Saturday 28 January 2023

भीम और अर्जुन आदि के भय से दुर्योधन के रोकने पर कौरव_सेना का भागना और दोनों ओर की सेनाओं का शिविर में जाना

संजय कहते हैं _महाराज ! उस समय कौरव सैनिक भीमसेन के भय से व्याकुल होकर भाग रहे थे। उनकी यह अवस्था देख दुर्योधन हाहाकार करके उठा और अपने सारथि से बोला, ‘सूत तुम धीरे_धीरे घोड़ों को आगे बढ़ाओ। जब हाथ में धनुष लेकर मैं अपनी संपूर्ण सेना के पीछे खड़ा रहूंगा, उस समय अर्जुन मुझे परास्त नहीं कर सकते। यदि वे मुझसे लड़ने आयेंगे तो नि:संदेह उन्हें मार डालूंगा। आज मैं अर्जुन, श्रीकृष्ण तथा घमंडी भीमसेन को बचे_खुचे अन्य शत्रुओं के साथ मौत के घाट उताकर कर्ण के ऋण से मुक्त होऊंगा।दुर्योधन की यह शूरवीरों के योग्य बात सुनकर सारथि ने घोड़ों को धीरे _धीरे आगे बढ़ाया‌। आपकी ओर से युद्ध के लिये पच्चीस हजार पैदल खड़े थे, उसे भीमसेन और धृष्टद्युम्न ने अपनी चतुरंगिनी सेना से घेर लिया और बाणों से मारना आरंभ किया। वे भी भीम और धृष्टद्युम्न का डटकर मुकाबला करने लगे। उस समय भीमसेन क्रोध में भरकर हाथ में गदा लिये रथ से उतर पड़े और उन सबके साथ युद्ध करने लगे। भीमसेन युद्ध धर्म का पालन करने वाले थे इसीलिये स्वयं रथ पर बैठकर उन्होंने उन पैदलों के साथ युद्ध नहीं किया। उन्हें अपने बाहुबल पर पूरा भरोसा था। गदा हाथ में लिये बाज की तरह बिचरते हुए महाबली भीम ने आपके पच्चीसों हजार योद्धाओं को मार गिराया। एक ओर से अर्जुन ने रथियों की सेना पर धावा किया। दूसरी ओर नकुल, सहदेव और सात्यकि_ ये तीनों मिलकर दुर्योधन की सेना का संहार करते हुए शकुनि के ऊपर जा चढ़े। शकुनि के बहुत से घुड़सवारों को अपने तीखे बाणों से मारकर वे उसकी ओर भी दौड़े। फिर तो उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। बहुतों के रथ टूट गये, बहुत से सायकों की मार से अत्यंत घायल हो गये; इस प्रकार अर्जुन के साथ से भी मारे जाकर पच्चीस हजार योद्धा काल के गाल में समा गये। इधर, धृष्टद्युम्न के डर से आपके सैनिकों में भगदड़ पड़ गयी। चेकितान, शिखण्डी और द्रौपदी के पुत्र आपकी बड़ी भारी सेना का संहार करके शंख बजाने लगे। उन्होंने आपके भागते हुए सैनिकों का पीछा किया। इसके बाद अर्जुन ने पुनः रथ सेना पर चढ़ाई की और अपने विश्वविख्यात गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए उन्होंने सहसा सबको बाणों से ढ़क दिया। पृथ्वी से धूल उठी और चारों ओर घना अंधकार छा गया। किसी को कुछ भी सूझ नहीं पड़ता। उस समय कौरव_सेना में फिर से भगदड़ पड़ी_यह देख आपके पुत्र दुर्योधन ने शत्रुओं पर धावा किया और पाण्डवों को युद्ध के लिये ललकारा। पाण्डव_सेना दुर्योधन पर टूट पड़ी । उसने भी क्रोध में भरकर सैकड़ों और हजारों योद्धाओं को यमलोक पड़ा दिया। उस युद्ध में हम लोगों ने दुर्योधन का अद्भुत पुरुषार्थ देखा, वह अकेला होने पर भी समस्त पाण्डव_सेना से युद्ध कर रहे