राजा धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! इस प्रकार जब मेरे पुत्र और पाण्डवों की सेनाओं की व्यूहरचना हो गयी तो उन दोनों में से पहले किसने प्रहार किया ? संजय ने कहा___राजन् ! तब भाइयों के सहित आपका पुत्र दुर्योधन भीष्मजी को आगे रखकर सेनासहित बढ़ा। इसी प्रकार भीमसेन के नेतृत्व में सब पाण्डवलोग भी भीष्म से युद्ध करने के लिये प्रसन्नता से आगे आये। इस प्रकार दोनों सेनाओं में घोर युद्ध होने लगा।
पाण्डवों ने हमारी सेना पर आक्रमण किया और हमने उन पर धावा बोल दिया। दोनों ओर से ऐसा भीषण शब्द हो रहा था कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते थे। उस समय महाबाहु भीमसेन तो साँड़ की तरह गरज रहे थे। उनकी दहाड़ से आपकी सेना का हृदय हिल उठा तथा सिंह की दहाड़ सुनकर जैसे दूसरे जंगली जानवरों का मल_मूत्र निकल जाता है, उसी प्रकार आपकी सेना के हाथी_घोड़े आदि वाहन भी मल_मूत्र त्यागने लगे। भीमसेन विकट रूप धारण करके आगे बढ़ने लगे।
यह देखकर आपके पुत्रों ने उन्हें बाणों से इस प्रकार ढक दिया, जैसे मेघ सूर्य को छिपा लेते हैं। इस समय दुर्योधन, दुर्मुख, दुःसह, शल, दुःशासन, दुर्मर्षण, विविंशति, चित्रसेन, विकर्ण, पुरुमित्र, जय, भोज और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा___ये सभी बड़े_बड़े धनुष चढ़ाकर विषधर सर्पों के समान बाण छोड़ रहे थे। दूसरी ओर से द्रौपदी के पुत्र, अभिमन्यु, नकुल, सहदेव और धृष्टधुम्न अपने बाणों से आपके पुत्रों को पीड़ित करते हुए बढ़ रहे थे। इस प्रकार प्रत्यन्चाओं की भीषण टंकार के साथ यह पहला संग्राम हुआ। इसमें दोनों पक्षों के वीरों में से किसी ने पीछे पैर नहीं रखा। इसके बाद शान्तनुनन्दन भीष्म अपना कालदण्ड के समान भीषण धनुष लेकर अर्जुन के ऊपर लपके और परम तेजस्वी अर्जुन भी अपना जगद्विख्यात गाण्डीव धनुष चढ़ाकर भीष्म पर टूट पड़े। वे दोनों कुरुवीर एक_दूसरे को मारने की इच्छा से युद्ध करने लगे।
भीष्म ने अर्जुन को बींध डाला, फिर भी वे टस_से_मस न हुए। इसी प्रकार अर्जुन भी भीष्मजी को संग्राम से विचलित नहीं कर सके। इसी समय सात्यकि ने कृतवर्मा पर आक्रमण किया। उनका भी बड़ा भीषण और रोमांचकारी युद्ध होने लगा। महान् धनुर्धर कोसलराज बृहद्वल से अभिमन्यु भिड़ा हुआ था। उसने अभिमन्यु के रथ की ध्वजा को काट दिया और सारथि को भी मार डाला। इससे अभिमन्यु को बड़ा क्रोध हुआ। उसने नौ बाण छोड़कर बृहद्वल को बींध दिया तथा दो तीखे बाण छोड़कर एक से उसकी ध्वजा काट दी और दूसरे से सारथि और चक्ररक्षक को मार गिराया। भीमसेन का आपके पुत्र दुर्योधन से संग्राम हो रहा था। ये दोनों महाबली योद्धा रणांगण में एक_दूसरे पर बाणों की वर्षा कर रहे थे। उन वीरों को देखकर सभी को बड़ा विस्मय होता था। इसी समय दुःशासन महाबली नकुल से भिड़ गया और दुर्मुख सहदेव पर चढ़ आया और बाणों की वर्षा करके उसे व्यथित करने लगा। तब सहदेव ने एक बहुत ही तीखा बाण छोड़कर उसके सारथि को मार डाला। फिर वे दोनों वीर आपस में बदला लेने के विचार से एक_दूसरे को भयंकर बाणों से पीड़ित करने लगे।
