Saturday 3 December 2022

इन्द्रादि देवताओं की प्रार्थना से बह्मा और शिवजी का अर्जुन की विजय घोषित करना तथा कर्ण का शल्य से और अर्जुन का श्रीकृष्ण से वार्तालाप

संजय कहते हैं_महाराज ! उधर जब कर्ण ने देखा कि वृषसेन मारा गया तो उसे बड़ा दु:ख हुआ, वह दोनों नेत्रों से आंसू बहाने लगा। फिर क्रोध से लाल आंखें किये कर्ण अर्जुन को युद्ध के लिये ललकारता हुआ आगे बढ़ा। उस समय त्रिभुवन पर विजय पाने के लिये उद्यत हुए इन्द्र और बलि के भांति उन दोनों वीरों तैयार देख संपूर्ण प्राणियों को आश्चर्य होने लगा। कौरव और पाण्डव दोनों दलों के लोग शंख और भेरी बजाने लगे। शूरवीर अपनी भुजाएं ठोकने और सिंहनाद करने लगे। उन सबकी तुमुल आवाज चारों ओर गूंजने लगी।
वे दोनों वीर जब एक_दूसरे का सामना करने के लिये दौड़े,  उस समय और काल के समान प्रतीत होते थे तथा इन्द्र एवं वृत्रासुर के समान क्रोध में भरे हुए थे। वे रूप और बल में देवताओं के तुल्य थे, उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था मानो सूर।यह और चन्द्रमा दैवेच्छा से एकत्र हो गये हों। दोनों महाबली युद्ध के लिये नाना प्रकार के शस्त्र धारण किये हुए थे। उन्हें आमने_सामने खड़े देख आपके योद्धाओं को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन दोनों में किसकी विजय होगी इस विषय में सबको संदेह होने लगे। महाराज ! कर्ण और अर्जुन का युद्ध देखने के लिये देवता, दानव, गन्धर्व, नाग, यक्ष, पक्षी, वेदवेत्ता महर्षि, श्राद्धान्भोजी पितर तथा तप विद्या एवं औषधियों के अधिष्ठाता देवता नाना प्रकार के रूप धारण किये अन्तरिक्ष में खड़े थे। वहां उनका कोलाहल सुनाई दिया। ब्रह्मर्षियों और प्रजापतियों के साथ ब्रह्माजी तथा भगवान् शंकर भी दिव्य विमानों में बैठकर वहां युद्ध देखने आये थे। देवताओं ने ब्रह्माजी से पूछा_’भगवन् ! कौरव और पाण्डव के इन दो महान् वीरों में कौन विजयी होगा ? देव ! हम तो चाहते हैं_इनकी एक_सी विजय हो। कर्ण और अर्जुन के विवाद से सारा संसार संदेह में पड़ा हुआ है। प्रभो ! आप सभी बात बताते, इनमें से किसकी विजय होगी ?
यह प्रश्न सुनकर इन्द्र ने देवाधिदेव महादेव को प्रणाम किया और कहा_’भगवन् ! आप पहले बता चुके हैं कि श्रीकृष्ण और अर्जुन की ही विजय निश्चित है। आपकी यह बात सच्ची होनी चाहिए। प्रभो ! मैं आपके चरणों में प्रणाम करता हूं, मुझपर प्रसन्न होइये।‘ इन्द्र की प्रार्थना सुनकर ब्रह्मा और शंकरजी ने कहा_’देवराज ! महात्मा अर्जुन की ही विजय निश्चित है। उन्होंने खाण्डव_वन में अग्निदेव को तृप्त किया है, स्वर्ग से आकर तुम्हे भी सहायता पहुंचाई है। अर्जुन ने सत्य और धर्म में अटल रहनेवाले हैं; इसलिये उनकी विजय अवश्य होगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। संसार के स्वामी साक्षात् भगवान् नारायण ने उनका सारथि होना स्वीकार किया है; वे मनस्वी, बलवान्, शूरवीर, अस्त्र विद्या के ज्ञाता और तपस्या के धनी हैं। उन्होंने धनुर्विद्या का पूर्ण अध्ययन किया है। इस प्रकार अर्जुन विजय दिलानेवाले संपूर्ण सद्गुणों से युक्त हैं; इसके अलावे, उनकी विजय देवताओं का ही कार्य है। अर्जुन मनुष्यों में श्रेष्ठ और तपस्वी हैं।