हैं। दुर्योधन ने जब अपनी सेना पर दृष्टिपात किया तो सबको दु:खी पाया; तब उसने सबका उत्साह बढ़ाते हुए कहा_'योद्धाओं ! मैं जानता हूं तुम भय से कांप रहे हो; परन्तु मेरे देखने में ऐसा कोई देश नहीं है, जहां तुमलोग भागकर जाओ और वहां पाण्डवों से तुम्हारी जान बच जाय। ऐसी दशा में भागने से क्या लाभ है? अब शत्रुओं के पास थोड़ी _सी सेना रह गयी है, श्रीकृष्ण और अर्जुन भी खूब घायल हो चुके हैं, आज मैं इन सब लोगों को मार डालूंगा। हम लोगों की विजय निश्चित है। जितने क्षत्रिय यहां उपस्थित हैं, सब ध्यान देकर सुन ले_जब मौत शूरवीर और कायर दोनों को मारती है तो मेरे जैसा क्षत्रियव्रत का पालन करनेवाला होकर भी कौन ऐसा मूर्ख होगा, जो युद्ध नहीं करेगा ? हमारा शत्रु भीमसेन क्रोध में भरा हुआ है; यदि भागोगे तो उसके वश में पड़कर तुम्हें प्राणों से हाथ धोना होगा। इसलिये बाप_दादों के आचरण किये हुए क्षत्रिय_धर्म का त्याग न करो। क्षत्रिय के लिये युद्ध में पीठ दिखाकर भागने से बढ़कर दूसरा कोई पाप नहीं है तथा युद्धविराम के पालन से बढ़कर स्वर्ग का दूसरा कोई मार्ग नहीं है। संग्राम में मरा हुआ योद्धा तुरंत उत्तम लोक प्राप्त करता है।'
आपका पुत्र इस प्रकार व्याख्यान देता ही रह गया किन्तु घायल सैनिकों में से किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। सब_के_सब चारों ओर भाग गये। उस समय मद्रराज शल्य ने दुर्योधन से कहा_'राजन् ! जरा इस रणभूमि की ओर दृष्टि डालो, कितने मनुष्यों और घोड़ों की लाशें बिछि हुई हैं, पर्वताकार गजराज बाणों से छिन्न_भिन्न होकर मरे पड़े हैं, और ये शूरवीर सैनिक नाना प्रकार के भोग, वस्त्राभूषण, मनोरम सुख तथा शरीर को भी त्यागकर धर्म की पराकाष्ठा का पालन करते हुए अपने यश के साथ ही स्वर्गादपि लोकों तक पहुंच गये हैं। दुर्योधन ! अब ये सूर्यदेव अस्ताचल को जाना ही चाहते हैं, तुम भी छावनी की ओर लौट चलो।'
राजा शल्य इतना कहकर चुप हो गये। उनका चित्त शोक से व्याकुल हो रहा था। उधर दुर्योधन की भी बड़ी दयनीय अवस्था थी, वह आर्य होकर 'हा कर्ण ! हां कर्ण !' पुकार रहा था। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी। अश्वत्थामा तथा दूसरे_दूसरे राजा लोग आकर उसे बारंबार धीरज बंधाते और रक्त से भीगी हुई रणभूमि को देखते हुए छावनी की ओर लौट जाते थे। समस्त कौरव सूतपुत्र के वध से दु:की थे, अंत: 'हा कर्ण ! हा कर्ण ! !' पुकारते हुए बड़ी तेजी के साथ शिविर की ओर लौट आये। देवता और ऋषि भी अपने_अपने स्थान को चल दिये। नभचर और थलचर जीव अपनी अपनी मौज के अनुसार आकाश और पृथ्वी के स्थानों में चले आते। दर्शक मनुष्य कर्ण और अर्जुन का अद्भुत संग्राम देखकर आश्चर्यमग्न हो दोनों की प्रशंसा करते हुए गये। महाराज ! उत्तम याचकों के मांगने पर जिसने सदा यही कहा कि 'मैं दूंगा', 'मेरे पास नहीं है' ऐसी बात जिसके मुंह से कभी निकली ही नहीं, ऐसा सत्पुरुष कर्ण द्वैरथ युद्ध में अर्जुन के साथ से मारा गया। जिसका धन ब्राह्मणों के अधीन था, ब्राह्मणों के लिये जो अपना प्राण तक देने में  आनाकानी नहीं करता था, जो महान् दानी और महारथी था, वहीं कर्ण अब आपके पुत्रों की विजय की आशा, भलाई और रक्षा_सबकुछ साथ लेकर स्वर्ग को चला गया। कर्ण के मारे जाने पर जब सूर्य अस्त हो गया तो मंगल और बुध संक्रांति से उदित हुए, पृथ्वी में गड़गड़ाहट होने लगी, चारों दिशाओं में आग लग गयी, उनमें धुआं जा गया, समुद्रों में तूफान आ गया, गर्जनाएं होने लगीं, समस्त प्राणी व्यथित हो उठे और बृहस्पति रोहिणी को घेरकर चन्द्रमा तथा सूर्य के समान तेजस्वी रूप में प्रकट हुए। उस समय पृथ्वी कांप उठी, उल्कापात होने लगा तथा आकाश में खड़े हुए देवता सहसा हाहाकार करने लगे । इस प्रकार कर्ण को मारने के पश्चात् प्रसन्नता से भरे हुए श्रीकृष्ण तथा अर्जुन ने सोने की जाली से मढ़े हुए श्वेत शंख हाथों में लेकर उन्हें ओठों से लगाया और एक ही साथ बजाना आरंभ किया। उनकी आवाज़ सुनकर शत्रुओं का हृदय विदीर्ण होने लगा। पांचजन्य और देवदत्त के गम्भीर घोष से पृथ्वी, आकाश तथा दिशाएं गूंज उठीं। वह शंखनाद सुनते ही समस्त कौरव_सैनिक मद्रराज शल्य तथा दुर्योधन को रणभूमि में ही छोड़कर भाग गये। उस समय सब लोगों ने एकत्र होकर श्रीकृष्ण और अर्जुन का सम्मान किया। वे दोनों उदित हुए सूर्य और चन्द्रमा की भांति शोभा पा रहे थे। उनके पराक्रम की कहीं तुलना नहीं थी, वे अपने शरीर से बात निकालकर मित्रमंडली से घिरे हुए आनन्दपूर्वक अपनी छावनी में जा पहुंचे। जब कर्ण मारा गया था उस समय छावनी में जा पहुंचा। जब कर्ण मारा गया था उस समय देवता, मनुष्य, चारण, महर्षि, यक्ष तथा नागों ने विजय एवं अभ्युदय की शुभकामना प्रकट करते हुए उन दोनो की पूजा की। सभी ने उनके गुणों की प्रशंसा की।
कर्ण की मृत्यु के पश्चात् जब कौरव_पक्ष के हजारों योद्धा भयभीत होकर भाग गये तो आपके पुत्र ने राजा शल्य की सलाह मानकर युद्ध बन्द करने की आज्ञा दी और सेना को एकत्रित कर पीछे लौटाया। मरने से बची हुई नारायणी सेना के साथ कृतवर्मा, हजारों गान्धारों के साथ शकुनि तथा हाथियों की सेना के साथ कृपाचार्य भी शिविर की ओर लौटे। अश्वत्थामा भी पाण्डवों की विजय देखकर बारंबार उच्छवास लेता हुआ छावनी की ओर ही चल दिया। बचे हुए संशप्तकोंसहित सुशर्मा और टूटी ध्वजावाले राजा शल्य भी डरते और लजाते हुए छावनी की ओर चले। कर्ण की मृत्यु देखकर समस्त कौरव भय से व्याकुल होकर कांप रहे थे, उनके शरीर से खून की धारा बह रही थी; अतः सब_के_सब उद्विग्न होकर भाग गये। अब उन्हें अपने जीवन और राज्य की आशा न रही। दुर्योधन दु:आ और शोक में डूब रहा था, वह बड़े यत्न से सबको एकत्र करके छावनी में ले गया। राजा की आज्ञा मान सभी सैनिकों ने शिविर में आकर विश्राम किया। उस समय सबका चेहरा फीका पड़ गया था।

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