Sunday 9 December 2018

द्रोणाचार्यजीका शकटव्यूह और कई वीरों का संहार करते हुए अर्जुन का उसमें प्रवेश

संजय ने कहा___वह रात बीतने पर आचार्य द्रोण ने अपनी सब सेना को शकटव्यूह  में खड़ा किया। उस समय वे शंख बजाते हुए बड़ी तेजी से इधर_उधर घूम रहे थे। जब वह सारी सेना युद्ध के लिये उत्साहित होकर खड़ी हो गयी तो आचार्य ने जयद्रथ से कहा, ‘ तुम, भूरिश्रवा, कर्ण, अश्त्थामा, शल्य, वृषसेन और कृपाचार्य एक लाख घुड़सवार, साठ हजार रथी, चौदह हजार गजारोही और इक्कीस हजार पैदल सेना लेकर हमारे छः कोस पीछे रहो। वहाँ इन्द्रादि देवता भी तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकेंगे तो फिर पाण्डवों की बात ही क्या है ? वहाँ तुम बेखटके रहना।‘
द्रोणाचार्य के इस प्रकार ढाढ़स बाँधने पर सिंधुराज जयद्रथ गान्धार महारथियों और घुड़सवारों के साथ चला। ये दस हजार सिंधुदेशीय घोड़े बड़े सधे हुए और धीमी चाल से चलनेवाले थे। इसके बाद आपके पुत्र दुःशासन और विकर्ण सिंधुराज को लिये सेना के अग्रभाग में आकर डट गये। द्रोणाचार्यजी का बनाया हुआ यह चक्रशटक व्यूह चौबीस कोस लम्बा और पीछे की ओर दस कोस तक फैला हुआ था। इसके पीछे पद्मगर्भ नाम का अभेद्य व्यूह था और उस पद्मगर्भव्यूह में सूचीमुख नाम का एक गुप्त व्यूह बनाया गया था। इस प्रकार इस महाव्यूह की रचना करके आचार्य उसके आगे खड़े हुए। सूचीव्यूह के मुखभाग पर महान् धनुर्धर कृतवर्मा नियुक्त किया गया। इसके पीछे काम्बोजनरेश और जलसन्ध तथा उसके पीछे दुर्योधन और कर्ण थे। शकटव्यूह के अग्रभाग की रक्षा के लिये एक लाख योद्धा तैनात किये गये थे। इन सबके पीछे सूचीव्यूह के पार्श्वभाग में बड़ी भारी सेना के सहित राजा जयद्रथ खड़ा था। द्रोणाचार्यजी के बनाये हुए इस शकटव्यूह को देखकर राजा दुर्योधन बड़ा प्रसन्न हुआ। इस प्रकार जब कौरवसेना की व्यूहरचना हो गयी तथा भेरी और मृदंगों का शब्द एवं वीरों का कोलाहल होने लगा, तो रौद्रमुहूर्त में रणांगण में वीरवर अर्जुन दिखायी दिये। इधर नकुल के पुत्र शतानीक तथा धृष्टधुम्न ने पाण्डवसेना की व्यूहरचना की थी। इसी समय कुपित काल और वज्रधर इन्द्र के समान तेजस्वी, सत्यनिष्ठ और अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करनेवाले, नारायणानुयायी नरमूर्ति वीरवर अर्जुन ने अपने दिव्य रथ पर चढ़कर गाण्डीव धनुष की टंकार करके हुए युद्धभूमि में पदार्पण किया। उन्होंने अपनी सेना के अग्रभाग में खड़े होकर शंखध्वनि की।
उनके साथ ही श्रीकृष्णचन्द्र ने भी अपना पांचजन्य शंख बजाया। उन दोनों के शंखनाद से आपके सैनिकों के रोंगटे खड़े हो गये, शरीर काँपने लगे और वे अचेत_से हो गये कथा उनके जो हाथी, घोड़े आदि वाहन थे, वे मल_मूत्र छोड़ने लगे। इस प्रकार आपकी सारी सेना व्याकुल हो गयी। तब उसका उत्साह बढ़ाने के लिये फिर शंख, भेरी, मृदंग और नगारे आदि बजने लगे।
