Saturday 17 December 2022

कर्ण और अर्जुन का युद्ध

संजय कहते हैं _महाराज ! भीमसेन तथा श्रीकृष्ण के इस प्रकार कहने पर अर्जुन ने सूतपुत्र के वध का विचार किया। साथ ही भूमि पर आने के प्रयोजन पर ध्यान देकर उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा_’भगवन् ! अब मैं संसार के कल्याण और सूतपुत्र का वध करने के लिये महान् भयंकर अस्त्र प्रकट कर रहा हूं ! इसके लिये आप, ब्रह्माजी, शंकरजी, समस्त देवता तथा संपूर्ण वेदवेत्ता मुझे आज्ञा दें।‘ भगवान् से ऐसा कहकर सव्यसाची ने ब्रह्माजी को नमस्कार किया और जिसका मन_ही_मन प्रयोग होता है, उस ब्रह्मास्त्र को प्रकट किया। परंतु कर्ण ने अपने बाणों की बौछार से उस अस्त्र को नष्ट कर डाला।
यह देख भीमसेन क्रोध से तमतमा उठे, उन्होंने सत्यप्रतिज्ञ अर्जुन से कहा_’सव्यसाचिन् ! सब लोग जानते हैं कि तुम परम उत्तम ब्रह्मास्त्र के ज्ञाता हो, इसलिये अब और किसी अस्त्र का संधान करो।‘ यह सुनकर अर्जुन ने दूसरे अस्त्र को धनुष पर रखा; फिर तो उससे प्रज्ज्वलित बाणों की वर्षा होने लगी, जिससे चारों दिशाएं आच्छादित हो गयीं। कोना_कोना भर गया। केवल बाण ही नहीं, उससे भयंकर त्रिशूल, फरसे, चक्र और नारायण आदि अस्त्र भी सैकड़ों की संख्या में निकलकर सब ओर खड़े हुए योद्धाओं के प्राण लेने लगे। किसी का सिर कटकर गिरा तो कोई यों ही भय के मारे गिर पड़ा, कोई दूसरे को गिरता देख स्वयं वहां से चंपत हो गया। किसी की दाहिनी बांह कटी तो किसी की बायीं। इस प्रकार किरीटधारी अर्जुन ने शत्रुपक्ष के मुख्य_मुख्य योद्धाओं का संहार कर डाला।
दूसरी ओर से कर्ण ने भी अर्जुन पर हजारों बाणों की वर्षा की। फिर भीमसेन श्रीकृष्ण और अर्जुन को ती_तीन बाणों से सींचकर बड़े जोर की गर्जना की। तब अर्जुन ने पुनः अठारह बाण चलाते; उनमें से एक बाण के द्वारा उन्होंने कर्ण की ध्वजा छेद डाली, चार बाणों से राजा शल्य को और तीन से कर्ण को घायल किया, शेष दस बाणों का प्रहार राजकुमार सभापति पर हुआ। दो बाणों से राजकुमार के ध्वजा और धनुष कट गये, पांच से घोड़े और सारथि मारे गये, फिर दो से उनकी दोनों भुजाएं कटीं और एक से मस्तक उड़ा दिया गया। इस प्रकार मृत्यु को प्राप्त होकर वह राजकुमार रथ से नीचे गिर पड़ा।
इसके बाद अर्जुन ने पुनः तीन, आठ, दो, चार और दस बाणों से कर्ण को बींध डाला। फिर अस्त्र_शस्त्रोंसहित चार सौ हाथीसवारों , आठ सौ रथियों, एक हजार घुड़सवारों, आठ सौ रथियों, एक हजार घुड़सवारों तथा आठ हजार पैदल सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। यही नहीं, उन्होंने बाणों से कर्ण को उसके सारथि, रथ और घोड़े और ध्वजा सहित ढ़क दिया; अब वह दिखाती नहीं पड़ता था। तदनन्तर उन्होंने कौरवों को अपने बाणों का निशाना बनाया। उनकी मार खाकर कौरव चिल्लाते हुए कर्ण के पास आते और कहने लगे_’कर्ण ! तुम शीघ्र ही बाणों की वर्षा करके पाण्डु पुत्र अर्जुन को मार डालो। नहीं तो वह पहले कौरवों को ही समाप्त कर देना चाहता है।
