Thursday 3 August 2017

अभिमन्यु, उत्तर और श्वेत का संग्राम तथा उत्तर और श्वेत का,वध

संजय ने कहा___राजन् ! इस दारुण दिवस का पहला भाग बीतते_बीतते जब अनेक रणबाँकुरे वीरों का भीषण संहार हो गया, तब आपके पुत्र दुर्योधन की प्रेरणा से प्रमुख, कृतवर्मा, कृप, शल्य और विविंशति पितामह भीष्म के पास चले आये। इन पाँच अतिरथियों से सुरक्षित होकर वे पाण्डवों की सेना में घुसने लगे। यह देखकर क्रोधातुर अभिमन्यु ने अपने रथ पर चढ़ा हुआ  भीष्मजी और उन पाँचों महारथियों के सामने आ कर डटे गया। उसने एक पैने बाण से भीष्मजी की ताड़ के चिह्नवाली ध्वजा काट दी और फिर उनके साथ संग्राम छेड़ दिया। उसने कृतवर्मा को एक, शल्य को पाँच और पितामह को नौ बाणों से बींध दिया। फिर एक झुकी हुई नोकवाले बाण से  दुर्मुख के सारथि का सिर धर से अलग कर दिया और एक बाण से कृपाचार्य का धनुष काट डाला। इस प्रकार रणभूमि में नृत्य सा करते हुए उसने बड़े तीखे बाणों से सभी वीरों पर वार किया। उसका ऐसा हस्तलाघव देखकर देवतालोग भी प्रसन्न हो गये तथा भीष्मादि महारथियों ने भी उसे साक्षात् अर्जुन के समान ही समझा। फिर कृतवर्मा, कृप और शल्य ने भी अभिमन्यु को बाणों से बींध दिया। परन्तु वह मैनाक पर्वत के समान रणभूमि से तनिक भी विचलित नहीं हुआ तथा कौरव वीरों के घिरे होने पर भी उस वीर महारथी ने उन पाँचों अतिरथियों पर बाणों की झड़ी लगा दी और उनके हजारों बाणों को रोककर भीष्मजी पर बाण छोड़ते हुए वह भीषण सिंहनाद करने लगा। राजन् ! महाबली भीष्म ने बड़े ही अद्भुत और भयानक दिव्यास्त्र प्रकट किये और अभिमन्यु पर हजारों बाण छोड़कर उसे बिलकुल ढक दिया। तब विराट, धृष्टधुम्न, द्रुपद, भीम, सात्यकि और पाँच केकयदेशीय राजकुमार___ये पाण्डवपक्ष के दस महारथी बड़ी तेजी से अभिमन्यु की रक्षा के लिये दौड़े। उन्होंने जैसे ही धावा किया कि शान्तनुनन्दन भीष्म ने पांचालराज द्रुपद के तीन और सात्यकि के नौ बाण मारे तथा एक बाण से भीमसेन की ध्वजा काट डाली। तब भीमसेन ने तान बाणों से भीष्म को, एक से कृपाचार्य को और आठ बाणों से कृतवर्मा को बींध दिया। जब विराटपुत्र श्वेत ने अपने भाई उत्तर को मरा हुआ और शल्य को कृतवर्मा के पास बैठा देखा तो वह क्रोध से जल उठा और अपना विशाल धनुष उठाकर शल्य को मारने के लिये दौड़ा। वह बाणों की वर्षा करता हुआ शल्य के रथ की ओर चला। इस समय मद्रराज को मृत्यु के मुँह में पड़ा देखकर आपके पक्ष के सात महारथियों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। कोसलराज बृहद्वल, मगधराज जयत्सेन, शल्यपुत्र रुक्मरथ, कम्बोजनरेश सुदक्षिण, विन्द, अनुविन्द और जयद्रथ___ये सातवें वीर श्वेत के सिर पर  बाणों की वर्षा करने लगे। सेनापति श्वेत ने सात बाणों से उन सातवें के धनुष काट डाले। उन्होंने आधे निमिष में ही दूसरे धनुष लेकर श्वेत पर सात बाण छोड़े। किन्तु महामना श्वेत ने  सात बाण छोड़कर फिर उनके धनुष काट दिये। तब उन महारथियों ने शक्तियाँ लेकर भीषण गर्जना करते हुए  उन्हें श्वेत पर छोड़ा।
