Monday, 24 March 2025

सब स्त्रियों का अपने सम्बन्धियों जलांजलि देना तथा कुन्ती के मुख से कर्ण के जन्म का रहस्य खुलने पर भाइयों के सहित राजा युधिष्ठिर का शोकाकुल होना

सब स्त्रियों का अपने सम्बन्धियों जलांजलि देना तथा कुन्ती के मुख से कर्ण के जन्म का रहस्य खुलने पर भाइयों के सहित राजा युधिष्ठिर का शोकाकुल होना


वैशम्पायनजी कहते हैं_राजन् ! सबलोग साधुजन सेवित पुण्यतोया भागीरथी नदी के तट पर पहुंचे। वहां उन्होंने अपने आभूषण और दुपट्टे उतार दिये। फिर कुरुकुल की स्त्रियों ने अत्यंत दु:खित होकर रोते_रोते अपने पुत्र और पतियों को जलांजलि दी तथा धर्मविधि को जाननेवाले पुरुषों ने भी अपने सुहृदों को जलदान किया। जिस समय वे वीर पत्नियां जलदान कर रही थीं, शोकाकुला कुन्ती नू रोते_रोते धीमे स्वर में कहा, 'पुत्रों ! जिसे अर्जुन ने संग्राम में परास्त किया है, जो वीरों के सभी लक्षणों से सम्पन्न था, जिसे तुम राधा की कोख से उत्पन्न हुआ सूतपुत्र मानते हो, जिसने दुर्योधन की सारी सेना का नियंत्रण किया था, पराक्रम में जिसके समान प‌थ्वी में कोई भी राजा नहीं था और जो दिव्य कवच एवं कुण्डल धारण किये था, वह सूर्य के समान तेजस्वी कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था। भगवान् सूर्य के द्वारा मेरे उदर से उत्पन्न हुआ था। उसके लिये तुम जलांजलि दो।' माता के ये अप्रिय वचन सुनकर सभी पाण्डव कर्ण के लिये शोकाकुल होकर बड़े उदास हो गये। फिर राजा युधिष्ठिर ने लम्बी _लम्बी सांसें लेते हुए राजा से पूछा, 'माताजी ! कर्ण तो साक्षात् समुद्र के समान गम्भीर थे, उनकी वाणवर्षा के सामने अर्जुन के समान और कोई वीर टिक नहीं सकता था, उन्होंने किस प्रकार देवपुत्र होकर आपके गर्भ से जन्म लिया था ! वैसे कोई आग को कपड़े से ढ़ांप ले, उसी प्रकार आपने इस बात को अबतक कैसे छिपा रखा था ? हम जैसे अर्जुन के बाहुबल का भरोसा रखते, उसी प्रकार कौरवों को तो उन्हीं के बल का भरोसा था। ओह ! इस रहस्य को छिपाकर तो आपने हमारा सत्यनाश ही कर दिया। आज कर्ण की मृत्यु से हम सब भाइयों को बड़ा दु:ख हो रहा है।  अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र, पांचालवीर और कौरवों के मारे जाने से मुझे जितना दु:ख है, उससे सऔगउनआ कर्ण की मृत्यु से हो रहा है। अब तो मुझे कर्ण किसी शोक है, उससे मैं ऐसे जल रहा हूं, मानो किसी ने आग लगा दी हो। यदि हमें यह बात मालूम होती तो हमारे लिये पृथ्वी की तो क्या, स्वर्ग की भी कोई वस्तु अप्राप्य नहीं रहती। फिर तो यह कुरुकुल को उच्छेद करनेवाला भीषण संग्राम भी न होता।'
इस प्रकार तरह_तरह से अत्यंत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर ने रोते _रोते कर्ण को जलांजलि दी। उस समय वहां सहसा सभी स्त्रियां रो पड़ीं। इसके बाद कुरुराज युधिष्ठिर ने भ्रातृप्रेमवश कर्ण की सब स्त्रियों को वहां बुलवाया और उनको साथ लेकर शास्त्रविधि से कर्ण का प्रेतकर्म किया। फिर वे कहने लगे, 'मैं बड़ा पापी हूं, मैंने न जानने के कारण ही अपने बड़े भाई का वध करा दिया। अतः उनकी पत्नियों के हृदय मेरे प्रति कोई छिपा हुआ द्वेष हो तो वह दूर हो जाना चाहिये।' ऐसा कहकर वे विकल चित्त से गंगाजी से बाहर निकले और अपने सब भाइयों के सहित तट पर आये।

