Saturday 2 March 2019

सात्यकि के द्वारा राजकुमार सुदर्शन का वध, कम्बोज और यवन आदि अनार्य योद्धाओं से घोर संग्राम तथा धृतराष्ट्रपुत्रों की पराजय


संजय ने कहा___राजन् ! इस प्रकार द्रोणाचार्य तथा कृतवर्मा आदि आपके वीरों को परास्त कर सात्यकि ने अपने सारथि से कहा, ‘सूत ! हमारे शत्रुओं को तो श्रीकृष्ण और अर्जुन पहले ही भष्म कर चुके हैं। हम तो इनकी पराजय में केवल निमित्तमात्र हैं और पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन के मारे हुए योद्धाओं को ही मार रहे हैं।‘ सारथि से ऐसा कहकर वह शिनिकुलभूषण सब ओर बाणों की वर्षा करता हुआ अपने शत्रुओं पर टूट पड़ा। उसे बढ़ता देख राजकुमार सुदर्शन क्रोध में भरकर सामने आया और बलात् उसे रोकने लगा। उसने सात्यकि पर सैकड़ों बाण छोड़े। परन्तु उसने उन्हें अपने पास पहुँचने से पहले ही काट डाला। इसी प्रकार सात्यकि ने सुदर्शन पर जो बाण छोड़े, वे सात्यकि के कवच को फोड़कर उसके शरीर में घुस गये। साथ ही चार बाणों से उसने सात्यकि के घोड़ों पर भी वार किया। तब सात्यकि ने बड़ी फुर्ती से अपने तीखे तीरों द्वारा सुदर्शन के चारों घोड़ों को मारकर बड़ा सिंहनाद किया। फिर एक भल्ल से सुदर्शन के सारथि का सिर काटकर एक क्षुरप्र द्वारा उसका कुण्डलमण्डित मस्तक भी धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार राजा दुर्योधन का पौत्र सुदर्शन का संहार करके सात्यकि को बड़ा हर्ष हुआ। फिर वह आपकी सेना को,अपने बाणों की बौछारों से हटाकर सबको विस्मय में डालता हुआ अर्जुन की ओर चला। मार्ग में उसके सामने जो शत्रु आता था, उसी को वह अग्नि के समान अपने बाणों में होम देता था। उसके इस अद्भुत पराक्रम की अनेकों अच्छे_अच्छे वीर प्रशंसा कर रहे थे।अब उसने अपने सारथि से कहा, ‘मालूम होता है महावीर अर्जुन यहाँ कहीं पास ही हैं; क्योंकि उनके गाण्डीव धनुष का शब्द सुनाई दे रहा है। मुझे जैसे_जैसे शकुन हो रहे हैं, उनसे यही निश्चय होता है कि ये सूर्यास्त से पहले ही जयद्रथ का वध कर देंगे। अब तुम थोड़ी देर घोड़ों को आराम कर लेने दो। फिर जिस ओर शत्रुओं की सेना है तथा जिधर दुर्योधनादि राजा एवं काम्बोज, यवन, शक, किरात, दरद, बर्बर, ताम्लिप्तक तथा अनेकों म्लेच्छ खड़े हुए हैं, उधर ही रथ ले चलना। ये सब मेरे साथ ही युद्ध करने की तैयारी में हैं। जब रथ, हाथी और घोड़ों के सहित इन सबका संहार हो जाय, तभी तुम समझना कि हमने इस दुस्तर व्यूह को पार किया है।सारथि वे कहा___वार्ष्णेय ! यदि क्रोध में भरे हुए साक्षात् परशुरामजी भी आपके सामने आ जायँ तो मुझे कोई घबराहट नहीं होगी; इस गौ के खुर के समान तुच्छ संग्राम का तो बात ही क्या है। कहिये, किस रास्ते से मैं आपको अर्जुन के पास ले चलूँ ?