Wednesday 17 January 2018

घतोत्कच का युद्ध


धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! इरावान् को मरा हुआ देखकर महारथी पाण्डवों ने उस युद्ध में क्या किया ?
संजय ने कहा___राजन् ! इरावान् मारा गया, यह देख भीमसेन के पुत्र घतोत्कच ने बड़ी विकट गर्जना की। उसकी आवाज से समुद्र, पर्वत और वनों के साथ सारी पृथ्वी डगमगाने लगी। आकाश और दिशाएँ गूँज उठीं। उस भयंकर नाद को सुनकर आपके सैनिकों के पैरों में काठ मार गया, वे थर_थर काँपने लगे और उनके अंगों से पसीना छूटने लगा। सभी की दशा अत्यन्त दयनीय हो गयी थी। घतोत्कच क्रोध के मारे प्रलयकालीन यमराज के समान हो उठा। उसकी आकृति बड़ी भयंकर हो गयी। उसके हाथ में जलता हुआ त्रिशूल था तथा साथ में तरह_तरह के हथियारों से लैस राक्षसों की सेना चल रही थी। दुर्योधन ने देखा भयंकर राक्षस आ रहा है और मेरी सेना उसके डर से पीठ दिखाकर भाग रही है तो उसे बड़ा क्रोध हुआ। बस, हाथ में एक विशाल धनुष ले  बारम्बार सिंहनाद करते हुए उसने घतोत्कच पर धावा किया। उसके पीछे दस हजार हाथियों की सेना लेकर बंगाल का राजा सहायता के लिये चला। आपके पुत्र रो हाथियों की सेना के साथ आते देख घतोत्कच भी बहुत कुपित हुआ। फिर तो राक्षसों की और दुर्योधन की सेनाओं में रोमांचकारी युद्ध होने लगा। राक्षस बाण, शक्ति और ऋष्टि आदि से योद्धाओं का संहार करने लगे। तब दुर्योधन ने अपने प्राणों का भय छोड़कर राक्षसों पर टूट पड़ा और उनके ऊपर तीक्ष्ण बाणों की वर्षा करने लगा। उसके हाथ से प्रधान_प्रधान राक्षस मारे जाने लगे। उसने चार बाणों से महावेग, महारौद्र, विद्युजिह्न और प्रमाथी___इन चार राक्षसों को मार डाला। तत्पश्चात् वह पुनः राक्षससेना पर बाण बरसाने लगा। आपके पुत्र का यह पराक्रम देखकर घतोत्कच क्रोध से जल उठा और बड़े वेग से दुर्योधन के पास पहुँचकर क्रोध से लाल_लाल आँखें किये कहने लगा___’ अरे नृशंस ! जिन्हें तुमने दीर्घकाल तक वनों में भटकाया है, उन माता_पिता के ऋण से आज तुझे मारकर उऋण होऊँगा।‘ ऐसा कहकर घतोत्कच ने दाँतों से ओठ दबाकर अपने विशाल धनुष से बाणों की वर्षा करके दुर्योधन को ढक दिया। तब दुर्योधन ने भी पच्चीस बाण मारकर उस राक्षस को घायल किया। राक्षस ने पर्वतों को भी विदीर्ण करनेवाली एक महाशक्ति लेकर आपके पुत्र को मार डालने का विचार किया। यह देख बंगाल के राजा ने बड़ी उतावली के साथ अपना हाथी उसके आगे बढ़ा दिया। दुर्योधन का रथ हाथी के ओट में हो गया और प्रहार का मार्ग रुक गया।इससे अत्यन्त कुपित होकर घतोत्कच ने हाथी पर ही शक्ति का प्रहार किया। उसके लगते ही हाथी भूमि पर गिरा और मर गया तथा बंगाल का राजा उस पर से कूदकर पृथ्वी पर आ गया। हाथी मरा और सेना भाग चली____यह देख दुर्योधन को बड़ा कष्ट हुआ; किन्तु क्षत्रिय धर्म का खयाल करके वह पीछे नहीं हटा, अपनी जगह पर पर्वत के समान स्थिरभाव से खड़ा रहा। फिर उसने राक्षस पर कालाग्नि के समान तीक्ष्ण बाण का