Monday 21 November 2022

धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध, कर्ण का वध और शल्य का समझाना, नकुल और वृषसेन का युद्ध, अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध तथा कर्ण के विषय में श्रीकृष्ण अर्जुन की बातचीत

संजय कहते हैं_महाराज ! दु:शासन के मारे जाने पर आपके पुत्र, निषंगी, कवची, पाशी, दण्डधारी, धनुर्धर, अलोलुप, सह, चण्ड, वातवेग और सुवर्चा_ये दस महारथी एक साथ भीमसेन पर टूट पड़े और उन्हें बाणों की वृष्टि से आच्छादित करने लगे। इनको अपने भाई की मृत्यु के कारण बड़ा दु:ख हुआ था, इसलिये इन्होंने बाणों से मारकर भीमसेन की प्रगति रोक दी। इन महारथियों को चारों ओर से बाण मारते देख भीमसेन क्रोध से जल उठे, उनकी आंखें लाल हो गयीं और वे कोप में भरे हुए काल के समान जान पड़ने लगे। उन्होंने भल्ल नामक दस बाण मारकर आपके दसों पुत्रों को यमराज के घर भेज दिया।
उसके मरते ही कौरव की सेना भीम के डर से भाग चली। कर्ण देखता ही रह गया। महाराज प्रजा का नाश करनेवाले यमराज के समान भीम का यह पराक्रम देखकर कर्ण के भी मन में बड़ा भारी भय समा गया। राजा शल्य उसका आकार देखकर भीतर का भाव समझ गये। तब उन्होंने कर्ण से यह समयोचित बात कही_’राधानन्दन भय न करो। तुम्हारे जैसे वीर को यह शोभा नहीं देता। ये राजा लोग भीम के भय से घबराकर भागे जा रहे हैं, दुर्योधन भी भाई की मृत्यु से किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है। भीमसेन जब दु:शासन का रक्त पी रहे थे, तभी से कृपाचार्य आदि वीर तथा मरने से बचे हुए कौरव दुर्योधन को चारों ओर से घेरकर खड़े हैं। सभी शोक से व्याकुल हैं, सबकी चेतना लुप्त हो रही है। ऐसी अवस्था में तुम पुरुषार्थ का भरोसा रखो और क्षत्रिय धर्म को सामने रखकर अर्जुन का मुकाबला करो। दुर्योधन ने सारा भार तुम्हारे ही ऊपर रखा है। तुम अपने बल और शक्ति के अनुसार उसका वहन करो। यदि विजय हुई तो बहुत बड़ी कीर्ति फैलेगी और पराजय होने पर अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति निश्चित है।‘ शल्य की बात सुनकर कर्ण ने अपने हृदय में युद्ध के लिये आवश्यक भाव ( उत्साह अमर्स आदि को ) जगाया। इधर, महान् वीर नकुल ने वृषसेन पर चढ़ाई की और रोष में भरकर अपने शत्रु को बाणों से पीड़ित करना आरम्भ किया। उसने वृषसेन के धनुष को काट डाला। तब कर्ण के पुत्र ने दूसरा धनुष लेकर नकुल को घायल कर दिया। वह अस्त्र विद्या का ज्ञाता था इसलिये माद्री कुमार पर दिव्यास्त्रों की वर्षा करने लगा। उसने उत्तम अस्त्र के प्रहार से नकुल के सफेद रंग वाले चारों घोड़ों को मार डाला। घोड़ों के मारे जाने पर नकुल हाथों में ढ़ाल_तलवार ले रथ से कूद पड़ा और उछलता_कूदता हुआ रणभूमि में विचरने लगा। उसने बड़े _बड़े रथियों, घुड़सवारों और