स्वयं महाराज युधिष्ठिर शल्य के सामने आये। मद्रराज शल्य ने उनके धनुष के दो टुकड़े कर दिये। धर्मराज ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर मद्रराज को बाणों से आच्छादित कर दिया। धृष्टधुम्न द्रोणाचार्य के सामने आया। द्रोणाचार्य ने कुपित होकर उसके धनुष के तीन टुकड़े कर दिये और फिर एक कालदण्ड के समान बड़ा भीषण बाण मारा, जो उसके शरीर में घुस गया। तब धृष्टधुम्न ने दूसरा धनुष लेकर चौदह बाण छोड़े और द्रोणाचार्य को बींध दिया। इस प्रकार वे दोनों वीर क्रोध में भरकर बड़ा तुमुल युद्ध करने लगे। शंख ने बड़े वेग से सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा पर धावा किया और ‘खड़ा रह, खड़ा रह' ऐसा कहकर उसे ललकारा। फिर उसने उसकी दाहिनी भुजा काट डाली। तब भूरिश्रवा ने शंख की गले और कंधे के बीच की हड्डी पर प्रहार किया। इस प्रकार उन रणोन्मत्त वीरों का बड़ा भीषण युद्ध होने लगा। राजा बाह्लीक को संग्राम में देखकर चेदिराज धृष्टकेतू सामने आया और सिंह के समान गरजकर उन पर बाण बरसाने लगा। उसने नौ बाण छोड़कर राजा बाह्लीक रो बींध दिया। फिर वे दोनों वीर क्रोध में भरकर गर्जना करते हुए एक_दूसरे से लड़ने लगे। राक्षसराज अलम्बुष के साथ क्रूरकर्मा घतोत्कच भिड़ गया।
घतोत्कच ने अपने नब्बे बाण मारकर अलम्बुष को छेद डाला तथा अलम्बुष ने भी भीमसुवन घतोत्कच को झुकी नोकवाले बाणों से छलनी_छलनी कर दिया। महाबली शिखण्डी ने द्रोणपुत्र अश्त्थामा पर आक्रमण किया। तब अश्त्थामा ने तीखे बाणों से बींधकर शिखण्डी को घायल कर दिया। फिर शिखण्डी ने भी एक अत्यन्त तीखे बाण से द्रोणपुत्र पर चोट की। इस प्रकार वे संग्रामभूमि में एक_दूसरे पर तरह_तरह के बाणों का प्रहार करने लगे। सेनानायक विराट महावीर भगदत्त से भिड़ गये और उनका घोर युद्ध होने लगा। मेघ जिस प्रकार पर्वत पर जल बरसाता है, उसी प्रकार विराट ने भगदत्त पर बाणों की वर्षा की और मेघ जैसे सूर्य को ढक लेता है, वैसे ही भगदत्त ने राजा विराट को अपने बाणों से आच्छादित कर दिया। आचार्य कृप ने केकयराज बृहच्क्षत्र पर धावा किया और अपने बाणों से उसे बिलकुल ढक दिया। इसी प्रकार केकयराज ने कृपाचार्य को बाणों में विलीन कर दिया। उन दोनों वे एक_दूसरे के घोड़ों को मारकर धनुष काट डाले। इस प्रकार रथहीन होकर वे खड्गयुद्ध करने के लिये आमने_सामने आ गये। उस समय उनका बड़ा ही भीषण और कठोर युद्ध हुआ।