स्त्री पर्व समाप्त



Wednesday, 19 March 2025

राजा धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर की बातचीत तथा मरे हुए योद्धाओं का दाहकर्म

श्रीकृष्ण कहने लगे_गान्धारी ! उठो, उठो, मन में शोक मत करो। इन कौरवों का संहार तो तुम्हारे ही अपराध से हुआ है। तुम अपने दुष्ट पुत्र को भी बड़ा साधु समझती थी। जो बड़ा ही निष्ठुर, व।अर्थ और वैर बांधनेवाला और बड़े _बूढ़ों की आज्ञा का भी उल्लंघन करनेवाला था, उसी दुर्योधन को तुमने सिर पर चढ़ाकर रखा था। फिर अपने किये हुए अपराध को तुम मेरे माथे क्यों मढ़ती हो? वैशम्पायनजी कहते हैं_श्रीकृष्ण के ये अप्रिय वचन सुनकर गांधारी चुप रह गयी। फिर धर्म को जाननेवाले राजर्षि धृतराष्ट्र ने अपने अज्ञान जनित मोह को दबाकर धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा, 'युधिष्ठिर ! इस युद्ध में जो सेना मारी गयी है, उसके परिमाण का तुम्हें पता हो तोहमें बताओ। युधिष्ठिर ने कहा_महाराज ! इस युद्ध में एक अरब छाछठ करोड़, बीस हजार वीर मारे गये हैं। इनके सिवा चौदह हजार योद्धा अज्ञात हैं और दस हजार एक सौ पैंसठ वीरों का पता नहीं है। धृतराष्ट्र ने पूछा_महाबाहो ! मैं तुम्हें सर्वज्ञ मानता हूं, इसलिये यह तो बताओ, उन सबकी क्या गति हुई है ? युधिष्ठिर बोले_ महाराज !  जिन सच्चे वीरों ने इस युद्ध अग्नि में अपने शरीरों को हर्षपूर्वक होता है, वे तो इनके समान ही पुण्य लोक को प्राप्त हुए हैं; जो यह सोचकर कि 'एक दिन मरना तो है ही, इसलिये लड़कर ही मर जाओ' हर्षहीन हृदय से लड़ते-लड़ते मारे गये हैं, वे गन्धर्वों के साथ जा मिले हैं और जो संग्रामभूमि में रहते हुए भी प्राणों की भिक्षा मांगते या युद्ध से भागते हुए शस्त्रों द्वारा मारे गये हैं, वे यक्षों के लोक में गये हैं। किन्तु जिन महापुरुषों को शत्रुओं ने गिरा दिया था, जिनके पास युद्ध करने का कोई साधन भी नहीं रहा था, जो शस्त्रहीन हो गये थे और बहुत लज्जित होकर भी जिन्होंने शत्रुओं के सामने पीठ नहीं दिखायी_इस प्रकार क्षात्रधर्म का पालन करते हुए जो तीखे शस्त्रों से छिन्न-भिन्न हो गये थे, वे तो ब्रह्मलोक को ही गये हैं _इस विषय में मुझे तनिक भी संदेह नहीं है। इसके सिवा जो लोग किसी भी प्रकार इस युद्धभूमि के भीतर मार दिये गये हैं, वे उत्तर कुरु देश में जन्म लेंगे। धृतराष्ट्र ने पूछा_बेटा ! तुम्हें ऐसा कौन सा ज्ञानबल प्राप्त है, जिससे इन बातों को तुम सिद्धों के समान देख रहे हो ? यदि मेरे सुनने योग्य हो तो मुझे बताओ।
युधिष्ठिर बोले_पिछले दिनों में आपकी आज्ञा से वन में विचरते समय जब मैं तीर्थयात्रा कर रहा था, उस समय मुझे देवर्षि लौमशजी के दर्शन हुए थे। उन्हीं से मुझे यह अनुस्मृति प्राप्त हुई थी और उससे भी पहले ज्ञानयोग के प्रभाव से मुझे दिव्यदृष्टि प्राप्त हो गयी थी। धृतराष्ट्र ने कहा_युधिष्ठिर ! यहां जो अनेकों अनाथ और सनाथ योद्धा मरे पड़े हैं, क्या उनके शरीरों को तुम विधिवत् दाह करा दोगे ? इनमें अनेकों ऐसे होंगे जो न तो अग्निहोत्री रहे होंगे और न उनका संस्कार करनेवाला ही कोई होगा। भैया ! यहां