Thursday 28 July 2022

अर्जुन के वीरोचित उद्गार, दोनों पक्ष की सेनाओं में द्वन्द्वयुद्ध, सुषेण का वध, भीमसेन का पराक्रम तथा अर्जुन के आने से उनकी प्रसन्नता

संजय कहते हैं_महाराज ! भगवान् श्रीकृष्ण का भाषण सुनकर अर्जुन एक ही क्षण में शोकरहित एवं परम प्रसन्न हो गये। फिर प्रत्यंचा सुधारकर गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए उन्होंने केशव से कहा_’गोविन्द !  जब आप मेरे स्वामी और संरक्षक हैं तो मेरी विजय निश्चित है। संसार के भूत भविष्य का निर्माण आपके हाथ में है, जिसपर आप प्रसन्न हैं, उसकी विजय में क्या संदेह है ? कृष्ण ! कर्ण की तो बात ही क्या है ? आपकी सहायता मिलने पर तो मैं अपने सामने आये हुए तीनों लोकों को परलोक का पथिक बना सकता हूं। जनार्दन ! मैं देखता हूं_पांचालों की सेना भाग रही है। यह भी देख रहा हूं कि कर्ण रणभूमि में निर्भय_सा विचरता है। उस प्रज्जवलित भार्गवास्त्र की ओर भी मेरी दृष्टि है, जिसे कर्ण ने प्रगट किया है। निश्चय ही यह , वह संग्राम है, जहां कर्ण मेरे हाथों से मारा जायगा और जबतक यह पृथ्वी कायम रहेगी, जबतक समस्त प्राणी इस बात की चर्चा करेंगे। आज मेरे गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाण कर्ण को मौत के घाट उतारेंगे। कृष्ण ! मैं आपसे सच्ची बात बता रहा हूं, आज कर्ण के मारे जाने से दुर्योधन अपने राज्य और जीवन_दोनों से निराश हो जायगा।
मेरे बाणों से कर्ण के टुकड़े_टुकड़े हुए देख आज राजा दुर्योधन आपके उन वचनों को स्मरण करे, जिन्हें आपने उसकी भलाई के लिये कहा था। कौरवों की सभा में पाण्डवों की निंदा करते हुए कर्ण ने द्रौपदी से जो कठोर बातें कहीं थीं, उनके लिये आज उसे खूब पश्चाताप होगा। आज कर्ण के मारे जाने पर धृतराष्ट्र के सभी पुत्र राजा दुर्योधन के साथ इस तरह भयभीत होकर भागेंगे, जैसे सिंह से डरे हुए मृग भागते हैं। कर्ण के पुत्र और मित्रों को भी आज जीवित नहीं रहने दूंगा। सूतपुत्र की मौत देखकर राजा दुर्योधन अब अपने लिये चिंता करें। आज राजा धृतराष्ट्र को उनके पुत्र_पौत्र, मंत्री और सेवकों सहित राज्य की ओर से निराश कर दूंगा। आज मैं अकेला ही कौरवों तथा बाह्लीकों को सेनासहित मारकर अपने बाणों की ज्वाला में जला डालूंगा। मेरे एक हाथ में बाण की तथा दूसरे में बाण सहित दिव्य धनुष की रेखाएं हैं, पैरों में भी रथ और ध्वजा के चिह्न हैं। मेरे जैसे लक्षणोंवाले योद्धा को कोई भी युद्ध में नहीं जीत सकता। भगवान् से ऐसा कहकर अद्वितीय वीर अर्जुन क्रोध से लाल आंखें किये रणभूमि में जा पहुंचे। उस समय उनके मन में दो संकल्प थे_भीमसेन को संकट से छुड़ाना और कर्ण के मस्तक को धड़ से अलग कर देना।
धृतराष्ट्र ने पूछा_संजय ! मेरे पुत्रों तथा पाण्डव_सृंजयों में पहले से ही महाभयंकर संग्राम छिड़ा हुआ था। फिर जब अर्जुन वहां पहुंचे तो युद्ध का स्वरूप कैसा हो गया ?
