Monday 11 December 2017

भीम और दुर्योधन का युद्ध, अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का पराक्रम

संजय ने कहा___तदनन्तर जब सूर्यदेव पर संध्या की लाली छाने लगी तो दुर्योधन ने भीमसेन का वध करने की इच्छा से उन पर धावा किया। अपने पक्के वैरी को आते देख भीमसेन के क्रोध की सीमा न रही। वे दुर्योधन से कहने लगे, ‘आज मुझे वह अवसर मिला है, जिसकी बहुत वर्षों से प्रतीक्षा कर रहा था। यदि तू युद्ध छोड़कर भाग नहीं गया, तो अवश्य ही इस समय तेरा वध कर डालूँगा। माता कुन्ती को जो कष्ट उठाने पड़े हैं, हमलोगों ने जो वनवास भोगा है तथा द्रौपदी को जो अपमान का दुःख सहना पड़ा है, उन सबका बदला आज तुझे मारकर चुका लूँगा।‘ यह कहकर भीमसेन ने धनुष चढ़ाया और दुर्योधन पर जलती हुई अग्नि की शिखा के समान छब्बीस बाण छोड़े। फिर दो बाणों से उसका धनुष काट दिया, दो से उसके सारथि को मार डाला, चार बाणों से चारों घोड़ों को यमलोक भेज दिया और दो बाणों से छत्र तथा छः से ध्वजा को काट डाला। इसके बाद उसके सामने ही उच्च स्वर से सिंहनाद करने लगे। इतने में कृपाचार्य ने आकर दुर्योधन को अपने रथ में चढ़ा लिया। भीमसेन ने उसे बहुत ही घायल और व्यथित कर दिया था, इसलिये वह रथ के पिछले भाग में बैठकर विश्राम करने लगा। तत्पश्चात् भीम को जीतने के लिये कई हजार रथों के साथ जयद्रथ ने आ घेरा। धृष्टकेतू, अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र और केकयदेशीय राजकुमार आपके पुत्रों से युद्ध करने लगे। इसी समय चित्रसेन, सुचित्र, चित्रांगद, चित्रदर्शन, चारुमित्र, नन्दक और उपनन्दक___इन आठ यशस्वी वीरों ने अभिमन्यु के रथ तो चारों ओर से घेर लिया। यह देख अभिमन्यु ने प्रत्येक को पाँच_पाँच बाण मारे। अभिमन्यु के इस पराक्रम को वे नहीं सह सके, अतः उस पर तीक्ष्ण बाणों की वर्षा करने लगे। फिर तो अभिमन्यु ने वह पराक्रम दिखाया, जिससे आपके सैनिक काँप उठे। मानो संग्राम में वज्रपाणि इन्द्र असुरों को भयभीत कर रहे हों। इसके बाद उसने विकर्ण पर चौदह बाणों का प्रहार करके उनके रथ से ध्वजा काट गिरायी और सारथि तथा घोड़ों को मार डाला। फिर सा न पर कई तीखे बाण विकर्ण को लक्ष्य करके छोड़े और वे उसके शरीर को छोड़कर पृथ्वी पर जा गिरे। विकर्ण तो घायल देखकर उसके दूसरे_दूसरे भाई अभिमन्यु आदि महारथियों पर टूट पड़े। दुर्मुख ने सात बाण मारकर श्रुतकर्मा को बींध डाला, एक बाण से उसकी ध्वजा काट दी, फिर सात से सारथि और छः से घोड़ों को मार गिराया। इससे श्रुतकर्मा को बड़ा क्रोध हुआ और बिना घोड़े के रथ पर ही खड़े होकर उसने दुर्मुख के ऊपर प्रज्जवलित उल्का के समान शक्ति छोड़ी। वह दुर्मुख का कवच भेदकर  शरीर को छेदती हुई पृथ्वी में समा गयी। इधर श्रुतकर्मा को रथहीन देखकर महारथी सुतसोम ने उसे अपने रथ पर बिठा लिया। राजन् ! इसके बाद आपके यशस्वी पुत्र जयत्सेन को मार डालने की इच्छा से श्रुतकीर्ति उसके सामने आया। जयत्सेन ने तनिक मुस्कराकर श्रुतकीर्ति के धनुष को काट दिया। अपने भाई का धनुष कटा देखकर वह बारम्बार सिंहनाद करता हुआ वहाँ पहुँचा। उसने अपने सुदृढ़ धनुष को तानकर दस बाणों से जयत्सेन को घायल किया। जयत्सेन के पास उसका भाई दुष्कर्ण भी मौजूद था, उसने नकुलपुत्र शतानीक के धनुष को काट दिया। शतानीक ने दूसरा धनुष लेकर उस पर बाणों की वर्षा की और उन्हें दुष्कर्ण को लक्ष्य करके छोड़ दिया। इसके बाद एक बाण से उसके धनुष को काटकर, दो से सारथि और बारह से घोड़ों को मार डाला। साथ ही उसे भी सात बाणों से घायल किया। इसके पश्चात् एक भल्ल नामक बाण से दुष्कर्ण की छाती में प्रहार किया, उसकी चोट खाकर वह बिजली के आघात से टूटे हुए वृक्ष की भाँति पृथ्वी पर गिर पड़ा। दुष्कर्ण को व्यथित देखकर पाँच महारथियों ने शतानीक को चारों ओर से घेर लिया और उसे बाणों के समूह से आच्छादित करने लगे। यह देख पाँचों केकयकुमार क्रोध में भरे हुए शतानीक की सहायता के लिये दौड़े। उन्हें आक्रमण करते देख दुर्मुख, दुर्जय, दुर्मर्षण शत्रुंजय और शत्रुओं आदि आपके महारथी पुत्र उनके मुकाबले में आ डटे। एक_दूसरे को अपना दुश्मन माननेवाले इन राजाओंं ने सूर्यास्त के बाद दो घड़ी तक अपना भयंकर संग्राम जारी रखा हजारों रथियों और घुड़सवारों की लाशें बिछ गयीं। तब शान्तनुनन्दन भीष्मजी ने भी महात्मा पाण्डवों और पांचालों की सेना को यमलोक पठाने लगे। इस प्रकार पाण्डवसेना का संहार करके भीष्मजी ने अपने योद्धाओं को पीछे सजाया और स्वयं अपने शिविर में चले गये। इधर धर्मराज युधिष्ठिर भी भीमसेन और धृष्टधुम्न को देखकर बड़े प्रसन्न हुए और उन दोनों का मस्तक सूँघने लगे।

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