तो बहुतों के अन्त्येष्टि कर्म करने हैं, हम किस_किसका करें ? राजा धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर कुन्तिनन्दन युधिष्ठिर ने कौरवों के पुरोहित सुधर्मा और अपने पुरोहित धौम्य को तथा संजय, विदुर, युयुत्सु इन्द्र सेन आदि सेवक और सब सारथियों को आज्ञा दी कि 'आपलोग विधिपूर्वक इन सभी के प्रेतकर्म कराइये, जिससे कोई भी शरीर अनाथ की तरह नष्ट न हो।' धर्मराज की आज्ञा पाते ही सबलोग चन्दन, अगर, काष्ठ, घी, तेल सुगन्धित द्रव्य और रेशमी वस्त्र आदि सब सामान जुटाने में लगे गये। उन्होंने टूटे_फूटे रथ और तरह_तरह के शस्त्रोंके ढ़ेर लगा दिये। फिर बड़ी तत्परता से चिताएं तैयार कर उनपर मुख्य_मुख्य राजाओं के शव रखकर शास्त्रोक्त विधि से उनका दाहकर्म कराया। राजा दुर्योधन, उसके निन्यानवे भाई, राजा शल्य, शल, भूरिश्रवा, जयद्रथ, अभिमन्यु, दु:शासन के पुत्र, लक्ष्मण, धृष्टकेतू, बऋहन्त, सोमदत्त, सैकड़ों सृंजयवीर, राजा क्षेमधन्वा, विराट, द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र, शकुनि, अचल, वृषक, भगदत्त, कर्ण, कर्ण के पुत्र, केकयराज, त्रिगर्तराज, घतोत्कच, अलंबउष और जरासंध_इन सबका तथा और भी हजारों राजाओं का उन्होंने धृत की धाराओं में प्रज्जवलित हुई अग्नि में दाह कराया किन्हीं_किन्हीं के लिये श्राद्धकर्म भी कराये गये, किन्हीं के लिये सामान कराया गया और किन्हीं के लिये उनके सम्बन्धियों को बहुत शोक भी हुआ। उस रात्रि में सामगान की ध्वनि और स्त्रियों के रुदन से सभी जीवों को बड़ा कष्ट हुआ। इसके बाद वहां अनेकों देशों से आये हुए जो अनाथ लोग मारे गये थे, उन सबकी हजारों ढेरियां कराकर उन्हें धीमी भीगी हुई लकड़ियों से जलवा दिया। इस प्रकार सब राजाओं का दाहकर्म करके कुराज युधिष्ठिर महाराज धृतराष्ट्र को लेकर गंगाजी की ओर चले।

Thursday, 6 March 2025

गान्धारी का अन्य मरे हुए वीरों को देखकर विलाप करना और श्रीकृष्ण को शाप देना

गान्धारी ने फिर कहा_श्रीकृष्ण ! देखो, वह अनेकों महारथियों को धराशायी करके खून में लथपथ हुआ कर्ण रणांगन में पड़ा हुआ है। वह बड़ा ही असहनशील, महान् क्रोधी , प्रचंड धनुर्धर और बड़ा बली था। किन्तु आज अर्जुन के हाथ से मारा जाकर वह पृथ्वी पर सोया हुआ है।
मेरे महारथी पुत्र भी पाण्डवों के भय से इसे ही आगे करके युद्ध करते थे। धर्मराज युधिष्ठिर इससे सदा ही घबराये रहते थे, इसकी ओर से चिंतित रहने के कारण तेरह वर्ष तक उन्हें सुख से नींद नहीं आयी। यह प्रलयकालीन अग्नि के समान तेजस्वी और हिमाचल के समान निश्छल था और यही दुर्योधन का प्रधान अवलम्ब था।
किन्तु देखो, आज यह वायु द्वारा उखाड़े हुए वृक्ष के समान पृथ्वी पर पड़ा है। इसकी पत्नी वृषसेन की माता प।