परंतु अस्त्रविद्या के पारगामी श्वेत ने सात ही बाणों से उन्हें भी काट दिया। फिर उसने एक भीषण बाण लेकर उसे रुक्मरथ पर छोड़ा। उसकी गहरी चोट लगने से रुक्मरथ अचेत होकर रथ के पिछले भाग में बैठ गया। उसे अचेत देखकर उसका सारथि तुरंत ही सब लोगों के देखते_देखते रणभूमि से अलग ले गया। फिर श्वेतकुमार ने छः बाण चढ़ाकर उन छहों महारथियों की ध्वजाओं के अग्रभाग काट दिये और उनके घोड़े तथा सारथियों को भी बींध डाला। इसके पश्चात् उन्हें बाणों से आच्छादित कर स्वयं शल्य के रथ की ओर चला। इससे आपकी सेना में बड़ा कोलाहल होने लगा। तब सेनापति श्वेत को शल्य की ओर जाते देख आपका पुत्र दुर्योधन भीष्म को आगे कर सारा सेना के सहित श्वेत के रथ के सामने आया और मृत्यु के मुख में पड़े हुए राजा शल्य को उससे मुक्त क्या। बस, बड़ा ही घोर और रोमांचकारी युद्ध होने लगा तथा पितामह भीष्म, अभिमन्यु, भीमसेन, सात्यकि, केकयराजकुमार, धृष्टधुम्न, द्रुपद और चेदि तथा मत्स्य देश के राजाओं पर बाणों की वर्षा करने लगे। तब धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! जब राजकुमार श्वेत शल्य के रथ के सामने पहुँचा तो कौरव, पाण्डव और शान्तनुनन्दन भीष्मजी ने क्या किया___यह मुझे बताओ। संजय ने कहा___ राजन् ! उस समय लाखों क्षत्रिय वीर राजकुमार श्वेत की रक्षा कर रहे थे। उन्होंने पितामह भीष्म के रथ को घेर लिया। बड़ा ही घनघोर युद्ध होने लगा। भीष्मजी ने मारकाट मचाकर अनेकों रथों को सूना कर दिया। उस समय उनका पराक्रम बड़ा ही अद्भुत था। इधर राजकुमार श्वेत ने भी हजारों रथियों का सफाया कर दिया और अपने पैने बाणों से उनके सिर उड़ा दिये। मैं भी श्वेत के भय से अपना रथ छोड़कर भाग आया, इसी से महाराज के दर्शन कर सका हूँ। इस भीषण कटा_कटी के समय एकमात्र भीष्मजी ही सुमेरु को समान अचल खड़े हुए थे। वे अपने दुस्त्यज प्राणों का मोह छोड़कर निर्भीकभाव से पाण्डवों की सेना का संहार कर रहे थे। जब उन्होंने देखा कि श्वेत बड़ी तेजी से कौरवसेना को नष्ट कर रहा है, तो वे झटपट उसके सामने आ गये। किन्तु श्वेत ने भीषण बाणवर्षा करके उन्हें बिलकुल ढक दिया। भीष्मजी ने भी श्वेत पर बड़ी भारी बाणवर्षा की। उस समय यदि श्वेत ने न रक्षा की होती तो भीष्मजी एक दिन में ही सारी पाण्डवसेना को नष्ट_भ्रष्ट कर देते।
जब पाण्डवों ने देखा कि श्वेत ने भीष्मजी का भी मुँह फेर दिया है तो वे बड़े प्रसन्न हुए। पर आपका पुत्र दुर्योधन उोंदास हो गया। वह अत्यन्त क्रोध में भरकर अनेकों अन्य राजाओं के सहित सारी सेना लेकर पाण्डवों पर टूट पड़ा। उसी की प्रेरणा से दुर्मुख, कृतवर्मा, कृपाचार्य और अन्य भीष्मजी की रक्षा कर रहे थे। श्वेत ने जब देखा कि दुर्योधन तथा कई अन्य राजा मिलकर पाण्डवों की सेना का संहार कर रहे हैं तो वह भीष्मजी को छोड़कर कौरवों की सेना का विध्वंस करने लगा। इस प्रकार आपकी सेना को तितर_बितर करके वह फिर भीष्मजी के सामने जाकर डट गया। फिर वे दोनों वीर इन्द्र और वृत्रासुर के समान एक_दूसरे के प्राणों के ग्राहक होकर लड़ने लगे। श्वेत ने खिलखिलाकर हँसते हुए नौ बाण छोड़कर भीष्मजी के धनुष के दस टुकड़े कर दिये और एक बाण से उनकी ध्वजा काट डाली। यह देखकर आपके पुत्रोंनेे समझा कि अब श्वेत के पंजे में पड़कर  भीष्मजी मारे जायँगे तथा पाण्डवलोग प्रसन्न होकर शंख बजाने लगे।
तब दुर्योधन ने क्रोधित होकर अपनी सेना को आदेश दिया, ‘अरे ! सब लोग सावधान होकर सब ओर से भीष्मजी का रक्षा करो। देखो, ऐसा न हो हमारे सामने ही वे श्वेत के हाथ से मारे जायँ। यह बात मैं तुमसे खोलकर कह रहा हूँ।