Friday 4 August 2017

दूसरा दिन___कौरवों का व्यूहरचना और अर्जुन तथा भीष्म का युद्ध


संजय ने कहा___राजन् ! दुर्योधन ने जब उस दुर्भेद्य क्रौन्चव्यूह की रचना देखी और अत्यन्त तेजस्वी अर्जुन को उसकी रक्षा करते पाया तो द्रोणाचार्य के पास जाकर वहाँ उपस्थित सभी शूरवीरों से कहा___’वीरों ! आप सब लोग नाना प्रकार के अस्त्रसंचालन की विद्या जानते हैं और युद्ध की कला में प्रवीण हैं। आपमें से एक_एक वीर भी युद्ध में पाण्डवों को मारने की शक्ति रखता है; फिर यदि सभी महारथी एक साथ मिलकर उद्योग करें, तब तो कहना ही क्या है ?’ उसके इस प्रकार कहने से भीष्म, द्रोण और आपके सभी पुत्र मिलकर पाण्डवों के मुकाबले में एक महान् व्यूह की रचना करने लगे। भीष्मजी बहुत बड़ी सेना साथ लेकर सबसे आगे चले। उनके पीछे कुन्तल, दशार्ण, मगध, विदर्भ आदि देशों के वीरों को साथ लेकर महाप्रतापी द्रोणाचार्य चले। गान्धार, सिन्धुसौवीर, शिबि और वसाति वीरों के साथ शकुनि द्रोणाचार्य की रक्षा में नियुक्त हुआ। इनके पीछे अपने सभी भाइयों के साथ दुर्योधन था। उसके साथ अव्श्रातक, विकर्ण, अम्बष्ठ, कोसल दरद, शक, क्षुद्रक और मालव देश के योद्धा थे। इन सबके साथ वह शकुनि की सेना की रक्षा कर रहा था। भूरिश्रवा, शल, शल्य, भगदत्त और विन्द_अनुविन्द___ये व्यूह के वाम भाग की रक्षा करने लगे। सोमदत्त का पुत्र, सुशर्मा, कम्बोजराज सुदक्षिण, श्रुतायु और अच्युतायु___ये दक्षिण भाग के रक्षक हुए। अश्त्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा__ये बहुत बड़ी सेना के साथ व्यूह के पृष्ठभाग में खड़े हुए। इनके पृष्ठपोषक थे केतुमान्, वसुदान, काशीराज के पुत्र तथा और दूसरे_दूसरे देशों के राजालोग। राजन् ! तदनन्तर, आपके पक्ष के सब योद्धा युद्ध के लिये तैयार हो गये और बड़े आनन्द के साथ शंख बजाने एवं सिंहनाद करने लगे। हर्ष में भरे हुए सैनिकों के सिंहनाद सुनकर कौरवों के पितामह भीष्म ने भी सिंह के समान दहाड़कर उच्च स्वर से शंख बजाया। तदुपरान्त शत्रुओं ने भी अनेकों प्रकार के शंख, भेरी, पेशी और आनक आदि बाजे बजाये; उनकी तुमुल ध्वनि सब ओर गूँजने लगी। श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीमसेन, युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव ने भी अपने_अपने शंख बजाये तथा काशिराज, शैब्य, शिखण्डी, धृष्टधुम्न, विराट, सात्यकि, पांचालदेशीय वीर और द्रौपदी के पुत्र भी बड़े_बड़े शंख बजाकर सिंहों के समान दहाड़ने लगे। उनके शंखनाद की ऊँची आवाज पृथ्वी से लेकर आकाश तक गूँज उठी। इस प्रकार कौरव और पाण्डव एक_दूसरे को पीड़ा पहुँचाते हुए युद्ध के लिये आमने_सामने खड़े हो गये। धृतराष्ट्र ने पूछा___जब दोनों ओर की सेना व्यूहरचनापूर्वक खड़ी हो गयी तो योद्धाओं ने किस प्रकार एक_दूसरे पर प्रहार करना शुरू किया ? संजय ने कहा___जब दोनों समानरूप से सेनाओं की व्यूहरचना हो गयी और सब ओर सुन्दर ध्वजाएँ फहराने लगीं, तब दुर्योधन ने अपने योद्धाओं को युद्ध करने की आज्ञा दी। कौरववीरों ने जीवन का मोह छोड़कर पाण्डवों पर आक्रमण किया। फिर तो दोनों ओर की सेनाओं में रोमांचकारी युद्ध होने लगा। रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड गये। हाथी और घोड़ों के शरीरों में असंख्य बाण घुसने लगे। इस प्रकार घमासान युद्ध आरम्भ हो जाने पर पितामह भीष्म अपना धनुष उठाकर अभिमन्यु, भीमसेन, सात्यकि, कैकय, विराट, और धृष्टधुम्न आदि वीरों पर तथा केकय और मत्स्य देश के राजाओं पर बाणों का वर्षा करने लगे। उनकी मार से पाण्डवों का व्यूह टूट गया, सारी सेना तितर_बितर हो गयी। कितने ही सवार और घोड़े मारे गये, रथियों के झुंड_के_झुंड भाग चले। अर्जुन महारथी भीष्म के ऐसे पराक्रम देखकर क्रोध में भर गये और भगवान् श्रीकृष्ण से बोले, ‘जनार्दन ! अब पितामह भीष्म के पास रथ ले चलिये, नहीं तो ये हमारी सेना का अवश्य ही संहार कर डालेंगे। सेना को बचाने के लिये आज मैं भीष्म का वध करूँगा।