संजय ने कहा_राजन् ! उस समय अर्जुन घोड़े और सारथिसहित हाथियों और घोड़ों, पैदलों एवं संपूर्ण शत्रुओं को अपने बाण समूहों की मार से मृत्यु के अधीन करने लगे। उनके पहुंचने के पहले कृपाचार्य और शिखण्डी एक_दूसरे से भिड़े थे। सात्यकि ने दुर्योधन पर धावा किया था, श्रुतश्रवा का अश्वत्थामा से और युधामन्यु का चित्रसेन के साथ युद्ध चल रहा था। उत्तमौजा ने कर्ण के पुत्र सुषेण पर और सहदेव ने शकुनि पर आक्रमण किया था। नकुल कुमार शतानीक और कर्ण पुत्र वृषसेन में मुकाबला हो रहा था। नकुल ने कृतवर्मा पर और धृष्टद्युम्न  सेनासहित कर्ण पर चढ़ाई की थी। दु:शासन ने संशप्तकों की सेना लेकर भीमसेन पर धावा किया था। उस संग्राम में उत्तमौजा ने कर्णपुत्र सुषेण को अपने बाणों का निशाना बनाकर उसका मस्तक काट गिराया। सुषेण का सिर पृथ्वी पर पड़ा देखकर कर्ण व्याकुल हो उठा। उसने क्रोध में भरकर उत्तमौजा के घोड़ों को मार डाला और पैने बाणों से उसके ध्वजा तथा रथ की भी धज्जियां उड़ा दीं।
उत्तमौजा भी अपने तीखे बाणों तथा चमकती हुई तलवार से कृपाचार्य के पार्शरक्षकों एवं घोड़ों को मारकर शिखण्डी के रथ पर जा चढ़ा। रथ पर बैठे हुए शिखण्डी ने कृपाचार्य को रथहीन देखकर उनपर प्रहार करने का विचार छोड़ दिया। तदनन्तर अश्वत्थामा ने आगे आकर कृपाचार्य के रथ को अपने पीछे छिपा दिया और उनका उस रण से उद्धार किया। दूसरी ओर भीमसेन अपने पैने बाणों की मार से आपके पुत्रों की सेना को अत्यंत संताप देने लगे। घमासान युद्ध में बहुत से शत्रुओं द्वारा घिरे हुए भीमसेन अपने सारथि से बोले_’सारथे ! तू घोड़ों को तेज हांककर शीघ्र मुझे धृतराष्ट्र के पुत्रों के पास ले चल, आज उन सबको मैं यमलोक पहुंचाये देता हूं।‘ आज्ञा पाते ही सारथि ने घोड़ों की चाल तेज की और तुरंत ही रथ लिये आपकी पुत्रों की सेना में जा पहुंचा।
कौरव_पक्ष के योद्धा भी सब ओर से हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों को साथ ले आगे बढ़ आते। भीम के रथ पर चारों ओर से बाणों की बौछार होने लगी और भीम उन सबको अपने बाणों से काटने लगे। उन्होंने शत्रुओं के छोड़े हुए प्रत्येक बाण के दो_दो, तीन_तीन टुकड़े कर डाले। तदनन्तर उनके द्वारा मारे गये हाथी, घोड़े , रथ और पैदल जवानों का चित्कार सुनाई देने लगा। भीमसेन के बाणों की मार से राजाओं के अंग विदीर्ण हो रहे थे, तो भी उन्होंने उनपर सब ओर से धावा कर दिया। तब भीम ने अपना प्रचण्ड वेग प्रगट किया, जिसे शत्रु रोक न सके। महात्मा भीम द्वारा भस्म होती हुई आपकी सेना भयभीत हो रण से भाग चली।  यह देख भीम प्रसन्न होकर पुनः अपने सारथि से बोले_’सूत ! ये जो ध्वजाओं सहित बहुत_से रथ इस ओर बढ़ते चले आ रहे हैं ये हैं अपने शत्रुओं के ? इसकी पहचान कर लेना। युद्ध करते समय मुझे अपने_पराये का ज्ञान नहीं रहता। कहीं ऐसा न हो कि अपनी ही सेना को बाणों से आच्छादित कर डालूं।
