Saturday 30 June 2018

द्रोणाचार्य की रक्षा के लिये कौरव और पाण्डववीरों का द्वन्दयुद्ध

१संजय ने कहा___महाराज ! फिर थोड़ी ही देर में पाण्डवों की सेना ने लौटकर द्रोण को घेर लिया और उनके पैरों से उठी हुई धूल ने आपकी सेना को आच्छादित कर दिया। इस प्रकार आँखों से ओझल हो जाने के कारण हमने समझा कि आचार्य मारे गये। तब दुर्योधन ने अपनी सेना को आज्ञा दी कि ‘ जैसे बने, वैसे पाण्डवों की सेना को रोको।‘ यह सुनकर आपका पुत्र दुर्मर्षण भीमसेन को देखकर उनके प्राणों का प्यासा होकर बाण बरसाता हुआ उनके आगे आया। उसने अपने बाणों से भीमसेन को ढक दिया और भीमसेन ने उसे बाणों से घायल कर दिया। इस प्रकार दोनों का भीषण युद्ध होने लगा। स्वामी की आज्ञा पाकर कौरवपक्ष के सभी बुद्धिमान और शूरवीर योद्धा अपने राज्य और प्राण का,भय छोड़कर शत्रुओं के सामने आकर डट गये। इस समय शूरवीर सात्यकि द्रोणाचार्यजी को पकड़ने के लिये आ रहा था; उसे कृतवर्मा ने रोका। क्षत्रवर्मा भी आचार्य की ओर बढ़ ही रहा था; उसे जयद्रथ ने अपने तीखे बाणों से रोक लिया। इस पर क्षत्रवर्मा ने कुपित होकर जयद्रथ के धनुष और ध्वजा को काट डाला और दस नाराचों से उसके मर्मस्थानों पर आघात किया। इस पर जयद्रथ ने दूसरा धनुष लेकर क्षत्रवर्मा पर बाणों की बौछार आरम्भ कर दी।महारथी युयुत्सु भी द्रोणाचार्यजी के पास पहुँचने के ही प्रयत्न में था। उसे सुबाहु ने रोका। किंतु युयुत्सु ने दो क्षुरप्र बाणों से सुबाहु की दोनों भुजाएँ काट डालीं। धर्मप्राण युधिष्ठिर की गति मद्रराज शल्य ने रोक ली। धर्मराज ने शल्य पर अनेकों मर्मभेदी बाण छोड़े तथा मद्रनरेश ने भी उन्हें चौंसठ बाणों से घायल करके बड़ी गर्जना की। तब युधिष्ठिर ने दो बाणों से उनके धनुष और ध्वजा को काट डाला। इसी प्रकार अपनी सेना के सहित राजा द्रुपद भी द्रोण की ओर बढ़ ही रहे थे। उन्हें राजा बाह्लीक उनकी सेना ने बाण बरसाकर रोक दिया। उन दोनों वृद्ध राजाओं का और उनकी सेनाओं का बड़ा घमासान युद्ध हुआ। अवन्तिनरेश विन्द और अनुविन्द ने अपनी सेना लेकर मत्स्यराज विराट और उनकी सेना पर धावा किया। उनका भी देवासुर_संग्राम के समान बड़ा घोर युद्ध हुआ। इसी प्रकार मत्स्यवीरों के साथ भी करारी मुठभेंड़ हुई, जिसमें अश्वारोही, गजारोही और रथी___ सभी निर्भयता से लड़ रहे थे।एक ओर नकुल का पुत्र शतानीक भी बाणों की वर्षा करता हुआ आचार्य की ओर बढ़ रहा था। उसे भूतकर्मा ने रोका। तब शतानीक ने अच्छी तरह सान पर चढ़ाये हुए तीन बाणों से भूतकर्मा के सिर और बाहुओं को काट डाला। भीमसेन का पुत्र सुतसोम बाणों की झड़ी लगाता द्रोणाचार्य पर ही आक्रमण करना चाहता था। उसे विविंशति ने रोका। किन्तु सुतसोम ने सीधे निशाने पर लगनेवाले बाणों से अपने चाचा को बींध डाला और स्वयं निश्चल खड़ा रहा। इसी समय भीमरथ ने छः पैने बाणों से शाल्व को और उसके सारथि और घोड़ों सहित यमराज के घर भेज दिया।श्रुतकर्मा भी रथ में चढ़कर द्रोण की ओर ही बढ़ रहा था। उसे चित्रसेन के पुत्र ने रोक लिया। आपके वे दोनों पौत्र एक_दूसरे को मारने की इच्छा से बड़ा घोर युद्ध करने लगे। इसी समय अश्त्थामा ने देखा कि राजा युधिष्ठिर का पुत्र प्रतिविन्ध्य द्रोण को सामने पहुँच चुका है तो उन्होंने उसे बीच में आकर रोक दिया। इस पर कुपित होकर प्रतिविन्ध्य ने  अपने पैने बाणों लो अश्त्थामा को घायल कर दिया। अब द्रौपदी के सभी पुत्र बाणों की वर्षा से अश्त्थामा को आच्छादित करने लगे। अर्जुन के पुत्र श्रुतकीर्ति को दुःशासन के पुत्र ने द्रोण की ओर जाने से रोका। किन्तु वह अपने पिता के समान ही वीर था; उसने अपने तीखे बाणों से उसके धनुष, ध्वजा और सारथि को बींध दिया और स्वयं द्रोण के सामने जा पहुँचा।