Monday 25 June 2018

द्रोणाचार्य द्वारा पाण्डवों का पराभव तथा वृक सत्यजित्, शतानीक,वसुदान और क्षत्रदेव आदि का वध

संजय ने कहा___राजन् !  इस प्रकार संशप्तकों के साथ लड़ने के लिये अर्जुन के चले जाने पर आचार्य द्रोण अपनी सेना की व्यूह_रचना कर युधिष्ठिर को पकड़ने के विचार से युद्धक्षेत्र की ओर चले। महाराज युधिष्ठिर ने आचार्य की सेना का गरुड़व्यूह देखकर उसके मुकाबले में मण्डलार्धव्यूह बनाया। कौरवों के गरुड़व्यूह के मुखस्थान पर महारथी द्रोण थे। शिरःस्थान में भाइयों के सहित राजा दुर्योधन था, नेत्र_स्थान में कृतवर्मा और कृपाचार्य थे। ग्रीवास्थान में भूतशर्मा, क्षेमशर्मा, करकाक्ष तथा कलिंग, सिंहल, पूर्वदेश, शूर, आभीर, दशेरक, शक, यवन, काम्बोज, हंसपथ, शूरसेन, दरद, मद्र और केकय आदि देशों के वीर हथियारों से लैस होकर हाथी, घोड़े, रथ और पदातिसेना को रूप में खड़े थे। दायीं ओर अक्षौहिणी सेना के सहित भूरिश्रवा, शल्य, सोमदत्त और बाह्लीक थे। बायीं ओर अवन्तिनरेश विन्द और अनुविन्द एवं कम्बोजनरेश सुदक्षिण थे। इनके पीछे द्रोणपुत्र अश्त्थामा डटे हुए थे। पृष्ठस्थान में कलिंग, अम्बष्ठ, मगध, पौण्ड्र, मद्र, गंधार, शकुन, पूर्वदेश, पर्वतीय प्रदेश और बसाति आदि देशों के वीर थे। पूँछ की जगह अपने पुत्र तथा जाति और कुटुम्ब के लोगों के सहित भिन्न_भिन्न देशों की सेना लिये कर्ण खड़ा था तथा हृदयस्थान में जयद्रथ, संपाति, ऋषभ, जय, भूमिंजय, वृष, क्रौथ और निषधराज बहुत बड़ी सेना के साथ खड़े थे। इस प्रकार पदाति, अश्वारोही, गजारोही और रथी सेना से आचार्य द्रोण का बनाया हुआ वह गरुड़व्यूह वायु के झकोरों से,उछलते हुए समुद्र के समान जान पड़ता था। इसके मध्यभाग में हाथी पर चढ़े हुए महाराज भगदत्त बालसूर्य के समान सुशोभित हो रहे थे। इस अजेय और अतिमानुष व्यूह को देखकर राजा युधिष्ठिर ने धृष्टधुम्न से कहा, ‘वीर ! आज तुम ऐसा प्रयत्न करो, जिससे मैं द्रोणाचार्यकेे हाथ में न पड़ूँ।‘
धृष्टधुम्न ने कहा___ महाराज ! द्रोणाचार्य कितना ही प्रयत्न करें, वे आपको अपने काबू में नहीं कर सकेंगे। आज उन्हें और उनके अनुयायियों को मैं रोकूँगा। मेरे जीवित रहते आप किसी प्रकार की चिंता न करें। द्रोणाचार्य संग्राम में मुझे किसी प्रकार नहीं जीत सकते।
ऐसा कहकर महाबली धृष्टधुम्न बाणों की वर्षा करता हुआ स्वयं ही द्रोणाचार्य के मुकाबले में,आ गया। यह अपशकुन ( धृष्टधुम्न के हाथ से ही द्रोण का वध होनेवाला था, इसलिये आरम्भ में ही उसका सामने आना उन्हें अपशकुन जान पड़ा ) देखकर आचार्य कुछ खिन्न हो गये। तब आपके पुत्र दुर्मुख ने धृष्टधुम्न को रोका। बस, दोनों वीरों में बड़ा भयंकर युद्ध होने लगा। जिस समय वे दोनों युद्ध में संलग्न थे, द्रोणाचार्य ने अपने बाणों से युधिष्ठिर की सेना को अनेक प्रकार से छिन्न_भिन्न कर दिया। इससे कहीं_कहीं से पाण्डवों का व्यूह टूट गया। अब वह युद्ध पागलों के समान मर्यादाहीन हो गया। उस समय आपस में अपने_पराये का पता नहीं लगता था। इस प्रकार जब बड़ा ही घमासान और भयंकर युद्ध चल रहा था, आचार्य ने सब वीरों को चक्कर में डालकर युधिष्ठिर पर आक्रमण किया। राजा युधिष्ठिर आचार्य को अपने समीप पहुँचा देखकर निर्भयता से बाण बरसाते हुए उनका सामना करने लगे। इसी प्रकार महाबली सत्यजित् उन्हें बचाने के लिये आचार्य का ओर बढ़ा। उसने अपना अस्त्रकौशल दिखाते हुए एक तीखी नोकवाले बाण से आचार्य को घायल कर दिया। फिर पाँच बाण मारकर उनके सारथि को मूर्छित किया, दस बाणों से घोड़ों को घायल कर डाला, दस_दस बाणों से दोनों पार्श्वरक्षकों को बींध दिया और अन्त में उनकी ध्वजा भी काट डाली। तब द्रोण ने दस मर्मभेदी  बाणों से सत्यजित् को घायल करके उसके धनुष_बाण भी काट डाले। सत्यजित् ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर आचार्य पर तीस बाणों से वार किया। इस प्रकार द्रोण को सत्यजित् के काबू में पड़ा देख पांचालदेशीय वृक ने भी उन पर सौ बाणों की चोट की। यह देख पाण्डवलोग हर्षनाद करने लगे। इसी समय वृक ने अत्यन्त क्रोध में भरकर द्रोण की छाती में साठ बाण मारे। तब आचार्य ने सत्यजित् और वृक के धनुषों को काटकर केवल छः बाणों से वृक को, उसके सारथि और घोड़ों के सहित मार डाला। इस पर सत्यजित् ने दूसरा धनुष लेकर द्रोणाचार्यजी को उनके सारथि और घोड़ों के सहित मार डाला। इस पर सत्यजित् ने दूसरा धनुष लेकर द्रोणाचार्यजी को उनके सारथि और घोड़ों के सहित घायल कर दिया तथा उनकी ध्वजा भी काट डाली। जब सत्यजित् के हाथ से आचार्य बहुत पीड़ित होने लगे तो उन्हें सहन नहीं हुआ और उन्होंने उसे मारने के लिये बाणों की झड़ी लगा दी। उन्होंने उसके घोड़े, ध्वजा, धनुष, मूठ, सारथि और दोनों पार्श्वरक्षकों पर हजारों बाण छोड़े। किन्तु सत्यजित् बार_बार धनुष कट जाने पर आचार्य के सामने डटा ही रहा। युद्धभूमि में उसका ऐसा उत्साह देखकर आचार्य ने एक अर्धचन्द्राकार बाण से उसका सिर उड़ा दिया। उस पांचाल महारथी के मारे जाने पर धर्मराज द्रोणाचार्य के भय से अपने घोड़े को बहुत तेजी से हँकवाकर युद्ध के मैदान से,भाग गये।  अब आचार्य के सामने मत्स्यराज विराट का छोटा भाई शतानीक आया। वह छः तीखे बाणों से सारथि और घोड़ों के सहित द्रोण को बींधकर बड़ी गर्जना करने लगा। फिर उसने उन पर और भी सैकड़ों बाण छोड़े। तब उसे बहुत गरजते देख आचार्य ने बड़ी फुर्ती से एक बाण मारकर उसका कुण्डलमण्डलित मस्तक काट डाला। यह देखकर मत्स्यदेश के सब वीर भागने लगे। इस प्रकार मत्स्यवीरों को जीतकर द्रोणाचार्य ने चेदि, करूष, केकय, पांचाल, संजय और पाण्डववीरों को भी बार_बार परास्त किया। आग जैसे जंगल को जला डालती है, उसी प्रकार क्रोध में भरे हुए आचार्य को सेनाओं का विध्वंस करते देखकर सब संजयवीर काँप उठे। जब युधिष्ठिर आदि ने देखा कि आचार्य हमारी सेनाओं को भस्म किये डालते हैं तो वे उन पर चारों ओर से टूट पड़े। फिर उनमेंसेे शिखण्डी ने पाँच, क्षत्रवर्मा ने बीस, वसुदान मे पाँच, उत्तमौजा ने तीन, क्षत्रदेव ने सात, सात्यकि ने सौ, युधामन्यु ने आठ, युधिष्ठिर ने बारह, धृष्टधुम्न ने दस और चेकितान ने तीन बाणों से उन पर चोट की। तब द्रोण ने सबसे पहले दृढ़सेन को धराशायी किया। फिर नौ बाणों से राजा क्षेम को घायल किया। इससे वह मरकर रथ से नीचे गिर गया। इसके पश्चात् उन्होंने बारह बाणों से शिखण्डी को और बीस से उत्तमौजा को घायल किया तथा एक भल्ल-बाण से वसुदान को यमराज के घर भेज दिया। फिर अस्सी बाणों से क्षत्रवर्मा पर छब्बीस से सुदक्षिण पर वार किया तथा एक भल्ल से क्षत्रदेव को रथ से नीचे गिरा दिया। तदनन्तर चौंसठ बाणों से युधामन्यु और तीस से सात्यकि को बींधकर वे फुर्ती से धर्मराज युधिष्ठिर के सामने आ गये। यह देखकर युधिष्ठिर अपने घोड़ों को तेजी से हँकवाकर युद्धक्षेत्र से भाग गये और अब आचार्य के सामने एक पांचालराजकुमार आकर डट गया। आचार्य ने फौरन ही उसका धनुष काट दिया तथा सारथि और घोड़ों के सहित उसका भी काम तमाम कर दिया। उस राजकुमार के मारे जाने पर सेना में चारों ओर से ‘द्रोण को मारो, द्रोण को मारो’ ऐसा कोलाहल होने लगा। किन्तु उन अत्यन्त क्रोधातुर पांचाल, मत्स्य, केकय, संजय और पाण्डववीरों को द्रोणाचार्य ने घबराहट में डाल दिया। उन्होंने कौरवों से सुरक्षित होकर सात्यकि, चेकितान, धृष्टधुम्न, शिखण्डी, वृद्धक्षेम और चित्रसेन के पुत्र, सेनाविन्दु और सुवर्चा___ इन सभी वीर  और दूसरे राजाओं को युद्ध में परास्त कर दिया तथा आपके पक्ष के योद्धा भी उस महासमर में विजय पाकर सब ओर पाण्डवपक्ष के वीरों को कुचलने लगे।






No comments:

Post a Comment