Tuesday 16 January 2018

सातवें दिन का युद्ध और धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों क ा वध

सातवें दिन का युद्ध और धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध

संजय ने कहा___रात्रि में सुखपूर्वक विश्राम करके सवेरा होने पर कौरव और पाण्डवपक्ष के राजालोग पुनः युद्ध के लिये छावनी से बाहर निकले। जब दोनों सेनाएँ युद्धभूमि की ओर चलीं, उस समय महासागर की गम्भीर गर्जना के समान कोलाहल होने लगा। तदनन्तर, दुर्योधन, चित्रसेन, विविंशति, भीष्म और द्रोणाचार्य ने एकत्र होकर  कौरवसेना का व्यूह निर्माण किया। वह महाव्यूह सागर के समान था, हाथी_घोड़े आदि वाहन ही उसकी तरंगमालाएँ थे। समस्त सेना के आगे_आगे भीष्मजी चले; उनके साथ मालवा, दक्षिण भारत तथा उज्जैन के योद्धा थे। इनके पीछे मगध कलिंग आदि देशों के योद्धाओं के साथ लेकर राजा भगदत्त चले। उनके बाद बृहद्वल था, उसके साथ मेकल तथा कुरुविन्द आदि देशों के योद्धा थे। बृहद्वल के पीछे त्रिगर्तराज चल रहा था। उसके पीछे अश्त्थामा था और उसके बाद शेष सेनाओं के साथ भाइयों सहित दुर्योधन था और सबसे पीछे कृपाचार्यजी चल रहे थे।
महाराज ! आपके योद्धाओं का वह महाव्यूह देखकर धृष्टधुम्न ने शृगांटक नाम के व्यूह की रचना की। वह देखने में अत्यन्त भयानक और शत्रु के व्यूह को नष्ट करनेवाला था। उसके दोनों शृंगों के स्थान पर भीमसेन तथा सात्यकि स्थित हुए। उनके साथ कई हजार रथ, घोड़े और पैदलों की सेना थी। उन दोनों के मध्य में अर्जुन, युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव थे। इनके बाद दूसरे_दूसरे महान् धनुर्धर राजाओं ने अपनी सेनाओं के साथ उस व्यूह को पूर्ण किया। उनके पीछे अभिमन्यु, महारथी विराट, द्रौपदी के पुत्र और घतोत्कच आदि थे। इस प्रकार व्यूह निर्माण कर पाण्डव भी विजय की अभिलाषा से युद्ध करने के लिये डट गये। रणभेरी बज उठी, शंखनाद होने लगा। ललकारने, ताल ठोंकने और जोर_जोर से पुकारने की आवाज आने लगीं। इस तुमुलनाद से सारी दिशाएँ गूँज उठी। कौरव और पाण्डव दोनों दलों के योद्धा परस्पर नाना प्रकार के अस्त्र_शस्त्रों का प्रहार कर एक दूसरे को यमलोक भेजने लगे। इतने में ही अपने रथ की घरघराहट से दिशाओं को गुँजाते और धनुष की टंकार से लोगों को मूर्छित करते हुए भीष्मजी आ पहुँचे। यह देख धृष्टधुम्न आदि महारथी भी भैरवनाद करते हुए उनका सामना करने को दौड़े। फिर तो दोनों सेनाओं में भयंकर संग्राम छिड़ गया। पैदल से पैदल, घोड़ेसे घोड़े, रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड़ गये।जैसे तपते हुए सूर्य की ओर देखना मुश्किल होता है, उसी प्रकार जब उस समर में भीष्मजी क्रुद्ध होकर अपना प्रताप प्रकट करने लगे तो पाण्डवों का उनकी ओर देखना कठिन हो गया। भीष्मजी सोमक , संजय और पांचाल राजाओं को बाणों से रणभूमि में गिराने लगे। वे भी मृत्यु का भय छोड़कर भीष्म पर ही टूट पड़े। भीष्म ने बड़ी शीघ्रता से उन महारथी वीरों की भुजाएँ काट डाली, सिर उड़ा दिये और रथियों को रथ से गिरा दिया। घोडों पर से घुड़सवारों के मस्तक कटकर गिरने लगे। पर्वत के समान ऊँचे_ऊँचे गजराज रणभूमि में मरकर पड़े दिखायी देने लगे। उस समय महाबली भीमसेन के सिवा पाण्डवपक्ष का कोई भी वीर भीष्म के सामने नहीं ठहर सका। केवल भीमसेन ही उन पर लगातार प्रहार कर रहे थे। भीष्म और भीमसेन मे युद्ध होते समय संपूर्ण सेनाओं में भयंकर कोलाहल मच गया। पाण्डव भी प्रसन्नतापूर्वक सिंहनाद करने लगे।
