Wednesday 31 January 2018

इरावान् की मृत्यु पर अर्जुन का शोक तथा भीमसेन द्वारा कुछ धृतराष्ट्रपुत्रों की वध

संजय ने कहा___राजन् ! अपने पुत्र इरावान् के मारे जाने का समाचार पाकर अर्जुन को बड़ा खेद हुआ और वे ठंडी_ठंडी साँसें भरने लगे। तब उन्होंने  श्रीकृष्ण से कहा, ‘महामति विदुरजी को तो यह कौरव और पाण्डवों के भीषण संहार की बात पहले ही मालूम हो गयी थी। इसीसे उन्होंने राजा धृतराष्ट्र को रोका भी था। मधुसूदन ! इस युद्ध में कौरवों के हाथ से हमारे और भी बहुत से वीर मारे जा चुके हैं तथा हमने भी कौरवों के कई वीरों को नष्ट कर दिया है। यह सब कुकर्म हम  धन के लिये ही तो कर रहे हैं। धिक्कार है ऐसे धन को, जिसके लिये इस प्रकार बन्धु_बान्धवों का विनाश किया जा रहा है ! भला, यहाँ एकत्रित हुए अपने भाइयों को मारकर हमें मिलेगा भी क्या ? हाय ! आज दुर्योधन के अपराध तथा शकुनि और कर्ण के कुमन्त्र  ले ही यह क्षत्रियों का विध्वंस हो रहा है। मधुसूदन ! मुझे तो अपने संबंधियों के साथ युद्ध करना अच्छा नहीं लगता, परंतु ये क्षत्रियलोग मुझे युद्ध में असमर्थ समझेंगे। इसलिये शीघ्र ही अपने घोड़े कौरवों की सेना की ओर बढ़ाइये, अब विलम्ब करने का अवसर नहीं है।‘ अर्जुन के ऐसा कहते ही श्रीकृष्ण ने वे हवा से बात करनेवाले घोड़े आगे बढाये। यह देखकर आपकी सेना में बड़ा कोलाहल होने लगा। तुरंत ही भीष्म, कृप, भगदत्त और सुशर्मा अर्जुन के सामने आ गये। कृतवर्मा और बाह्लीक ने सात्यकि का सामना किया तथा अम्बष्ठ अभिमन्यु के आकर डट गया। इनके सिवा अन्य महारथी दूसरे योद्धाओं से भिड़ गये। बस, अब अत्यन्त भीषण युद्ध छिड़ गया। भीमसेन ने युद्धक्षेत्र में आपके पुत्रों को देखा तो क्रोध से उनका अंग,_प्रत्यंग जलने लगा। इधर आपके पुत्रों ने भी बाणों की वर्षा करके उन्हें बिलकुल ढक दिया। इससे उनका रोष और  भड़क उठा और वे सिंह के समान ओठ चबाने लगे। तुरंत ही एक तीखे बाण से उन्होंने व्यूढोरस्क पर वार किया और वह तत्काल ही निष्प्राण होकर गिर गया। एक दूसरे तीर से उन्होंने कुण्डली को धराशायी कर दिया। फिर उन्होंने अनेकों पैने बाण लिये और उन्हें बड़ी तेजी से आपके पुत्रों पर छोड़ने लगे। भीमसेन के दुर्दण्ड धनुष से छूटे हुए वे बाण आपके महारथी पुत्रों को रथ से नीचे गिराने लगे। अनाधृष्टि, कुण्डभेदी, दीर्घलोचन, दीर्घकालीन, सुबाहु और कनकध्वज___ये आपके वीर पुत्र पृथ्वी पर गिरकर ऐसे जान पड़ते थे मानो वसंत ऋृतु में अनेकों पुष्पित आम्रवृक्ष टकर गिर गये हों। आपके शेष पुत्र भीमसेन को काल के समान समझकर रणक्षेत्र से भाग गये।
जिस समय भीमसेन आपके पुत्रों का नाश करने में लगे हुए थे, उसी समय द्रोणाचार्य उन पर सब ओर से बाण बरसा रहे थे। इस अवसर पर भीमसेन ने यह बड़ा ही अद्भुत कार्य किया कि एक ओर द्रोणाचार्यजी के बाणों को रोकते हुए भी उन्होंने आपके उक्त पुत्रों को को मार डाला। इसी समय भीष्म, भगदत्त और कृपाचार्य ने अर्जुन को रोका। किन्तु अतिरथी अर्जुन ने अपने अस्त्रों से उन सबको व्यर्थ करके आपके सेना के कई प्रधान वीरों को मृत्यु के हवाले कर दिया। अर्जुन ने राजा अम्बष्ठ को रथहीन कर दिया। तब उसने रथ से कूदकर अभिमन्यु पर तलवार का वार किया और फुर्ती से कृतवर्मा के रथ पर चढ़ गया। युद्धकुशल अभिमन्यु  ने तलवार को आती देख बड़ी फुर्ती से उसका वार बचा दिया। यह देखकर सारी लेना में ‘वाह ! वाह !’ का शब्द होने लगा। इसी प्रकार धृष्टधुम्नादि दूसरे महारथी भी आपकी सेना से संग्राम कर रहे थे तथा आपके सेनानी पाण्डवों की सेना से भिड़े हुए थे।
उस समय आपस में मार_काट करते हुए दोनों ही पक्षों के वीरों का बड़ा कोलाहल हो रहा था। दोनों ओर से गर्वीले वीर आपस में केश पकड़कर, नख और दाँतों से काटकर और लात और घूँसों से प्रहार करके युद्ध कर रहे थे। अवसर मिलने पर वे थप्पड़ , तलवार और कोहनियों की चोट से अपने प्रतिपक्षियों को यमराज के,घर भेज दहेज देते थे। पिता पुत्र पर और पुत्र पिता पर वार कर रहा था, वीरों के अंग_अंग में उत्तेजना भरी हुई थी। इस प्रकार बड़ा ही घमासान युद्ध हो रहा था। आपस के घोर संघर्ष के कारण दोनों ओर के वीर थक गये। उनमें से अनेकों भाग गये और अनेकों धराशायी हो गये। इतने में ही रात्रि होने लगी। तब कौरव_पाण्डव दोनों ही अपनी_अपनी सेनाओं को लौटाया और यथासमय अपने_अपने डेरों में जाकर विश्राम किया।

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