Friday 16 March 2018

दसवें दिन के युद्ध का वृतांत

संजय कहते हैं___तदनन्तर, सात्यकि को भीष्मजी की ओर आते देख अलम्बुष राक्षस ने रोका। यह देख सात्यकि ने क्रुद्ध होकर उसे नौ बाण मारकर उसने उन्हें बड़ी पीड़ा पहुँचायी। फिर तो सात्यकि के क्रोध की भी सीमा न रही, उसने उस राक्षस पर बाणसमूहों की वर्षा आरम्भ कर दी। तब राक्षस भी सिंहनाद करता हुआ तीक्ष्ण बाणों से सात्यकि को बींधने लगा। साथ ही राजा भगदत्त ने भी उस पर तीखे बाण बरसाने आरम्भ कर दिये। इस पर सात्यकि ने अलम्बुष को छोड़कर भगदत्त को ही अपने बाणों का निशाना बनाया। भगदत्त ने सात्यकि का धनुष काट दिया, किंतु वह पुनः दूसरा धनुष लेकर उन्हें तीखे बाणों से बींधने लगा। यह देख भगदत्त ने सात्यकि पर एक भयंकर शक्ति की प्रहार किया, किन्तु सात्यकि ने बाण मारकर उस शक्ति के दो टुकड़े कर दिये। इतने में महारथी राजा विराट और द्रुपद कौरव_सैनिकों को पीछे हटाते हुए भीष्मजी के ऊपर चढ़ आये। इधर से अश्त्थामा आगे बढ़कर उन दोनों से युद्ध करने लगा। विराट ने दस और द्रुपद ने तीन बाण मारकर द्रोणकुमार को घायल कर दिया। अश्त्थामा ने भी इन दोनों पर बहुत बाण बरसाये, परन्तु वहाँ इन दोनों बूढ़ों ने अद्भुत पराक्रम दिखाया। अश्त्थामा के भयंकर बाणों को इन्होंने प्रत्येक बार पीछे लौटा दिया। एक ओर सहदेव के साथ कृपाचार्य भिड़े हुए थे। उन्होंने सहदेव को सत्तर बाण मारे। तब सहदेव ने उनका धनुष काट दिया और नौ बाणों से उन्हें बींध डाला। कृपाचार्य ने दूसरा धनुष लेकर सहदेव की छाती में दस बाण मारे। सहदेव ने भी कृपाचार्य की छाती में बाणों का प्रहार किया। इस प्रकार उन दोनों में भयंकर संग्राम हो रहा था। इसके अनन्तर, द्रोणाचार्य महान् धनुष लिये पाण्डवों की सेना में घुसकर उसे चारों ओर भगाने लगे। उन्होंने कुछ अशुभसूचक निमित्त देखकर अपने पुत्र से कहा, ‘बेटा ! आज ही वह दिन है, जबकि अर्जुन भीष्म को मार डालने के लिये अपनी पूरी शक्ति लगा देगा; क्योंकि मेरे बाण उछल रहे हैं, धनुष फड़क उठता है, अस्त्र अपने आप धनुष से संयुक्त हो जाते हैं और मेरे मन में क्रूर कर्म करने का संकल्प हो रहा है। चन्द्रमा और सूर्य के चारों ओर घेरा पड़ने लगा है। ये क्षत्रियों के भयंकर विनाश की सूचना देनेवाला है। इसके सिवा दोनों ही सेनाओं में पांचजन्य शंख की ध्वनि और गाण्डीव धनुष की टंकार सुनायी पड़ती है। इससे यह निश्चय जान पड़ता है कि आज अर्जुन समस्त योद्धाओं को पीछे हटाकर भीष्म तक पहुँच जायगा। भीष्म और अर्जुन के संग्राम का विचार आते ही मेरे रोएँ खड़े हो जाते हैं और हृदय का उत्साह जाता रहता है। देखता हूँ शिखण्डी को आगे करके अर्जुन भीष्म के साथ युद्ध करने को बढ़ता चला आ रहा