सात्यकि ने कहा___ आज मुझे इन मुण्डलोगों का संहार करना है। इसलिये तुम मुझे कम्बोजों की ओर ही ले चलो। गुरुवर अर्जुन से मैंने जो शस्त्रविद्या सीखी है, आज मैं उसका कौशल दिखाऊँगा। जब मैं क्रोध में भरकर चुने_चुने योद्धाओं का वध करूँगा तो दुर्योधन को यही भ्रम होगा कि इस जगत् में दो अर्जुन हैं। महात्मा पाण्डवों के प्रति मेरी जैसी प्रीति और भक्ति है, उसे इन राजाओं के सामने सहस्त्रों वीरों का संहार करते मैं प्रकट करूँगा। आज कौरवों को मेरे बलवीर्य और कृतज्ञता का पता चल जायगा। सात्यकि के ऐसा कहने पर सारथि ने बड़ी तेजी से घोड़ों को हाँका और तुरन्त ही उसे यवनों के पास पहुँचा दिया। जब उन्होंने सात्यकि को अपने सेना के समीप आया देखा तो वे बड़ी सफाई से बाणों की वर्षा करने लगे। किन्तु सात्यकि ने अपने तीखे बाणों से उनके बाण एवं अन्याय अस्त्रों को बीच में ही काट दिया और वे उसके पास तक फटक भी न सके। इसके बाद वह बाणों की वर्षा करके उनके सिर और भुजाओं को काटने लगा। वे बाण उनके लोहे और काँसे के कवचों को फोड़कर शरीर को छेदते हुए पृथ्वी पर गिरने लगे। इस प्रकार वीर सात्यकि के मारे हुए सैकड़ों म्लेच्छ प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर गये। वह धनुष को कान तक खींचकर जो बाण छोड़ता था, उनसे एक_एक बार में ही पाँच_पाँच, छ:_छः, सात_सात और आठ_आठ यवनों का काम तमाम कर देता था। इस प्रकार उसने हजारों काम्बोज, शक, शबर, किरात और बर्बरों को धराशायी करके रणभूमि को माँस और रक्त से लथपथ तथा अगम्य_सी कर दिया। सात्यकि के बाणों से मरे हुए उन वीरों से सारी पृथ्वी,भर गयी। उनमें से दो,थोड़े से योद्धा बचे, वे प्राणसंकट से भयभीत होकर रणांगण से भाग गये।राजन् ! इस प्रकार काम्बोज, यवन और शकों की दुर्जय सेना को भगाकर सात्यकि आपके पुत्रों की सेना में घुस गया और उन्हें भी परास्त करके सारथि को रथ बढ़ाने का आदेश दिया। उसे अर्जुन के समीप पहुँचा देखकर आपके सैनिक और चारणलोग बड़ी प्रशंसा करने लगे। इतने में ही आपके पुत्र दुर्योधन, चित्रसेन, दुःशासन, विविंशति, शकुनि, दुःसह, दुर्मर्षण और क्रथ ने उसे पीछे से जाकर घेर लिया। पुरुषसिंह सात्यकि को इससे तनिक भी भय न हुआ और वह अर्जुन से भी बढ़कर कुशलता दिखाता हुआ उनके साथ युद्ध करने लगा। अब राजा दुर्योधन ने तीन बाणों से उसके सूत और चार से चारों घोड़ों को बींधकर सात्यकि पर पहले तीन और फिर आठ बाणों से वार किया तथा दुःशासन ने सोलह, शकुनि ने पच्चीस, चित्रसेन ने पाँच और दुःसह ने पन्द्रह बाणों से उस पर चोट की। इस पर सात्यकि ने मुस्कराते हुए उन सभी को तीन_तीन बाणों से बींध दिया। फिर शकुनि के धनुष को काटकर तीन बाणों से दुर्योधन की छाती पर वार किया तथा चित्रसेन को सौ, दुःसह को दस और दुःशासन को बीस बाणों से घायल किया। इसके बाद उसने प्रत्येक वीर के पाँच_पाँच बाण और भी मारे तथा एक भल्ल से दुर्योधन