जिस समय यह नरसंहार मचा हुआ था, दुर्योधन अपने भाइयों के साथ भीष्मजी की रक्षा के लिये आ पहुँचा। इतने में महारथी भीम ने भीष्मजी के सारथि को मार डाला। सारथि के गिरते ही घोड़े रथ लेकर भाग गये। भीमसेन रणभूमि में सब ओर विचरने लगे। उन्होंने एक तीक्ष्ण बाण से आपके पुत्र सुनाभ का सिर काट दिया। इस पर उसके भाइयों में से सात, जो वहाँ उपस्थित थे, अमर्ष से भर गये और भीमसेन के ऊपर टूट पड़े। महोदर ने नौ, आदित्यकेतु ने सत्तर, बह्वाशी ने पाँच, कुण्डधार ने नब्बे, विशालाक्ष ने पाँच, पण्डितक ने तीन और अपराजित ने  अनेकों बाण मारकर महाबली भीम को घायल कर दिया। शत्रुओं की यह चोट भीमसेन नहीं सह सके। उन्होंने बायें हाथ से धनुष को दबाकर एक तीखे बाण से अपराजित का सुन्दर मस्तक काट डाला। दूसरे बाण से कुण्डधार को यमलोक भेज दिया। एक बाण पण्डितक के ऊपर छोड़ा, दो उसका प्राण लेकर पृथ्वी में समा गया। फिर तीन बाणों से विशालाक्ष का मस्तक काट गिराया। एक बाण महोदर की छाती में मारा। पृथ्वी फट गयी और वह प्राणशून्य होकर जमीन पर गिर पड़ा। इसके बाद एक बाण से आदित्यकेतु की ध्वजा काटकर दूसरे से उसका सिर भी उड़ा दिया। फिर क्रोध में भरे हुए भीम ने बह्वाशी को भी यमलोक का अतिथि बनाया। तदनन्तर आपके अन्य पुत्र रणभूमि से भाग चले। उनके मन में यह भय समा गया कि भीमसेन ने जो सभा में कौरवों को मारने की प्रतिज्ञा का थी, उसे आज ही पूर्ण कर डालेगा। भाइयों के मरने से दुर्योधन को बड़ा क्लेश हुआ। उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि ‘ सब लोग मिलकर भीम को मार डालो।‘ इस प्रकार अपने बन्धुओं का मृत्यु देखकर आपके पुत्रों को विदुरजी की कही बात याद आ गयी। वे,मन_ही_मन सोचने लगे___'विदुरजी बड़े बुद्धिमान और दिव्यदर्शी हैं; उन्होंने हमारे हित की दृष्टि से जो कुछ कहा था, वह इस समय सत्य हो रहा है।‘इसके बाद दुर्योधन भीष्मपितामह के पास आया और बड़े दुःख के साथ फूट_फूटकर रोने लगा। बोला___'मेरे भाई बड़ी तत्परता के साथ लड़ रहे थे, उन्हें भीमसेन ने मार डाला तथा दूसरे योद्धाओं का भी वह संहार कर रहा है। आप तो मध्यस्थ बने बैठे हैं और हमलोगों की बार_बार उपेक्षा करते जा रहो हैं। दोखिये, मेरा प्रारब्ध कितना खोटा है ! सचमुच मैं बड़े बुरे रास्ते पर आ गया।