वे अपनी महिमा से दैव के विधान को भी टाल सकते हैं; यदि ऐसा हुआ तो निश्चय ही संपूर्ण लोकों का अन्त हो जायगा। श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के क्रोध करने पर यह संसार कहीं नहीं टिक सकता। ये ही दोनों संसार की सृष्टि करते हैं। ये ही प्राचीन ऋषि नर_नारायण हैं। इनपर किसी का शासन नहीं चलता और वे सबको अपने शासन में रखते हैं। देवलोक या मनुष्यलोक में इन दोनों की बराबरी करनेवाला कोई नहीं है। देवता, ऋषि और चारणों के साथ ये तीनों लोकएवं संपूर्ण भूत यानि सारा विश्व ब्रह्माण्ड ही इनके शासन में हैं; इनकी ही शक्ति से सब अपने _अपने कर्मों में प्रवृत हो रहे हैं। अतः विजय तो श्रीकृष्ण और अर्जुन की ही होगी। कर्ण वसुओं अथवा मरुतों के लोक में जायगा। ‘ब्रह्मा और शंकरजी के ऐसा कहने पर इन्द्र ने संपूर्ण प्राणियों को बुलाकर उनकी आज्ञा सुनायी। वे बोले _’हमारे पूज्य प्रमुखों ने संसार के हित  के लिये जो कुछ कहा है, उसे तुमलोगों ने सुना ही होगा। वह वैसे ही होगा, उसके विपरीत होना असंभव है; अंत: अब निश्चिंत हो जाओ। इन्द्र की बात सुनकर समस्त प्राणी ही विस्मित हो गये और हर्ष में भरकर श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा करते हुए उनपर सुगंधित फूलों की वर्षा करने लगे। देवता लोग कई तरह के दिव्य बाजे बजाने लगे।
तत्पश्चात् श्रीकृष्ण और अर्जुन ने तथा शल्य और कर्ण ने अलग_अलग अपने _अपने शंख बजाये। उस समय  उन दोनों में कायरों को डराने वाला युद्ध आरंभ हुआ। दोनों के रथों  निर्मल ध्वजाएं शोभा पा रही थीं। कर्ण की ध्वजा का डंडा रत्न का बना हुआ था, उसपर हाथी की सांकल का चिह्न था। अर्जुन की ध्वजा पर एक श्रेष्ठ वानर बैठा था, जो यमराज के समान मुंह बाये रहता था। वह अपनी झाड़ों से सबको डराया करता था, उसकी ओर देखना कठिन था। भगवान् श्रीकृष्ण ने शल्य की ओर आंखों की त्योरी और करके देखा, मानो उसे नेत्ररुपी बाणों से बींध रहे हों। शल्य ने भी उनकी ओर दृष्टि डाली। किन्तु इसमें विजय श्रीकृष्ण की ही हुई, शल्य की पलकें झंप गयीं। इसी प्रकार कुन्तीनन्दन धनंजय ने भी दृष्टि द्वारा कर्ण को परास्त किया। तदनन्तर कर्ण शल्य से हंसकर बोला_’शल्य ! यदि कदाचित् इस संसार में अर्जुन मुझे मार डाले तो तुम क्या करोगे ? शल्य ने कहा_’कर्ण ! यदि वे आज तुझे मार डालेंगे तो मैं श्रीकृष्ण तथा अर्जुन दोनों को ही मौत के घाट उतार दूंगा।‘ इसी तरह अर्जुन ने भी श्रीकृष्ण से पूछा; तब वे हंसकर कहने लगे _’पार्थ ! क्या यह भी सच हो सकता है ? कदाचित् सूर्य अपने स्थान से गिर जाय, समुद्र सूख जाय और आग अपना उष्ण स्वभाव छोड़कर शीतलता स्वीकार कर ले_ये सभी बातें संभव हो जायं; किन्तु कर्ण तुम्हें मार डाले, यह कदापि संभव नहीं है। यदि किसी तरह ऐसा हो जाय तो संसार उलट जायगा। मैं अपनी भुजाओं से ही कर्ण तथा शल्य को मसल डालूंगा।‘भगवान् की बात सुनकर अर्जुन हंस पड़े और बोले_’जनार्दन ! ये शल्य और कर्ण तो मेरे लिये काफी नहीं है। आज आप देखिएगा मैं छत्र, कवच, शक्ति, धनुष, बाण, रथ, घोड़े तथा राजा शल्य के सहित कर्ण को अपने बाणों से टुकड़े _टुकड़े कर डालूंगा। आज सूतपुत्र के स्त्रियों के विधवा होने का समय आ गया है। इस अदूरदर्शी मूर्ख ने द्रौपदी को सभा में आती देख बारंबार उसपर आक्षेप किया और हमलोगों की खिल्लियां भी उड़ायी थीं। अतः आज उसको अवश्य रौंद दूंगा।

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