हाथी सवारों  मौत के घाट उतारा तथा अकेले ही दो हजार योद्धाओं का सफाया कर डाला। फिर वृषसेन को भी घायल किया और कितने ही पैदलों घोड़ों तथा हाथियों को मौत के मुंह में भेज दिया। तब कर्ण के पुत्र ने नकुल को अठारह बाणों को खींचकर कर उसके ऊपर तीखे सायकों की दूरी लगा दी। नकुल भी उसके बाणों की बौछार को व्यर्थ करता हुआ और युद्ध के अनेकों अद्भुत पैंतरे दिखाता हुआ संग्राममभूमि में विचरने लगा। इतने में ही वृषसेन ने नकुल की ढाल के टुकड़े _टुकड़े कर डाले। ढ़ाल कट जाने पर उसने तलवार के साथ दिखाने आरंभ किये, किन्तु कर्णपुत्र ने छः बाणों से उसके भी खण्ड_खण्ड कर दिये। फिर तेज किये हुये सायकों से उसने नकुल की छाती में भी गहरी चोट पहुंचायी। इससे नकुल को बहुत व्यथा हुई और सहसा छलांग मारकर भीमसेन के रथ के पास जा बैठा। अब एक ही रथ पर बैठे हुए उन दोनों महारथियों को घायल करने के लिये वृषसेन बाणों की वृष्टि करने लगा। उस समय वहां कौरवपक्ष के दूसरे योद्धा भी आ पहुंचे और सब मिलकर उन दोनों भाइयों पर बाण बरसाने लगे।
इसी समय यह जानकर कि ‘नकुल वृषसेन के बाणों से पीड़ित हैं, उसकी तलवार तथा धनुष कट गये हैं और वह रथहीन हो चुका है।‘ द्रुपद के पांचों पुत्र गरजते हुए वहां आ पहुंचे और अपने बाणों से आपकी सेना के रथ, हाथी एवं घोड़ों का संहार करने लगे। यह देख, आपके प्रधान महारथी कृपाचार्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, दुर्योधन, उलूक, वृक, क्राथ और  आदि ने बाण मारकर शत्रुओं के उन ग्यारह महारथियों को आगे बढ़ने से रोक दिया। तब नवीन मेघ के समान काले और पर्वत शिखर कै समान ऊंचे एवं भयंकर वेग वाले हाथियों के साथ कुलिन्दों की सेना ने आपके महारथियों पर धावा किया। कुलिन्दराज के पुत्र ने लोहे के दस बाण मारकर सारथि और घोड़ों सहित कृपाचार्य को बहुत घायल किया, किन्तु अंत में कृपाचार्य के सायकों की मार खाकर वह हाथीसहित जमीन पर गिरा और मर गया। कुलिन्दराजकुमार का छोटा भाई गान्धारराज शकुनि से भिड़ा था, वह सूर्य की किरणों के समान चमकते हुए तोमरों से गान्धारराज के रथ की धज्जियां उड़ाकर बड़े जोर से गर्जना करने लगा। इतने में ही शकुनि ने उसका सिर काट लिया। उसी समय कुलिन्दराजकुमार के दूसरे छोटे भाई ने आपके पुत्र दुर्योधन की छाती में बहुत _से बाण मारे। तब दुर्योधन तीखे बाणों से उसे बींधकर उसके हाथी को भी छेद डाला। हाथी अपने शरीर से रक्त की धारा बहाता हुआ धरती पर गिर पड़ा। अब कुलिन्दकुमार ने दूसरा हाथी आगे बढ़ाया, उसने सारथि तथा घोड़ों सहित क्राथ के रथ को कुचल डाला। किन्तु थोड़ी ही देर में क्राथ के द्वारा चलाते हुए बाणों से विदीर्ण होकर वह हाथी भी सवारसहित धराशायी हो गया। इसके बाद हाथी पर ही बैठे हुए एक पर्वतीय राजा ने क्राथराज पर आक्रमण किया। उसने