है। युधिष्ठिर का क्रोध, भीष्म और अर्जुन का संघर्ष तथा मेरा शस्त्र छोड़ने का उद्योग___ये तीनों बातें प्रजा के लिये अमंगल की सूचना देनेवाली हैं। अर्जुन मनस्वी, बलवान्, शूर, अस्त्रविद्या में प्रवीण, शीघ्रता से पराक्रम दिखानेवाला, दूर तक का निशाना हस्तलाघव तथा शुभाशुभ निमित्तों को जाननेवाला है। इन्द्रसहित संपूर्ण देवता भी इसे युद्ध में नहीं जीत सकते। बेटा ! तुम अर्जुन का रास्ता छोड़कर शीघ्र ही भीष्मजी का रक्षा के लिये जाओ। देखते हो न,  इस भयानक संग्राम में कैसा महान् संहार मचा हुआ है। अर्जुन के तीखे बाणों से राजाओं के कवच छिन्न_भिन्न हो रहे हैं। ध्वजा, पताका, तोमर, धनुष और शक्तियों के टुकड़े_टुकड़े किये जा रहे हैं। हमलोग भीष्मजी के आश्रय में रह कर जीविका चलाते हैं; उन पर संकट आया है, अतः तुम विजय और यश की प्राप्ति के लिये जाओ। ब्राह्मणों के प्रति भक्ति, इन्द्रियसंयम, तप और सदाचार आदि सद्गुण केवल युधिष्ठिर में ही दिखायी देते हैं, तभी तो इन्हें अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव जैसे भाई मिले हैं। भगवान् कष्ण ने अपनी सहायता से इन्हें सनाथ किया है। दुर्बुद्धि दुर्योधन पर जो युधिष्ठिर का कोप हुआ है, वही समस्त भारत की प्रजा को दग्ध कर रहा है। देखो, भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में रहनेवाला अर्जुन कौरवों की सेना को चीरता हुआ इधर ही आ रहा है। मैं युधिष्ठिर के सामने जा रहा हूँ, यद्यपि उनके व्यूह के भीतर घुसना समुद्र के अन्दर प्रवेश करने के समान कठिन है; क्योंकि युधिष्ठिर के चारों ओर अतिरथी योद्धा खड़े हैं। सात्यकि, अभिमन्यु, धृष्टधुम्न, भीमसेन और नकुल_सहदेव उनकी रक्षा कर रहे हैं। यह देखो, अभिमन्यु दूसरे अर्जुन के समान सेना के आगे_आगे चल रहा है। तुम अपने उत्तम अस्त्रों को धारण करो और धृष्टधुम्न तथा भीमसेन से युद्ध करने जाओ। अपने प्यारे पुत्र का जीवित रहना कौन नहीं चाहता, तो भी इस समय क्षत्रियधर्म का खयाल करके तुम्हें अपने से अलग करता हूँ। संजय ने कहा___ इस समय भगदत्त, कृपाचार्य, शल्य, कृतवर्मा, विन्द, अनुविन्द, जयद्रथ, चित्रसेन, दुर्मर्षण और विकर्ण___ये दस योद्धा भीमसेन के साथ युद्ध कर रहे थे। भीमसेन पर शल्य ने नौ, कृतवर्मा ने तीन, कृपाचार्य ने नौ तथा चित्रसेन, विकर्ण और भगदत्त ने दस_दस बाणों का प्रहार किया। साथ ही जयद्रथ ने तीन, विन्द_अनुविन्द ने पाँच_पाँच तथा दुर्मर्षण ने बीस बाणों से उन्हें घायल किया। भीमसेन ने भी इन सब महारथियों को अलग_अलग अपने बाणों से बींध डाला। उन्होंने शल्य को सात तथा कृतवर्मा को आठ बाणों से बींधकर कृपाचार्य के धनुष को बीच से काट दिया; इसके बाद उन्हें सात बाणों से घायल किया। फिर