Sunday 11 March 2018

दसवें दिन का युद्ध प्रारम्भ

धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! शिखण्डी ने किस प्रकार भीष्मजी का सामना किया तथा भीष्मजी ने किस प्रकार पाण्डवों के साथ युद्ध किया ?
संजय ने कहा___जब सूर्योदय हुआ भेरी, मृदंग और नगाड़े बजने लगे, चारों ओर शंखध्वनि होने लगी, उस समय समस्त पाण्डव शिखण्डी को आगे करके युद्ध के लिये निकले। सेना का व्यूह निर्माण करके शिखण्डी सबके आगे स्थित हुआ। भीमसेन और अर्जुन उसके रथ के पहियों की रक्षा करने लगे। उसके पिछले भाग की रक्षा के लिये द्रौपदी के पुत्र और अभिमन्यु खड़े हुए। इनके पीछे सात्यकि और चेकितान थे। इन दोनों के पीछे पांचालदेशीय योद्धाओं के साथ धृष्टधुम्न था। उसके पीछे नकुल_सहदेव सहित राजा युधिष्ठिर खड़े हुए। इनके पीछे अपनी सेना के साथ राजा विराट थे। इसके बाद द्रुपद, केकय_राजकुमार और धृष्टकेतू थे। ये लोग पाण्डवसेना के मध्यभाग की रक्षा करते थे। इस प्रकार सेना की व्यूह_रचना करके पाण्डवों ने अपने जीवन का मोह छोड़कर आपकी सेना पर आक्रमण किया। इसी प्रकार कौरव भी महारथी भीष्म को आगे करके पाण्डवों की ओर बढ़े। पीछे से आपके पुत्र उनकी रक्षा करते थे। इनके पीछे द्रोण और अश्त्थामा थे। इन दोनों के पीछे हाथियों की सेना के साथ राजा भगदत्त चलता था। कृपाचार्य और कृतवर्मा भगदत्त के पीछे चल रहे थे। इनके अनन्तर कम्बोजराज सुदक्षिण, मगधराज जयत्सेन, बृहद्वल तथा सुशर्मा आदि धनुर्धर थे। ये आपकी सेना के मध्यभाग की रक्षा करते थे। भीष्मजी प्रत्येक दिन अपना व्यूह बदलते रहते थे; कभी वे असुरों की और कभी पिशाचों की रीति से व्यूह का निर्माण करते थे। राजन् ! तदनन्तर आपकी और पाण्डवों की सेनाओं में युद्ध छिड़ गया। दोनों पक्ष के योद्धा एक_दूसरे पर  वार करने लगे। अर्जुन आदि पाण्डव शिखण्डी को आगे करके बाणों की वर्षा करते हुए भीष्म के सामने आ डटे। महाराज ! उस समय आपके सैनिक भीमसेन के बाणों से आहत हो रक्त की धारा में नहाकर परलोक की यात्रा करने लगे। नकुल, सहदेव और महारथी सात्यकि भी अपने पराक्रम से आपकी सेना को कष्ट पहुँचाने लगे। आपके योद्धा बराबर मार पड़ने के कारण पाण्डवों की विशाल सेना रोक न सके। इस प्रकार जब पाण्डव महारथी आपकी सेना को काल का ग्रास बनाने लगे,  तो वह सब दिशाओं की ओर भाग चली। उसे कोई रक्षा करनेवाला नहीं मिला।
शत्रुओं के द्वारा अपनी सेना का यह संहार भीष्मजी से नहीं सहा गया। वे प्राणों का लोभ छोड़कर पाण्डव, पांचाल और संजयों पर बाणवर्षा करने लगे। उन्होंने पाण्डवों के पाँच महारथियों को आगे बढ़ने से रोक दिया तथा हजारों हाथी तथा घोड़ों को मार डाला। युद्ध का दसवाँ दिन चल रहा था। जैसे दावानल संपूर्ण वन को जला डालता है, उसी प्रकार भीष्मजी शिखण्डी की सेना को भस्मसात् करने लगे। तब शिखण्डी ने भीष्म की छाती में तीन बाण मारे। भीष्मजी को उन बाणों से अधिक चोट पहुँची, तो भी शिखण्डी के साथ युद्ध करने की इच्छा न होने के कारण वो उससे हँसते हुए बोले___'तेरी जैसा इच्छा हो, मुझपर बाणों का प्रहार कर या न कर; परन्तु मैं तुझसे किसी तरह युद्ध नहीं करूँगा। विधाता ने तुझे जिस स्त्री_शरीर में पैदा किया है, आज भी वही तेरा शरीर है; इसलिये मैं तुझे शिखण्डिनी ही मानता हूँ।