Monday 6 August 2018

अभिमन्यु का व्यूह में प्रवेश और पराक्रम

संजय कहते हैं___धर्मराज युधिष्ठिर की बात सुनकर अभिमन्यु ने सारथि को द्रोण की सेना के पास रथ ले चलने को कहा। जब बारम्बार चलने की आज्ञा दी तो सारथि ने उससे कहा___’आयुष्मान् ! पाण्डवों ने आपपर यह बहुत बड़ा भार रख दिया है; आप थोड़ी देर इस पर विचार कर लीजिये, फिर युद्ध कीजियेगा। आचार्य द्रोण बड़े विद्वान हैं, उन्होंने उत्तम अस्त्रविद्या में बड़ा परिश्रम किया है। इधर आप बड़े सुख और आराम में पले हैं तथा युद्धविद्या में भी उनके समान निपुण नहीं हैं।‘ सारथि की बात सुनकर अभिमन्यु ने उससे हँसकर कहा,  ‘सूत ! यह द्रोण अथवा क्षत्रिय_समुदाय क्या है ? यदि साक्षात् इन्द्र देवताओं के साथ आ जायँ अथवा भूतगणों को साथ लेकर शंकर उतर आवें तो मैं उनसे भी युद्ध कर सकता हूँ। इस क्षत्रियसमूह को देखकर आज मुझे आश्चर्य नहीं हो रहा है। यह संपूर्ण शत्रुसेना मेरी सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं है। और तो क्या, विश्वविजयी मामा श्रीकृष्ण और पिता अर्जुन को भी अपने विपक्ष में पाकर मुझे भय नहीं होगा।‘ इस प्रकार सारथि की बात की अवहेलना करके अभिमन्यु ने उसे शीघ्र ही द्रोण की सेना के पास चलने की आज्ञा दी। यह सुनकर सारथि मन में बहुत प्रसन्न तो नहीं हुआ, परन्तु घोड़ों को उसने द्रोण की ओर बढ़ाया। पाण्डव भी अभिमन्यु के पीछे_पीछे चले। उसे आते देख कौरव_पक्ष के सभी योद्धा द्रोण को आगे करके उसका सामना करने के लिये डट गये। अर्जुन का पुत्र अर्जुन से भी बढ़कर पराक्रमी था। वह युद्ध की इच्छा से द्रोण आदि महारथियों के सामने इस प्रकार जा रहा था जैसे हाथियों के सामने सिंह का बच्चा हो। अभिमन्यु अभी व्यूह की ओर बीस ही कदम बढ़ा था कि कौरव_योद्धा उसके ऊपर प्रहार करने लगे। फिर तो एक_दूसरे का संहार करनेवाले उभय_पक्ष के वीर योद्धाओं में घोर संग्राम होने लगा। उस भयंकर युद्ध में द्रोण के देखते_देखते व्यूह भेदकर अभिमन्यु उसके भीतर घुस गया। वहाँ जाने पर  उसके ऊपर बहुत_ से योद्धा टूट पड़े। परन्तु वीर अभिमन्यु अस्त्र चलाने में फुर्तीला था। जो_जो वीर उसके सामने आये सबको अपने मर्मभेदी बाणों से मारने लगा। उसके पैने बाणों की मार पड़ने से घायल हो बहुत_से योद्धा धराशायी हो गये। मरे हुए वीरों की लाशों और उसके टुकड़ों से वहाँ की भूमि ढक गयी। धनुष, बाण, ढाल, तलवार, अंकुश, तोमर आदि बहुत_से शस्त्रों और आभूषणों से युक्त हजारों वीरों की भुजाओं को अभिमन्यु ने काट डाला तथा रथों को तोड़ डाला। उसने अकेले ही भगवान् विष्णु के समान पराक्रम दिखाया। राजन् । उस समय आपके पुत्र और आपके पक्ष के योद्धा दसों दिशाओं की ओर