‘ श्रीकृष्ण ने कहा___’अच्छा धनन्जय ! अब सावधान हो जाओ। यह देखो, मैं अभी तुम्हें पितामह के रथ के पास पहुँचाये देता हूँ।‘ ऐसा कहकर श्रीकृष्ण अर्जुन के रथ को भीष्म के पास ले चले। भीष्म ने जब देखा अर्जुन अपने बाणों से शूरवीरों का मर्दन करते हुए बड़े वेग से आ रहे हैं, तो आगे बढ़कर उनका सामना किया। उस समय अर्जुन के ऊपर भीष्म ने सतहत्तर, द्रोण ने पच्चीस, कृपाचार्य ने पचास, दुर्योधन नो चौंसठ, शल्य और जयद्रथ नो नौ_नौ, शकुनि ने पाँच और विकर्ण ने दस बाण मारे। इस प्रकार चारों ओर से तीखे बाणों से बिंध जाने पर भी महाबाहु अर्जुन तनिक भी व्यथित या विचलित नहीं हुए। उन्होंने भीष्म को पचीस, कृपाचार्य को नौ द्रोणाचार्य को साठ, विकर्ण को तीन और दुर्योधन को पाँच बाणों से बींधकर तुरन्त बदला चुकाया। इतने में ही सात्यकि, विराट, धृष्टधुम्न, द्रौपदी के पाँच पुत्र और अभिमन्यु अर्जुन की सहायता के लिये आ पहुँचे और उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये।
तब भीष्म ने अस्सी बाण मारकर अर्जुन को बींध दिया। यह देख कौरवपक्ष के योद्धा हर्ष के मारे कोलाहल मचाने लगे। उन महारथी वीरों का हर्षनाद सुनकर प्रतापी अर्जुन उनके बीच में घुस गया और महारथियों को निशाना बनाकर अपने धनुष के खेल दिखाने लगा। अपनी सेना को अर्जुन से पीड़ित देख दुर्योधन भीष्म के पास जाकर बोला, ‘तात ! श्रीकृष्ण के साथ यह बलवान अर्जुन हमारी सेना की जड़ काट रहा है। आप और आचार्य द्रोण के जीते_जी यह दशा हो रही है ! कर्ण हमारा सदा हित चाहनेवाला है, मगर वह भी आपही के कारण अपने हथियार छोड़ चुका है; इसलिये वह अर्जुन से लड़ने नहीं आता। पितामह ! ऐसा उद्योग कीजिये, जिससे अर्जुन मारा जाय।‘ दुर्योधन के ऐसा कहने पर भीष्मजी ‘क्षत्रिय धर्म को धिक्कार है' ऐसा कहकर अर्जुन के रथ की ओर बढ़े। अश्त्थामा, दुर्योधन और विकर्ण ने भीष्म का साथ दिया। उधर, पाण्डव भी अर्जुन को घेरकर खड़े थे। फिर संग्राम छिड़ा। अर्जुन ने बाणों का जाल फैलाकर भीष्म को सब ओर से ढक दिया। भीष्म ने भी बाण मारकर उस जाल को तोड़ डाला। इस प्रकार दोनों एक_दूसरे के प्रहार को विफल करते हुए बड़े उत्साह से लड़ने लगे। भीष्म के धनुष से छूटे हुए बाणों के समूह अर्जुन के बाणों से छिन्न_भिन्न होते दिखायी देते थे। इसी प्रकार अर्जुन के छोड़े हुए बाण भी भीष्म के सायकों से कटकर पृथ्वी पर गिर जाते थे। दोनों ही बलवान् थे दोनों ही अजेय। दोनों एक_दूसरे के योग्य प्रतिद्वंद्वी थे। उस समय कौरव भीष्म को और पाण्डव अर्जुन को उनके ध्वजा आदि चिह्नों से ही पहचान पाते थे। उन दोनों वीरों के पराक्रम को देखकर सभी प्राणी आश्चर्य करते थे। जैसे धर्म में स्थित रहकर वर्ताव करनेवाले पुरुष में कोई दोष नहीं निकाला जा सकता, उसी प्रकार उनकी रणकुशलता में कोई भूल नहीं दीखती थी। उस समय कौरव और पाण्डवपक्षों के योद्धा तीखी धारवाली तलवारों, फरसों, बाणों तथा नाना प्रकार के दूसरे अस्त्र_शस्त्रों से आपस में मार-काट मचा रहे थे। इस प्रकार जब वह दारुण संग्राम चल रहा था, उसी समय दूसरी ओर पांचाल-राजकुमार धृष्टधुम्न और द्रोणाचार्य में गहरी मुठभेड़ हो रही थी।

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