Tuesday 3 January 2023

भगवान् द्वारा अर्जुन के सर्पमुख बाण से रक्षा तथा अश्र्वसेन नाग का वध

संजय कहते हैं_राजन् ! तदनन्तर भागे हुए कौरव सैनिक धनुष से छोड़ा हुआ बाण जहां तक पहुंचता है, उतनी दूरी पर जाकर खड़े हो गये। वहां से उन्होंने देखा कि अर्जुन का अस्त्र चारों ओर बिजली के समान चमक रहा है। फिर यह भी देखने में आया कि कर्ण अपने भयंकर बाणों से उनके अस्त्र को नष्ट किये डालता है। अब अर्जुन प्रचंड रूप धारण कर कौरवों को भस्म करने लगे। यह देख कर्ण ने आथर्वण अस्त्र का प्रयोग किया। वह शत्रुनाशक अस्त्र उसे परशुराम जी से प्राप्त हुआ था। उसके द्वारा कर्ण ने अर्जुन के अस्त्र को शान्त कर दिया और उन्हें भी तेज किये हुए सहायकों से बींध डाला। 
उस समय कर्ण और अर्जुन ने इतनी बाणवर्षा की कि सारा आकाश ढ़क गया, उसमें तनिक भी जगह खाली नहीं रह गयी। कौरवों और सोमकों को चारों ओर बाणों के जाल जैसा फैला दिखायी देने लगा। घोर अन्धकार छा गया। बाणों के सिवा और कुछ नहीं सूझता था। वहां युद्ध करते समय वीरता, अस्त्र_संचालन, मायाबल तथा पुरुषार्थ में कभी सूतपुत्र कर्ण बढ़ जाता था और कभी अर्जुन। दोनों एक_दूसरे का छिद्र देखते हुए भयंकर प्रहार कर रहे थे; यह देखकर समस्त योद्धाओं को बड़ा आश्चर्य हो रहा था। उस समय अंतरिक्ष में खड़े हुए प्राणी कर्ण और अर्जुन की प्रशंसा करने लगे_’वाह रे कर्ण ! शाबाश अर्जुन !’ यही बात आकाश में सब ओर सुनाई पड़ती थी। 
 इसी समय पाताल लोक में रहनेवाला अश्वसेन नाम का नाग, जो अर्जुन से वैर मानता था, कर्ण तथा अर्जुन का युद्ध होता जान बड़े वेग से उछलकर वहां आ पहुंचा और अर्जुन से बदला लेने का यही उपयुक्त समय है, ऐसा सोच बाण का रूप बनाकर वह कर्ण के तरकस में समा गया। उस युद्ध में जब कर्ण किसी तरह अर्जुन से बढ़कर पराक्रम न दिखा सका तब उसे अपने सर्पमुख बाण की याद आयी। वह बाण बड़ा भयंकर था, आग में तपाया होने के कारण वह सदा देदीप्यमान रहता था। कर्ण ने अर्जुन को ही मारने के लिये उसे बड़े यत्न से बहुत दिनों तक सुरक्षित रखा था। वह नित्य उसकी पूजा करता और सोने के तरकस में चन्दन के चूर्ण के अन्दर उसे रखता था। उसी बाण को उसने धनुष पर चढ़ाया और अर्जुन की ओर ताककर निशाना ठीक किया। परन्तु उस बाण के धोखे में अश्र्वसेन नाम का नाग ही धनुष पर चढ़ चुका था_यह देख इन्द्रादि लोकपाल ‘हाय ! हाय !’ करने लगे।
उस समय मद्रराज शल्य ने उस भयंकर बाण को धनुष पर चढ़ा हुआ देखा तो कहा_’कर्ण ! तुम्हारा यह बात शत्रु के कण्ठ में नहीं लगेगा; जरा सोच_विचारकर फिर से निशाना ठीक करो, जिससे यह मस्तक काट सके।‘ यह सुनकर कर्ण की आंखें क्रोध से उद्दीप्त हो उठीं। वह शल्य से कहने लगा_’महाराज ! कर्ण दो बार निशाना नहीं साधता। मेरे जैसे वीर कपटपूर्वक युद्ध नहीं करते।‘ यह कहकर कर्ण ने जिसकी वर्षों से पूजा की थी, उस बाण को शत्रु की ओर छोड़ दिया और उनका तिरस्कार करते हुए उग्र स्वर से कहा_’अर्जुन ! अब  तू मारा गया। कर्ण के धनुष से छूटा हुआ वह बाण अन्तरिक्ष में पहुंचते ही प्रज्वलित हो उठा। उसे बड़े वेग से आते देख भगवान् श्रीकृष्ण ने खेल_सा करते हुए अपने रथ को तुरंत पैर से दबा दिया, मार पड़ने से रथ के पहिये कुछ_कुछ जमीन से धंस ग्रे। साथ ही सोने के गहनों से सजे हुए घोड़े भी पृथ्वी पर घुटने टेक कर जरा_सा झुक गये। भगवान् का यह कौशल देखकर आकाश में उनकी प्रशंसा से भरी हुई दिव्य