‘ राजाका का आदेश सुनकर सब महारथी बड़ी फुर्ती से चतुरंगिणी सेना को लेकर भीष्मजी की रक्षा करने लगे। बाह्लीक, कृतवर्मा, शल्य,  विकर्ण, चित्रसेन और विविंशति___ये सब महारथी बड़ी शीघ्रता से भीष्मजी को चारों ओर से घेरकर श्वेत के ऊपर बड़ी भारी बाणवर्षा करने लगे। किन्तु महामना श्वेत ने अपने हाथ की सफाई दिखाते हुए उन सब बाणों को रोक दिया। फिर सिंह जैसे हाथियों तो पीछे हटा देता है, वैसे ही उन सब वीरों को रोककर उसने अपने बाणों से भीष्मजी का धनुष काट दिया। तब भीष्मजी मे दूसरा धनुष लेकर उसे बड़े तीखे बाणों से बींध डाला। इससे सेनापति श्वेत ने क्रोध में भरकर सबके देखते_देखते अनेकों लोहे के बाणों से बींधकर भीष्मजी को व्याकुल कर दिया। इससे राजा दुर्योधन को बड़ी व्यथा हुई और आपकी सेना में हाहाकार होने लगा। श्वेत के बाणों से घायल होकर भीष्मजी को पीछे बचे देखकर बहुत लोग तो यही समझने लगे कि अब श्वेत के हाथ में पड़कर भीष्मजी मारे ही जायँगे। भीष्मजी ने जब देखा कि मेरे रथ की ध्वजा काट दी गयी है और सेना के भी पैर उखड़ गये हैं तो उन्होंने क्रोध में भरकर चार बाणों से श्वेत के चारों घोड़ों को मार डाला, दो बाणों से उसकी ध्वजा काट डाली और एक से सारथि का सिर काट दिया। सूत और घोड़ों के मारे जाने पर श्वेत रथ से कूद पड़ा और वह क्रोध से तिलमिला उठा। श्वेत को रथहीन देखकर भीष्मजी ने उस पर सब ओर से पैने बाणों की बौछार की। तब उसने धनुष को अपने रथ में फेंककर एक कालदण्ड के समान प्रचण्ड शक्ति ली और ‘जरा पुरुषत्व कारण करके खड़े रहो; मेरा पराक्रम देखो' ऐसा कहकर उसे भीष्मजी पर छोड़ दिया। उस भीषण शक्ति को आती देख आपके पुत्र हाहाकार करने लगे। किन्तु भीष्मजी तनिक भी नहीं घबराये। उन्होंने आठ_नौ बाण मारकर उसे बीच में ही काट दिया। यह देखकर आपकी ओर के सब लोग जय_जयकार करने लगे। तब विराटपुत्र श्वेत ने क्रोध की हँसी हँसते हुए भीष्मजीका प्राणान्त करने के लिये गदा उठयी और बड़े वेग से उनकी ओर दौड़ा। भीष्मजी ने देखा कि उसके वेग को रोका नहीं जा सकता, अत: वे उसका वार बचाने के लिये पृथ्वी पर कूद पड़े। श्वेत ने उसे घुमाकर भीष्मजी के रथ पर छोड़ा और उसके लगते ही उनका रथ, सारथि, ध्वजा और घोड़ों के सहित चूर_चूर हो गया।
भीष्मजी को रथहीन देखकर शल्य आदि दूसरे रथी अपने_अपने पथ लेकर चौड़े। तब वे दूसरे रथ पर चढ़कर हँसते हुए श्वेत की ओर बढ़े। उसी समय भीष्म को आकाशवाणी हुई___'महाबाहु भीष्म ! शीघ्र ही इसे मारने का उपाय करो। विश्वकर्ता विधाता ने यही इसके वध का समय निश्चित किया है।‘ यह आकाशवाणी सुनकर भीष्म बड़े प्रसन्न हुए और उसे मार डालने का निश्चय क्या। उस समय श्वेत को रथहीन देखकर सात्यकि, भीमसेन, धृष्टधुम्न, द्रुपद, केकयराजकुमार, धृष्टकेतू और अभिमन्यु एक साथ ही अपने रथ लेकर चले। किन्तु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और शल्य के सहित भीष्मजी ने उन्हें रोक दिया। उसी समय श्वेत ने तलवार खींचकर भीष्मजीका धनुष काट डाला। भीष्मजी ने तुरंत ही दूसरा धनुष उठा लिया और बड़ी तेजी से श्वेत की ओर चले। बीच में सामने आने पर उन्होंने भीमसेन को साठ, सात्यकि को सौ, धृष्टधुम्न को बीस और केकयराज को पाँच बाण मारकर रोक दिया। फिर वे सीधे श्वेत के सामने पहुँचे और अपने धनुष पर एक मृत्यु के समान बाण उसे ब्रह्मास्त्र से अभिमन्त्रित करके छोड़ा। वह बाण श्वेत के कवच को फाड़कर उसकी छाती में घुस गया और फिर बिजली के समान चमककर पृथ्वी में प्रवेश कर गया। इस प्रकार उसने श्वेत का प्राणान्त कर दिया। उसे पृथ्वी पर गिरते देख पाण्डव और उनके पक्ष के क्षत्रियलोग बड़ा शोक करने लगे तथा आपके पुत्र और अन्य कौरवलोग बड़े प्रसन्न हुए। दुःशासन तो बाजा बजाता हुुआ इधर_उधर नाचने लगा।

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