Tuesday 28 August 2018

अभिमन्यु के द्वारा कौरववीरों का संहार और छः महारथियों के प्रयत्न से उसका वध


संजय कहते हैं___तदनन्तर, कर्ण और अभिमन्यु दोनों परस्पर युद्ध करते हुए लोहूलुहान हो गये। इसके बाद कर्ण के छः मंत्री सामने आये। वे सभी विचित्र प्रकार से युद्ध करनेवाले थे। किन्तु अभिमन्यु ने उन्हें घोड़े और सारथियों सहित नष्ट कर दिया तथा दूसरे धनुर्धारियों को भी दस_दस बाण मारकर बींध डाला। उसका यह कार्य अद्भुत_सा हुआ। इसके बाद उसने मगधराज के पुत्र को छः बाणों से मृत्यु के मुख में भेजकर घोड़े और सारथिसहित अश्वकेतु को भी मार गिराया  फिर मर्तिकावतक देश के राजा भोज को क्षुरप्र नामक बाण से मौत के घाट उतारकर बाणवर्षा करते हुए सिंहनाद किया। इतने में दुःशासन के पुत्र ने आकर चार बाणों से  घोड़ों को, एक से सारथि को और दस ये अभिमन्यु को भी बींध दिया। तब अभिमन्यु ने भी सात बाणों से दुःशासन के पुत्र को घायल करके कहा___’ अरे ! तेरा पिता तो कायर की भाँति युद्ध छोड़कर भाग गया, अब तू लड़ने चला है ? सौभाग्य की बात है कि तू भी लड़ना जानता है, किन्तु आज तुझे जीवित नहीं छोड़ूँगा।‘ यह कहकर उसने दुःशासन के पुत्र पर एक तीखा बाण चलाया, किन्तु अश्त्थामा ने अपने तीन बाणों से उसे काट दिया। तब अभिमन्यु ने अश्त्थामा की ध्वजा काटकर तीन बाणों से शल्य को पीड़ित किया। शल्य ने भी उसकी छाती में नौ बाण मारे। अभिमन्यु ने शल्य की ध्वजा काटकर उसके पार्श्वरक्षक और सारथि को भी मार डाला, फिर छः बाणों से शल्य को भी बींधा। शल्य उस रथ से भागकर दूसरे रथ में जा बैठे। इसके बाद सुभद्राकुमार ने शत्रुंजय, चन्द्रकेतु, मेघवेग, सुवर्चा और सूर्यभास___ इन पाँच राजाओं का वध करके शकुनि को भी बाणों से घायल किया। शकुनि ने भी तीन बाणों से अभिमन्यु को बींधकर दुर्योधन से कहा___'देखो, यह पहले से एक_एक करके हमलोगों को मार रहा है, अब हम सब लोग मिलकर इसे मार डालें।तदनन्तर कर्ण ने द्रोणाचार्य से कहा_____’ अभिमन्यु पहले से ही हम सब लोगों को कुचल रहा है; अब इसके वध का कोई उपाय हमें शीघ्र बताइये।‘ तब महान् धनुर्धर द्रोण ने सब लोगों से कहा___’इस पाण्डुनन्दन की फुर्ती तो देखो, बाणों को चढ़ाते और छोड़ते समय इस रथमार्ग में केवल इसका मण्डलाकार धनुष ही दिखायी पड़ता है; वह स्वयं कहाँ है, इसका पता नहीं चलता ! सुभद्रानन्दन अपने बाणों ले मुझे क्षत_विक्षत कर रहा है, मेरे प्राण मूर्छित हो रहे हैं; तो भी इसका पराक्रम देखकर मुझे हर्ष ही होता है। अपने हाथों की फुर्ती के कारण यह समस्त दिशाओं में बाणों की वर्षा कर रहा है। इस समय अर्जुन में तथा इसमें कोई अन्तर दिखायी नहीं देता।‘ यह सुनकर कर्ण ने अभिमन्यु के बाणों से आहत होकर पुनः द्रोण से कहा, ‘आचार्य ! अभिमन्यु मुझे बड़ा कष्ट दे रहा है ! मुझे साहसपूर्वक खड़ा रहना चाहिये___यही सोचकर अभी तक खड़ा हूँ। इस तेजस्वी कुमार के तीखे बाण मेरे हृदय को चीरे डालते हैं।‘ कर्ण की बात सुनकर आचार्य द्रोण हँस पड़े और धीरे से बोले___’एक तो यह तरुण राजकुमार स्वयं ही शीघ्र पराक्रम दिखानेवाला है, दूसरे इसका कवच अभेद्य है। इसके पिता अर्जुन को जो मैंने कवच_धारण की विद्या सिखायी थी, निश्चय ही उस संपूर्ण विद्या को यह भी जानता है। अतः यदि इसका धनुष और प्रत्यंचा काटी जा सके, वागडोर काटकर घोड़े, पार्श्वरक्षक और सारथि मार दिये जा सकें, तो काम बन सकता है। राधानन्दन ! तुम बड़े धनुर्धर हो; यदि कर सके तो यही करो। सब प्रकार से असहाय करके इसे रण से हटाओ और पीछे से प्रहार करो। यदि इसके हाथ में धनुष रहा तो देवता और असुर भी इसे नहीं जीत सकते।‘ आचार्य की बात सुनकर कर्ण ने बाणों से अभिमन्यु के धनुष को काट डाला। कृतवर्मा ने उसके घोड़ों और कृपाचार्य ने पार्श्वरक्षक तथा सारथि को मार डाला। उसे धनुष और रथ से हीन देख बाकी महारथीलोग बड़ी शीघ्रता से,उस पर बाण बरसाने लगे। एक ओर छः महारथी थे, दूसरी ओर असहाय अभिमन्यु; तो भी वे निर्दयी उस अकेले बालक पर बाणवर्षा कर रहे थे। धनुष कट गया, रथ से हाथ धोना पड़ा; तो भी उसने अपने धर्म का पालन किया। हाथ में ढाल_ तलवार लेकर वह तेजस्वी बालक आकाश में उछल पड़ा। अपनी लाघिमा शक्ति से अभी वह गरुड़ की भाँति ऊपर मँडरा ही रहा था, तब तक द्रोणाचार्य ने ‘क्षुरप्र’ नामक बाण से उसकी तलवार के टुकड़े_टुकड़े कर दिये और कर्ण ने ढाल छिन्न_भिन्न कर दी।