द्वीप पर पड़ी है और तरह_तरह से विलाप करती बड़ा ही करुणक्रन्दन कर रही है। हाय ! बड़े खेद की बात है। महाबाहु कर्ण को रणभूमि में अचेत पड़ा देखकर सुषेण की माता अत्यन्त आतुर होकर मूर्छित हो गयी है। देखो, कुछ होश होने पर उठकर वह पृथ्वी पर गिर गयी है और पुत्र के वध से अत्यन्त आतुर होकर बड़ा ही विलाप कर रही है। इधर देखो, यह भीमसेन का मारा हुआ अवन्तइनरएश पड़ा है। उसकी रानियां भी चारों ओर से घेरकर उसकी सार_संभाल में लगी हुई हैं। श्रीकृष्ण ! महाराज प्रतीप के पुत्र बाह्लीक बड़े साहसी और धनुर्धर थे। वे भी भाले की चोट से मरकर रणभूमि में सोये हुए हैं। मर जाने पर भी इनके मुख की कान्ति फीकी नहीं पड़ी है। उधर, राजा जयद्रथ पड़ा हुआ है। इसे तो अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिये ग्यारह अक्षौहिणी सेना को पार करके मारा था। इसकी अनुरागी नि पत्नियां चारों ओर से इसकी संभाल कर रही हैं।
जनार्दन ! जिस समय वह वन में द्रौपदी को हरकर ले गया था, पाण्डव लोग तो इसे तभी मार डालते; उस समय केवल दु:शला की ओर देखकर ही उन्होंने इसे छोड़ दिया था। हाय ! एक बार फिर उन्होंने दु:शला का मान क्यों नहीं रखा ? देखो, बताओ, मेरी बच्ची दु:खी होकर कैसा विलाप कर रही है। कृष्ण! बताओ मेरे लिये इससे बढ़कर दु:ख क्या होगा कि मेरी अल्पवयस्का पुत्री विधवा हो गयी और बहुओं के पति मारे गये। हाय ! तनिक मेरी दु:शला की ओर तो देखो। पति का सिर न मिलने के कारण वह शोक और भय से रहित_सी होकर उसे इधर_उधर ढ़ूंढ़ती फिर रही है। इधर ये नकुल के मामा राजा शल्य मरे पड़े हैं। इन्हें धर्म को जानने वाले स्वयं धर्मराज ने ही संग्राम में मारा था। इनकी तुम्हारे साथ सदा से स्पर्धा रहती थी। युद्धस्थल में कर्ण का सामर्थ्य करते समय वे पाण्डवों को विजय दिलाने के लिये उसका तेज क्षीण करते रहे थे। देखो, इन्हें चारों ओर से इनकी रानियों ने घेर रखा है। उधर वे पर्वतीय रजा भगदत्त हाथी का अंकुश लिये पृथ्वी पर मरे पड़े हैं। इनके साथ अर्जुन का बड़ा ही प्रचंड, रोमांचकारी और भीषण युद्ध हुआ था। एक बार तो इनके युद्धकौशल को देखकर अर्जुन भी दंग रह गया था, किन्तु अंत में ये उसी के हाथ से मारे गये। देखो, जिनके समान बल और पराक्रम में संसार भर में कोई नहीं था, वे ही भीषण कर्म करनेवाले भीष्मजी इधर शरशैय्या पर शयन कर रहे हैं। केशव ! इस प्रतापी नरसूर्य ने शत्रुओं को अपने शस्त्रों के ताप से झुलसा डाला था। हाय ! आज यह अस्त होना चाहता है। आज वीरोचित शरशैय्या पर पड़े हुए इन अखंड ब्रह्मचारी भीष्मजी के दर्शन तो करो। ये आजतक अपने व्रत से नहीं डिगे। भगवान् स्वामी कार्तिकेय जैसे सरकण्डों के समूह पर सुशोभित हुए और उसी प्रकार ये कर्णिक, नालिक और नाराच जाति के बाणों की सेज बिछाकर सोये हुए हैं। अर्जुन ने इनके सिर के नीचे तीन बाण मारकर इन्हें बिना ही रूई का तकिया दिया है। अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये ये अखंड ब्रह्मचारी रहे, जिससे इन्हें बड़ी भारी कीर्ति मिली। युद्ध में इनकी बराबरी करनेवाला
कोई नहीं था। ये बड़े ही धर्मात्मा और सर्वज्ञ हैं तथा मनुष्य होने पर भी तत्वज्ञान के प्रभाव से देवताओं के समान प्राण धारण किये हुए हैं।