‘ उनकी यह बात सुनकर शिखण्डी क्रोध से मूर्छित होकर बोला___’महाबाहो ! मैं तुम्हारा प्रभाव जानता हूँ, तो भी पाण्डवों का प्रिय करने के लिये आज तुमसे युद्ध करूँगा। मैं सत्य की शपथ खाकर कहता हूँ, निश्चय ही तुम्हारा वध करूँगा। मेरी यह बात सुनकर तुम जो उचित समझो, करो। तुम्हारी जैसी इच्छा हो, बाणों का प्रहार करो या न करो; पर मैं तुम्हें जीवित नहीं छोड़ सकता। जीवन की अन्तिम घड़ी में एक बार इस संसार को अच्छी तरह से देख लो।‘
ऐसा कहकर शिखण्डी ने भीष्मजी को पाँच बाणों से बींध डाला। अर्जुन ने भी शिखण्डी की बातें सुनी और यही अवसर है, ऐसा सोचकर उन्होंने उसे उत्तेजित किया। वे बोले, ‘वीरवर ! तुम भीष्मजी के साथ युद्ध करो। मैं भी शत्रुओं को दबाता हुआ बराबर तुम्हारे साथ रहकर लड़ूँगा। यदि भीष्म का वध किये बिना ही लौटोगे, तो लोग तुम्हारी और मेरी भी हँसी करेंगे। अतः पूरा यत्न करके पितामह को मार डाले, जिससे हमलोगों की हँसी न होने पावे।‘ धृतराष्ट्र ने पूछा___शिखण्डी ने भीष्मजी पर कैसे धावा किया ? पाण्डवसेना के कौन_कौन महारथी उसकी रक्षा करते थे ? तथा दसवें दिन के युद्ध में भीष्मजी ने और पाण्डवों और संजयों के साथ किस प्रकार युद्ध किया था ? संजय ने कहा___राजन् ! भीष्मजी प्रतिदिन की भाँति उस दिन भी युद्ध में शत्रुओं का संहार कर रहे थे। अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उन्होंने पाण्डवों की सेना का विध्वंस आरम्भ किया। उस समय पाण्डव और पांचाल मिलकर भी उनका वेग नहीं रोक सके। सैकड़ों और हजारों बाणों की वर्षा करके उन्होंने शत्रु_सेना को तहस_नहस कर डाला। इतने में वहाँ अर्जुन आ पहुँचे, उन्हें देखते ही कौरवसेना के रथी भय से थर्रा उठे। अर्जुन जोर_जोर से धनुष टंकारते हुए बारम्बार सिंहनाद कर रहे थे और बाणों की वर्षा करते हुए रणभूमि में काल के समान विचरते थे। जैसे सिंह की आवाज सुनकर हिरण भागते हैं, उसी प्रकार अर्जुन की सिंहगर्जना से भयभीत हो आपकी सेना के योद्धा भाग चले। यह देख दुर्योधन वे भय से व्याकुल होकर भीष्मजी से कहा___’दादाजी ! यह पाण्डुनन्दन अर्जुन मेरा सेना को भष्म कर रहा है। देखिये न, सभी योद्धा इधर_उधर भाग रहे हैं। भीम के कारण भी सेना में भगदड़ मची हुई है। सात्यकि, चेकितान, नकुल, सहदेव, अभिमन्यु, धृष्टधुम्न और घतोत्कच___ये सभी मेरे सैनिकों को खदेड़ रहे हैं। अब आपके सिवा इन्हें सहारा देनेवाला कोई नहीं है। आप ही इन पीड़ितों की प्राणरक्षा कीजिये।‘ आपके पुत्र के ऐसा कहने पर भीष्मजी ने थोड़ी देर तक सोचकर मन_ही_मन कुछ निश्चय किया। इसके बाद आश्वासन देते हुए कहा___”दुर्योधन ! मैंने तुमसे प्रतिज्ञा की है कि ‘दस हजार महाबली क्षत्रियों का संहार करके ही रण से लौटूँगा। यह मेरा प्रतिदिन का काम होगा।‘ इसको अबतक निभाता आया हूँ और आज भी वह महान् कार्य पूर्ण करूँगा।“ यह कहकर भीष्मजी पाण्डवसेना के पास पहुँचे और अपने बाणों से क्षत्रियों को गिराने लगे उस दिन पाण्डवलोग रोकते ही रह गये, परन्तु भीष्मजी ने अपनी अद्भुत शक्ति का परिचय देते हुए एक लाख योद्धाओं का संहार कर डाला। पांचालों में जो श्रेष्ठ महारथी थे, उन सबका तेज हर लिया। कुल दस हजार हाथी और सवारोंसहित दस हजार घोड़ों तथा पूरे दो लाख पैदल सैनिकों का विनाश करके वे धूमरहित अग्नि के समान देदीप्यमान हो रहे थे। उस दिन भीष्मजी उत्तरायण के सूर्य की भाँति तप रहे थे, पाण्डव उनकी ओर आँख उठाकर देख भी नहीं सके।