अब अर्जुन ने अत्यन्त हर्षित होकर श्रीकृष्ण से कहा, ‘ हृषिकेश ! आप घोड़ों को दुर्मर्षण की ओर बढ़ाइये। मैं उसकी हस्तिसेना को भेदकर शत्रु के दल में प्रवेश करूँगा।‘ यह सुनकर श्रीकृष्ण ने दुर्मर्षण की ओर रथ हाँका। बस, दोनों ओर से बड़ा तुमुल संग्राम छिड़ गया। आपकी ओर के सभी रथी श्रीकृष्ण और अर्जुन पर बाणों की वर्षा करने लगे। तब महाबाहु अर्जुन ने क्रोध में भरकर अपने बाणों से उनके सिर उड़ाने आरम्भ कर दिये। बात_की_बात में सारी रणभूमि वीरों के मस्तकों से छा गयी। यही नहीं, घोड़ों के सिर और हाथियों की सूड़ें भी सर्वत्र दिखायी देने लगीं। आपके सैनिकों को सब ओर से अर्जुन ही दिखायी देता था। वे बार_बार ‘अर्जुन यह है !’ ‘ अर्जुन कहाँ है ?’ ‘अर्जुन यह खड़ा हुआ है !’ इस प्रकार चिल्ला उठते थे। इस भ्रम में पड़कर उनमें से कोई_कोई तो आपस में और कोई अपने पर ही प्रहार कर बैठते थे। उस समय काल के पराभूत होकर वे सारे संसार को अर्जुनमय ही देखने लगे थे। कोई लोहूलुहान होकर मरणासन्न हो गये थे, कोई गहरी वेदना के कारण बेहोश हो रहे थे और कोई पड़े_पड़े अपने भाई_बन्धुओं को पुकार रहे थे।
इस प्रकार अर्जुन ने अपने बाणों से दुर्मर्षण की गजसेना का संहार कर डाला। इससे आपके पुत्र की बची हुई सेना भयभीत होकर भागने लगी। अर्जुन की मार के कारण वह उनकी ओर मुँह फेड़कर देख भी नहीं सकती थी। इस प्रकार सभी वीर मैदान छोड़कर भाग गये। उन सभी का उत्साह नष्ट हो गया। तब अपनी सेना को इस प्रकार छिन्न_भिन्न होते देखकर आपका पुत्र दुःशासन बड़ी भारी गजसेना लेकर अर्जुन के सामने आया और उन्हें चारों ओर से घेर लिया। इधर पुरुषसिंह अर्जुन ने बड़ा भीषण सिंहनाद किया और वे अपने बाणों से शत्रुओं की हस्तिसेना को कुचलने लगे। वे हाथी गाण्डीव_धनुष से छूटे हुए हजारों तीखे बाणों से घायल होकर भयंकर चित्कार करते पट_पट पृथ्वी पर गिरने लगे। उनके कन्धों पर जो पुरुष बैठे थे, उनके मस्तक भी अर्जुन ने अपने बाणों से उड़ा दिये। उस समय अर्जुन की फुर्ती देखने योग्य थी। वे कब बाण चढ़ाते हैं, कब धनुष की डोरी खींचते हैं, कब बाण छोड़ते हैं और कब तरकस में से नया बाण निकालते हैं___यह जान ही नहीं पड़ता था। वे मण्डलाकार धनुष के सहित नृत्य _सा करते जान पड़ते थे। इस प्रकार  अर्जुन के हाथ से व्यथित होकर दुःशासन की सेना अपने नायक के सहित भाग उठी और बड़ी तेजी से द्रोणाचार्य से सुरक्षित होने की आशंका से शकटव्यूह में घुस गयी। अब महारथी अर्जुन दुःशासन की सेना का संहार कर जयद्रथ के समीप पहुँचने के विचार से द्रोणाचार्य की सेना पर टूट पड़े। आचार्य व्यूह के द्वार पर खड़े थे। अर्जुन ने उनके सामने पहुँचकर श्रीकृष्ण की सम्मति से हाथ जोड़कर कहा, ‘ब्रह्मन् !  आप मेरे लिये कल्याण कामना कीजिये। मेरे लिये आप पिता के समान हैं। जिस तरह अश्त्थामा की रक्षा करना आपका कर्तव्य है, उसी प्रकार आपको मेरी भी रक्षा करनी चाहिये। आज आपकी कृपा से मैं सिंधुराज जयद्रथ को मारना चाहता हूँ। आप मेरी प्रतिज्ञा की रक्षा करें।‘ अर्जुन के इस प्रकार कहने पर आचार्य ने मुस्कराकर कहा, ‘अर्जुन ! मुझे परास्त किये बिना तुम जयद्रथ को नहीं जीत सकोगे।