आज जब भीष्मजी भी बाणों के लक्ष्य बनकर रणक्षेत्र में पड़े हुए हैं तो मुझे यही निश्चय होता है कि वास्तव में न कोई युद्धकुशल है, न पराक्रमी है और न विद्वान हैं। विधाता जिसे जीवन में सफलता दे देता है, उसी को लोग श्रेष्ठ कहने लगते हैं। माधव ! जब ये देवतुल्य भीष्मजी स्वर्ग को सिधार जायेंगे तो कुरुकुल के लोग धर्म के विषय में अपना संदेह किससे पूछेंगे ? इधर देखो, ये कौरवों के माननीय आचार्य द्रोण पड़े हुए हैं। चार प्रकार के अस्त्रों का ज्ञान जैसा इन्द्र को है, वैसा या तो परशुरामजी को है या आचार्य द्रोण को था। जिनकी कृपा से अर्जुन ने अनेकों दुष्कर कार्य किये, वे ही द्रोण आज मरे पड़े हैं; इनकी शस्त्रविद्या भी इन्हें नहीं बचा सकी ! इनके जिन वन्दनईय चरणों का सैकड़ों शिष्य पूजन किया करते थे, देखो ! आज उन्हीं को गीदड़ खींच रहे हैं। इनके मरण की व्यथा से कृपा अचेत_सी हो गयी है और अत्यन्त दीन_सी होकर इनके पास बैठी है। देखो तो सही, उसके बाल बिखरे हुए हैं और वह मुख नीचा किये फूट_फूटकर रो रही है। इनके शिष्यों ने चिता में अग्नि स्थापित करके उसे सब ओर से प्रज्जवलित कर दिया है और उसपर आचार्य के शव को रखकर वे सामान करते हुए रो रहे हैं। देखो, अब वे कृपी को आगे रखकर चिंता की प्रदक्षिणा करके गंगाजी की ओर जा रहे हैं।माधव ! पास ही पड़े हुए इस भूरिश्रवा को तो देखो। इसकी पत्नियां मरे हुए अपने पति को घेरे खड़ी हैं और तरह_तरह से शोक कर रही हैं। शोक के वेग ने इन्हें बहुत ही कृश कर दिया है और ये आर्त स्वर से विलाप करती बार_बार पछाड़ खाकर पृथ्वी पर गिर जाती हैं इनकी ऐसी दयनीय दशा देखकर चित्त में बड़ा ही दु:ख होता है। देखो, यह कह रही हैं_'सात्यकि का यह काम बड़ा ही अधर्म पूर्ण और अकीर्तिकर हुआ है।' एक स्त्री ने पति की भुजा को गोद में रख लिया है। वह दीनतापूर्वक विलाप करती हुई कह रही है_'यह वह हाथ है जिसने अनेकों शूरवीरों का संहार किया था, अपने मित्रों को अभयदान दिया था और सहस्त्रों गौएं दान की थीं। जिस समय दूसरे के साथ संग्राम करने में लगे होने से तुम असावधान थे, उस समय श्रीकृष्ण के समीप ही अर्जुन ने इसे काट डाला था।' इस प्रकार अर्जुन की निंदा करके वह सुन्दरी चुप हो गयी है। उसके साथ ही उसकी दूसरी सौतें भी शोक में डूबी हुई हैं। यह सहदेव का मारा हुआ गांधार राज महावली शकुनि है। आज यह भी लड़ाई के मैदान में सोया हुआ है। यह बड़ा ही मायावी था। इसे सैकड़ों _हजारो़ प्रकार के रूप बनाने आते थे। किन्तु आज पाण्डवों के प्रताप से इसकी सारी माया भस्म हो गयी है। इस कपटी ने ध्यूतसभा में अपनी माया के प्रभाव से ही युधिष्ठिर का सारा साम्राज्य जीत लिया था, किन्तु आज वह अपना जीवन भी हार बैठा ! कृष्ण ! देखो, यह दुर्धर्ष वीर कम्बोजकुमार पड़ा है। यह कम्बोजदेश के गलीचों पर सोने योग्य था, किन्तु आज मौत के मुख में पड़कर धूलि की शैय्या पर सो रहा है ! देखो, यह कलिंगराज पड़ा है। उसके पास ही मगधदेश का राजा जयत्सेन है। उसकी स्त्रियां उसे चारों ओर से घेरकर अत्यन्त विह्वल होकर रो रही हैं। इधर कोसलनरेश राजकुमार वऋहद्वल को भी उसकी स्त्रियों ने घेर रखा है और वे फूट_फूटकर रो रही हैं। देखो, वे धृष्टद्युम्न के वीर पुत्र पड़े हैं और उधर आचार्य ही के गिराये हुए पांचालराज द्रुपद सोये हुए हैं। ये बूढ़े पांचालराज की द:खाना स्त्रियां और बहुएं उनका अग्निसंस्कार कर बायीं ओर से प्रदक्षिणा करके जा रही हैं। देखो, इधर द्रोण के मारे हुए चेदिराज धृष्टकेतू को उसकी स्त्रियां ले जा रही हैं। वह बड़ा ही शूरवीर और महारथी था। हजारों शत्रुओं का संहार