Monday 23 July 2018

वृषक, अचल और नील आदि का वध; शकुनि और कर्ण की पराजय

संजय ने कहा___भगदत्त को मारकर अर्जुन दक्षिण दिशा की ओर घूमे। उधर से गांधारराज के दो पुत्र वृषक और अचल आ पहुँचे तथा दोनों भाई युद्ध में अर्जुन को पीड़ित करने लगे। एक तो अर्जुन के सामने खड़ा हो गया और दूसरा पीछे; फिर दोनों एक साथ तीखे बाणों से उन्हें बींधने लगे। तब अर्जुन ने अपने पैने बाणों से वृषक के सारथि, धनुष, छत्र, ध्वजा, रथ और घोडों की धज्जियाँ उड़ा दीं तथा नाना प्रकार के अस्त्रों और बाणसमूहों से बींधकर गान्धारदेशीय योद्धाओं को व्याकुल कर डाला। साथ ही, क्रोध में भरकर उन्होंने पाँच सौ गांधारवीरों को यमलोक भेज दिया।
वृषक के रथ के घोड़े मारे जा चुके थे, इसलिये उससे कूदकर वह अपने भाई अचल के रथ पर जा बैठा और उसने दूसरा धनुष हाथ में ले लिया। अब तो वृषक और अचल देने भाई बाणों का वर्षा करके अर्जुन को बींधने लगे। वे दोनों रथ पर एक दूसरे से सट कर बैठे थे, उसी अवस्था में अर्जुन ने एक ही बाण से दोनों को मार डाला। दोनों एक साथ ही रथ सो नीचे गिर पड़े। राजन् ! अपने दोनों मामाओं को मरा देख आपके पुत्र आँसू बहाने लगे। भाइयों को मृत्यु के मुख में पड़ा देख सैकड़ों प्रकार की माया जाननेवाले शकुनि ने श्रीकृष्ण और अर्जुन को मोह में डालने के लिये माया की रचना की। उस समय समस्त दिशाओं और उपदिशाओं से अर्जुन पर लोहे के गोले, पत्थर, शक्ति, गदा, परिघ, तलवार, शूल, मुद्गर, पट्टिश, नख, मूसल, फरसा, छुरा, क्षुरप्र, नालीक, वत्सदत्त, अस्थिसंधि, चक्र, बाण और प्रास आदि अस्त्र_शस्त्रों की वर्षा होने लगी। गदहे, ऊँट, भैंसे, सिंह, व्याघ्र, चीते, रीछ, कुत्ते, गीध, बन्दर, साँप तथा नाना प्रकार के राक्षस और पक्षी भूखे तथा क्रोध में भरे हुए सब ओर से अर्जुन की ओर टूट पड़े। अर्जुन तो दिव्य अस्त्रों के ज्ञाता थे ही, सहसा बाणों की वृष्टि करते हुए उन जीवों को मारने लगे। अर्जुन की सुदृढ़ सायकों की मार पड़ने से वे सभी प्राणी जोर_जोर से चित्कार करते हुए नष्ट हो गये। इतने में ही अर्जुन के रथ पर अंधेरा छा गया। उसमें से बड़ी क्रूर बातें सुनाई देने लगी। परन्तु उन्होंने ‘ज्योतिष’ नाम का अत्यन्त उत्तम अस्त्र का प्रयोग करके उस भयंकर अंधकार का नाश कर दिया। अंधेरा दूर होते ही वहाँ भयानक जलधाराएँ गिरने लगीं। तब अर्जुन ने ‘आदित्यास्त्र’ का प्रयोग करके वह सारा जल सुखा दिया। इस प्रकार शकुनि ने अनेकों प्रकार की मायाएँ रचीं, किन्तु अर्जुन ने हँसते_हँसते अपने अस्त्रबल से उन सबका नाश कर दिया। जब संपूर्ण माया का नाश हो गया और शकुनि अर्जुन के बाणों से विशेष आहत हो गया, तब वह भयभीत होकर रणभूमि से भाग गया। तदनन्तर अर्जुन कौरव_सेना का विध्वंस करने लगे। वे बाणों की वर्षा करते हुए आगे चले जा रहे थे, किन्तु कोई भी धनुर्धर वीर उन्हें रोक न सका। अर्जुन की मार से पीड़ित हो आपकी सेना इधर_उधर भागने लगी। उस समय घबराहट के कारण आपके बहुत_से सैनिकों ने अपने ही पक्ष के योद्धाओं का संहार कर डाला। अर्जुन हाथी, घोड़े और मनुष्यों पर उस समय दूसरा बाण नहीं छोड़ते थे, एक ही बाण से आहत होकर वे प्राणहीन और धराशायी हो जाते थे।  मारे गये मनुष्य, हाथी और घोड़ों की लाशों से भरी हुई उस रणभूमि की अद्भुत शोभा हो रही थी। सभी योद्धा बाणों की मार से व्याकुल हो रहे थे, उस समय बाप बेटे और बेटा बाप को छोड़कर चल देता था। मित्र_मित्र की बात नहीं पूछता था। लोग अपना सवारी भी छोड़कर भाग चले थे।
