Saturday 22 December 2018

दुर्योधन के उलाहना देने पर द्रोणाचार्य का उसे अभेद्य कवच पहनाकर अर्जुन के साथ युद्ध करने के लिये भेजना

संजय ने कहा___राजन् ! इस प्रकार अर्जुन जब सिंधुराज जयद्रथ का वध करने की इच्छा  से द्रोणाचार्य और कृतवर्मा की सेनाओं को चीरकर व्यूह में घुस गये तथा उनके हाथ से सुदक्षिण और श्रुतायु का वध हो गया, तो आपकी सेना को भागती देखकर आपका पुत्र दुर्योधन अकेला ही अपने रथ पर चढ़ा हुआ बड़ी फुर्ती से द्रोणाचार्य के पास आया और कहने लगा, ‘आचार्य ! पुरुषसिंह अर्जुन हमारी इस विशाल वाहिनी को कुचलकर भीतर घुस गया है। अब आप विचार करें कि हमें उसके नाश के लिये क्या करना चाहिये। हमें तो आपही का सबसे बढ़कर भरोसा है। आग जिस प्रकार घास_फूस को जला डालती है, उसी प्रकार अर्जुन हमारी सेना का संहार कर रहा है। इस समय जयद्रथ की रक्षा करनेवाले बड़े संदेह में पड़ गये हैं। हमारे पक्ष के राजाओं को पूरा विश्वास था कि अर्जुन जीते_जी आपको लाँघकर सेना में नहीं घुस सकेगा। परंतु मैं देखता हूँ वह आपके सामने ही व्यूह में घुस गया है। आज मुझे अपनी सारी सेना विकल और विनष्ट_सी जान पड़ती है। सिंधुराज तो अपने घर को जा रहे थे। यदि आप मुझे यह वर न देते कि मैं अर्जुन को रोक लूँगा तो मैं उन्हें कभी न रोकता।  मैंने मूर्खता से आपकी रक्षा में विश्वास करके सिंधुराज को समझा_बुझा दिया।
मेरा विश्वास है कि मनुष्य यमराज की दाढ़ों में पड़कर भले ही बच जाय, किन्तु रणभूमि में अर्जुन के हाथ में आकर जयद्रथ के प्राण किसी प्रकार नहीं बच सकते। अतः आप कोई ऐसा उपाय कीजिये, जिससे सिंधुराज की रक्षा हो सके। मैंने घबराहट में कुछ अनुचित कह दिया हो, तो उससे कुपित न होकर आप किसी प्रकार इन्हें बचाइये।‘ द्रोणाचार्य ने कहा___राजन् ! मैं तुम्हारी बात का बुरा नहीं मानता। मेरे लिये तुम अश्त्थामा के समान हो। किन्तु जो सच्ची बात है, वह मैं तुमसे कहता हूँ; ध्यान देकर सुनो। अर्जुन के सारथि श्रीकृष्ण हैं और उनके घोड़े भी बड़े तेज हैं। इसलिये थोड़ा_सा रास्ता मिलने पर भी वे तत्काल घुस जाते हैं। मैंने सभी धनुर्धरों के सामने युधिष्ठिर को पकड़ने की प्रतिज्ञा की थी। इस समय अर्जुन उनके पास नहीं है और वे अपनी सेना के आगे खड़े हुए हैं। इसलिये अब मैं व्यूह के द्वार को छोड़कर अर्जुन से लड़ने के लिए नहीं जाऊँगा। तुम कुल और पराक्रम में अर्जुन के समान ही हो और इस पृथ्वी के स्वामी हो। इसलिये अपने सहायकों को लेकर तुम्हीं अकेले अर्जुन से युद्ध करो, किसी बात का भय मत मानो। दुर्योधन ने कहा___आचार्यचरण ! जो आपको भी लाँघ गया, उस अर्जुन को मैं कैसे रोक सकूँगा। वह तो सभी शस्त्रधारियों में बढ़ा_चढ़ा है। मेरे विचार से संग्राम में वज्रधर इन्द्र को जीत लेना तो आसान है, किन्तु अर्जुन से पार पाना सहज नहीं है। जिसने कृतवर्मा और आपको भी परास्त कर दिया, श्रुतायुध, सुदक्षिण, अम्बष्ठ, श्रुतायु और अच्युतायु को नष्ट कर डाला और सहस्त्रों म्लेच्छों का संहार कर दिया, उस शस्त्रकुशल दुर्जय वीर अर्जुन के मुकाबले में मैं कैसे युद्ध कर सकूँगा ? द्रोणाचार्य बोले___ कुरुराज ! तुम ठीक कहते हो, अर्जुन अवश्य दुर्जय है; किन्तु मैं एक ऐसा उपाय किये देता हूँ, जिससे तुम उसकी टक्कर झेल सकोगे। आज श्रीकृष्ण के सामने ही तुम अर्जुन से युद्ध करोगे। इस अद्भुत प्रसंग को आज सभी वीर देखेंगे। मैं तुम्हारे इस सुवर्ण के कवच को इस प्रकार बाँध दूँगा जिससे बाण या दूसरे प्रकार के अस्त्रों का तुम्हारे ऊपर कोई असर नहीं होगा। यदि मनुष्यों के सहित देवता, असुर, यक्ष, नाग, राक्षस और तीनों लोक भी तुमसे युद्ध करने के लिये सामने आयेंगे, तो भी तुम्हें कोई भय नहीं होगा। इसलिये इस कवच को धारण करके तुम स्वयं ही क्रोधातुर अर्जुन के सामने युद्ध के लिये जाओ। ऐसा कहकर आचार्य ने तुरंत ही आचमन कर शास्त्रविधि से मंत्रोच्चारण करते हुए दुर्योधन को वह चमचमाता हुआ कवच पहना दिया और कहा, ‘परमात्मा, ब्रह्मा और ब्राह्मण तुम्हारा कल्याण करे।‘  इसके बाद वे फिर कहने लगे, ‘भगवान् शंकर ने यह मंत्र और कवच इन्द्र को दिया था, इसी से उन्होंने संग्राम में वृत्रासुर का वध किया था। फिर इन्द्र ने यह मंत्रियों कवच अंगिराजी को दिया। अंगिरा ने इसे अपने पुत्र बृहस्पति को और बृहस्पतिजी ने अग्निवेश्य को बताया। अग्निवेश्यजी ने यह कवच मुझे दिया था जो आज मैं तुम्हारे शरीर की रक्षा के लिये मंत्रोच्चारणपूर्वक तुम्हें पहनाता हूँ।‘ आचार्य द्रोण के हाथ से इस प्रकार युद्ध के लिये तैयार हो राजा दुर्योधन त्रिगर्तदेश के सहस्त्रों रथी और अनेकों अन्य महारथियों को साथ ले गाजे_बाजे को साथ ले अर्जुन की ओर चला।

No comments:

Post a Comment