प्रहार किया। किन्तु वह उसे बच गया और पुनः बड़ी भयंकर गर्जना करके संपूर्ण सेना को डराने लगा। उसका भैरवनाद सुनकर भीष्मपितामह ने अन्य महारथियों को दुर्योधन की सहायता के लिये भेजा। द्रोण, सोमदत्त, बाह्लीक, जयद्रथ, कृपाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य, उज्जैन के राजकुमार, बृहद्वल, अश्त्थामा, विकर्ण, चित्रसेन, विविंशति और इनके पीछे चलनेवाले कई हजार रथी___ये सब दुर्योधन की रक्षा के लिये आ पहुँचे। घतोत्कच भी मैनाक पर्वत की भाँति निर्भीक खड़ा रहा, उसके भाई_बन्धु उसकी रक्षा कर रहे थे। फिर दोनों दलों में रोमांचकारी संग्राम शुरु हुआ।घतोत्कच ने अर्धचन्द्राकार बाण छोड़कर द्रोणाचार्य का धनुष काट दिया, एक बाण से सोमदत्त की ध्वजा खण्डित कर दी और तीन बाणों से बाह्लीक की छाती छेद डाली। फिर कृपाचार्य को एक और चित्रसेन को तीन बाणों से घायल किया। एक बाण से विकर्ण के कंधे की हँसली पर मारा, विकर्ण खून से लथपथ होकर रथ के पिछले भाग में जा बैठा। फिर भूरिश्रवा को पंद्रह बाण मारे;  वे बाण उसका कवच भेदन कर जमीन में घुस गये। इसके बाद उसने अश्त्थामा और विविंशति के सारथियों पर प्रहार किया। वे दोनों अपने_अपने घोड़ों की बागडोर छोड़कर रथ की बैठक में जा गिरे। फिर जयद्रथ की ध्वजा और धनुष काट डाले। अवन्तिराज के चारों घोड़े मार दिये। एक तीखे बाणसे राजकुमार बृहद्वल को घायल किया और कई बाण मारकर राजा शल्य को भी बींध डाला।
इस प्रकार कौरवपक्ष के सभी वीरों को विमुख करके वह दुर्योधन की ओर बढ़ा। यह देख कौरववीर भी उसको मारने की इच्छा से आगे बढ़े। घतोत्कच पर चारों ओर से बाणों की वर्षा होने लगी। जब वह बहुत ही घायल और पीड़ित हो गया तो गरुड़ की भाँति आकाश में उड़ गया तथा अपनी भैरवगर्जना से अंतरिक्ष और दिशाओं को गुँजाने लगा। उसकी आवाज सुनकर युधिष्ठिर ने भीमसेन से कहा, ‘घतोत्कच के प्राण संकट में है, जाकर उसकी रक्षा करो।‘ भाई की आज्ञा सुनकर भीमसेन अपने सिंहनाद से राजाओं को भयभीत करते हुए बड़े वेग से चले। उनके पीछे सत्यधृति, श्रेणिमान्, वसुधान, काशीराज का पुत्र अभिभू, अभिमन्यु, द्रौपदी के पाँच पुत्र, क्षत्रदेव, क्षत्रधर्मा तथा अपनी सेनाओं सहित अनूपदेश का राजा नील आदि महारथी भी चल दिये। वे सभी वीर वहाँ पहुँचकर घतोत्कच की रक्षा करने लगे। इनके आने का कोलाहल सुनकर भीमसेन के भय से कौरव सैनिकों का मुख उदास हो गया। वे घतोत्कच को छोड़कर पीछे लौट पड़े। फिर दोनों ओर की सेनाओं में घोर युद्ध होने लगा और कुछ ही देर में कौरवों की बहुत बड़ी सेना प्रायः भाग खड़ी हुई। यह देख दुर्योधन बहुत कुपित हुआ और भीमसेन के सम्मुख जाकर एक अर्धचन्द्राकार बाण से उनका धनुष काट दिया। फिर बड़ी फुर्ती के साथ उनकी छाती में बाण मारा। उससे भीमसेन को बड़ी पीड़ा हुई और अचेत होने के कारण उन्हें अपनी ध्वजा का सहारा लेना पड़ा। उनकी यह दशा देख घतोत्कच क्रोध से जल उठा और अभिमन्यु आदि महारथियों के साथ वह दुर्योधन पर टूट पड़ा। तब द्रोणाचार्य ने कौरव_पक्ष के महारथियों से कहा___’वीरों ! ‘राजा दुर्योधन संकट  के समुद्र में डूब रहा है, शीघ्र जाकर उसकी रक्षा करो।