राजा द्रुपद ने जयद्रथ पर आक्रमण किया। जयद्रथ ने तीन बाण छोड़कर द्रुपद को घायल कर दिया। आपके पुत्र विकर्ण ने सुतसोम पर धावा किया। दोनों में युद्ध ठन गया। उन दोनों ने एक_दूसरे को बाणों से बींध दिया, परन्तु उनमें से किसी ने भी पीछे पैर नहीं रखा। महारथी चेकितान सुशर्मा पर चढ़ आया, किन्तु सुशर्मा ने भीषण बाणवर्षा करके उसे आगे बढ़ने से रोक दिया। तब चेकितान ने भी गुस्से में भरकर अपने बाणों से सुशर्मा को आच्छादित कर दिया। शकुनि ने परम पराक्रमी प्रतिविन्ध्य पर आक्रमण किया। किन्तु युधिष्ठिरकुमार प्रतिविन्ध्य ने अपने पाने बाणों से उसे छिन्न_भिन्न कर दिया। सहदेव के पुत्र श्रुतकर्मा ने काम्बोज महारथी सुदक्षिण पर धावा किया। सुदक्षिण ने उसे अपने बाणों से बींध दिया, फिर भी वह युद्ध से डिगा नहीं। फिर वह क्रोध में भरकर आने हों बाणों से सुदक्षिण को विदीर्ण करते हुए घोर युद्ध करने लगा।
अर्जुन का पुत्र इरावान् श्रुतायु के सामने आया और उसके घोड़ों को मार डाला। इस पर श्रुतायु ने कुपित होकर अपनी गदा से इरावान् के घोडों को नष्ट कर दिया। फिर उन दोनों का घोर युद्ध होने लगा। महाराज कुन्तीभोज अवन्तिराज विन्द और अनुविन्द के साथ संघर्ष हुआ। वे अपनी_अपनी विशाल वाहिनियों के सहित संग्राम करने लगे। अनुविन्द ने कुन्तीभोज पर गदा चलायी और कुन्तीभोज ने तुरंत ही उसे अपने बाणों से ढक दिया। कुन्तीभोज के पुत्र ने बाण बरसाकर विन्द को व्यथित कर दिया और विन्द ने उसे अपने बाणों से विदीर्ण कर दिया। इस प्रकार उनमें बड़ा अद्भुत युद्ध होने लगा। केकयदेश के पाँच सहोदर राजपुत्र गांधारनरेश के पाँच राजकुमार से युद्ध करने लगे। साथ ही उन दोनों देशों की सेनाएँ भी भिड़ गयीं। आपका पुत्र वीरबाहु राजा विराट के पुत्र उत्तर से लड़ने लगा और उसे अपने पाने बाणों से बींध दिया। इसी प्रकार उत्तर ने भी तीखे_तीखे तीर छोड़कर उस वीर को व्यथित कर दिया। चेदिराज ने उलूक पर धावा किया और बाणों की बर्षा करके उसे पीड़ित करने लगा तथा उलूक ने भी तीखे_तीखे बाणों से बींधना आरम्भ किया। इस प्रकार एक_दूसरे को विदीर्ण करते हुए उनका बड़ा भीषण युद्ध होने लगा।
उस समय सब वीर ऐसे उन्मत्त हो रहे थे कि कोई किसी को पहचान नहीं पाता था। हाथी हाथी के साथ, रथी रथी के साथ, घुड़सवार घुड़सवार के साथ और पैदल पैदल के साथ भिड़े हुए थे। इस प्रकार एक_दूसरे से भिड़ उन योद्धाओं का बड़ा दुर्घर्ष और घमासान युद्ध होने लगा। उस समय देवता, ऋषि, सिद्ध और चारण भी वहाँ आकर उस ग्वालियर संग्राम के समान घोर युद्ध को देखने लगे। राजन् ! उस संग्रामभूमि में लाखों पदाति मर्यादा छोड़कर युद्ध कर रहे थे। वहाँ पिता पुत्र की ओर नहीं देखता था और पुत्र पिता को नहीं गिनता था। इसी प्रकार भाई भाई की, भानजा मामा की, मामा भानजे की और मित्र मित्रता परवा नहीं करता था। ऐसा जान पड़ता था मानो वे भूतों से आविष्ट होकर युद्ध कर रहे हैं। इस प्रकार जब वह संग्राम मर्यादाहीन और अत्यन्त भयानक हो गया तो भीष्म के सामने पड़ते ही पाण्डवों की सेना थर्रा उठी।
Thursday 3 August 2017
युद्ध का आरम्भ____दोनों पक्षों के वीरों का परस्पर भिड़ना
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