देखते हुए भागने की राह ढूँढने लगे। उनके मुँह सूख गये थे, नेत्र चंचल हो रहे थे, बदन से पसीना बह रहा था, रोएँ खड़े हो गये थे। वे शत्रु को जीतने का साहस खो बैठे थे; अगर कुछ उत्साह था तो वहाँ से निकल भागने का। मरे हुए पुत्र, पिता, भाई, बन्धु तथा सम्बन्धियों को छोड़कर अपना प्राण बचाने की इच्छा से घोड़े और हाथियों को उतावली के साथ हाँकते हुए सब लोग भाग चले।
अमित तेजस्वी अभिमन्यु के द्वारा अपनी सेना को इस प्रकार तितर_बितर होते देख दुर्योधन अत्यन्त क्रोध में भरा हुआ उसके सामने आया। द्रोणाचार्य की आज्ञा से और भी बहत_से योद्धा वहाँ आ पहुँचे और दुर्योधन को को चारों ओर से घेरकर उसकी रक्षा करने लगे। इसी समय द्रोण, अश्त्थामा, कृपाचार्य, कर्ण, कृतवर्मा, शकुनि, बृहद्वल, शल्य, भूरि, भूरिश्रवा, शल और वृषसेन ने सुभद्राकुमार पर तीखे बाणों की वर्षा करके उसे आच्छादित कर दिया। इस प्रकार अभिमन्यु को मोहित करके उन्होंने दुर्योधन को बचा लिया।
जैसे मुँह का ग्रास छिन जाय, उसी प्रकार दुर्योधन का निकल जाना अभिमन्यु से नहीं सहा गया। उसने बड़ी भारी बाणवर्षा करके घोड़े और सारथियों सहित उन सभी महारथियों को मार भगाया तथा सिंह के समान गर्जना की। द्रोण आदि महारथी उसका सिंहनाद नहीं सह सके। वे रथों से उसको घेरकर बाणसमूहों की वर्षा करने लगे, किन्तु अभिमन्यु उन सब बाणों को आकाश में ही काट गिराता और तुरंत तीखे बाण मारकर सबको बींध डालता था। उसका यह पराक्रम अद्भुत था। उस समय अभिमन्यु और कौरव योद्धा एक दूसरे_पर लगातार प्रहार कर रहे थे। कोई भी युद्ध से विमुख नहीं होता था। उस घोर संग्राम में,दुःसह ने नौ बाण मारकर अभिमन्यु को बींध दिया। फिर दुःशासन ने बारह, कृपाचार्य ने तीन, द्रोण ने सत्रह, विविंशति ने सत्तर, कृतवर्मा ने सात, वृहद्वल ने आठ, अश्त्थामा ने सात, भूरिश्रवा ने तीन, शल्य ने तीन, शकुनि ने दो और राजा दुर्योधन ने तीन बाण मारे। महाराज ! उस समय प्रतापी अभिमन्यु जैसे नाच रहा हो, इस प्रकार सब ओर घूम_घूमकर सब महारथियों तो तीन_तीन बाणों से बेधता जाता था। फिर, आपके पुत्रों ने मिलकर जब उसे भय दिखाना आरम्भ किया तो अभिमन्यु क्रोध से जल उठा और अपनी अस्त्रशिक्षा का महान् बल दिखाने लगा। इतने में अश्मकनरेश के पुत्र ने बड़ी तेजी से वहाँ आकर अभिमन्यु को रोका और दस बाण मारकर उसको बींध डाला। तब अभिमन्यु ने मुस्कराते हुए उसे दस बाण मारे और और उनसे उसके घोड़ों, सारथि, ध्वजा, धनुष, भुजाओं तथा मस्तक को काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया। अभिमन्यु के हाथ से अश्मकराजकुमार के मारे जाने पर सारी सेना विचलित होकर भागने लगी। तब