Tuesday 10 January 2023

कर्ण का वध और शल्य का दुर्योधन को शान्तवना देना

संजय कहते हैं_महाराज ! तदनन्तर कर्ण धनुष उठाकर बड़े वेग से अर्जुन के साथ युद्ध करने लगा। उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा_'तुम कर्ण को दिव्यास्त्र से ही घायल करके मार गिराओ।‘ भगवान् के ऐसा कहने पर अर्जुन को कर्ण के अत्याचारों का स्मरण हो आया। फिर तो उन्हें भयंकर क्रोध चढ़ा, उनके रोम_रोम से आग की चिंगारियां फूटने लगीं_यह एक अद्भुत बात हुई। यह देख कर्ण ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र से उसके अस्त्र को दबा दिया। इसके बाद उन्होंने कर्ण को लक्ष्य करके आग्नेय अस्त्र छोड़ा जो अपने तेज से प्रज्जवलित हो उठा। किन्तु कर्ण ने उसे वारुणास्त्र से शान्त कर दिया; साथ ही आकाश में बादलों की घटा घिर आयी, संपूर्ण दिशाओं में अंधेरा छा गया। परंतु अर्जुन इससे विचलित नहीं हुए, उन्होंने कर्ण के देखते _देखते वायव्यास्त्र से उन बादलों को उड़ा दिया। तब सूतपुत्र ने अर्जुन का वध करने के लिये जलती हुई आग के समान एक भयंकर बाण हाथ में लिया और ज्यों ही उसे धनुष पर चढ़ाया पर्वत, वन और काननोंसहित सारी पृथ्वी डगमगाने लगी। कर्ण ने उसे छोड़ दिया; उस वज्र सरीखे बाण ने अर्जुन की छाती छेद डाली। गहरी चोट लगने से उन्हें चक्कर आ गया। हाथ ढ़ीला पर गया, गाण्डीव धनुष खिसकने लगा और उनका सारा शरीर कांप उठा। इसी बीच में मौका पाकर कर्ण पहिया निकालने के लिये रथ से कूद पड़ा। उसने दोनों हाथों से पकड़कर पहिये को ऊपर उठाने की बहुत कोशिश की, किन्तु दैववश वह अपने प्रयत्न में सफल न हो सका। इतने में अर्जुन को चेत हुआ और उन्होंने यमदण्ड के समान भयानक बाण हाथ में उठाया। इसी समय श्रीकृष्ण ने कहा_’कर्ण जबतक रथ पर नहीं चढ़ जाता, तबतक ही इसका मस्तक काट डालो।‘ ‘बहुत अच्छा’ कहकर अर्जुन ने भगवान् की आज्ञा स्वीकार की और कर्ण की ध्वजा पर दहकते हुए बाण का प्रहार किया। ध्वजा टूट गयी और उसके गिरने के साथ ही कौरवों के यश, घमंड, विजय, मनोवांछित कामनाओं तथा हृदय का भी पतन हो गया। उस समय बड़े जोर से हाहाकार मचा। अब अर्जुन कर्ण को मारने के लिए बड़ी शीघ्रता करने लगे। उन्होंने अपने भाथे से इन्द्र के वज्र और यमराज के दण्ड के समान एक आंजलिक नामक बाण निकालकर हाथ में लिया। उसकी लम्बाई लगभग ढ़ाई हाथ की थी। उसमें छः पर लगे हुए थे; इसलिए वह बहुत तीव्र गति से चलता था। वह बाण सब ओर फैली हुई कामाग्नि के समान घोर तथा पिनाक और सुदर्शन चक्र के समान भयंकर था। अर्जुन ने उस अस्त्र को गाण्डीव धनुष पर चढ़ाया और उसे खैंचकर कहा_’यदि मैंने तप किया हो, गुरुजनों को सेवा से प्रसन्न रखा हो, यज्ञ किया हो और हितैषी मित्रों की बातें ध्यान देकर सुनी हों तो इस सत्य के प्रभाव से यह बात मेरे प्रचण्ड शत्रु कर्ण का नाश कर डाले।‘ ऐसा कहकर उन्होंने वह भयानक बाण कर्ण का वध करने के उद्देश्य से उसकी ओर छोड़ दिया। उनके हाथ से छूटते ही वह सूर्य के समान तेजस्वी बाण ने समस्त दिशाओं और आकाश में प्रकाश फैला दिया। दिन का तीसरा पहर बीत रहा था। उसी समय अर्जुन ने उस बाण से कर्ण का मस्तक काट डाला। आंजलिक से कटा हुआ वह मस्तक पृथ्वी पर गिर पड़ा,  इसके बाद उसका धड़ भी खून की धारा बहाता हुआ धराशाही हो गया। उस समय कर्ण के शरीर से एक तेज निकलकर आकाश में फ़ैल गया और फिर सूर्यमण्डल में विलीन हो गया। इस अद्भुत दृश्य को वहां खड़े हुए सब लोगों ने अपनी आंखों से देखा था।
