Thursday 14 March 2019

द्रोणाचार्य द्वारा बृहच्क्षत्र, धृष्टकेतू और क्षेत्रधर्मा का वध तथा चेकितान आदि अनेकों वीरों की पराजय

संजय ने कहा___राजन् ! इधर दोपहर के बाद आचार्य द्रोण का सोमकों के साथ फिर घोर संग्राम होने लगा। उस समय जो योद्धा गरज रहे थे, उनका मेघ के समान गंभीर शब्द हो रहा था। पुरुषसिंह द्रोण ने अपने लाल रंग के घोड़ेवाले रथ पर चढ़कर मध्यम गति से पाण्डवों पर धावा किया और अपने तीखे बाणों से मानो चुने चुने वीरों पर बाण बरसा रहे हों, इस प्रकार युद्ध में खेल_सा करने लगे। इतने ही में पाँच कैकेय राजकुमारों में से रण दुर्मद महारथी बृहच्क्षत्र उनके सामने आया और पैने_पैने बाणों की वर्षा करके उन्हें पीड़ित करने लगा। द्रोण ने कुपित होकर उस पर पंद्रह बाण छोड़े; किन्तु उसने उन्हें अपने पाँच बाणों से ही काट डाला। उसकी ऐसी फुर्ती देखकर आचार्य हँसे और फिर उस पर आठ बाणों से वार किया। यह देखकर बृहच्क्षत्र ने उन्हें उतने ही पैने बाण छोड़कर नष्ट कर दिया। बृहच्क्षत्र का ऐसा दुष्कर कर्म देखकर आपकी सेना को बड़ा आश्चर्य हुआ
अब द्रोण ने अत्यन्त दुर्जय ब्रह्मास्त्र प्रकट किया। उसे केकयराजकुमार ने ब्रह्मास्त्र से ही नष्ट कर दिया तथा आचार्य पर साठ बाणों से चोट की। इसपर विप्रवर द्रोण ने उस पर एक नाराच छोड़ा। वह उसके कवच को फोड़कर पृथ्वी में घुस गया। इससे बृहच्क्षत्र का क्रोध बहुत बढ़ गया तथा उसने सत्तर बाणों से द्रोण को और एक से उनके सारथि को घायल कर डाला। तब आचार्य ने अपनी बाणवर्षा से महारथी बृहच्क्षत्र का नाक में दम कर दिया और उसके चारों घोड़ों का भी काम तमाम कर डाला। फिर एक बाण से सूत को और दो से ध्वजा एवं छत्र को काटकर रथ से नीचे गिरा दिया। इसके बाद एक बाण बृहच्क्षत्र की छाती में मारा। इससे उसकी छाती फट गयी और वह पृथ्वी पर जा गिरा। इस प्रकार केकयमहारथी बृहच्क्षत्र के मारे जाने पर शिशुपाल का पुत्र महाबली धृष्टकेतु द्रोणाचार्य के ऊपर टूट पड़ा। उसने आचार्य तथा उनके रथ, ध्वजा और घोड़ों पर साठ बाणों से वार किया। तब द्रोणनेे एक क्षुरप्र बाण से उसका धनुष काट डाला। वह महारथी दूसरा धनुष लेकर उन्हें बाणों से बींधने लगा। द्रोणनेे चार बाणों से उसके चारों घोड़ों को मार डाला और फिर हँसते_हँसते उसके सारथि का सिर धर से अलग कर दिया। इसके बाद पच्चीस बाण धृष्टकेतू पर छोड़े। तब उसने रथ से कूदकर आचार्य पर एक गदा छोड़ी। उसे आते देख उन्होंने हजारों बाणों से उसके टुकड़े_टुकड़े कर डाले। इससे खीझकर धृष्टकेतु ने द्रोण पर एक तोमर और शक्ति से वार किया। आचार्य ने पाँच_पाँच बाणों से उन दोनों को नष्ट कर दिया। फिर उन्होंने उसका वध करने के लिये एक तेज बाण छोड़ा। वह उसके कवच और हृदय को फाड़कर पृथ्वी में घुस गया। इस प्रकार चेदिराज के मारे जाने पर उसके अस्त्रविद्याविशारद पुत्र को बड़ा रोष हुआ और वह उसके स्थान पर आकर डट गया। किन्तु द्रोण ने हँसते_हँसते उसे भी यमराज के हवाले कर दिया। अब जरासन्ध का महाबली पुत्र उसके सामने आया। उसने अपने बाणों की बौछार से रणांगण में द्रोण को अदृश्य कर दिया। उसकी ऐसी फुर्ती देखकर आचार्य ने भी सैकड़ों-हजारों बाण बरसाने आरम्भ किये। इस प्रकार उस महारथी को रथ में ही बाणों से आच्छादित कर उन्होंने समस्त धनुर्धरों के सामने मार डाला। अब पांचाल, चेदि, सृंजय, काशी और कोसल___इन सभी देशों के महारथी बड़े उत्साह से युद्ध करने के लिये द्रोण के ऊपर टूट पड़े। उन्होंने आचार्य को यमराज के पास भेजने के लिये अपनी सारी शक्ति लगा दी। परंतु आचार्य ने अपने तीखे बाणों से उन्हीं को यमराज के हवाले कर दिया। द्रोण के ऐसे कर्म देखकर महाबली क्षेत्रधर्मा उनके सामने आया और एक अर्धचन्द्र बाण से उनका धनुष काट डाला। तब आचार्य ने एक दूसरा धनुष लेकर उस पर एक तीखा बाण चढ़ा उसे कान तक खींचकर छोड़ा। उससे क्षेत्रधर्मा का हृदय फट गया और वह अपने रथ से पृथ्वी पर जा पड़ा। इस प्रकार उस धृष्टधुम्नकुमार के मारे जाने पर सब सेनाएँ काँप उठीं। अब आचार्य पर महाबली चेकितान ने आक्रमण किया। उसने द्रोण को दस बाणों से घायल करके उनकी छाती पर चोट की तथा चार बाणों से उनके सारथि को और चार से चारों घोड़ों को बींध डाला। तब आचार्य ने तीन बाणों से उसकी छाती और भुजाओं पर वार किया। फिर सात बाणों से ध्वजा काटकर तीन से सारथि को मार डाला। सारथि के मारे जाने से घोड़े रथ को लेकर भाग गये। इस प्रकार चेकितान के रथ को सारथिहीन देखकर द्रोण वहाँ एकत्रित हुए चेदि, पांचाल और सृंजयवीरों को तितर_बितर करने लगे। इस समय वे बड़े ही शोभायमान जान पड़ते थे। उनके केश कानों तक पक चुके थे और आयु पचासी वर्ष के लगभग हो चुकी थी। इतने वयोवृद्ध होने पर भी ये संग्रामभूमि में सोलह वर्ष के बालक के समान विचर रहे थे।

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