Saturday 23 March 2019

महाराज युधिष्ठिर का घबराकर भीमसेन को अर्जुन के पास भेजना तथा भीम का अनेकों धृतराष्ट्रपुत्रों को मारकर अर्जुन के पास पहुँचना

संजय ने कहा___राजन् ! जब आचार्य पाण्डवों के व्यूह को इस प्रकार जहाँ_तहाँ से रौंदने लगे तो पांचाल, सोमक और पाण्डववीर वहाँ से दूर भाग गये। अब धर्मराज युधिष्ठिर को अपना कोई सहायक दिखायी नहीं देता था। उन्होंने अर्जुन को देखने के लिये सब ओर निगाह दौड़ायी, किन्तु उन्हें न तो अर्जुन दिखायी दिये और न सात्यकि ही। इस प्रकार बहुत देखने पर भी जब उन्हें नरश्रेष्ठ अर्जुन दिखायी न दिये और न उनके गाण्डीव धनुष की टंकार ही सुनायी पड़ी तो उनकी इन्द्रियाँ एकदम व्याकुल हो उठीं। वे एकदम शोक में डूब गये और भीमसेन को बुलाकर उनसे कहने लगे, ‘भैया भीम ! जिसने रथ पर चढ़कर अकेले ही देवता, गन्धर्व और असुरों को परास्त कर दिया था, आज तुम्हारे उस छोटे भाई अर्जुन का मुझे कोई चिह्न दिखायी नहीं दे रहा है।‘ धर्मराज को इस प्रकार घबराते देखकर भीमसेन ने कहा___’राजन् ! आपकी ऐसी घबराहट तो मैंने पहले कभी न देखी है और न सुनी ही है। पहले जब कभी हमलोग दुःख से अधीर हो उठते थे, तो आप ही हमें दिलासा दिया करते थे। महाराज ! इस संसार में ऐसा कोई काम नहीं है, जिसे मैं न कर सकूँ अथवा असाध्य मानकर छोड़ दूँ। आप मुझे आज्ञा दीजिये और मन में किसी प्रकार की चिंता न कीजिये।‘ तब युधिष्ठिर ने नेत्रों में जल भरकर दीर्घ निःश्वास लेकर कहा, ‘भैया ! देखो, श्रीकृष्ण द्वारा रोषपूर्ण बजाये जाते हुए पांचजन्य शंख का शब्द सुनायी दे रहा है। इससे मुझे निश्चय होता है कि तुम्हारा भाई अर्जुन आज मृत्युशय्या पर पड़ा हुआ है और उसके मारे जाने पर श्रीकृष्ण संग्राम कर रहे हैं। यही मेरे शोक का कारण है। अर्जुन और सात्यकि की चिन्ता मेरी शोकाग्नि को बार_बार भड़का देती है। देखो, उसका मुझे कोई भी चिह्न नहीं दीख रहा है। इससे यही अनुमान होता है कि उन दोनों के मारे जाने पर ही श्रीकृष्ण युद्ध कर रहे हैं। भैया, मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ। यदि तुम मेरा कहा मानो तो जिधर अर्जुन और सात्यकि गये हैं, उधर ही तुम भी जाओ। तुम सात्यकि का ध्यान अर्जुन से भी बढ़कर रखना। वह मेरा प्रिय करने के लिये दुर्गम और भयंकर सेना को लाँघकर अर्जुन की ओर गया है। कच्चे_पक्के योद्धा तो इस विशाल वाहिनी के पास भी नहीं फटक सकते। यदि तुम्हें श्रीकृष्ण, अर्जुन और सात्यकि सकुशल मिल जायँ तो सिंहनाद करके मुझे सूचित कर देना।‘ भीमसेन ने कहा, ‘महाराज ! जिस रथ पर पहले ब्रह्मा, महादेव, इन्द्र और वरुण सवारी कर चुके हैं, उसी पर बैठकर श्रीकृष्ण और अर्जुन गये हैं। इसलिये यद्यपि उनके विषय में कोई खटके की बात नहीं है तो भी मैं आपकी आज्ञा शिरोधार्य करके जा रहा हूँ। आप किसी प्रकार की चिंता न करें। मैं उन पुरुषसिंह से मिलकर आपको सूचना दूँगा।