अपने बाणों से क्राथ के घोड़े, सारथि, ध्वजा तथा धनुष को नष्ट करके उसे भी मार गिराया। तब बृक ने उस पहाड़ी राजा को बारह बाण मारकर अत्यंत घायल कर दिया। चोट खाकर राजा का वह विशाल गजराज वृक पर झपटा और अपने चारों चरणों से उसने रथ और घोड़ोंसहित वृक का कचूमर निकाल डाला और अन्त में देवावृध_कुमार के बाणों से आहत होकर राजासहित वह गजराज भी काल का ग्रास बन गया। इधर देवावृधकुमार भी सहदेवपुत्र के बाणों से पीड़ित होकर गिरा और मर गया। इसके बाद दूसरा कुलिन्दयोद्धा हाथी पर सवार हो शकुनि को मारने के लिये आगे बढ़ा और उसे बाणों से पीड़ित करने लगा। यह देख गान्धारराज ने उसका भी सिर काट लिया। दूसरी ओर नकुल पुत्र शतानीक अपनी सेना के बड़े _बड़े गजराजों, घोड़ों, रथियों और पैदलों का संहार करने लगा। उस समय कलिंगराज के एक दूसरे पुत्र ने उसका सामना किया। उसने हंसते _हंसते बहुत से तीखे बाण मारकर शतानीक को घायल कर दिया। तब शतानीक ने क्रोध में भरकर क्षुराकार बाण से कलिंगराजजकुमार का मस्तक काट डाला।
इसी बीच में कर्ण कुमार वृषसेन ने शतानीक पर आक्रमण किया। उसने नकुल पुत्र को तीन बाणों से घायल करके अर्जुन को तीन, भीमसेन को तीन, नकुल को सात और श्रीकृष्ण को बारह बाणों से बींध डाला। उसका यह अलौकिक पराक्रम देख समस्त कौरव हर्ष में भरकर उसकी प्रशंसा करने लगे। अर्जुन ने देखा कि कर्णपुत्र द्वारा नकुल के घोड़े मार डाले गये हैं और उसने श्रीकृष्ण को भी बहुत घायल कर दिया है, तो वे कर्ण के सामने खड़े हुए उसके पुत्र की ओर दौड़े। उन्हें आक्रमण करते देख कर्णकुमार ने अर्जुन को एक बाण से आहत करके बड़े जोर से गर्जना की। फिर उनकी बायीं भुजा के मूलभाग में उसने  भयंकर बाण मारे। इतना ही नहीं, उसने पुनः श्रीकृष्ण को नौ और अर्जुन को दस बाणों से बींध डाला। अब अर्जुन को कुछ_कुछ क्रोध हुआ और उन्होंने मन_ही_मन वृषसेन को मार डालने का निश्चय किया। बढ़ते हुए क्रोध के कारण उनके भौंहों में तीन जगह बल पड़ गया, आंखें लाल हो गयीं। उस समय मुस्कराते हुए वे कर्ण, दुर्योधन और अश्वत्थामा आदि सभी महारथी से कहने लगे _’कर्ण ! मेरा पुत्र अभिमन्यु अकेला था और मैं उसके साथ मौजूद नहीं था, ऐसी दशा में तुम सब लोगों ने मिलकर उसका वध किया _इस काम को सब लोग खोटा बताते हैं। किन्तु आज मैं तुमलोगों के सामने ही तुम्हारे पुत्र वृषसेन का वध करूंगा। रथियों ! तुम सब मिलकर मिलकर उसे बचा सको तो बचाओ। कर्ण ! वृषसेन का वध करने के पश्चात् तुम्हें भी मार डालूंगा। सारे झगड़े की जड़ तुम्हीं हो, दुर्योधन का आश्रय पाकर तुम्हारा घमंड बहुत बढ़ गया है, इसलिये आज मैं जबरदस्ती तुम्हारा वध करूंगा और दुर्योधन का वध भीमसेन के साथ से होगा। ऐसा कहकर अर्जुन ने धनुष की टंकार की और वृषसेन पर निशाना साधकर ठीक किया, तुरंत