर ! देखो ! यह मेरी सेना अर्जुन के बाणों से पीड़ित होकर भाग रही है; अतः शीघ्र ही जाओ, जाओ ! देर नहीं होनी चाहिये।
दुर्योधन के ऐसा कहने पर अश्त्थामा ने इस प्रकार उत्तर दिया___’महाबाहो ! तुमने जो कुछ कहा है, सब ठीक है; मुझे और मेरे पिताजी को पाण्डव बड़े प्यारे हैं तथा वे भी हम दोनों पर प्रेम रखते है। किन्तु यह बात युद्ध के समय लागू नहीं होती। उस समय तो हमलोग प्राणों का मोह छोड़ निडर होकर पूरी शक्ति से युद्ध करते हैं। किन्तु तुम तो महान् लोभी और कपटी हो, सब पर संदेह करने का  तुम्हारा स्वभाव हो गया है। अपने ही घमंड में उबले रहते हो; यही कारण है कि हमलोगों पर तुम्हारा विश्वास नहीं होता। खैर, मैं तो अब जाता हूँ; तुम्हारे हित के लिये जीवन का लोभ छोड़कर प्रयत्नपूर्वक शत्रुओं से युद्ध करता रहूँगा और उनके मुख्य_मुख्य वीरों को चुन_ चुनकर मारूँगा। पांचालों और सोमकों का वध तो करूँगा ही, उन्हें मरा देख वे लोग मेरे साथ लड़ने आवेंगे, उन्हें भी यमलोक भेज दूँगा। मेरी भुजाओं की पहुँच के भीतर जो आ जायेंगे, वे छूटकर नहीं जा सकते।‘इस प्रकार आपके पुत्र से कहकर अश्त्थामा समस्त धनुर्धारियों को भगाता हुआ युद्ध करने के लिये शत्रुओं के सामने जा डटा। उसने केकय और पांचाल राजाओं से पुकारकर कहा____’महारथियों ! तुम सब लोग एक साथ मुझपर प्रहार करो।‘ यह सुनकर वे सभी वीर अश्त्थामा पर अस्त्र_ शस्त्रों की वृष्टि करने लगे। अश्त्थामा ने उनके अस्त्रों का निवारण करके पाण्डवों और धृष्टधुम्न के सामने ही उनमें से दस वीरों को मार गिराया। अश्त्थामा की मार पड़ने से पांचाल और सोमक क्षत्रिय वहाँ से हटकर इधर_उधर सब दिशाओं में भागने लगे।तब धृष्टधुम्न ने अश्त्थामा पर धावा किया और उसे मर्मभेदी सायकों से बिंध डाला। अधिक घायल होने से अश्त्थामा क्रोध में भर गया और हाथ में बाण लेकर बोला___’धृष्टधुम्न ! स्थिर होकर क्षणभर और प्रतीक्षा कर लो, अभी थोड़ी देर में तुम्हें तीखे भल्लों से मारकर यमलोक पठाता हूँ।‘ यह कहकर उसने धृष्टधुम्न को बाणों से आच्छादित कर दिया। तब पांचाल राजकुमार  ने अश्त्थामा को डाँटकर कहा___’अरे ब्राह्मण ! तू मेरी प्रतिज्ञा तथा मेरे उत्पन्न होने का प्रयोजन नहीं जानता ? आज रात मेैं सवेरा होने से पहले ही तेरे पिताजी को मारकर फिर तेरा वध करूँगा। जो ब्राह्मण ब्राह्मणोचित वृत्ति को त्याग करके क्षत्रिय धर्म में तत्पर रहता है, वह सब लोगों का वध्य है।‘धृष्टधुम्न के कहे हुए इस कठोर वचन को सुनकर अश्त्थामा प्रचंड कोप से जल उठा और ‘खड़ा रह ! खड़ा रह !’ ऐसा कहते हुए उसने बाणों की वर्षा से उसे ढक दिया। उधर से धृष्टधुम्न भी नाना प्रकार के बाणों का प्रहार करने लगा। उन दोनों की बाणवर्षा से आकाश और दिशाएँ भर गयीं, घोर अन्धकार छा गया, अतः वे एक_दूसरे की दृष्टि से ओझल होकर जी लड़ने लगे। दोनों के ही युद्ध का ढंग बड़ा अद्भुत और सुन्दर था, दोनों की फुर्ती देखने ही योग्य थी। उस समय रणभूमि में खड़े हुए हजारों योद्धा उन दोनों की प्रशंसा कर रहे थे। उस युद्ध में अश्त्थामा ने धृष्टधुम्न के धनुष, ध्वजा तथा छत्र काट डाले और पार्श्वरक्षक, सारथि तथा दोनों घोड़ों को मार गिराया। इसके बाद अपने तीखे बाणों से मारकर उसने सैकड़ों और हजारों पांचालों को भगा दिया। उसके इस पराक्रम को देखकर पाण्डवसेना व्यथित हो उठी। उसने सौ बाणों से सौ पांचालों का नाश करके तीखे बाण छोड़कर तीन श्रेष्ठ महारथियों के प्राण ले लिये। फिर धृष्टधुम्न और अर्जुन के देखते_ देखते वहाँ खड़े हुए बहुसंख्यक पांचालों का नाश कर डाला। उनके रथ और ध्वजाएँ चूर_चूर हो गयीं। अब तो सृंजय और पांचालों में भगदड़ पड़ गयी। इस प्रकार महारथी अश्त्थामा संग्राम में शत्रुओं तो जीतकर बड़े जोर से गर्जना करने लगा। उस समय कौरवों ने उसकी खूब प्रशंसा की।

No comments:

Post a Comment