विन्द और अनुविन्द को तीन_तीन, दुर्मर्षण को बीस, चित्रसेन को पाँच, विकर्ण को दस तथा जयद्रथ को पाँच बाण मारे। कृपाचार्य ने दूसरा धनुष लेकर भीमसेन पर दस बाणों से चोट की। तब भीमसेन ने क्रोध में भरकर उन पर बहुत से बाणों की वर्षा कर डाली। फिर जयद्रथ के सारथि और घोड़ों को तीन बाणों से यमलोक भेज दिया। इसके बाद दो बाणों से उसका धनुष काट दिया। तब वह अपने रथ से कूदकर चित्रसेन के रथ पर जा बैठा। तदनन्तर, महारथी भगदत्त ने भीमसेन पर एक शक्ति का प्रहार किया, जयद्रथ ने पट्टिश और तोमर चलाये, कृपाचार्य ने शतन्घी का प्रयोग किया तथा शल्य ने एक बाण मारा। इसके सिवा दूसरे धनुर्धर वीरों ने भी भीमसेन को पाँच_पाँच बाण मारे। तब भीम ने एक तेज बाण से तोमर के टुकड़े_टुकड़े कर दिये, तीन बाणों से पट्टिश को तिल के डंठल के समान काट डाला, नौ बाण मारकर शतन्घी तोड़ डाली तथा शल्य के बाण और भगदत्त की शक्ति को भी काट दिया। इतने में ही वहाँ अर्जुन भी आ पहुँचे। भीम और अर्जुन दोनों को वहाँ एकत्रित देख आपके योद्धाओं को विजय की आशा नहीं रही। तब दुर्योधन मे सुशर्मा से कहा, ‘तुम अपनी सेना के साथ शीघ्र जाकर भीमसेन और अर्जुन का वध करो।‘ यह सुन सुशर्मा ने हजारों रथियों को साथ ले उन पाण्डवों को चारों ओर से घेर लिया। यह देख अर्जुन ने पहले राजा शल्य को अपने बाणों से ढक दिया। इसके बाद सुशर्मा और कृपाचार्य को तीन_तीन बाणों से बींध दिया। फिर भगदत्त, जयद्रथ, चित्रसेन, विकर्ण, कृतवर्मा, दुर्मर्षण, विन्द और अनुविन्द___ इन महारथियों में से प्रत्येक को तीन_तीन बाण मारे। जयद्रथ चित्रसेन के रथ पर स्थित था, उसने अपने बाणों से अर्जुन और भीम दोनों को घायल किया। शल्य और कृपाचार्य ने भी अर्जुन पर मर्मवेधी बाणों का प्रहार किया तथा चित्रसेन आदि कौरवों ने भी दोनों पाण्डवों को पाँच_पाँच बाण मारे। इस प्रकार आहत होने पर भी वे दोनों पाण्डव त्रिगर्तों की सेना का संहार करने लगे। तब सुशर्मा ने नौ बाणों से अर्जुन को पीड़ित कर बड़े जोर से सिंहनाद किया। उसकी सेना के दूसरे रथी भी इन दोनों भाइयों को बींधने लगे। उस समय भीम और अर्जुन दोनों ने सैकड़ों वीरों के धनुष और मस्तक काटकर उन्हें रणभूमि में सुला दिया। अर्जुन अपने बाणों से योद्धाओं की गति रोककर मार डालते थे। उनका यह पराक्रम अद्भुत था। यद्यपि कृपाचार्य, कृतवर्मा, जयद्रथ तथा विन्द_अनुविन्द आदि वीर भीम और अर्जुन का डटकर मुकाबला कर रहे थे, तो भी इन दोनों ने कौरवों की महासेना में भगदड़ मचा दी। तब कौरवसेना के राजाओं ने अर्जुन पर असंख्य बाणों की वर्षा आरम्भ की, किन्तु अर्जुन ने उन सबको अपने बाणोंसेे रोककर मृत्यु के मुख में पहुँचा दिया।

No comments:

Post a Comment