इधर, द्रोणाचार्य अपने तीक्ष्ण बाणों से पाण्डवसेना छिन्न_भिन्न करने लगे। अद्भुत पराक्रमी द्रोण उस समय उन योद्धाओं को कुचल रहे थे, सेनापति धृष्टधुम्न ने स्वयं आकर द्रोण के चारों ओर घेरा डाल दिया। फिर तो द्रोणाचार्य और धृष्टधुम्न में अद्भुत युद्ध होने लगा। दूसरी ओर अग्नि के समान तेजस्वी राजा नील अपने बाणों से कौरवसेना को भस्म करने लगा। उसे इस प्रकार संहार करते देख अश्त्थामा ने हँसकर कहा___’नील ! तुम अपनी बाणाग्नि से इन अनेक योद्धाओं को क्यों भस्म कर रहे हो, साहस हो तो केवल मेरे साथ लड़ो।‘ यह ललकार सुनकर नील ने बाणों से अश्त्थामा को बींध दिया। तब उसने भी तीन बाण मारकर नील के धनुष, ध्वजा और छत्र को काट डाला। यह देख नील हाथ में ढाल_तलवार लेकर रथ से कूद पड़ा और अश्त्थामा के सिर को काटना ही चाहता था कि उसी ने भाला मारकर नील के कुण्डलसहित मस्तक को काट गिराया। नील पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसकी मृत्यु से पाण्डवसेना को बड़ा दुःख हुआ। इतने में अर्जुन बहुत से संशप्तकों को जीतकर, जहाँ द्रोणाचार्य पाण्डवसेना का संहार कर रहे थे वहाँ आ पहुँचे और कौरव योद्धाओं को अपने शस्त्रों की आग में जलाने लगे। उनके सहस्त्रों बाणों से पीड़ित होकर कितने ही हाथीसवार, घुड़सवार और पैदल सैनिक भूमि पर गिरने लगे। कितने ही आर्तस्वर से कराहने लगे। कितनों ने गिरते ही प्राण त्याग दिये। उनमें से जो उठते_गिरते भागने लगे, उन योद्धाओं को अर्जुन ने युद्धसंबंधी नियम का स्मरण करके नहीं मारा। भागते हुए कौरव ‘हा कर्ण ! ‘हा कर्ण !  ऐसे पुकारने लगे। शरणार्थियों का वह करुण क्रंदन  सुनकर___’वीरों ! डरो मत’ ऐसा कहकर कर्ण अर्जुन का सामना करने चला। कर्ण अस्त्रवेत्ताओं में श्रेष्ठ था, उसने उस समय आग्नेयास्त्र प्रकट किया; परन्तु अर्जुन ने उसे शान्त कर दिया। इसी प्रकार कर्ण ने भी अर्जुन के तेजस्वी बाणों का अपने अस्त्र से निवारण कर दिया और बाणों की वर्षा करते हुए सिंहनाद किया। तब धृष्टधुम्न, भीम और सात्यकि भी वहाँ पहुँचकर कर्ण को बाणों से बींधने लगे। कर्ण ने भी तीन बाणों से उन तीनों वीरों के धनुष काट डाले। तब उन्होंने कर्ण पर शक्तियों का प्रहार करके सिंहों के समान गर्जना की। कर्ण भी तीन_तीन बाणों से उन शक्तियों को टुकड़े_टुकड़े करके अर्जुन पर बाण बरसाता हुआ गर्जने लगा। यह देख अर्जुन ने सात बाणों से कर्ण को बींधकर उसके छोटे भाई को मार डाला, फिर उसके दूसरे भाई शत्रुंजय को भी छः बाणों से मौत के घाट उतारा। उसके बाद एक भाला मारकर विराट के भी मस्तक को काटकर उसे रथ से गिरा दिया। इस प्रकार कौरवों के देखते_देखते कर्ण के सामने ही उसके तीनों भाइयों को अर्जुन ने अकेले ही मार डाला।
तदनन्तर, भीमसेन भी अपने रथ से कूद पड़े और तलवार से कर्णपक्ष के पंद्रह वीरों को मारकर फिर अपने रथ पर चढ़ आये। इसके बाद दूसरा धनुष लेकर उन्होंने कर्ण को दस तथा उसके सारथि और घोड़ों को पाँच बाणों से बींध डाला। इसी प्रकार धृष्टधुम्न भी अपने रथ से उतरकर ढाल_तलवार लिये आगे बढ़ा और चन्द्रवर्मा तथा निषधदेश के राजा बृहच्क्षत्र को मारकर पुनः रथ पर आ गया। फिर दूसरा धनुष हाथ में ले उसने सिंहनाद करते हुए  तिहत्तर बाणों से कर्ण को बींध दिया। इसके बाद सात्यकि ने भी दूसरा धनुष उठाया और चौंसठ बाणों से कर्ण को बींधकर  सिंह के समान गर्जना की। फिर दो बाणों से कर्ण का धनुष काट दिया और तीन बाणों से उसकी बाहुओं तथा छाती में प्रहार किया। कर्ण सात्यकिरूपी समुद्र में डूब रहा था; उस समय दुर्योधन, द्रोणाचार्य और जयद्रथ ने आकर उसके प्राण बचाये। फिर तो,आपकी सेना के सैकड़ों पैदल, रथी और हाथीसवार योद्धा कर्ण की रक्षा के लिये दौड़ पड़े। दूसरी ओर धृष्टधुम्न, भीमसेन, अभिमन्यु, नकुल और सहदेव सात्यकि की रक्षा करने लगे। इस प्रकार वहाँ समस्त धनुर्धारियों का नाश करने करने के लिये महाभयानक संग्राम छिड़ गया। आपके और पाण्डवपक्ष के वीरों में प्राणों का मोह छोड़कर युद्ध होने लगा। इतने में सूर्य अस्ताचल को जा पहुँचा। तब दोनों ओर का थकी_माँदी और लोहूलुहान हुई सेनाएँ एक_दूसरे को देखती हुई धीरे_धीरे अपने शिविर को लौट गयीं।

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