‘ इतना कहकर उन्होंने हँसते_ हँसते अर्जुन को उनके रथ, घोड़े, ध्वजा और सारथि के सहित पैने बाणों से आच्छादित कर दिया। तब तो अर्जुन ने भी द्रोणाचार्य के बाणों को रोककर अपने अत्यन्त भीषण बाणों से उन पर आक्रमण किया। द्रोण ने तुरंत उनके बाण काट डाले और अपने विषाग्नि के समान धधकते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों ही पर चोट की। इस पर धनंजय लाखों बाण छोड़कर आचार्य की सेना का संहार करने लगे। उनके बाणों से कट_कटकर अनेकों योद्धा, घोड़े और हाथी धराशायी होने लगे। अब द्रोण ने पाँच बाणों से श्रीकृष्ण और तिहत्तर से अर्जुन को घायल कर डाला तथा तीन बाणों से उनकी ध्वजा को बींध दिया। फिर एक क्षण में ही बाणों की  वर्षा करके अर्जुन को अदृश्य कर दिया। द्रोण और अर्जुन के युद्ध को इस प्रकार बढ़ता देख श्रीकृष्ण ने उस दिन के प्रभाव कार्य का विचार किया और अर्जुन से कहा, ‘अर्जुन !  देखो, हमें यहाँ समय नष्ट नहीं करना चाहिये। आज हमें बहुत बड़ा काम करना है। इसलिये द्रोणाचार्य को छोड़कर आगे बढ़ना चाहिये।‘ अर्जुन ने कहा, ‘आपकी जैसी इच्छा हो, वही काजिये।‘ तब अर्जुन आचार्य की प्रदक्षिणा कर बाण छोड़ते हुए आगे बढ़ने लगे। इस पर द्रोण ने कहा, ‘पार्थ ! तुम कहाँ जा रहे हो ? संग्राम में शत्रु को परास्त किये बिना तो तुम कभी नहीं हटते थे।‘ अर्जुन ने कहा, ‘आप मेरे शत्रु नहीं, गुरु हैं। मैं भी आपका शिष्य और पुत्र के समान हूँ। संसार में ऐसा कोई पुरुष नहीं है, जो युद्ध में आपको परास्त कर सके।‘ इस प्रकार कहते_कहते अर्जुन जयद्रथ के वध के लिये उत्सुक होकर बड़ी तेजी से कौरवों की सेना में घुस गये। उनके पीछे_पीछे उनके चक्ररक्षक पांचालराजकुमार युधामन्यु और उत्तमौजा भी चले गये। अब जय, कृतवर्मा, कम्बोजनरेश और श्रुतायु वे उन्हें आगे बढ़ने से रोका। उन विजयाभिलाषी वीरों के साथ अर्जुन का घोर संग्राम होने लगा। कृतवर्मा ने अर्जुन को दस बाण मारे। अर्जुन ने उसके एक सौ तीन बाण मारकर उसे अचेत_सा कर दिया। तब उसने हँसकर श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों ही पर पच्चीस_पच्चीस बाण छोड़े। इस पर अर्जुन ने उसका धनुष काटकर उसे तिहत्तर बाणों से घायल किया। कृतवर्मा ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर पाँच बाणों से अर्जुन की छाती में वार किया। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘पार्थ ! तुम कृतवर्मा पर दया करो। इस समय संबंध का विचार छोड़कर बलात् इसे मार डालो।‘ इस पर अर्जुन ने अपने बाणों से कृतवर्मा को अचेत कर काम्बोजवीरों की सेना की ओर चले। अर्जुन को इस प्रकार बढ़ते देखकर महाप्रतापी राजा श्रुतायुध अपना विशाल धनुष चढ़ाता बड़े क्रोध से उनके सामने आया। उसने अर्जुन के तीन और श्रीकृष्ण के सत्तर बाण मारे तथा एक तेज बाण से उसकी ध्वजा पर वार किया। अर्जुन ने तुरंत ही उसका धनुष काटकर तरकस के भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये। तब उसने दूसरा धनुष लेकर अर्जुन की छाती और भुजाओं में नौ बाण मारे। इसपर अर्जुन ने हजारों बाण छोड़कर श्रुतायुध को तंग कर डाला और उसके सारथि और घोड़ों को भी मार डाला। तब महाबली श्रुतायु रथ से उतरकर हाथ में गदा ले अर्जुन की ओर दौड़ा। यह कर्ण का पुत्र था। महानदी पर्णाशा इसकी माता थी। उसने अपने पुत्र के स्नेहवश वरुण से कहा था कि ‘मेरा पुत्र संसार में शत्रुओं के लिये अवध्य हो।‘ इस पर वरुण ने प्रसन्न होकर कहा था कि ‘मेरा पुत्र संसार में शत्रुओं के लिये अवध्य हो।‘
