Saturday 23 February 2019

सात्यकि का कृतवर्मा के साथ युद्ध, जलसन्ध का वध तथा द्रोण और दुर्योधनादि धृतराष्ट्र_पुत्रों से घोर संग्राम

संजय ने कहा___राजन् ! अब आपने जो बात पूछी थी, वह सुनिये। जब कृतवर्मा ने पाण्डवों की सेना को भगा दिया तो सात्यकि बड़ी फुर्ती से उसके सामने आ गया। कृतवर्मा ने उस पर तीखे बाणों की वर्षा आरंभ कर दी। इस पर सात्यकि ने बड़ी फुर्ती से उस पर एक भल्ल और चार बाण छोड़े। बाणों से उसके घोड़े नष्ट हो गये तथा भल्ल से धनुष कट गया। फिर उसने अनेकों पैने बाणों से कृतवर्मा के पृष्ठरक्षक और सारथि को भी घायल कर दिया। इस प्रकार उसे रथहीन करके महावीर सात्यकि ने अपने पैने बाणों से उसकी सेना की नाक में दम कर दिया। उस बाणवर्षा से पीड़ित होकर कृतवर्मा की सेना तितर_बितर हो गयी। तब सात्यकि आगे बढ़ा और बाणों की वर्षा करता हुआ गजसेना के साथ युद्ध करने लगा। वीरवर सात्यकि के छोड़े हुए वज्रतुल्य बाणों से व्यथित होकर लड़ाके हाथी युद्ध का मैदान छोड़कर भागने लगे। उनके दाँत टूट गये, शरीर लोहूलुहान हो गया, मस्तक फट गये तथा कान मुँह और सूँड छिन्न_भिन्न हो गये। उनके महावत नष्ट हो गये, पताकाएँ कटकर गिर गयीं, सवार युद्ध में काम आ गये । सात्यकि ने नाराच, वत्सदन्त, भल्ल, क्षुरप्र और अर्धचन्द्र नामक बाणों से उन्हें बहुत ही घायल कर दिया। इससे वे चिघ्घाड़ते, खून उगलते और मल_मूत्र छोड़ते इधर_उधर भागने लगे। इसी समय एक हाथी पर सवार हुआ महाबली जलसन्ध अपना धनुष घुमाता सात्यकि पर चढ़ आया। सात्यकि ने,उसके हाथी को अकस्मात् आक्रमण करते देख अपने बाणों से रोक दिया। इस पर जलसन्ध ने बाणों द्वारा सात्यकि की छाती पर वार किया। सात्यकि बाण छोड़ना चाहता ही था कि जलसन्ध ने एक नाराच से उसका धनुष काट डाला तथा पाँच बाणों से उसे भी घायल कर दिया। परंतु महाबाहु सात्यकि बहुत_से बाणों से घायल हो जाने पर भी टस_से_मस न हुआ। उसने तुरंत ही दूसरा धनुष लिया और साठ बाणों से जलसन्ध के विशाल वक्षःस्थल पर वार किया। अब जलसन्ध ने ढाल और तलवार उठायी तथा तलवार को उठाकर सात्यकि के ऊपर फेंका। वह उसके धनुष को काटकर पृथ्वी पर जा पड़ी। तब सात्यकि ने दूसरा धनुष उठाया और उसकी टंकार करके एक पैने बाण से जलसन्ध को बींध दिया। फिर दो क्षुरप्र बाणों से उसने जलसन्ध की भुजाएँ काट डाले तथा तीसरे क्षुरप्र से उसका मस्तक उड़ा दिया।
जलसन्ध को मरा देखकर आपकी सेना में बड़ा हाहाकार मच गया। आपके योद्धा पीठ दिखाकर जहाँ_तहाँ भागने का प्रयत्न करने लगे। इतने में ही शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ आचार्य द्रोण अपने घोड़ों को दौड़ाकर सात्यकि के सामने आ गये। यह देखकर प्रधान_प्रधान कौरव भी आचार्य के साथ ही उस पर टूट पड़े। अब सात्यकि पर द्रोण ने सतहत्तर, दुर्मर्षण ने बारह, दुःसह ने दस, दुःशासन ने आठ और चित्रसेन ने दो बाण छोड़े। राजा दुर्योधन तथा अन्य महारथियों ने भी भीषण बाणवर्षा करके उसे पीड़ित करना आरम्भ किया; किन्तु सात्यकि ने अलग_अलग उन सभी केबाणों का जवाब दिया। उसने द्रोण के तीन, दुःसह के नौ, विकर्ण के पच्चीस, चित्रसेन के सात, दुर्मर्षण के बारह, विविंशति के आठ, सत्यव्रत के नौ और विजय के दस बाण मारे। फिर वह दुर्योधन पर टूट पड़ा और इस पर बाणों की गहरी चोट करने लगा। दोनों में तुमुल युद्ध छिड़ गया और दोनों ही ने अपने_अपने धनुष संभालकर बाणों की वर्षा करते हुए एक_दूसरे को अदृश्य कर दिया।  