तदनन्तर पितामह के उस पराक्रम को देखकर अर्जुन ने शिखण्डी से कहा___’अब तुम भीष्मजी का सामना करो, उनसे तनिक भी डालने की जरूरत नहीं है; मैं साथ हूँ, बाणों से मारकर उन्हें रथ से नीचे गिरा दूँगा।‘ अर्जुन की बात सुनकर शिखण्डी ने भीष्मजी पर धावा किया। साथ ही धृष्टधुम्न और अभिमन्यु ने भी उन पर चढ़ाई की। फिर विराट, द्रुपद, कुन्तिभोज, नकुल, सहदेव, युधिष्ठिर तथा उनकी सेना के समस्त योद्धाओं ने भीष्मजी पर आक्रमण किया। तब आपके सैनिक भी इन महारथियों का मुकाबला करने को आगे बढ़े। जिनकी जैसी शक्ति और उत्साह था, उसके अनुसार उन्होंने अपना प्रतिद्वंद्वी चुन लिया। चित्रसेन चेकितान से जा भिड़ा। धृष्टधुम्न को कृतवर्मा ने रोक लिया। भीमसेन को भूरिश्रवा ने अटकाया। विकर्ण ने नकुल का मुकाबला किया। सहदेव ने कृपाचार्य को रोका। इसी प्रकार घतोत्कच को दुर्मुख ने, सात्यकि को दुर्योधन ने, अभिमन्यु को सुदक्षिण ने, द्रुपद को अश्त्थामा ने, युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य ने तथा शिखण्डी और अर्जुन को दुःशासन मे रोक लिया। इनके अतिरिक्त आपके अन्य योद्धाओं ने भी भीष्म की ओर बढ़नेवाले पाण्डव महारथियों को रोका। इनमें से केवल महारथी धृष्टधुम्न ही अपने विपक्षी को दबाकर आगे बढ़ा और सैनिकों से पुकार_पुकारकर कहने लगा___'वीरों ! क्या देखते हो; ये पाण्डुनन्दन अर्जुन भीष्म पर धावा कर रहे हैं, तुमलोग भी इनके साथ बढ़ो। डरो मत, भीष्म तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इन्द्र भी अर्जुन का मुकाबला नहीं कर सकते, फिर भीष्म की तो बात ही क्या है ?’ सेनापति के ये वचन सुनकर पाण्डवों के महारथी बड़े उल्लास के साथ भीष्म के रथ की ओर बढ़े। यह देख पितामह के जीवन की रक्षा के लिये दुःशासन ने अपने प्राणों का भय छोड़कर अर्जुन पर धावा किया और उन्हें तीन बाणों से घायल करके श्रीकृष्ण के ऊपर बीस बाणों का प्रहार किया। तब अर्जुन ने दुःशासन पर सौ बाण छोड़े, वे उसका कवच भेदकर शरीर का रक्त पीने लगे। इससे दुःशासन को बहुत क्रोध हुआ और उसने अर्जुन के ललाट में तीन बाण मारे। अर्जुन ने उसका धनुष काटकर तीन बाणों से रथ तोड़ दिया और फिर तीखे बाणों से उसे बींध डाला। दुःशासन ने दूसरा धनुष लेकर पच्चीस बाणों से अर्जुन की भुजाओं और छाती पर प्रहार किया। तब अर्जुन क्रोध में भर गये और दुःशासन के ऊपर यमदण्ड के समान भयंकर बाणों का प्रहार करने लगे। उस समय दुःशासन ने,अद्भुत पराक्रम दिखाया। अर्जुन के बाण उसके पास पहुँचने भी नहीं पाते कि वह उन्हें काटकर गिरा देता था। इतना ही नहीं, उसने तीक्ष्ण बाण छोड़कर अर्जुन को भी घायल कर दिया। तब अर्जुन ने तीखे किये हुए अनेकों बाण चलाये, वे दुःशासन के शरीर में धँस गये। इससे उसको बड़ी पीड़ा हुई और वह अर्जुन का सामना छोड़कर भीष्म के रथ के पीछे छिपा गया। दुःशासन अर्जुनरूपी अगाध महासागर में डूब रहा था, भीष्मजी उसके लिये द्वीप के समान आश्रयदाता हुए।

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