विशोक !  राजा युधिष्ठिर बाणों के प्रहार से बहुत घबराते हुए हैं। इधर अर्जुन उन्हें देखने गये थे, सो अभी तक नहीं लौटे। पता नहीं, राजा अभी तक जीवित हैं या नहीं ? अर्जुन का भी समाचार नहीं मिला। इससे मुझे बड़ा खेद हो रहा है तो भी मैं शत्रुओं की प्रचण्ड सेना का संहार करूंगा। तू मेरे रथ पर रखे हुए सभी शस्त्रों की जांच कर लें, अब उनमें कितने बाण बाकी रह गये हैं। किस_किस तरह के बाण बचे हैं और उनकी संख्या कितनी है ? यह सब समझकर बता।‘
विशोक ने कहा_वीरवर ! अब अपने पास साठ हजार मार्गण हैं, दस_दस हजार क्षुर और भल्ल हैं, दो हजार नारायण बचे हैं तथा तीन हजार प्रदर हैं। अभी इतने अस्त्र_शस्त्र बाकी  रह गये हैं कि छः बैलों से जुताई हुआ छकड़ा भी उन्हें नहीं खींच सकता।  तलवारें हजारों की संख्या में पड़ी हैं। प्रास, मुद्गल, शक्ति और तोमर भी बहुत हैं। आप इसके डर में न रहें कि हमारे अस्त्र_शस्त्र जल्दी समाप्त हो जायेंगे। भीमसेन बोले_सूत ! आज अकेले मैं ही समस्त कौरवों को मार गिराउंगा या वे ही मुझे पीड़ित करेंगे। इस समय देवतालोग मेरा एक ही काम सिद्ध कर दें; जैसे यज्ञ में आह्वान करते ही इन्द्र पहुंचते हैं, उसी प्रकार अर्जुन भी यहां आ जायं। विशोक ! इस छिन्न_भिन्न होती हुई कोरव_सेना की ओर तो दृष्टि डाल, ये राजालोग क्यों भाग रहे हैं ? मुझे तो स्पष्ट जान पड़ता है कि नरश्रेष्ठ अर्जुन यहां आ पहुंचे, वे ही अपने बाणों से संपूर्ण सेना को आच्छादित कर रहे हैं। कौरवों पर मोह छा गया है, सब_के_सब भाग रहे हैं। रण में हाहाकार मचा है। हाथी बड़े जोरों से चिग्घाड़ रहे हैं। विशोक ने कहा_ कुमार भीमसेन ! क्रोध में भरे हुए अर्जुन के द्वारा खींचे जानेवाले गाण्डीव धनुष की भयंकर टंकार  क्या तुम्हें नहीं सुनाई देती ? पाण्डुनन्दन ! लो, तुम्हारी सारी कामनाएं पूरी हुईं, उधर देखो, हाथियों की सेना में अर्जुन के रथ की ध्वजा का वानर दिखाई देता है। वह ध्वजा के ऊपर चढकर शत्रुओं को भयभीत करता हुआ चारों ओर देख रहा है। मैं स्वयं भी उसे देखकर डर रहा हूं।
अर्जुन का वह विचित्र मुकुट, सूर्य के समान चमकीली मणि लगी लगी हुई है, कितना सुंदर है ? उनकी बगल में देवदत्त नामवाला श्वेत शंख है। इसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण के पार्श्व में सूर्य के समान कान्तिमान चक्र है, जो उनका यश बढ़ानेवाला है। यदुवंशी सदा उसकी पूजा किया करते हैं। श्रीकृष्ण के पास उनका पांचजन्य भी है, जो चन्द्रमा के समान उज्जवल है।
देखो, भगवान् के वक्ष:स्थल पर कौस्तुभमणि तथा वैजन्तीमाला कैसी शोभा पा रही है ? निश्चय ही श्यामसुंदर घोड़े हांकते हैं और महारथी अर्जुन शत्रुओं की सेना को खदेड़ते हुए इधर ही आ रहे हैं। वह देखो, अर्जुन ने अपने बाणों से घोड़े और  सारथिसहित चार सौ रथियों को मार डाला, सात सौ हाथियों का सफाया किया और हजारों घुड़सवारों तथा पैदलों को मौत के घाट उतार दिया है। इस प्रकार कौरव_योद्धाओं का संहार करते हुए महाबली अर्जुन अब तुम्हारे ही पास आ रहे हैं। तुम्हारा मनोरथ सफल हो गया।
भीमसेन बोले_विशोक ! तुमने बड़ा प्रिय समाचार सुनाया, इससे मुझे बड़ी खुशी हुई है, इस शुभ संवाद के रिमेक मैं तुम्हें चौदह गांवों की जागीर दूंगा। साथ ही सौ दासियां तथा बीस रथ भी तुम्हें पारितोषिक के रूप में मिलेंगे।










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