Sunday 12 August 2018

दुःशासन और कर्ण की पराजय तथा जयद्रथ का पराक्रम

संजय कहते हैं___ राजन् ! उस समय अभिमन्यु ने दुःशासन से हँसकर कहा___’दुर्मते !  तूने मेरे पितृवर्ग का राज्य हर लिया है, उसके कारण तथा तेरे लोभ, अज्ञान, द्रोह और दुःसाहस के कारण महात्मा पाण्डव तुझ पर अत्यन्त कुपित हैं, इसी से आज तुझे यह दिन देखना पड़ा है। आज उस पाप का भयंकर फल तू भोग। क्रोध से भरी हुई माता द्रौपदी की तथा बदला लेने वाले पिता भीमसेन की इच्छा पूर्ण करके आज मैं उनके ऋण से उऋण हो जाऊँगा। यदि तू युद्ध छोड़कर भाग नहीं गया तो मेरे हाथ से जीता नहीं बच सकता।‘ यह कहकर अभिमन्यु ने दुःशासन की छाती में कालाग्नि के समान तेजस्वी बाण मारा। वह बाण उसकी छाती में लगा और गले की हँसली छेदकर निकल गया। इसके बाद धनुष को कान तक खींचकर पुनः उसने दुःशासन को पच्चीस बाण मारे। इससे अच्छी तरह घायल होकर वह व्यथा के मारे रथ के पिछले भाग में जा बैठा और बेहोश हो गया। यह देख सारथि उसे रण से बाहर ले गया। उस समय युधिष्ठिर आदि पाण्डव, द्रौपदी के पुत्र, सात्यकि, चेकितान, धृष्टधुम्न, शिखण्डी, केकय, धृष्टकेतु तथा मत्स्य, पांचाल और संजयवीर बड़ी प्रसन्नता के साथ द्रोण की सेना को नष्ट करने की इच्छा से आगे बढ़े। फिर तो कौरवों और पाण्डवों की सेना में महान् युद्ध होने लगा। इधर कर्ण अत्यन्त क्रोध में भरकर अभिमन्यु के ऊपर तीक्ष्ण बाणों की वर्षा करने लगा और उसका तिरस्कार करते हुए उसके अनुचरों को भी बाणों से बींधने लगा। अभिमन्यु ने भी तुरंत ही उसे तिहत्तर बाणों से बींध डाला। उस समय उसकी गति कोई नहीं रोक सका। तदनन्तर, कर्ण ने अपनी उत्तम अस्त्र_विद्या का प्रदर्शन करते हुए सैकड़ों बाणों से अभिमन्यु को बींध डाला। कर्ण के द्वारा पीड़ित होकर भी सुभद्राकुमार शिथिल नहीं हुआ; उसने तेज बाणों से शूरवीरों के धनुष काटकर कर्ण को भी खूब घायल किया। साथ ही उसके छत्र, ध्वजा, सारथि और घोड़ों को भी हँसते_ हँसते बींध डाला। फिर कर्ण ने भी उसे कई बाण मारे, किन्तु अभिमन्यु ने अविचल भाव से सबको झेल लिया और उस मुहूर्त में एक ही बाण से कर्ण के धनुष और ध्वजा को काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया। इस प्रकार कर्ण को संकट में फँसा देखकर उसका छोटा भाई सुदृढ़ धनुष ले अभिमन्यु का सामना करने को आ गया। उसने आते ही दस बाण मारकर अभिमन्यु को छत्र, ध्वजा, सारथि और घोड़ों सहित बींध डाला। यह देख आपके पुत्र बहुत प्रसन्न हुए। तब अभिमन्यु ने मुस्कराकर एक ही बाण से उसका मस्तक काट गिराया। राजन् ! भाई को मरा देख कर्ण बहुत दुःखी हुआ। इधर सुभद्राकुमार ने कर्ण को विमुख करके दूसरे धनुर्धरों पर धावा किया। क्रोध में भरकर वह हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों से युक्त उस विशाल सेना का संहार करने लगा। कर्ण तो उसके बाणों से बहुत पीड़ित हो चुका था, इसलिये अपने शीघ्रगामी घोड़ों को हाँककर रणभूमि से भाग गया। इससे व्यूह टूट गया। उस समय टिड्डियों या जल की धाराओं के समान अभिमन्यु के बाणों से आकाश आच्छादित हो जाने के कारण कुछ सूझ नहीं पड़ता था। सिंधुराज जयद्रथ के सिवा दूसरा कोई रथी वहाँ टिक न सका। अभिमन्यु अपने बाणों से शत्रुसेना को दग्ध करता हुआ व्यूह में विचरने लगा। रथ, घोड़े, हाथी और मनुष्यों का संहार होने लगा। पृथ्वी पर बिना मस्तक की लाशों बिछ गयीं। कौरव_योद्धा अभिमन्यु के बाणों से क्षत_विक्षत हो प्राण बचाने के लिये भागने लगे। उस समय वे सामने खड़े हुए अपने ही दल के लोगों को मारकर आगे बढ़ रहे थे और अभिमन्यु उस सेना को खदेड़_खदेड़कर मार रहा