करने के बाद ही यह मारा गया है। इसकी सुन्दर भार्याएं इसे गोद में लेकर विलाप कर रही हैं । उधर द्रोण ही का बींधा हुआ इसका पुत्र पड़ा है। मेरे पुत्र दुर्योधन के लड़के वीरवर लक्ष्मण ने भी इसी तरह अपने पिता का अनुगमन किया है। देखो, ये अवन्तिराज विन्द और अनुविन्द मरे पड़े हैं। ये इस समय भी अपने हाथों में धनुष _बाण और खड्ग पकड़े हुए हैं। कृष्ण ! पांचों पाण्डव और तुम तो अवश्य हो। इसी से द्रोण, भीष्म, कर्ण, कृप, दुर्योधन, अश्वत्थामा, जयद्रथ, सोमदत्त, विकर।ण और कृतवर्मा _जैसे वीरों की मार से बच गये हों। माधव ! निश्चय ही विधाता के लिये कोई काम कर डालना विशेष कठिन नहीं है। देखो न, क्षत्रियों ने ही इन शूरवीर क्षत्रियों का बात_की_बात में संहार कर डाला। मेरे पुत्रों का नाश तो उसी दिन हो चुका था, जब तुम अपने संधि के प्रयत्न में असफल होने पर उपलव्य की ओर लौटे थे। महामति भीष्म और विदुरजी ने मुझे उसी समय कहा दिया था कि अब अपने पुत्रों की मोह_ममता छोड़ दो। उनकी वह दृष्टि मिथ्या कैसे हो सकती थी। आज इसी से इतनी जल्दी मेरे पुत्र भस्मीभूत हो गये। वैशम्पायनजी कहते हैं_जन्मेजय ! श्रीकृष्ण से इतना कहकर गांधारी शोक से अचेत होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। दु:ख की अधिकता से उसकी विचारशक्ति नष्ट हो गयी और उसका धैर्यशक्ति नष्ट हो गयी।और उसका धैर्य टूट गया। जब उसे चेत हुआ तो पुत्रशोक की प्रबलता से उसके अंग_अंग क्रोध से भर गये और श्रीकृष्ण पर दोषदृष्टि करके वह कहने लगी, 'कृष्ण ! पाण्डव और कौरव आपस की फूट के कारण ही नष्ट हुए हैं। किन्तु तुमने समर्थ होते हुए भी इनकी उपेक्षा क्यों कर दी । तुम्हारे पास अनेकों सेवक थे और बड़ी भारी सेना थी। तुम दोनों ही को दबा सकते थे और अपने वाक्कौशल से उन्हें समझा भी सकते थे।
किन्तु तुमने अपनी इच्छा से ही इस कौरवों के संहार की उपेक्षा कर दी थी। सो अब तुम उसका फल भोगो। मैंने पति की सेवा करके जो तप संचय किया है, उसी के प्रभाव से मैं तुम्हें शाप देती हूं_'तुमने कौरव और पाण्डव दोनों भाइयों के आपस में प्रहार करते समय उनकी उपेक्षा कर दी थी। इसलिये तुम भी अपने बन्धु _बांधवों का वध करोगे। आज से छत्तीसवें वर्ष तुम भी बन्धु_बान्धव, मंत्री और पुत्रों के नाश हो जाने पर  एक साधारण कारण से अनाथ की तरह मारे जाओगे। आज जैसे ये भरत_वंश की स्त्रियां विलाप कर रही हैं, उसी प्रकार तुम्हारे कुटुम्ब की स्त्रियां भी अपने बन्धु_बान्धवों के मारे जाने पर सिर पकड़कर रोवेगी।' गान्धारी के ये कठोर वचन सुनकर महामना श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए कहा, ' मैं तो जानता था कि यह बात इसी प्रकार होनी है। 
तुमने जो कुछ होना था, उसी के लिये शाप दिया है। इसमें संदेह नहीं, वृष्णिवंशियों का नाश दैवी कोप से ही होगा। इसका नाश करने में भी मेरे सिवा और कोई समर्थ नहीं है। मनुष्य तो क्या, देवता या असुर भी इनका संहार नहीं कर सकते। इसलिये ये यदुवंशी आपस के कलह से ही नष्ट होंगे।'
श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डवों को बड़ा भय हुआ। वे अत्यंत व्याकुल हो गये और उन्हें अपने जीवन की आशा भी नहीं रही।