‘ धर्मराज से ऐसा कहकर वहाँ से चलते समय महाबली भीमसेन ने धृष्टधुम्न से कहा, ‘महाबाहो ! महारथी द्रोण जिस प्रकार सारी युक्तियाँ लगाकर महाराज को पकड़ने पर तुले हुए हैं, वह तुम्हें मालूम ही है। इसलिये मेरे लिये जितना आवश्यक यहाँ रहकर महाराज की रक्षा करना है, उतना अर्जुन के पास जाना नहीं है। यही बात अर्जुन ने भी मुझसे कही थी। किन्तु अब मैं महाराज की आज्ञा के सामने कुछ नहीं कह सकता। जहाँ मरणासन्न जयद्रथ है, वहीं मुझे जाना होगा। धर्मराज की आज्ञा मुझे बिना किसी प्रकार की आपत्ति किये माननी होगी। मैं भी अर्जुन और सात्यकि जिस रास्ते से गये हैं; उसी से जाऊँगा। सो अब तुम खूब सावधान रहकर धर्मराज की रक्षा करना।‘ तब धृष्टधुम्न ने भीमसेन से कहा, ‘पार्थ ! आप निश्चिन्त होकर जाइये। मैं आपके इच्छानुसार ही सब काम करूँगा। द्रोणाचार्य संग्राम में धृष्टधुम्न का वध किये बिना किसी प्रकार धर्मराज को कैद नहीं कर सकेंगे।‘ यह सुनकर महाबली भीमसेन अपने बड़े भाई को प्रणाम कर और उन्हें धृष्टधुम्न की देखरेख में छोड़कर अर्जुन की ओर चल दिये। चलती बार राजा युधिष्ठिर ने उन्हें हृदय से लगाया और उनका सिर सूँघा। भीमसेन के चलते समय फिर पांचजन्य की घोर ध्वनि हुई। त्रिलोकी को भयभीत करनेवाले उस भयंकर शब्द को सुनकर धर्मराज ने फिर कहा, ‘देखो ! श्रीकृष्ण का बजाया हुआ यह शंख पृथ्वी और आकाश को गुँजा रहा है। निश्चय ही अर्जुन पर भारी संकट पड़ने पर श्रीकृष्णचन्द्र कौरवों के साथ युद्ध कर रहे हैं। इसलिये भैया भीम ! तुम जल्दी ही अर्जुन के पास जाओ।‘ अब भीमसेन शत्रुओं पर अपनी भयंकरता प्रकट करते हुए चल दिये। वे अपने धनुष की डोरी खींचकर बाणों की वर्षा करते हुए कौरवसेना के अग्रभाग को कुचलने लगे। उनके पीछे_पीछे दूसरे पांचाल और सोमकवीर भी बढ़ने लगे। तब उनके सामने दुःशल, चित्रसेन, कुण्डभेदी, विविंशति, दुर्मुख, दुःसह, विकर्ण, शल, विन्द, अनुविन्द, सुमुख, दीर्घबाहु, सुदर्शन, वृन्दारक, सुहस्त, सुषेण, दीर्घलोचन, अभय, रौद्रकर्मा, सुवर्मा और दुर्विमोचन आदि आपके पुत्र अनेकों सैनिक और पदातियों को लेकर आये और उन्हें चारों ओर से घेरने लगे। किन्तु भीमसेन उन्हें बड़ी तेजी से पीछे छोड़कर द्रोण की सेना पर टूट पड़े तथा उसके आगे जो गजसेना थी, उस पर बाणों की झड़ी लगा दी। पवनकुमार भीम ने बात_की_बात  में उस सारी सेना को नष्ट कर डाला। जिस प्रकार वन में शरभ के गरजने पर मृग घबराकर भागने लगते हैं, उसी प्रकार वे सब हाथी भयंकर चिग्घार करते हुए इधर_उधर भागने लगे।
इसके बाद उन्होंने फिर बड़े जोर से द्रोणाचार्य की सेना पर धावा किया। आचार्य ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका तथा मुस्कराते हुए एक बाण द्वारा उनके ललाट पर चोट की। फिर वे बोले, ‘भीमसेन ! मुझे जीते बिना अपनी शक्ति द्वारा तुम शत्रु की सेना में प्रवेश नहीं कर सकोगे।‘ गुरु की यह बात सुनकर भीमसेन की आँखें क्रोध से लाल हो गयीं और उन्होंने निर्भय होकर कहा, ‘ब्रह्मबन्धो ! अर्जुन ने आपकी अनुमति से रणांगण में प्रवेश किया हो___ ऐसी बात नहीं है; वह तो ऐसा दुर्धर्ष है कि इन्द्र की सेना में भी घुस सकता है। वह आपका बड़ा आदर करता है, ऐसा करके उसने आपका मान बढ़ाया है। मैं दयालु अर्जुन नहीं हूँ, मैं तो आपका शत्रु भीम हूँ।