Sunday 17 February 2019

कौरवसेना के पराभव के विषय में राजा धृतराष्ट्र और संजय का संवाद तथा कृतवर्मा के पराक्रम की वर्णन

राजा धृतराष्ट्र ने कहा___ संजय ! हमारी सेना अनेक प्रकार के गुणों से सम्पन्न और सुव्यवस्थित है। उसकी व्यूहरचना भी विधिवत् की जाती है। हम सर्वदा उसका अच्छी तरह सत्कार करते रहते हैं तथा उसका  भी हमारे प्रति अच्छा भाव है। उसमें कोई बूढ़ा या बालक, अधिक दुबला या मोटा अथवा बौना पुरुष भी नहीं है। सभी सबल और स्वस्थ शरीरवाले हैं। हमने किसी को भी फुसलाकर, उपकार करके अथवा संबंध के कारण भर्ती नहीं किया। इनमें ऐसा कोई भी नहीं है, जो बिना बुलाये अथवा बेगार में पड़कर लाया गया हो। हमने अनेकों महारथी योद्धाओं को चुन_चुनकर ही भर्ती किया है तथा उनमें से किसी को यथायोग्य वेतन देकर और किन्ही को प्रिय भाषण करके संतुष्ट किया है। हमारी सेना में ऐसा योद्धा एक भी नहीं है, जिसे थोड़ा वेतन मिलता हो,अथवा वेतन मिलता ही न हो। मैंने, मेरे पुत्रों ने तथा हमारे बन्धु_बान्धवों ने सभी का दान, मान और आसनादि से सत्कार किया है। किन्तु फिर भी श्रीकृष्ण और अर्जुन सही_सलामत हमारी सेना में घुस गये, कोई उनका बाल भी बाँका नहीं कर सका। यहाँ तक कि सात्यकि ने भी उन्हें कुचल डाला। इसमें भाग्य के सिवा और किसे दोष दिया जाय। अच्छा, जब दुर्योधन ने अर्जुन को जयद्रथ के सामने खड़ा देखा और सात्यकि को निर्भयता से अपनी सेना में घुसते पाया, तो उसने उस समय पर अपना क्या कर्तव्य निश्चय किया ? मैं तो यही समझता हूँ कि अर्जुन और सात्यकि को अपनी सेना लाँघते और कौरव योद्धाओं को युद्धस्थल से भागते देखकर मेरे पुत्र  बड़ी चिन्ता में पड़ गये होंगे। इस समय सात्यकि के सहित श्रीकृष्ण और अर्जुन के अपनी सेना में प्रवेश की बात सुनकर मैं भी बड़ी घबराहट में पड़ गया हूँ। अच्छा, जब द्रोणाचार्य  ने पाण्डवों को व्यूह के द्वार पर रोक लिया तो वहाँ उनके साथ किस प्रकार युद्ध हुआ___यह सुनाओ और यह भी बताओ कि अर्जुन ने सिंधुराज जयद्रथ का वध करने के लिये क्या उपाय किया ? संजय ने कहा___राजन् ! यह सारी विपत्ति आपके अपराधसेे ही आयी है; इसलिये अन्य साधारण पुरुषों के समान आप इसके लिये चिन्ता न करें। पहले जब आपके बुद्धिमान सुहृद् विदुर आदि ने कहा था कि आप पाण्डवों को राज्य से च्युत न करें, तो आपने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। जो पुरुष अपने हितैषी सुहृदों की बात पर ध्यान नहीं देता, वह भारी आपत्ति में पड़कर आपही की तरह चिंता किया करता है। श्रीकृष्ण ने भी सन्धि के लिये आपसे बहुत प्रार्थना की थी; किन्तु आपसे उनका भी मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ। इससे आपकी गुणहीनता, पुत्रों के प्रति पक्षपात, धर्म पर अविश्वास, पाण्डवों के प्रति मत्सर और कुटिल भाव जानकर तथा आपके मुख से बहुत_सी बेबसीकी_सी बातें सुनकर ही सर्वलोकेश्वर श्रीकृष्ण ने कौरव_पाण्डव में यह भारी युद्ध खड़ा किया है। यह भीषण संहार आपके ही अपराध से हो रहा है। मुझे तो आगे_पीछे या मध्य में भी आपका कोई पुण्यकृत्य दिखायी नहीं देता। मेरे विचार से तो इस पराजय की जड़ आप ही हैं। अतः आप सावधान होकर जिस प्रकार यह भीषण संग्राम हुआ था, वह सुनिये।
