Monday, 24 March 2025

सब स्त्रियों का अपने सम्बन्धियों जलांजलि देना तथा कुन्ती के मुख से कर्ण के जन्म का रहस्य खुलने पर भाइयों के सहित राजा युधिष्ठिर का शोकाकुल होना

सब स्त्रियों का अपने सम्बन्धियों जलांजलि देना तथा कुन्ती के मुख से कर्ण के जन्म का रहस्य खुलने पर भाइयों के सहित राजा युधिष्ठिर का शोकाकुल होना


वैशम्पायनजी कहते हैं_राजन् ! सबलोग साधुजन सेवित पुण्यतोया भागीरथी नदी के तट पर पहुंचे। वहां उन्होंने अपने आभूषण और दुपट्टे उतार दिये। फिर कुरुकुल की स्त्रियों ने अत्यंत दु:खित होकर रोते_रोते अपने पुत्र और पतियों को जलांजलि दी तथा धर्मविधि को जाननेवाले पुरुषों ने भी अपने सुहृदों को जलदान किया। जिस समय वे वीर पत्नियां जलदान कर रही थीं, शोकाकुला कुन्ती नू रोते_रोते धीमे स्वर में कहा, 'पुत्रों ! जिसे अर्जुन ने संग्राम में परास्त किया है, जो वीरों के सभी लक्षणों से सम्पन्न था, जिसे तुम राधा की कोख से उत्पन्न हुआ सूतपुत्र मानते हो, जिसने दुर्योधन की सारी सेना का नियंत्रण किया था, पराक्रम में जिसके समान प‌थ्वी में कोई भी राजा नहीं था और जो दिव्य कवच एवं कुण्डल धारण किये था, वह सूर्य के समान तेजस्वी कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था। भगवान् सूर्य के द्वारा मेरे उदर से उत्पन्न हुआ था। उसके लिये तुम जलांजलि दो।' माता के ये अप्रिय वचन सुनकर सभी पाण्डव कर्ण के लिये शोकाकुल होकर बड़े उदास हो गये। फिर राजा युधिष्ठिर ने लम्बी _लम्बी सांसें लेते हुए राजा से पूछा, 'माताजी ! कर्ण तो साक्षात् समुद्र के समान गम्भीर थे, उनकी वाणवर्षा के सामने अर्जुन के समान और कोई वीर टिक नहीं सकता था, उन्होंने किस प्रकार देवपुत्र होकर आपके गर्भ से जन्म लिया था ! वैसे कोई आग को कपड़े से ढ़ांप ले, उसी प्रकार आपने इस बात को अबतक कैसे छिपा रखा था ? हम जैसे अर्जुन के बाहुबल का भरोसा रखते, उसी प्रकार कौरवों को तो उन्हीं के बल का भरोसा था। ओह ! इस रहस्य को छिपाकर तो आपने हमारा सत्यनाश ही कर दिया। आज कर्ण की मृत्यु से हम सब भाइयों को बड़ा दु:ख हो रहा है।  अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र, पांचालवीर और कौरवों के मारे जाने से मुझे जितना दु:ख है, उससे सऔगउनआ कर्ण की मृत्यु से हो रहा है। अब तो मुझे कर्ण किसी शोक है, उससे मैं ऐसे जल रहा हूं, मानो किसी ने आग लगा दी हो। यदि हमें यह बात मालूम होती तो हमारे लिये पृथ्वी की तो क्या, स्वर्ग की भी कोई वस्तु अप्राप्य नहीं रहती। फिर तो यह कुरुकुल को उच्छेद करनेवाला भीषण संग्राम भी न होता।'
इस प्रकार तरह_तरह से अत्यंत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर ने रोते _रोते कर्ण को जलांजलि दी। उस समय वहां सहसा सभी स्त्रियां रो पड़ीं। इसके बाद कुरुराज युधिष्ठिर ने भ्रातृप्रेमवश कर्ण की सब स्त्रियों को वहां बुलवाया और उनको साथ लेकर शास्त्रविधि से कर्ण का प्रेतकर्म किया। फिर वे कहने लगे, 'मैं बड़ा पापी हूं, मैंने न जानने के कारण ही अपने बड़े भाई का वध करा दिया। अतः उनकी पत्नियों के हृदय मेरे प्रति कोई छिपा हुआ द्वेष हो तो वह दूर हो जाना चाहिये।' ऐसा कहकर वे विकल चित्त से गंगाजी से बाहर निकले और अपने सब भाइयों के सहित तट पर आये।

स्त्री पर्व समाप्त



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