उनकी प्रेरणा से कर्ण ने पूरी शक्ति लगाकर लगातार बहुत_से बाणों की वर्षा की, इससे पाण्डव और पांचाल सैनिकों का नाश होने लगा।
कर्ण और अर्जुन दोनों ही अस्त्र_शस्त्र विद्या के ज्ञाता थे, इसलिये बड़े _बड़े अस्त्रों का प्रयोग करके वे अपने _अपने शत्रुओं की सेना का संहार करने लगे। इतने में ही राजा युधिष्ठिर यन्त्र तथा औषधियों के बल से पूर्ण आये। हितैषी वैद्यों ने उनके शरीर से बाण निकालकर घाव अच्छा कर दिया था। धर्मराज को संग्राममभूमि में उपस्थित देखकर सबको बड़ी प्रसन्नता हुआ।
उस समय सूतपुत्र कर्ण ने अर्जुन को क्षुद्रक नामवाले सौ बाण मारे, फिर श्रीकृष्ण को साफ बाणों से बींधकर अर्जुन को भी आठ बाणों से घायल किया। साथ ही भीमसेन पर भी उसने हजारों बाणों का प्रहार किया। तब पाण्डव और सोमवीर कर्ण को तेज किये हुए बाणों से आच्छादित करने लगे। किन्तु उसने अनेकों बाण मारकर उन योद्धाओं को आगे बढ़ने से रोक दिया और उसने अपने अस्त्रों को उनके अस्त्रों को नष्ट करके रथ, घोड़े तथा हाथियों का भी संहार कर डाला। अब तो आपके योद्धा यह समझकर कि कर्ण की विजय हो गरी, ताली पीटने और सिंहनाद करने लगे।
इसी समय अर्जुन ने हंसते _हंसते दस बाणों से राजा शल्य के कवच को बींध डाला, फिर बारह तथा सात बाण मारकर कर्ण को भी घायल कर दिया। कर्ण के शरीर में बहुत से घाव हो गये, वह खून से लथपथ हो गया। 
तदनन्तर कर्ण ने भी अर्जुन को तीन बाण मारे और श्रीकृष्ण को मारने की इच्छा से उसने पांच बाण चलाये। वे बाण श्रीकृष्ण के कवच को छेदकर पृथ्वी पर जा गिरे। यह देख अर्जुन क्रोध से जल उठे, उन्होंने अनेकों दमकते हुए बाण मारकर कर्ण के मर्मस्थानों को बींध डाला। इससे कर्ण को बड़ी पीड़ा हुई, वह विचलित हो उठा; किन्तु किसी तरह धैर्य धारण कर रणभूमि में डटा रहा। तत्पश्चात् अर्जुन ने बाणों का ऐसा जाल फैलाया कि दिशाएं, कोने, सूर्य की प्रभा तथा कर्ण का रथ_इन सबका दीवाना बंद हो गया।
उन्होंने कर्ण के पहियों की रक्षा करनेवाले, आगे चलनेवाले और पीछे रहकर रक्षा करने वाले समस्त सैनिकों की बात_की_बात में सफाया कर डाला। इतना ही नहीं; दुर्योधन जिनका बड़ा आदर करता था, उन दो हजार कौरव_वीर को भी उन्होंने रथ, घोड़े और सारथि सहित मौत के मुख में पहुंचा दिया। अब तो आपके बचे हुए पुत्र कर्ण का आसरा छोड़कर भाग चले।
कौरव योद्धा मरे हुए अथवा घायल होकर चीखते_चिल्लाते हुए बाप_बेटों को भी छोड़कर पलायन कर गये। उस समय कर्ण ने जब चारों ओर दृष्टि डाली तो उसे सब सूना ही दिखाती पड़ा; भयभीत होकर भागे हुए कौरवों ने उसे अकेला ही छोड़ दिया था; किन्तु इससे उसको तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उसने पूर्ण उत्साह के साथ अर्जुन पर धावा किया।





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