था। व्यूह के बीच तेजस्वी अभिमन्यु ऐसा दीख पड़ता था, जैसे तिनकों के ढेर में प्रज्वलित अग्नि। धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! अभिमन्यु ने जिस समय व्यूह में प्रवेश किया, उसके साथ युधिष्ठिर की सेना कोई और वीर गया था या नहीं ? संजय ने कहा___महाराज ! युधिष्ठिर, भीमसेन, शिखण्डी, सात्यकि,नकुल, सहदेव, धृष्टधुम्न, विराट, द्रुपद, केकय, धृष्टकेतु और मत्स्य आदि योद्धा व्यूहाकार में संगठित होकर अभिमन्यु की रक्षा के लिये उसके साथ_साथ चले। उन्हें धावा करते देख आपके सैनिक भागने लगे। तब आपके जामाता जयद्रथ ने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करके पाण्डवों को सेनासहित रोक दिया। धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! मैं तो समझता हूँ जयद्रथ के ऊपर यह बहुत बड़ा भार आ पड़ा, जो अकेले होने पर भी उसने क्रोध में भरे हुए पाण्डवों को रोका। भला जयद्रथ ने कौन_सा ऐसा महान् तप किया था जिससे पाण्डवों को रोकने में समर्थ हो सका ?
संजय ने कहा___जयद्रथ ने वन में द्रौपदी का अपहरण किया था, उस समय भीमसेन से उसे परास्त होना पड़ा। इस अपमान से दुःखी होकर उसने भगवान् शंकर की अराधना करते हुए बड़ी कठोर तपस्या की। भक्तवत्सल भगवान् ने उस पर दया की और स्वप्न में दर्शन देकर कहा___’जयद्रथ ! मैं तुझपर प्रसन्न हूँ, इच्छानुसार वर माँग ले।‘ वह प्रणाम करके बोला___’मैं चाहता हूँ अकेले ही समस्त पाण्डवों को युद्ध में जीत सकूँ।‘ भगवान् ने कहा___’ सौम्य ! तुम अर्जुन को छोड़ शेष चार पाण्डवों को युद्ध में जीत सकोगे।‘ ‘ अच्छा, ऐसा हूँ हो'___यह कहते_कहते उसकी नींद टूट गयी। उस वरदान से और दिव्यास्त्र के बल से ही जयद्रथ ने अकेले होने पर भी पाण्डवसेना को आगे नहीं बढ़ने दिया। उसकी प्रत्यंचा की टंकार होते ही शत्रुवीरों को भय छा गया और आपके सैनिकों को बड़ा हर्ष हुआ। उस समय सारा भार जयद्रथ के ऊपर ही पड़ा देख आपके क्षत्रियवीर कोलाहल करते हुए युधिष्ठिर की सेना पर टूट पड़े। अभिमन्यु ने व्यूह के जिस भाग को तोड़ डाला था, उसे जयद्रथ ने तुरंत योद्धाओं से भर दिया। फिर उसने सात्यकि को तीन, भीमसेन को आठ, धृष्टधुम्न को साठ और विराट को दस बाण मारे। इसी प्रकार द्रुपद को पाँच, शिखण्डी को सात, केकयराजकुमारों को पच्चीस द्रौपदी के प्रत्येक पुत्र को तीन_तीन और युधिष्ठिर को सत्तर बाणों से बींध डाला। साथ ही दूसरे योद्धाओं को भी बाणों की भारी वर्षा से पीछे हटा दिया। उसका यह काम अद्भुत ही हुआ। तब राजा युधिष्ठिर ने हँसते_ हँसते एक तीक्ष्ण बाण से जयद्रथ का धनुष काट डाला। जयद्रथ ने पलक मारते ही दूसरा धनुष लेकर युधिष्ठिर को दस और अन्य योद्धाओं को तीन_तीन बाणों से बींध दिया। उसके हाथ की फुर्ती देखकर भीमसेन ने तीन बाणों से उसके धनुष, ध्वजा और छत्र को काट गिराया। जयद्रथ ने पुनः दूसरा धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाकर भीम के धनुष, ध्वजा और घोड़ों का संहार कर डाला। घोड़ों के मर जाने पर भीमसेन उस रथ से कूदकर सात्यकि के रथ पर जा बैठे। जयद्रथ का यह पराक्रम देख आपके सैनिक प्रसन्न होकर उसे शाबाशी देने लगे। इतने में अभिमन्यु ने,उत्तर दिशा की ओर युद्ध करनेवाले हाथीसवारों को मारकर पाण्डवों के लिये मार्ग दिखाया, किन्तु जयद्रथ ने उसे भी रोक लिया। मत्स्य, पांचाल, केकय और पाण्डववीरों ने बहुत कोशिश की, पर वे जयद्रथ को हटा न सके। आपके शत्रुओं में से जो भी द्रोण_सेना का व्यूह तोड़ने का प्रयत्न करता, उसे जयद्रथ वरदान के प्रभाव से रोक देता था।

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