ही उसके वध के उद्देश्य से दस बाण छोड़े। उनसे वृषसेन के मर्मस्थानों में चोट पहुंची। इसके बाद अर्जुन ने कर्णकुमार का धनुष और उसकी दोनों भुजाएं काट डालीं। फिर चार क्षुरों से उसका मस्तक उड़ा दिया। मस्तक और भुजाएं कट जाने पर वृषसेन रथ से लुढ़कअर जमीन पर आ पड़ा। पुत्र के वध से कर्ण को बड़ा दु:ख हुआ, वह रोष में भरकर श्रीकृष्ण और अर्जुन की ओर दौड़ा। महाराज ! उस समय कर्ण को आते देख भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन से हंसकर कहा_’धनंजय ! आज तुम्हें जिसके साथ लोहा लेना है, वह महारथी कर्ण आ रहा है, अब संभल जाओ। देखो वह है उसका रथ; उसमें सफेद घोड़े जुते हुए हैं। रथी के स्थान पर स्वयं राधानन्दन कर्ण विराजमान हैं। रथ पर भांति_भांति की पताकाएं फहराती हैं तथा उसमें छोटी_छोटी घण्टियां शोभा पा रही हैं। जरा उसकी ध्वजा तो देखो, उसमें सर्प का चिह्न बना हुआ है। कर्ण बाणों की बौछार करता हुआ बढ़ा चला आ रहा है। उसे देखकर ये पांचाल महारथी भय के मारे अपनी सेना से भागे ,जा रहे हैं। इसलिये कुन्तीनन्दन ! तुम्हें अपनी सारी शक्ति लगाकर सूतपुत्र का वध करना चाहिए। रण में तुम देवता, असुर, गंधर्व तथा स्थावर_जंगमरूप तीनों लोकों को जीतने में समर्थ हो। इस बात को मैं जानता हूं। जिनकी मूर्ति बड़ी ही उग्र एवं भयंकर है, जिनकी तीन आंखें हैं, जो मस्तक पर जटाजूट धारण करते हैं, उन महादेव जी को दूसरे लोग देख भी नहीं सकते, फिर उनके साथ युद्ध करने की बात ही कहां है ? परन्तु तुमने समस्त जीवों का कल्याण करनेवाले उन्हीं भगवान् शिव की युद्ध के द्वारा अराधना की है। देवताओं ने भी तुम्हे वरदान दिये हैं। इसलिये तुम त्रिशूलधारी देवाधिदेव भगवान् शंकर की कृपा से कर्ण का उसी प्रकार वध करो, जैसे इन्द्र ने नमुचि का किया था। मैं आशीर्वाद देता हूं_युद्ध में तुम्हारी विजय हो। अर्जुन बोले_मधुसूदन ! संपूर्ण लोक के गुरु आप मुझपर प्रसन्न हैं, तो मेरी विजय निश्चित है, इसमें तनिक भी संदेह के लिये गुंजाइश नहीं है। हृषिकेश ! घोड़े हांककर रथ को कर्ण के पास ले चलिये। अब अर्जुन कर्ण को मारे बिना पीछे नहीं लौट सकता। आज आप मेरे बाणों से टुकड़े_टुकड़े हुए कर्ण को देखिये, या मुझे ही कर्ण के बाणों से मरा हुआ देखियेगा। आज तीनों लोकों को मोह में डालने वाला यह भयंकर युद्ध उपस्थित हुआ है। जबतक पृथ्वी कायम रहेगी, जबतक संसार के लोग इस युद्ध की चर्चा करेंगे।
भगवान् श्रीकृष्ण से ऐसा कहकर अर्जुन बड़ी शीघ्रता से आगे बढे। वे चलते_चलते कहने लगे_हृषीकेश ! घोड़ों को तेज चलाइये, अर्जुन के ऐसा कहने  भगवान् ने विजय का वरदान दे उनका सत्कार किया और घोड़ों को हांका। एक ही क्षण में अर्जुन का रथ कर्ण के सामने जाकर खड़ा हो गया।

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