वाणी सुनामी देने लगे। कर्ण का छोड़ा हुआ वह बाण रथ नीचा हो जाने के कारण अर्जुन के कण्ठ में न लगकर मुकुट में लगा। वह मस्तक के नीचे जा पड़ा। अर्जुन का वह मुकुट पृथ्वी, अन्तरिक्ष, स्वर्ग और वरुण लोक में भी विख्यात था; सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि की प्रभा के समान उसकी चमक थी। साक्षात् ब्रह्माजी ने बड़े प्रयत्न और तपस्या से उसको इन्द्र के लिये तैयार किया था। उससे बड़ी मीठी सुगंध फैलती रहती थी। साक्षात् ब्रह्माजी ने बड़े प्रयत्न और तपस्या से उसको इन्द्र के लिये तैयार किया था। उससे बड़ी मीठी सुगंध फैलती रहती थी। अर्जुन ने दैत्यों को मारने की इच्छा से जब रणयात्रा की थी, उस समय इन्द्र ने प्रसन्न होकर अपने हाथ से यह मुकुट पहनाया था। वहीं मुकुट कर्ण के साथ युद्ध करते समय सर्प की विषाग्नि से जीर्ण_शीर्ण होकर जलता हुआ जमीन पर जा गिरा। इससे अर्जुन को तनिक भी घबराहट नहीं हुई, वे अपने सिर के बालों पर सफेद साफा बांधकर धैर्यपूर्वक डटे रहे। उस समय वे मौत के मुख से बचें थे; क्योंकि सर्पमुख बाण के रूप में अर्जुन के साथ वैर रखनेवाला तक्षक का पुत्र था। किरीट पर आघात करके वह पुनः तरकस में घुसना ही चाहता था किन्तु कर्ण ने उसे देख लिया। कर्ण के पूछने पर वह कहने लगा_कर्ण ! तुमने अच्छी तरह सोच_विचारकर बाण नहीं छोड़ा था, इसीलिये मैं अर्जुन का मस्तक उड़ा सकता; अब जरा निशाना साथ साधकर चलाओ, फिर मैं अपने और तुम्हारे इस शत्रु का सिर अभी काट डालता हूं। कर्ण ने पूछा _तुम कौन हो ? नाग ने उत्तर दिया_’मैं नाग हूं। अर्जुन ने खाण्डव_वन में मेरी माता का वध करके बहुत बड़ा अपराध किया है, इसके कारण मेरी उससे दुश्मनी हो गयी है। यदि स्वयं वज्रधारी इन्द्र उसकी रक्षा करने आवे तो भी उसे यमराज के घर जाना होगा।‘ कर्ण बोला_’नाग ! आज कर्ण दूसरों का आश्रय लेकर विजय पाना नहीं चाहता। यदि तुम्हारा संधान करने से मैं सैकड़ों अर्जुनों को मार सकूं, तो भी मैं एक बाण को दो बार संधान नहीं कर सकता। मेरे पास सर्पबाण है, उत्तम प्रयत्न है और मन में रोष भी है; इन सबके द्वारा मैं स्वयं ही अर्जुन को मार डालूंगा, तुम प्रसन्नतापूर्वक लौट जाओ।‘ कर्ण की यह बात नागराज से नहीं सही गयी, वह स्वयं ही अर्जुन का वध करने के लिये अपना भयंकर रूप प्रकट करके उनकी ओर दौड़ा। यह देख श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा_’यह महान् सर्प तुम्हारा दुश्मन है, इसे मार डालो।‘ अर्जुन ने पूछा _’यह कौन है ?’ भगवान् ने कहा_’खाण्डव वन में जब तुम अग्निदेव को तृप्त कर रहे थे, उस समय इसकी जान बचाने के लिये इसे निगल लिया था। इस प्रकार मां के पेट में अपने शरीर को छिपाकर जब वह आकाश में उड़ रहा था, उसी समय तुमने दोनो को एकरूप मानकर केवल इसकी माता को मार डाला था। उसी वैर को याद करके आज यह तुम्हारी ओर आ रहा है।‘ तब अर्जुन ने आकाश में तिरछी गति से उड़ते हुए उस नाग को तेज किये हुये छः बाण मारे। बाणों के प्रहार से उसके शरीर के टुकड़े _टुकड़े हो गये और वह जमीन पर गिर पड़ा। उसके मारे जाने के बाद भगवान ने पृथ्वी में धंसे हुए रथ को अपनी दोनों भुजाओं से ऊपर निकाला। उस समय कर्ण ने श्रीकृष्ण को बारह तथा अर्जुन को नब्बे बाणों से घायल कर दिया। फिर एक भयंकर बाण से अर्जुन को बींध करके वह बड़े जोर से गरजने और हंसने लगा।

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