‘ यद्यपि दुर्योधन की बातें कठोर थीं, तो भी उन्हें सुनकर भीष्मजी के आँखों में आँसू भर आये। वे कहने लगे___”बेटा ! मैंने, आचार्य द्रोण ने, विदुर ने तथा तुम्हारी माता यशस्विनी गान्धारी ने यह परिणाम सुझाया था; किन्तु उस समय तुम नहीं समझे। मैंने यह भी कहा था कि ‘मुझे और आचार्य द्रोण को युद्ध में न लगाना,’ पर तुमने ध्यान नहीं दिया। अब मैं तुमसे यह सच्ची बात बता रहा हूँ। धृतराष्ट्र के पुत्रों में से जिस_जिस को भीमसेन अपने सम्मुख देखेगा, अवश्य मार डालेगा। इस संग्राम का चरमफल स्वर्ग की प्राप्ति ही मानकर स्थिर भाव से युद्ध करो। पाण्डवों को तो इन्द्र आदि देवता और असुर भी नहीं जीत सकते।“धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! अकेले भीमसेन ने मेरे बहुत से पुत्रों को मार डाला___यह देखकर भीष्म, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य ने क्या किया ? तात ! मैंने, भीष्म ने तथा विदुर ने भी दुर्योधन को बहुत मना किया; गांधारी ने भी बहुत समझाया; मगर उस मूर्ख ने मोहवश एक न माना। उसी का फल आज भोगना पड़ रहा है। संजय ने कहा___महाराज ! आपने भी उस समय विदुरजी की बात नहीं, मानी थी। उन्होंने बारम्बार कहा___' अपने पुत्रों को जूआ खेलने से रोकिये, पाण्डवों से द्रोह न कीजिये।‘ किन्तु आप कुछ भी सुनना नहीं चाहते थे। जैसे मरनेवाले मनुष्य को दवा लेना बुरा लगता है, वैसे ही आपको वे बातें अच्छी नहीं लगीं। यही कारण है कि आज कौरवों का विनाश हो रहा है। अच्छा, अब सावधान होकर युद्ध का समाचार सुनिये। उस दिन दोपहर के समय भयंकर संग्राम छिड़ा। बड़ा भारी जनसंहार हुआ। धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा से उनकी सारी सेना क्रोध में भरकर भीष्म के ऊपर चढ़ आयी। धृष्टधुम्न, शिखण्डी, सात्यकि, समस्त तोमर योद्धाओं के साथ राजा द्रुपद और विराट, केकयराजकुमार, धृष्टकेतू और कुन्तिभोज ने एक साथ भीष्म पर ही चढ़ाई कर दिया। अर्जुन, द्रौपदी के पाँच पुत्र तथा चेकितान___ये दुर्योधन के भेजे हुए राजाओं की सामना करने लगे तथा अभिमन्यु, घतोत्कच और भीमसेन ने कौरवों पर धावा किया। इस प्रकार तीन भागों में विभक्त होकर पाण्डवलोग कौरवसेना का संहार करने लगे। इसी प्रकार कौरवों ने भी अपने शत्रुओं का विनाश आरम्भ कर दिया। द्रोणाचार्य ने क्रुद्ध होकर सोमक और संजयों पर आक्रमण किया और उन्हें यमलोक भेजने लगे। उस समय संजयों में हाहाकार मच गया। दूसरी ओर महाबली भीमसेन ने कौरवों का संहार आरम्भ किया। दोनों ओर के सैनिक एक_दूसरे को मारने और मरने लगे। खून की नदी बह चली। वह घोर संग्राम यमलोक की वृद्धि कर रहा था। भीमसेन हाथीसवारों की सेना में पहुँचकर उन्हें मृत्यु की भेंट कर रहे थे। नकुल और सहदेव आपके घुड़सवारों पर टूट पड़े थे। उनके मारे हुए सैकड़ों_हजारों घोड़ों की लाशों से रणभूमि पट गयी। अर्जुन ने भी बहुत से राजाओं को मार गिराया था, उनके कारण वहाँ की भूमि बड़ी भयंकर दूर पड़ती थी। जिस समय भीष्म, द्रोण, कृप, अश्त्थामा और कृतवर्मा आदि क्रोध में भरकर युद्ध करने लगते थे तो पाण्डवों की सेना का संहार होने लगता था और पाण्डवों के कुपित होने पर आपके पक्षवाले वीरों का विनाश आरम्भ हो जाता था। इस प्रकार दोनों सेनाओं का संहार जारी था।

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