‘ ऐसा कहकर भीमसेन ने अपनी कालदण्ड के समान भयंकर गदा उठायी और उसे घुमाकर द्रोणाचार्य पर फेंका। द्रोण तुरंत ही अपने रथ से कूद पड़े और उस गदा ने घोड़े, सारथि और ध्वजा के सहित उस रथ को चूर_चूर कर डाला तथा और भी कई वीरों का काम तमाम कर दिया। अब आचार्य दूसरे रथ पर चढ़कर व्यूह के द्वार पर आ गये और युद्ध के लिये तैयार होकर खड़े हो गये। महापराक्रमी भीमसेन क्रोध में भरकर अपने सामने खड़ी हुई रथसेना पर बाणों की वर्षा करने लगे। इस सेना में जो आपके महारथी पुत्र थे, वे भीमसेन के बाणों से नष्ट होते हुए भी उनपर विजय प्राप्त करने की लालसा से बराबर युद्ध करते रहे। अब दुःशासन ने क्रोध में भरकर भीमसेन का काम तमाम कर देने के विचार से उनपर एक अत्यन्त तीक्ष्ण लोहमयी रथशक्ति फेंकी। किन्तु भीमसेन ने बीच में ही उस महाशक्ति के दो टुकड़े कर दिये। फिर उन्होंने तीन तीखे बाणों से कुण्डभेदी, सुषेण और दीर्घलोचन___ इन तीनों भाइयों को मार डाला। आपके वीर पुत्र इसपर भी लड़ते ही रहे। इतने में ही उन्होंने महाबली वृन्दारक तथा अभय, क्रूरकर्मा और दुर्विमोचन का भी काम तमाम कर दिया। तब आपके पुत्रों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और उन पर बाणों की झड़ी लगा दी। भीमसेन ने हँसते_हँसते आपके पुत्र विन्द, अनुविन्द और सुवर्मा को यमराज के घर भेज दिया। फिर उन्होंने आपके शूरवीर पुत्र सुदर्शन को घायल किया। वह पृथ्वी पर गिर पड़ा और मर गया। इस प्रकार भीमसेन ने सब ओर ताक_ताककर थोड़ी ही देर में अपने तेज बाणों से उस रथसेना को नष्ट कर डाला। फिर तो सिंह की दहाड़ सुनकर जैसे मृग भागने लगते हैं, उसी प्रकार उनके रथ की घरघराहट सुनकर आपके पुत्र सब ओर भागने लगे। भीमसेन ने आपके पुत्रों की भागती हुई सेना का भी पीछा किया और वे सब ओर कौरवों का संहार करने लगे। इस प्रकार बहुत मार पड़ने पर वे भीमसेन को छोड़कर अपने घोड़ों को दौड़ाते हुए रणभूमि से भाग गये महाबली भीम संग्राम में उन सबको परास्त करके बड़े जोर से गरजने लगे। अब वे रथसेना को लाँघकर आगे बढ़े। यह देखकर द्रोणाचार्य ने उन्हें रोकने के लिये बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी तथा आपके पुत्रों की प्रेरणा से कई धनुर्धर राजाओं ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। तब भीमसेन ने सिंह के समान गर्जना करते हुए एक भयंकर गदा उठाकर बड़े वेग से उनपर फेंकी। उसने आपके कई सैनिकों का काम तमाम कर दिया। भीमसेन ने गदा से ही आपके अन्य सैनिकों पर भी प्रहार किया। इससे वे भयभीत होकर इस प्रकार भागने लगे, जैसे सिंह की गंध पाकर मृग भाग जाते हैं। जब महारथी भीमसेन इस प्रकार कौरवों का संहार करने लगे तो द्रोणाचार्य सबके सामने आये। उन्होंने अपने बाणों की बौछारों से भीमसेन को आगे बढ़ने से रोक दिया। अब इन दोनों वीरों का बड़ा घोर