राजन् ! पटच्चर राक्षस का वध करनेवाला वह वीर दोनों ही सेनाओं में बहुत माना जाता था। उसने लक्ष्मण को रोका। उसने लक्ष्मण के धनुष और ध्वजा को काटकर उस पर बड़ी बाणवर्षा की। द्रुपदपुत्र शिखण्डी को महामति विकर्ण ने रोका। उन पुरुषसिंहों का जो घमासान युद्ध हुआ, उसे देखकर सभी सैनिक वाह_वाह करने लगे। महान् धनुर्धर दुर्मुख ने पुरुजित् को उसकी भौंहों के बीच में बाण मारा। कर्ण ने पाँच केकय भाइयों को रोका। उन्होंने बड़े क्रोध में भरकर कर्ण पर बाण बरसाने आरम्भ कर दिये। कर्ण ने भी उन्हें कई बार अपने बाणजाल से बिलकुल आच्छादित कर दिया। इस प्रकार कर्ण और केकयदेशीय पाँचों राजकुमार आपस की बाणवर्षा से छिपे जाने के कारण अपने घोड़े, सारथि, धवजा और रथों के सहित दीखने भी बन्द हो गये। आपके तीन पुत्र दुर्जय, विजय और जय ने नील, काश्य और जयत्सेन को बढ़ने से रोका। इसी प्रकार क्षेमधूर्ति और बृहत्___ इन दोनों भाइयों ने द्रोण की ओर बढ़ते हुए सात्यकि को अपने तीखे तीरों से घायल कर दिया। उन दोनों के साथ सात्यकि का बड़ा अद्भुत संग्राम हुआ। राजा अम्बष्ठ अकेला ही आचार्य से युद्ध करना चाहता था। उसे चेदिराज ने बाणों की वर्षा करके रोक दिया तब अम्बष्ठ ने एक अस्थिभेदिनी शलाका से चेदिराज को घायल कर दिया। वृष्णिवंशीय वृद्धक्षेम का पुत्र बड़े क्रोध में भरकर जा रहा था। उसे आचार्य कृप ने अपने छोटे_छोटे बाणों से रोक दिया। ये दोनों ही वीर अनेक प्रकार का युद्ध करने में कुशल थे। उस समय जिन लोगों ने इनके हाथ देखे, वे ऐसे तन्मय हो गये कि उन्हें और किसी बात का होश ही नहीं रहा। सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा ने द्रोण की ओर आते हुए राजा मणिमान् का मुकाबला किया। मणिमान् ने बड़ी फुर्ती से भूरिश्रवा के धनुष, तरकस, ध्वजा, सारथि और छत्र को काटकर रथ के नीचे गिरा दिया। तब भूरिश्रवा ने रथ से कूदकर बड़ी सफाई से तलवार लेकर उसके घोड़े, सारथि, ध्वजा और रथ के सहित काट डाला। फिर वह अपने रथ पर चढ़ गया और दूसरा धनुष लेकर स्वयं ही,घोड़ों रो हाँकता हुआ पाण्डवों की सेना को कुचलने लगा। इसी तरह दुर्जय वार पाण्डवों को आते देखकर उसे महाबली वृषसेन ने अपने बाणों की बौछार से रोक दिया।इसी समय द्रोणाचार्य पर धावा करने के विचार से घतोत्कच गंदा, परिघ, तलवार, पट्टिश, लोहदण्ड, पत्थर, लाठी, भुशुण्डी, प्रास, तोमर, बाण, मूसल, मुद्गर, चक्र, भिन्दीपाल, फरसा, धूल, वायु, अग्नि, जल भस्म, ढेले, तृण और वृक्षादि से सारी सेना को घायल और नष्ट करता तथा इधर_उधर भागता आगे आया। उस पर राक्षसराज अलम्बुष ने तरह_तरह के हथियारों से वार किया। उन राक्षसवीरों का बड़ा घोर युद्ध होने लगा।
इस प्रकार आपकी और पाण्डवों की सेना के रथी, गजारोही, अश्वारोही और पदाति सैनिकों की सैकड़ों काश्मीरी बिछ गयीं। इस समय द्रोण को मरने से बचाने के लिये जैसा युद्ध हुआ, वैसा इससे पहले न तो देखा था और न सुना ही था। राजन् ! वहाँ जहाँ_तहाँ के अनेकों युद्ध हो रहे थे; उसमें कोई घोर था, कोई भयानक था और कोई बड़ा विचित्र था।

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