कर्ण, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, अश्त्थामा, शकुनि, शल, भूरिश्रवा, क्राथ, सोमदत्त, विविंशति, वृषसेन, सुषेण, कुण्डभेदी, प्रतर्दन, वृन्दारक, ललित्थ, प्रबाहु, दीर्घलोचन और दुर्योधन___इन सबने क्रोध में भरकर अभिमन्यु पर बाणवर्षा आरम्भ की। इन बड़े_बड़े धनुर्धारियों के बाण से जब अभिमन्यु बहुत घायल हो गया, तो उसने कवच और शरीर को छेद डालनेवाला एक तीखा बाण कर्ण के ऊपर चलाया। वह बाण कर्ण के कवच को छोड़कर बड़े वेग से उसके शरीर में घुसा और उसे भी वेधकर पृथ्वी में समा गया। उस दुःसह प्रहार से कर्ण को बड़ी व्यथा हुई और वह व्याकुल होकर उस रणभूमि में काँप उठा। इसी प्रकार क्रोध में भरे हुए अभिमन्यु ने तीन बाणों ने सुषेण, दीर्घलोचन और कुण्डभेदी को भी मारा। तब कर्ण ने पच्चीस, अश्त्थामा ने बीस और कृतवर्मा ने सात बाण मारकर अभिमन्यु को घायल किया। उसके संपूर्ण शरीर में बाण छिदे हुए थे, फिर भी वह पाशधारी यमराज के समान रणभूमि में विचार रहा था। शल्य को अपने पास ही खड़ा देख अभिमन्यु ने बाणों की वर्षा से उन्हें ढक दिया और आपकी सेना को डराते हुए उसने भीषण गर्जना की। उसके मर्मभेदी बाणों से घायल हुए राजा शल्य रथ के पिछले भाग में जा बैठे और मूर्छित हो गये। शल्य की यह अवस्था देख संपूर्ण सेना आचार्य द्रोण के देखते_देखते भाग चली। उस समय देवता, पितर, चारण, सिद्ध, यक्ष तथा मनुष्य अभिमन्यु का यशोगान करते हुए उसकी प्रशंसा कर रहे थे। शल्य का एक छोटा भाई था। उसने सुना कि अभिमन्यु ने मेरे भाई मद्रराज को रणभूमि में मूर्छित कर दिया है तो क्रोध में भरकर बाणवर्षा करता हुआ वह उनके पास आया। आते ही दस बाण मारकर उसने अभिमन्यु को घोड़े और सारथिसहित घायल कर दिया, फिर बड़े जोर से गर्जना की। तब अर्जुनकुमार ने बाणों से उसके घोड़े, छत्र, ध्वजा, सारथि, जुआ, बैठक, पहिया,  धुरी, भाथा, धनुष, प्रत्यंचा, पताका, पहियों के रक्षक एवं रथ की सब सामग्री को खण्ड_खण्ड करके उसके हाथ, गला और मस्तक भी काट गिराये। तब तो उसके अनुचर अत्यन्त भयभीत हो सब दिशाओं में भाग गये। अभिमन्यु के इस अद्भुत पराक्रम को देखकर सब लोग उसे शाबाशी देने लगे। उस समय वह दिव्य अस्त्रों से शत्रुसेना का संहार करता हुआ चारों दिशाओं में दिखायी दे रहा था। उसके इस अलौकिक कर्म को देखकर आपके सैनिक काँपने लगे। इसी समय आपका पुत्र दुःशासन बड़े जोर से गर्जा और क्रोध में भरकर बाणों की वर्षा करता हुआ सुभद्राकुमार पर चढ़ आया। आते ही  उसको अभिमन्यु ने छब्बीस बाण मारे। अभिमन्यु और दुःशासन दोनों ही रण_शिक्षा में कुशल थे। वे दायें_बायें विचित्र मण्डलाकार चलते हुए युद्ध करने लगे।

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