इसपर वरुण ने प्रसन्न होकर कहा था, ‘मैं तुझे यह वर देता हूँ और साथ ही यह दिव्य अस्त्र भी देता हूँ। इसके कारण तेरा पुत्र अवध्य हो जायगा। परन्तु संसार में मनुष्य का अमर होना किसी प्रकार सम्भव नहीं है। जो उत्पन्न हुआ है,’ उसे अवश्य मरना होगा।‘ ऐसा कहकर वरुण ने श्रुतायुध को एक अभिमन्त्रित गदा दी और कहा, ‘यह गदा तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति पर नहीं छोड़नी चाहिये, जो युद्ध न कर रहा हो। ऐसा करने पर तुमपर ही गिरेगी।‘ किन्तु इस समय श्रुतायुध के मस्तक पर काल मँडरा रहा था। इसलिये उसने वरुण की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और उससे श्रीकृष्ण पर वार किया। भगवान् ने उसे अपने विशाल वक्षःस्थल पर लिया और उसने वहाँ से लौटकर श्रुतायुध का काम तमाम कर दिया। श्रुतायुध ने युद्ध न करनेवाले श्रीकृष्ण पर गदा का वार किया था। इसलिये उसने लौटकर उसी को नष्ट कर दिया। इस प्रकार वरुण के कथनानुसार ही श्रुतायुध का अन्त हुआ और वह सब योद्धाओं के देखते_देखते प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर गया।
श्रुतायुध को मरा देखकर कौरवों की सारी सेना और उसके नायकों के भी पैर उखड़ गये। इसी समय कम्बोजनरेश का शूरवीर पुत्र सुदक्षिण अर्जुन के सामने आया। अर्जुन ने उसके ऊपर सात बाण छोड़े। वे उस वीर को घायल करके पृथ्वी में घुस गये। तब सुदक्षिण ने तीन बाणों से श्रीकृष्ण को बींधकर पाँच बाण अर्जुन पर छोड़े। अर्जुन ने उसका धनुष काटकर ध्वजा भी काट डाली और दो अत्यन्त पैने बाणों से उसे भी घायल कर दिया। अब सुदक्षिण ने अत्यन्त कुपित होकर धनंजय के ऊपर एक भयंकर शक्ति छोड़ी। वह उन्हें घायल करके चिनगारियों की वर्षा करती पृथ्वी पर गिर गयी। शक्ति की चोट से अर्जुन को गहरी मूर्छा आ गयी। चेत होने पर उन्होंने कंकपत्रवाले चौदह बाणों से सुदक्षिण को तथा उसके घोड़े, ध्वजा, धनुष और सारथि को भी घायल कर दिया। फिर और भी बहुत_ से बाण छोड़कर उसके रथ के टुकड़े_टुकड़े कर दिये। इसके पश्चात् एक तीखी धारवाले बाण से उन्होंने सुदक्षिण की छाती फाड़ डाली। इससे उसका कवच टूट गया, अंग छिन्न_भिन्न हो गये और मुकुट तथा आभूषण इधर_उधर बिखर गये। फिर एक कर्णी नाम के बाण से उन्होंने उसे भी धराशायी कर दिया। राजन् ! इस प्रकार वीर श्रुतायुध और सुदक्षिण के मारे जाने पर आपके सैनिक क्रोध में भरकर अर्जुन पर टूट पड़े तथा अभिशाह, शूरसेन, शिबि और बसाति जाति के वीर उन पर बाणों की वर्षा करने लगे। अर्जुन ने अपने बाणों से उनमें से छः हजार योद्धाओं का सफाया कर दिया। तब उन्होंने चारों ओर से अर्जुन को घेर लिया। किन्तु वे जैसे_जैसे धनंजय की ओर गये, वैसे ही उन्होंने अपने गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाणों से उसके सिर और भुजाओं को उड़ा दिया। उनके कटे हुए सिरों से सारी रणभूमि पट गयी। जिस प्रकार वीर धनंजय उनका इस प्रकार संहार कर रहे थे, महाबली श्रुतायु और अच्युतायु उनके सामने आकर युद्ध करने लगे। उन दोनों वीरों ने उनकी दायीं और बायीं ओर से बाण बरसाना आरम्भ किया और हजारों बाण छोड़कर उन्हें बिलकुल ढक दिया। इसी समय श्रुतायु ने अत्यन्त क्रोध में भरकर अर्जुन पर बड़े जोर से तोमर का वार किया। उससे घायल होकर वे एकदम अचेत हो गये। इतने में ही अच्युतायु ने  उनके ऊपर एक अत्यन्त तीक्ष्ण त्रिशूल फेंका। उसकी चोट ने अर्जुन के घाव पर नमक का काम किया और वे बहुत घायल हो जाने के कारण अपने रथ की ध्वजा के डंडे का सहारा लेकर बैठे रह गये। तब अर्जुन को मरा हुआ समझकर आपकी सारी सेना में बड़ा कोलाहल होने लगा। अर्जुन को अचेत देखकर श्रीकृष्ण बड़े चिन्तित हुए और अपनी मधुर वाणी ले उन्हें सचेत करने लगे। उससे बल पाकर वे धीरे_धीरे होश में आने लगे। इस प्रकार मानो उनका यह नया जन्म ही हुआ। उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण और उनका रथ बाणों से ढके हुए हैं तथा दोनों शत्रु सामने डटे हुए हैं। बस, उन्होंने तुरंत ही ऐन्द्रास्त्र प्रकट किया। उससे हजारों बाण निकलने लगे। उन्होंने उन दोनों वीरों पर वार किया और उनके छोड़े हुए बाण भी अर्जुन के बाणों से विदीर्ण होकर आकाश में उड़ने लगे। बात_की_बात में उनके बाणों से मस्तक और भुजाएँ कट जाने के कारण वे दोनों महारथी धराशायी हो गये। इस प्रकार श्रुतायु और अच्युतायु का वध हुआ देखकर सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। इसके पश्चात् अर्जुन उनके अनुयायी पचास रथियों को मारकर और भी अच्छे_अच्छे वीरों का संहार करते कौरवों की सेना की ओर बढ़े। श्रुतायु और अच्युतायु का वध हुआ देखकर उनके पुत्र नियतायु और दीर्घायु क्रोध में भरकर बाणों की वर्षा करते अर्जुन के सामने आये। किन्तु अर्जुन ने अत्यन्त कुपित होकर अपने बाणों से एक मुहूर्त में ही उन्हें यमराज के पास भेज दिया। हाथी जिस प्रकार कमलवन को खूँद डालता है, उसी प्रकार महावीर अर्जुन कौरवों की सेना को कुचल रहे थे। उस समय कोई भी क्षत्रियवीर उन्हें रोक नहीं पाता था। इतने में ही गजसेना के सहित अंगदेशीय, पूर्वीय, दक्षिणात्य और  राजाओं ने दुर्योधन की आज्ञा से उनपर आक्रमण किया। किन्तु अर्जुन ने गाण्डीव से छोड़े हुए बाणों से तत्काल ही उनके सिर और भुजाओं को उड़ा दिया। इस युद्ध में अनेकों गजारोही म्लेच्छ धनंजय के बाणों से बिंधकर धराशायी हो गये। अर्जुन ने अपने बाणजाल से सारी सेना को आच्छादित कर दिया और मुण्डित, अर्धमुण्डित, जटाधारी एवं दाढ़ीवाले आचारहीन म्लेच्छों को अपने शस्त्रकौशल से काट_कूट डाला। उनके बाणों से बिंधकर वे सैकड़ों पर्वतीय योद्धा भयभीत होकर संग्रामभूमि से भाग उठे। इस प्रकार घोड़े, हाथी और रथों के सहित अनेकों वीरों का संहार करते हुए वीर धनंजय रणभूमि में विचार रहे थे। अब राजा अम्बष्ठ ने उनकी गति को रोका। अर्जुन ने बड़ी फुर्ती से अपने तीखे बाणों से उसके घोड़ों को मार डाला और धनुष कोनभी काट गिराया। अम्बष्ठ एक भारी गदा लेकर बार_बार अर्जुन और श्रीकृष्ण पर चोट करने लगा। तब अर्जुन ने दो बाणों से गदा के सहित उसकी दोनों भुजाएँ काट डाली और एक बाण से उसका मस्तक भी उड़ा दिया। इस प्रकार वह मरकर धमाक से पृथ्वी पर गिरा।












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