Saturday 22 December 2018

द्रोणाचार्य के साथ धृष्टधुम्न और सात्यकि का घोर युद्ध

संजय ने कहा___राजन् ! जब अर्जुन और श्रीकृष्ण कौरवों की सेना में घुस गये और उनके पीछे दुर्योधन भी चला गया, तो पाण्डवों ने सोमकवीरों को साथ ले बड़ा कोलाहल करते हुए द्रोणाचार्य पर धावा बोल दिया। बस दोनों ओर से बड़ी घमासान लड़ाई छिड़ गयी। उस समय जैसा युद्ध हुआ, वैसा हमने न तो कभी देखा है और न सुना ही है। पुरुषसिंह धृष्टधुम्न और पाण्डवलोग बार_बार आचार्य पर प्रहार कर रहे थे और जिस प्रकार आचार्य उन पर बाणों की वर्षा करते थे। उसी प्रकार धृष्टधुम्न ने भी बाणों की झड़ी लगा दी थी। द्रोण पाण्डवों की जिस_जिस रथ_सेना पर बाण छोड़ते थे, उसी_उसी की ओर से बाण बरसाकर धृष्टधुम्न उसे हटा देता था। इस प्रकार बहुत प्रयत्न करने पर भी धृष्टधुम्न से सामना होने पर उनकी सेना के तीन भाग हो गये।
पाण्डवों की मार से घबराकर कुछ योद्धा तो कृतवर्मा की सेना में जा मिले, कुछ जलसन्ध की ओर चले गये और कुछ द्रोणाचार्य के पास ही रहे। महारथी द्रोण तो अपनी सेना को संगठित करने की प्रयत्न करते थे, किन्तु धृष्टधुम्न उसे बार_बार कुचल रहा था। अन्त में आपकी सेना उसी प्रकार छिन्न_भिन्न हो गयी जैसे दुष्ट राजा की देश दुर्भिक्ष, महामारी और लुटेरों के कारण उजड़ जाता है। इस प्रकार जब पाण्डवों की मार से सेना के तीन भाग हो गये तो आचार्य क्रोध में भरकर अपने बाणों से पांचालों को घायल करने लगे। इस समय उनका स्वरूप प्रज्वलित प्रलयाग्नि के समान भयानक हो गया। आचार्य के बाणों से संतप्त होकर धृष्टधुम्न का सेना घाम से तपी हुई_सी होकर भटकने लगी। इस प्रकार द्रोणाचार्य और धृष्टधुम्न के बाणों से व्यथित होने के कारण दोनों ओर के वीर प्राणों की आशा छोड़कर सब ओर पूरी शक्ति लगाकर युद्ध करने लगे। इसी समय कुन्तीनन्दन भीमसेन को विविंशति, चित्रसेन और विकर्ण___इन तीनों भाइयों ने घेर लिया। शिबि के पुत्र राजा गोवासन ने एक हजार योद्धाओं को साथ में लेकर काशीराज अभिभू के पुत्र पराक्रान्त को रोक दिया। मद्रराज राजा शल्य ने महाराज युधिष्ठिर का सामना किया। दुःशासन क्रोध में भरकर सात्यकि पर टूट पड़ा। मैंने अपनी चार सौ वीरों की सेना लेकर चेकितान की प्रगति रोक दी। शकुनि ने चार सौ गान्धारदेशीय योद्धाओं के साथ नकुल का मुकाबला किया। अवन्तिदेशीय विन्द और अनुविन्द मत्स्यराज विराट के सामने आकर डट गये। महाराज बाह्लीक ने शिखण्डी को रोका। अवन्तिनरेश ने प्रभद्रक और सौमक वीरों को साथ लेकर धृष्टधुम्न का सामना किया तथा क्रूरकर्मा राक्षस घतोत्कच पर अलायुध ने चढ़ाई कर दी।
महाराज ! इस समय सिन्धुराज जयद्रथ सारी सेना के पीछे था और कृपाचार्य आदि महान् धनुर्धर उसकी रक्षा के लिये तैनात थे। उसकी दाहिनी ओर अश्त्थामा और बायीं ओर कर्ण थे तथा भूरिश्रवा आदि उसके पृष्ठरक्षक थे। इनके सिवा कृपाचार्य, वृषसेन, शल और शल्य आदि अनेकों रणबाँकुरे वीर भी उसी की रक्षा के लिये युद्ध कर रहे थे। व्यूह के मुहाने पर उक्त वीरों का द्वन्दयुद्ध होने लगा। माद्रीपुत्र नकुल और सहदेव ने बाणों की वर्षा करके अपने प्रति वैरभाव रखनेवाले शकुनि का नाक में दम कर दिया। उस समय उसे कुछ भी उपाय न सूझ पड़ता था, वह सारा पराक्रम खो बैठा था। जब बाणों की चोट से वह बहुत ही तंग आ गया तो बड़ी तेजी से अपने घोड़ों को बढ़ाकर द्रोणाचार्यजी की सेना में जा मिला। इस समय धृष्टधुम्न के साथ लड़ते हुए महाबली द्रोणाचार्यजी ने जैसी बाणवर्षा की, वह बड़ी ही अचम्भे में डालनेवाली थी। द्रोण और धृष्टधुम्न  दोनों ही ने अनेकों वीरों के सिर उड़ा दिये। जब धृष्टधुम्न ने देखा कि आचार्य बहुत समीप आ गये हैं, तो उसने धनुष रखकर हाथ में ढ़ाल तलवार ले लिये और