Sunday 7 April 2019

भीमसेन के हाथ से कर्ण की पराजय, द्रोण के साथ दुर्योधन की सलाह तथा युधामन्यु और उत्तमौजा के साथ उसका युद्ध

धृतराष्ट्र ने कहा___मुझे तीनों लोकों में ऐसा तो कोई भी वीर दिखायी नहीं देता, जो रणांगण में क्रोध से भरे हुए भीम के सामने टिक सके। भला, जो रथ पर रथ उठाकर पटक देता है और हाथी पर हाथी को उठाकर दे मारता है उसके सामने और तो कौन, साक्षात् इन्द्र भी कैसे खड़ा रह सकता है ? मुझे भीम से जैसा भय है वैसा न अर्जुन से है, न श्रीकृष्ण से, न सात्यकि से और न धृष्टधुम्न से ही है। संजय ! यह तो बताओ, जब भीमरूप प्रचंड पावक मेरे पुत्रों को भस्म करने लगा तो किन_किन वीरों ने उसे रोका ? संजय कहने लगे___ राजन् ! जिस समय भीमसेन इस प्रकार गरज रहे थे, उस समय महाबली कर्ण भी बड़ा भीषण सिंहनाद करता हुआ युद्ध करने के लिये उनके सामने आया। जब भीमसेन ने उसे अपने सामने खड़ा देखा, तो वे एकदम क्रोध से तमतमा उठे और उस पर पैने बाणों की वर्षा करने लगे। कर्ण ने भी बदले में बाण बरसाते हुए उन्हें दृढ़ता से सहन कर लिया। उस समय भीमसेन की भीषण सिंहनाद सुनकर अनेकों योद्धाओं के धनुष पृथ्वी पर गिर गये, बहुतों के हाथों से हथियार छूट गये, किन्हीं_कीन्हीं के प्राण भी निकल गये तथा अनेक जो हाथी_घोड़े आदि वाहन थे, वे भयभीत और निरुत्साह होकर मल_मूत्र त्यागने लगे। यह देखकर कर्ण ने भीमसेन पर बीस बाण छोड़े तथा पाँच बाणों से उनके सारथि को बींध दिया। इस पर भीमसेन ने उसका धनुष काट डाला और दस बाणों से उसे भी घायल कर दिया फिर उन्होंने बड़े वेग से तीन बाण उसकी छाती में मारे। इस भारी चोट ने कर्ण को कुछ विचलित कर दिया। किन्तु फिर वह धनुष को कान तक खींचकर भीमसेन पर बाण बरसाने लगा। तब भीमसेन ने एक क्षुरप्र बाण से उसके धनुष की डोरी काट दी तथा एक भल्ल से सारथि को रथ से नीचे गिराकर उसके चारों घोड़ों को धराशायी कर दिया। इससे भयभीत होकर कर्ण तुरंत ही अपने रथ से कूदकर वृषसेन के रथ पर चढ़ गया।
इस प्रकार संग्राम में कर्ण को परास्त करके भीमसेन मेघ के समान बड़े जोर से गरजने लगे। उस सिंहनाद को सुनकर धर्मराज समझ गये कि भीमसेन ने कर्ण को परास्त कर दिया है। इससे वे बड़े प्रसन्न हुए। इधर जब आपके पुत्र दुर्योधन ने देखा कि हमारी सेना तितर_बितर हो रही है तथा अर्जुन, सात्यकि और भीमसेन जयद्रथ के पास पहुँच चुके हैं तो वह बड़ी तेजी से द्रोणाचार्य के पास आया और उनसे कहने लगा, ‘आचार्यचरण ! अर्जुन, भीमसेन और सात्यकि___ये तीन महारथी हमारी इस विशाल वाहिनी को परास्त करके बेरोक_टोक सिंधुराज के समीप पहुँच गये हैं। ये तीनों ही किसी के काबू में नहीं आये हैं और वहाँ भी हमारी सेना का संहार कर रहे हैं। गुरुजी ! सात्यकि और भीम किस प्रकार आपको परास्त करके निकल गये ? यह बात तो समुद्र को सूखा डालने के समान संसार को आश्चर्य में डालनेवाली है। जब ये तीनों महारथी आपको लाँघकर निकल गये, तो मुझे निश्चय होता है कि इस संग्राम में दुर्योधन का नाश अवश्यम्भावी है। खैर, जो होना था सो तो हो गया; अब आगे के लिये विचारिये और सिंधुराज की रक्षा के लिये हमें जो कुछ करना चाहिये, उसका निश्चय करके वैसा ही प्रबंध कीजिये।‘