जब सत्यपराक्रमी सात्यकि आपकी सेना में घुस गया तो भीमसेन आदि पाण्डववीर भी आपके सैनिकों पर टूट पड़े। उन्हें बड़े क्रोध से धावा करते देख महारथी कृतवर्मा ने अकेले ही आगे बढ़ने से रोक दिया। इस समय हमने कृतवर्मा का बड़ा ही अद्भुत पराक्रम देखा। सारे पाण्डव मिलकर भी युद्ध में उसे नीचा न दिखा सके। तब महाबाहु भीम ने तीन, सहदेव ने बीस, धर्मराज ने पाँच, नकुल ने सौ, धृष्टधुम्न ने तीन और द्रौपदी के पुत्रों ने सात_सात बाणों से घायल किया तथा विराट, द्रुपद और शिखण्डी ने पाँच_पाँच बाण मारकर फिर बीस बाणों से उस पर और भी वार किया। कृतवर्मा ने इन सभी को पाँच_पाँच बाणों से बींधकर भीमसेन पर सात बाण छोड़े तथा उसके धनुष और ध्वजा को काटकर रथ से नीचे गिरा दिया।
इसके बाद उसने क्रोध में भरकर बड़ी तेजी से सत्तर बाणों द्वारा उसकी छाती पर चोट की। कृतवर्मा के बाणों से अत्यंत घायल हो जाने से वे काँपने लगे तथा अचेत_से हो गये; थोड़ी देर बाद जब होश हुआ तो भीमसेन ने उसकी छाती में पाँच बाण मारे। इससे कृतवर्मा के सब अंग लोहूलुहान हो गये। तब उसने क्रोध में भरकर तीन बाणों से भीमसेन पर वार किया तथा अन्य सब महारथियों को भी तीन_तीन बाणों से बींध दिया। इस पर उन सबने भी उसपर सात_सात बाण छोड़े। कृतवर्मा ने एक क्षुरप्र बाण से शिखण्डी का धनुष काट दिया। इससे कुपित होकर शिखण्डी ने ढाल_तलवार उठा ली तथा तलवार को घुमाकर कृतवर्मा के रथ पर फेंका। वह उसके धनुष और बाण को काटकर पृथ्वी पर जा पड़ी। कृतवर्मा ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर प्रत्येक पाण्डव को तान_तीन बाणों से बींध दिया तथा शिखण्डी को आठ बाणों से घायल कर डाला। शिखण्डी ने भी दूसरा धनुष लेकर अपने तीखे बाणों से कृतवर्मा को रोक दिया। इससे क्रोध में भरकर वह शिखण्डी के ऊपर टूट पड़ा। इस समय अपने पैने बाणों से एक_दूसरे को व्यथित करते हुए वे महारथी प्रलयकालीन सूर्योंकेे समान जान पड़ते थे। कृतवर्मा ने महारथी शिखण्डी पर तिहत्तर  बाणों से वार करके फिर उसे सात बाणों द्वारा घायल कर डाला। इससे वह मूर्छित हो गया और उसके हाथ से धनुष_बाण गिर गये। यह देखकर उसका सारथि बड़ी फुर्ती से रथ को रणांगण के बाहर ले गया। शिखण्डी को रथ के पिछले भाग में अचेत पड़ा देखकर अन्य पाण्डववीरों ने कृतवर्मा को अपने रथों से घेर लिया; किन्तु इस समय कृतवर्मा ने बड़ा ही अद्भुत पराक्रम दिखाया। उसने अकेले ही उन सब वीरों को उनकी सेना के सहित परास्त कर दिया। पाण्डवों को जीतकर उसने पांचाल, सृंजय और केकयवीरों के भी दाँत खट्टे कर दिये। अन्त में कृतवर्मा की बाणवर्षा से व्यथित होकर वे सभी महारथी युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गये।

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