अर्जुन ने कर्ण को मार गिराया_यह देख पाण्डव पक्ष के योद्धा बड़े जोर जोर से शंख बजाने लगे। श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा नकुल_सहदेव ने भी हर्ष में भरकर अपने _अपने शंख बजाये। सोमकों ने सेनासहित सिंहनाद किया। दूसरे योद्धाओं ने भी अत्यन्त प्रसन्न होकर बाजा बजाना आरम्भ कर दिया। कितने ही राजा आकर अर्जुन से गले मिले। कितने ही एक_दूसरे को गले लगाकर नाचने लगे। कर्ण के शरीर को खून से लथपथ हो पृथ्वी पर पड़ा देख महाराज शल्य उस टूटी हुई ध्वजा वाले रथ के द्वारा ही वहां से भाग गये। कर्ण की मृत्यु देख कौरव_पक्ष के अन्य योद्धा भी भयभीत होकर भाग चले। उस समय दुर्योधन की आंखों में आंसू भर आते। वह बारंबार उच्छवास लेने लगा। दोनों पक्ष के योद्धा कर्ण की लाश देखने के लिये उसे घेरकर खड़े हो गये। कोई प्रसन्न था, कोई भयभीत। किसी के चेहरे पर विषाद की छाया थी तो कोई आश्चर्य में डूबा हुआ था। सारांश यह कि जिसकी जैसी प्रकृति थी, वे उसी प्रकार हर्ष या शोक में मग्न हो रहे थे।
कर्ण के मरने पर भीम ने भयंकर सिंहनाद करके पृथ्वी और आकाश को कंपा दिया। वे धृतराष्ट्र के पुत्रों को डराते हुए ताल ठोककर नाचने कूदने लगे। सोमक, सृंजॉय तथा दूसरे क्षत्रिय भी अत्यन्त हर्ष में भरकर अर्जुन को छाती से लगाकर शंखनाद करने लगे। उस समय मद्रराज शल्य का चित्त ठिकाने नहीं था, वे दुर्योधन के पास पहुंचकर आंसू बहाते हुए बड़े दुःख के साथ बोले_’राजन् ! तुम्हारी सेना के हाथी_घोड़े, रथ और सेना नष्ट_भ्रष्ट हो गये, मानो उनपर यमराज का आधिपत्य हो गया है। आज कर्ण और अर्जुन में जैसा युद्ध हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। कर्ण ने चढ़ाई करके श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा अन्य शत्रुओं को प्रायः काबू में कर लिया था; किन्तु कुछ फल नहीं हुआ। निश्चय ही दैव पाण्डवों के अधीन होकर काम कर रहा है। वह उनकी तो रक्षा करता है और हमारा नाश। यही कारण है कि तुम्हारे अर्थ की सिद्धि के लिये प्रयत्न करनेवाले सभी वीर शत्रुओं के हाथ से बलपूर्वक मारे गये। तुम्हारी सेना के प्रमुख योद्धा इन्द्र, यम और कुबेर के समान प्रभावशाली थे। उनमें पराक्रम, बल, शौर्य, तेज तथा और भी बहुत _से उत्तम गुण मौजूद थे। वे एक प्रकार से अवध्य थे; तो भी उन्हें पाण्डव योद्धाओं ने रण में मार डाला। अतः भारत ! तुम सोच न करो। यह सब प्रारब्ध का खेल है। सबको सदा ही सिद्धि नहीं मिलती, ऐसा जानकर धैर्य धारण करो।‘

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