उनका वध करने के लिये वह अपने रथ के जूए से उनके रथ पर कूद गया। आचार्य ने सौ बाण मारकर उसकी ढाल को और दस बाणों से उसकी तलवार को काट कूट डाला। फिर चौसठ बाणों से उसके घोड़ों का काम तमाम कर दिया तथा दो बाणों से ध्वजा और छत्र काटकर उसके पार्श्वरक्षकों को भी धराशायी कर दिया। इसके पश्चात् उन्होंने धनुष को कान तक खींचकर धृष्टधुम्न पर एक प्राणान्तक बाण छोड़ा। किंतु सात्यकि ने चौदह तीखे बाणों से  उसे बीच में ही काट डाला और आचार्य के चंगुल में फँसे हुए धृष्टधुम्न को बचा लिया। इस प्रकार जब द्रोण के मुकाबले पर सात्यकि आ गया तो पांचाल वीर धृष्टधुम्न को रथ में चढ़ाकर तुरंत ही दूर ले गये।
अब आचार्य ने सात्यकि के ऊपर बाण बरसाना आरम्भ किया। सात्यकि के घोड़े भी बड़े फुर्ती से द्रोण के सामने आकर डट गये। तब वे दोनों वीर परस्पर हजारों बाण छोड़ते हुए घोर युद्ध करने लगे। उन दोनों ने आकाश में बाणों का जाल_सा फैला दिया और दसों दिशाओं को बाणों से व्याप्त कर दिया। बाणों का जाल फैल जाने से सब ओर घोर अन्धकार छा गया तथा सूर्य का प्रकाश तथा वायु का चलना भी बन्द हो गया। दोनों के शरीर खून में लथपथ हो गये। उनके छत्र और ध्वजाएँ कटकर गिर गयीं। वे दोनों प्राणान्तक बाणों का प्रयोग कर रहे थे। उस समय हमारे और राजा युधिष्ठिर के पक्ष के वीर खड़े_खड़े द्रोण और सात्यकि का संग्राम देख रहे थे। विमानों पर चढ़े हुए ब्रह्मा और चन्द्रमा आदि देवता तथा सिद्ध, चारण, विद्याधर और नागगण भी उन पुरुषसिंहों के आगे बढ़ने, पीछे हटने तथा तरह_तरह के शस्त्रसंचालन के कौशल को देखकर बड़े आश्चर्य में पड़े हुए थे। इस प्रकार वे दोनों वीर अपने_अपने हाथ की सफाई दिखाते हुए एक_दूसरे को बाणों से बिंध रहे थे। इतने में ही सात्यकि ने अपने सुदृढ़ बाणों से आचार्य के धनुष_बाण काट डाले। क्षणभर में ही द्रोण ने दूसरा धनुष चढ़ाया। किन्तु सात्यकि ने उसे भी काट डाला। इसी प्रकार द्रोण जो_जो धनुष चढ़ाते गये, सात्यकि उसी को काटता गया। इस तरह उसने उनके सौ धनुष काट डाले। यह काम इतनी सफाई से हुआ कि आचार्य कब धनुष चढ़ाते हैं तथा सात्यकि कब उसे काट डालता है___यह किसी को जान ही नहीं पड़ता था। सात्यकि का यह अतिमानुष कर्म देखकर द्रोण ने मन_ही_मन विचार किया कि जो अस्त्रबल परशुराम, कार्तवीर्य, अर्जुन और भीष्म में है वही सात्यकि में भी है।
इसके बाद द्रोणाचार्य ने एक नया धनुष लिया और उस पर कई अस्त्र चढ़ाये। किन्तु सात्यकि ने अपने अस्त्र_कौशल से उन सब अस्त्रों तो काट डाला और आचार्य पर तीखे बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। इससे सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ। अन्त में आचार्य ने अत्यन्त कुपित होकर सात्यकि का संहार करने के लिये दिव्य आग्नेयास्त्र छोड़ा। यह देखकर सात्यकि ने दिव्य वारुणास्त्र का प्रयोग किया। उस समय दोनों वीरों को दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करते देखकर बड़ा हाहाकार होने लगा। यहाँ तक कि आकाश में पक्षियों का उड़ना भी बन्द हो गया। तब राजा युधिष्ठिर, भीमसेन, नकुल और सहदेव सब ओर से सात्यकि की रक्षा करने लगे तथा धृष्टधुम्नादि के साथ राजा विराट और केकयनरेश मत्स्य और शाल्वदेशीय सेनाओं को लेकर द्रोण के सामने आकर डट गये। दूसरी ओर दुःशासन के नेतृत्व में हजारों राजकुमार द्रोण को शत्रुओं से घिरा देखकर उनकी सहायता के लिये आ गये। बस, दोनों ओर के वीरों में बड़ा तुमुल युद्ध छिड़ गया। उस समय धूलि और बाणों की वर्षा के कारण कुछ भी दिखाई नहीं देता था; इसलिये वह युद्ध मर्यादाहीन हो गया___उसमें अपने और हराया पक्ष का भी ज्ञान नहीं रहा।






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