‘आचार्य की बात सुनकर कृपाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य, अश्त्थामा, विविंशति, चित्रसेन, विकर्ण, जयद्रथ, बृहद्वल तथा अवन्ति के राजकुमार____ये सभी दुर्योधन को घेरकर खड़े हो गये। द्रोणाचार्य ने अपना महान् धनुष चढ़ाकर भीमसेन को छब्बीस बाण मारे, फिर बाणों की झड़ी लगाकर उन्हें आच्छादित कर दिया। तब भीमसेन ने भी आचार्य की बायीं पसली पर दस बाण मारे। इनकी करारी चोट पड़ने से वयोवृद्ध आचार्य सहसा बेहोश होकर रथ के पिछले भाग में लुढ़क गये। यह देख दुर्योधन और अश्त्थामा दोनों क्रोध में भरकर भीम की ओर दौड़े। उन्हें आते देख भीमसेन भी हाथ में कालदण्ड के समान गदा लेकर रथ से कूद पड़े और उन दोनों का सामना करने को खड़े हो गये।तदनन्तर, कौरव महारथी भीम को मार डालने की इच्छा से उनकी छाती पर नाना प्रकार के अस्त्र_ शस्त्रों की वर्षा करने लगे। तब अभिमन्यु आदि पाण्डव महारथी भी भीम की रक्षा के लिये जीवन का मोह छोड़कर दौड़े। अनूपदेश का राजा नील भीमसेन का प्रिय मित्र था, उसने अश्त्थामा पर एक बाण छोड़ा। वह बाण उसके शरीर में धँस गया, उससे खून बहने लगा और उसे बड़ी पीड़ा हुई। तब अश्त्थामा क्रुद्ध होकर नील के चारों घोड़ों को मार डाला, ध्वजा काटकर गिरा दी और एक भल्ल नामक बाण से उसकी छाती छेद डाली। उसकी वेदना से मूर्छित होकर नील अपने रथ को पिछले भाग में जा बैठा। उसकी यह दशा देखकर घतोत्कच ने अपने भाई_बन्धुओं के साथ अश्त्थामा पर धावा किया। उसे आते देख अश्त्थामा भी शीघ्रता से आगे बढ़ा। बहुत से राक्षस घतोत्कच के आगे_आगे आ रहे थे, अश्त्थामा ने उन सबको मार डाला। द्रोणकुमार के बाणों से राक्षसों को मरते देख घतोत्कच ने भयंकर माया प्रकट की। उससे अश्त्थामा भी मोहित हो गया। कौरवपक्ष के सभी योद्धा माया के प्रभाव से युद्ध छोड़कर भागने लगे। उन्हें ऐसा दीखता था कि ‘मेरे सिवा सभी सैनिक शस्त्रों से छिन्न_भिन्न हो खून में डूबे हुए पृथ्वी पर छटपटा रहे हैं। द्रोणाचार्य, दुर्योधन, शल्य, अश्त्थामा आदि महान् धनुर्धर, प्रधान_प्रधान कौरव तथा अन्य राजालोग भी मारे जा चुके हैं तथा हजारों घोड़े और घुड़सवार धराशायी हो रहे हैं।‘ यह सब देखकर आपकी सेना छावनी की ओर भागने लगी। यद्यपि उस समय हम और भीष्मजी भी पुकार_पुकारकर कह रहे थे, ‘वीरों ! युद्ध करो, भागो मत; यह तो राक्षसी माया है, इस पर विश्वास न करो’ तो भी वे हमलोगों की बात पर विश्वास न कर सके। शत्रु की सेना को भागती देख विजयी पाण्डव घतोत्कच के साथ सिंहनाद करने लगे चारों ओर शंखध्वनि होने लगी। दुन्दुभी बजा। इन सबकी कप मिल ध्वनि से रणभूमि गूँज उठी। इस प्रकार सूर्यास्त होते_होते घतोत्कच ने आपकी सेना को चारों ओर भगा दिया।

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