दुर्योधन के बाणों ने सात्यकि को बहुत ही घायल कर दिया तथा सात्यकि ने भी अपने बाणों से आपके पुत्रों को बींध डाला। आपके दूसरे पुत्रों ने भी आवेश में भरकर सात्यकि पर बाणों की झड़ी लगा दी। किन्तु उसने प्रत्येक पर पहले पाँच_पाँच बाण छोड़कर फिर सात_सात बाणों से वार किया और फिर बड़ी फुर्ती से आठ बाणों द्वारा दुर्योधन पर चोट की। इसके पश्चात् उसने उसके धनुष और ध्वजा को काटकर गिरा दिया। फिर चार तीखे बाणों से चारों घोड़ों को मारकर एक बाण से सारथि का भी काम तमाम कर दिया। अब दुर्योधन के पैर उखड़ गये। वह भागकर चित्रसेन के रथ पर चढ़ गया। इस प्रकार अपने राजा को सात्यकि द्वारा पीड़ित होते देख सब ओर हाहाकार होने लगा। उस कोलाहल को सुनकर बड़ी फुर्ती से महारथी कृतवर्मा सात्यकि के सामने आया। उसने छब्बीस बाणों से सात्यकि को, पाँच से उसके सारथि को और चार से चारों घोड़ों को घायल कर डाला। इसपर सात्यकि ने बड़ी तेजी से उस पर अस्सी बाण छोड़े। उनकी चोट से अत्यंत घायल होकर कृतवर्मा काँप उठा। इसके बाद सात्यकि ने तिरसठ बाणों से उसके चारों घोड़ों को और सात से सारथि को बींध डाला। फिर एक अत्यन्त तेजस्वी बाण कृतवर्मा पर छोड़ा। वह उसके कवच को फोड़कर खून में लथपथ हुआ पृथ्वी पर गिर गया। उसकी चोट से कृतवर्मा का शरीर लोहूलुहान हो गया, उसके हाथ से धनुष_बाण गिर गये और वह अत्यंत पीड़ित होकर घुटनों के बल रथ की बैठक में गिर गया।
इस प्रकार कृतवर्मा को परास्त करके सात्यकि आगे बढ़ा। अब द्रोणाचार्य उसके आगे आकर बाणों की वर्षा करने लगे। उन्होंने तीन बाणों से सात्यकि के ललाट पर चोट की तथा और भी अनेक बाणों से उस पर वार किया। परंतु सात्यकि ने दो_दो बाण मारकर उन सभी को काट दिया। इस पर आचार्य ने हँसकर पहले तीस और फिर पचास बाण छोड़े। इससे सात्यकि का क्रोध भड़क उठा। उसने नौ पैने बाणों से द्रोण पर वार किया तथा उनके सामने ही सौ बाणों से उनके सारथि और ध्वजा को बींध डाला। सात्यकि की ऐसी फुर्ती देखकर आचार्य ने सत्तर बाणों से उसके सारथि को बींधकर तीन से उसके घोड़ों पर चोट की। फिर एक बाण से रथ की ध्वजा काटकर दूसरे से उसका धनुष काट डाला। इस पर सात्यकि ने एक भारी गदा उठाकर द्रोण के ऊपर छोड़ी। उसे सहसा अपने ऊपर आते देख आचार्य ने बीच में ही अनेकों बाणों से काटकर गिरा दिया।
फिर उसने दूसरा धनुष ले उससे बहुत_से बाण बरसाकर द्रोण की दाहिनी भुजा को घायल कर दिया। इससे उन्हें बड़ी पीड़ा हुई और एक अर्धचन्द्र बाण से सात्यकि का धनुष काटकर एक शक्ति से उसके सारथि को मूर्छित कर दिया। इस समय सात्यकि ने बड़ा ही अतिमानुष कर्म किया। वह द्रोणाचार्य से युद्ध करता रहा और साथ ही घोड़ों की लगाम भी संभाले रहा। फिर उसने एक बाण से द्रोण के सारथि को पृथ्वी पर गिराकर उसके घोड़ों को बाणों द्वारा इधर_उधर भगाना आरम्भ किया। वे उनके रथ को लेकर रणांगण में हजारों चक्कर काटने लगे। उस समय सभी राजा और राजकुमार कोलाहल मचाने लगे। किन्तु सात्यकि के बाणों से पीड़ित होकर आचार्य के घोड़े हवा हो गये और उन्होंने फिर उसे व्यूह के द्वार पर ही लाकर खड़ा कर दिया। आचार्य ने पाण्डव और पांचालों केप्रयत्न से अपने व्यूह को टूटा हुआ देखकर फिर सात्यकि का ओर जाने का विचार छोड़ दिया और पाण्डव और पांचालों को आगे बढ़ने से रोककर व्यूह ही रक्षा करने लगे।

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