के सारथि पर प्रहार किया। इससे वह प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर गया। सारथि से मारे जाने पर घोड़े हवा से बातें करने लगे और उसके रथ को संग्रामभूमि से बाहर ले गये। यह देखकर आपके अन्य पुत्र और दूसरे सैनिक भी मैदान छोड़कर भाग गये। इस प्रकार आपकी सब सेना को तितर_बितर  करके वह फिर अर्जुन के रथ की ओर ही चला। किन्तु वह कुछ ही आगे बढ़ा था कि दुर्योधन की आज्ञा से संशप्तकों के सहित वे सब योद्धा फिर लौट आये। स्वयं दुर्योधन उनके आगे था। उसके साथ तीन हजार घुड़सवार तथा शक, काम्बोज, बाह्लीक, यवन, पारद, कुलिन्द, अम्बष्ठ, पैशाच, बर्बर और पर्वतीय योद्धा हाथों में पत्थर लेकर बड़े क्रोध से सात्यकि की ओर दौड़े। दुःशासन ने ‘ इसे मार डालो’  ऐसा कहकर सबको उत्साहित किया और सात्यकि को चारों ओर से घेर लिया। इस समय हमने सात्यकि का बड़ा ही अद्भुत पराक्रम देखा। वह अकेला ही बेखटके उन सब के साथ संग्राम कर रहा था तथा रथसेना, गजसेना और घुड़सवारों के सहित उन सभी अनार्यों का संहार करता जाता था। जब वे मार खाकर भागने लगे, तो उनसे दुःशासन ने कहा___’अरे ! भागते क्यों हो ? तुमलोग तो पत्थरों की मार मारने में बड़े कुशल हो, सात्यकि तो इससे सर्वथा अनभिज्ञ है। इसलिये तुम पत्थर बरसाकर इसे मार डालो।‘ यह सुनकर वे फिर सात्यकि पर टूट पड़े और हाथी के सिर के समान बड़ी_बड़ी शिलाएँ लिये उसके सामने आये। कोई उसे मार डालने के लिये गोफनियाँ लेकर सब ओर से मार्ग रोककर खड़े हो गये। उन्हें शिलायुद्ध करने की इच्छा से आया देख सात्यकि ने बाण बरसाना आरम्भ कर दिया। फिर उन्होंने जो भयंकर पाषाण वर्षा की, उसे सात्यकि ने अपने बाणों से छिन्न_भिन्न कर दिया। उन पत्थरों के रोड़ों से आपही की सेना मरने लगी और उसमें बड़ा हाहाकार होने लगा। बात_की_बात में पाँच सौ शिलाधारी वीर अपनी भुजाओं के कट जाने से प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर गये।अब अनेकों व्यात्तमुख, अयोहस्त, शूलहस्त, दरद, खस लम्पाक और कुलिन्द योद्धा सात्यकि पर पत्थरों की वर्षा करने लगे। किन्तु युद्धकुशल सात्यकि ने बाणों की बौछार से उनके पत्थरों के भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये। उनकी बजरी की चोट भौंरों के जंतु के समान जान पड़ती थी। उससे पीड़ित होकर मनुष्य, हाथी और घोड़े संग्रामभूमि में टिक न सके। जो हाथी मरने से बचे थे, वे खून से लथपथ हो गये तथा उनके मस्तकों की हड्डियाँ टूट गयीं। इसलिये वे भी अकेले सात्यकि के रथ को छोड़कर संग्रामभूमि से भाग गये। आपके जो पुत्र सात्यकि से लड़ने आये थे, वे भी उनकी मार से घबराकर द्रोणाचार्यजी की सेना में जा मिले तथा जिन रथियों को लेकर दुःशासन ने धावा किया था, वे सब भी भयभीत होकर द्रोण के रथ की ओर दौड़े।



No comments:

Post a Comment