अब उसके हाथ में तलवार भी न रही, सारे अंगों में बाण धँसे हुए थे; उसी दशा में वह आकाश से उतरा और क्रोध में भरकर चक्र हाथ में लिये  द्रोणाचार्य पर झपटा। उस समय वह चक्रधारी विष्णु की भाँति शोभायमान हो रहा था। उसे देखकर राजालोग बहुत डर गये और सबने मिलकर उसके चक्र के टुकड़े_टुकड़े कर दिये। तब महारथी अभिमन्यु ने बहुत बड़ी गदा हाथ में ली और अश्त्थामा पर चलायी। जलते हुए वज्र के समान उस गदा को आते देख अश्त्थामा रथ से उतरकर तीन कदम पीछे हट गया। गदा की चोट से उसके,घोड़े, पार्श्वरक्षक और सारथि मारे गये। इसके बाद अभिमन्यु ने सुबाहु के पुत्र कालिकेय को तथा उसके अनुचर सतहत्तर गांधारों को मौत के घाट उतारा। फिर दस बसातीय महारथियों को तथा सात केकय महारथियों का संहार कर दस हाथियों को मार डाला। तत्पश्चात् दुःशासनकुमार के रथ और घोड़ों को गदा से चूर्ण कर डाला। इससे दुःशासन के पुत्र को बड़ा क्रोध हुआ और वह भी गदा उठाकर अभिमन्यु की ओर दौड़ा। फिर तो दोनों एक_दूसरे को मारने की इच्छा से परस्पर प्रहार करने लगे। दोनों पर गदा के अग्रभाग की चोट पड़ी और दोनों साथ ही पृथ्वी पर गिर पड़े। दुःशासनकुमार पहले उठा और अभिमन्यु अभी उठ ही रहा था कि उसने उसके मस्तक पर गदा मारी। उसके प्रचण्ड आघात से बेचारा अभिमन्यु पुनः बेहोश होकर गिर पड़ा। महाराज ! इस प्रकार उस एक बालक को बहुत लोगों ने मिलकर मारा। आकाश से टूटकर गिरे हुए चन्द्रमा की भाँति उस शूरवीर को रणभूमि में गिरा देख अंतरिक्ष में खड़े हुए प्राणी भी हाहाकार करने लगे। सबने एक स्वर से कहा, ‘द्रोण और कर्ण_जैसे छः प्रधान महारथियों ने मिलकर इस अकेले बालक का वध किया है, इसे हमलोग धर्म नहीं मानते।‘ चन्द्रमा और सूर्य के तुल्य कान्तिमान् अभिमन्यु को इस प्रकार पड़ा देख आपके योद्धाओं को बड़ा हर्ष हुआ और पाण्डवों को मन में बड़ी पीड़ा हुई। राजन् ! अभिमन्यु अभी बालक था, युवावस्था में उसका पदार्पण नहीं हुआ था। उस वीर के मरते ही युधिष्ठिर के देखते_देखते संपूर्ण पाण्डवसेना भाग चली। यह देख युधिष्ठिर ने उन वीरों से कहा___’वीरों !  युद्ध में मृत्यु का अवसर आने पर भी अभिमन्यु ने पीठ नहीं दिखायी है। तुम भी उसी की भाँति धीरता सीखो, डरो मत। हमलोग निश्चय ही शत्रुओं पर विजय पायेंगे।‘ ऐसा कहकर धर्मराज ने अपने दुःखी सैनिकों का शोक दूर किया। राजन् ! अभिमन्यु श्रीकृष्ण और अर्जुन के समान पराक्रमी था, वह दस हजार राजकुमारों और महारथी कौसल्य को मारकर मरा है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि वह पुण्यवानों के अक्षय लोकों में गया है; अतः वह शोक करने योग्य नहीं है। महाराज ! इस प्रकार हमलोग पाण्डवों के उस श्रेष्ठ वीर को मारकर और उनके बाणों से पीड़ित एवं लोहूलुहान हो सायंकाल अपनी छावनी में चले गये। आते समय देखा, शत्रु भी बहुत दुःखी और उदास हो अपने शिविर को जा रहे हैं। उस समय श्रेष्ठ योद्धाओं ने रक्त की नदी बहा दी थी, जो वैतरणी के समान भयंकर और दुस्तर थी। रणभूमि के मध्य में बहती हुई वह नदी जीवित और मृतक सबको अपने प्रवाह में बहाये जा रही थी। अनेकों धड़ वहाँ नाच रहे थे। रणस्थल को देखने में डर मालूम होता था।

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