युद्ध होने लगा। भीमसेन अपने रथ से कूदकर द्रोण के बाणों की मार सहते हुए उनके रथ के पास पहुँच गये और उसका जुआ पकड़कर उसे दूर फेंक दिया। द्रोण एक दूसरे रथ पर चढ़कर फिर व्यूह के द्वार पर आ गये। अपने निरुत्साहित गुरु को इस प्रकार फिर अपने सामने आया देख भीमसेन फिर बड़े वेग से उनके पास गये और धुरे को पकड़कर उस रथ को भी दूर पटक दिया। इसी तरह भीमसेन ने अनायास ही द्रोणाचार्य के आठ रथ फेंक_फेंककर नष्ट कर दिये। आपके योद्धा यह सब कौतुक बड़े विस्मयभरे नेत्रों से देखते रहे। अब, आँधी जैसे वृक्षों को नष्ट कर देती है, उसी प्रकार संग्राम में क्षत्रियों का नाश करते हुए भीमसेन आगे बढ़े। कुछ दूर जाने पर उन्हें कृतवर्मा से सुरक्षित भोजसेना मिली, किन्तु वे उसे भी तरह_तरह से नष्ट_भ्रष्ट करके आगे बढ़ गये। फिर कम्बोजसेना तथा अनेकों और युद्धकुशल म्लेच्छों को पार करने पर उन्हें युद्ध करता हुआ सात्यकि दिखायी दिया। तब तो वे अर्जुन को देखने की इच्छा से अपने रथ द्वारा बड़ी सावधानी से तेजी के साथ आगे बढ़ने लगे। आपके अनेकों योद्धाओं को लाँघकर वे ज्योंही कुछ आगे गये कि उन्होंने जयद्रथ का वध करने के लिये अर्जुन को युद्ध करते देखा। यह देखकर वे वर्षाकालीन मेघ के समान बड़े जोर से दहाड़ने लगे। भीमसेन का यह सिंहनाद श्रीकृष्ण और अर्जुन के कानों में भी पड़ा। तब वे दोनों उन्हें देखने के लिये गर्जना करते हुए उनसे आ मिले। महाराज ! इधर भीमसेन और अर्जुन का सिंहनाद सुनकर धर्मपुत्र युधिष्ठिर को बड़ी प्रसन्नता हुई। उनका सारा शोक दूर हो गया और उन्हें अर्जुन की विजय की भी पूरी आशा हो गयी। भीमसेन के सिंहनाद करने पर वे मुस्कराकर मन_ही_मन कहने लगे, ‘भीम ! तुमने खूब सूचना दी, तुमने अपने बड़े भाई का कहना करके दिखा दिया। भैया ! जिनसे तुम द्वेष करते हो, संग्राम में उनकी विजय कभी नहीं हो सकती। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे श्रीकृष्ण और अर्जुन के सिंहनाद का शब्द भी सुनायी दे रहा है। अहो ! जिसने इन्द्र को जीतकर खाण्डव में  अग्नि को तृप्त किया, एक ही धनुष से निवातकवचों को जीत लिया, विराटनगर में गोहरण के लिये मिलकर आये हुए सब कौरवों को परास्त किया और दुर्योधन को छुड़ाने के लिये गन्धर्वराज चित्ररथ को नीचा दिखाया तथा श्रीकृष्ण जिसके सारथि हैं और जो मुझे सदा ही परम प्रिय है, वह अर्जुन अभी जीवित है___यह कैसे आनन्द की बात है ! क्या श्रीकृष्ण की रक्षा में सूर्यास्त से पहले ही अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करके लौटे हुए अर्जुन से मेरी भेंट हो सकेगी ? अर्जुन के हाथ से जयद्रथ को और भीम के हाथ से अपने भाइयों को मरा हुआ देखकर क्या मन्दबुद्धि दुर्योधन बचे_खुचे वीरों की रक्षा के लिये हमसे वैर छोड़कर संधि करना चाहेगा ?’ इस प्रकार एक ओर तो महाराज युधिष्ठिर करुणार्द्र होकर तरह_तरह की उधेरबुन में लगे हुए थे और दूसरी ओर तुमुल संग्राम हो रहा था।

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