द्रोण ने कहा___तात ! इस समय हमारा जो कर्तव्य है, वह सुनो। देखो, पाण्डवों के तीन महारथी हमारी सेना को लाँघकर भीतर घुस गये हैं। इस समय जयद्रथ क्रोध में भरे हुए अर्जुन से बहुत डरा हुआ है। उसकी रक्षा करना हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है। इसलिये हमें प्राणों की भी परवा न करके उसकी रक्षा करनी चाहिये। इस युद्धद्यूत में हमारी जीत_हार उसी के ऊपर अवलम्बित है। अतः जहाँ बड़े_बड़े धनुर्धर जयद्रथ की रक्षा करने में तत्पर हैं, वहाँ तुम शीघ्र ही जाओ और उन रक्षकों की रक्षा करो। मैं यहीं रहकर तुम्हारे पास दूसरे योद्धाओं को भी भेजूँगा और स्वयं पांचाल, पाण्डव तथा सृंजयवीरों को आगे बढ़ने से रोकूँगा। आचार्य की आज्ञा सुनकर दुर्योधन अपने ऊपर यह भारी भार लेकर अपने अनुयायियों के सहित तुरंत ही वहाँ से चल दिया। जिस समय अर्जुन ने कौरवसेना में प्रवेश किया था, उस समय कृतवर्मा ने उनके चक्ररक्षक उत्तमौजा और युधामन्यु को भीतर नहीं जाने दिया था। अब वे बाहर_ही_बाहर जाकर बीच में सेना में घुसकर अर्जुन के पास पहुँच गये। यह देखकर कुरुराज दुर्योधन बड़ी तेजी से उनके पास गया और दोनों भाइयों के साथ डटकर युद्ध करने लगा। तब युधामन्यु ने तीस बाणों से दुर्योधन पर, बीस से उसके सारथि पर और चार से चारों घोड़ों पर चोट की। दुर्योधन ने एक बाण से युधामन्यु की ध्वजा ओर एक से उसका धनुष काट डाला। फिर एक बाण से उसके सारथि को रथ के नीचे गिरा दिया और चार से चारों घोड़ों को बींध डाला। इस पर युधामन्यु ने क्रोध में भरकर तीस बाणों से दुर्योधन के वक्षःस्थल पर वार किया तथा उत्तमौजा ने उसके सारथि को बाणों से बींधकर यमराज के घर भेज दिया। अब दुर्योधन ने पांचालराजकुमार उत्तमौजा के चारों घोड़ों को और दोनों अगल_बगल के सारथियों को मार डाला। घोड़े और सारथियों के मारे जाने पर उत्तमौजा बड़ी फुर्ती से अपने भाई युधामन्यु के रथ पर चढ़ गया। वहाँ से उसने दुर्योधन के घोड़ों पर बहुत से बाण बरसाये। उनसे वे मरकर पृथ्वी पर गिर गये। अब दुर्योधन रथ ले कूद पड़ा और हाथ में गदा लेकर दोनों भाइयों की ओर दौड़ा। उसे आते देखकर युधामन्यु और उत्तमौजा भी रथ से कूद पड़े। दुर्योधन ने क्रोध में भरकर अपनी गदा ले सारथि, ध्वजा और घोड़ों के सहित उनके रथ को चूर_चूर कर दिया। इसके बाद वह तुरंत ही राजा शल्य के रथ पर चढ़ गया। इधर दोनों पांचालराजकुमार भी दूसरे रथों पर चढ़कर अर्जुन के पास पहुँच गये। राजन् ! इस समय भीमसेन भी कर्ण से अपना पिण्ड छुड़ाकर श्रीकृष्ण और अर्जुन के पास जाने के लिये ही उत्सुक थे। किन्तु जब वे उस ओर चलने लगे तो कर्ण ने पीछे से जाकर उन पर बाण बरसाने आरम्भ कर दिये और उन्हें  ललकारकर कहा, ‘भीम ! आज अर्जुन को देखने के लिये उतावले होकर तुम मुझे पीठ दिखाकर कैसे जाते हो ? तुम्हारा यह काम कुन्ती के पुत्रों के योग्य तो नहीं है। जरा मेरे सामने डटकर मुझपर बाणवर्षा करो।‘ भीमसेन कर्ण की इस चुनौती को संग्रामभूमि में सह न सके और अपना रथ लौटाकर उसके साथ युद्ध करने लगे। उन्होंने बाणों की वर्षा करके पहले तो कर्ण के अनुयायियों को समाप्त किया और फिर स्वयं उसका भी अन्त करने के लिये क्रोध में भरकर तरह_तरह के बाण बरसाने लगे। उन्होंने इक्कीस बाण छोड़कर कर्ण के शरीर को बींध दिया। कर्ण ने भी पाँच_पाँच बाण मारकर उनके घोड़ों को घायल कर दिया। फिर थोड़ी ही देर में कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों से भीमसेन तथा उनके रथ, ध्वजा और सारथि___सभी आच्छादित हो गये। उसने चौंसठ बाणों से भीमसेन का सुदृढ़ कवच काट डाला तथा उन पर अनेकों मर्मभेदी नाराचों से चोट की। उस समय कर्ण ने बाणों की ऐसी झड़ी लगायी कि उसके बाणों से बिंधा हुआ भीमसेन का शरीर सेहकी कण्टकाकीर्ण देह के समान प्रतीत होने लगा।
भीमसेन कर्ण के इस बर्ताव को सह न सके। उनकी आँखें क्रोध से लाल हो गयीं और उन्होंने कर्ण पर पच्चीस नाराच छोड़े। इसके बाद उन्होंने उसपर चौदह बाणों से चोट की। फिर एक बाण से उसका धनुष काट डाला और बड़ी फुर्ती से सारथि एवं चारों घोड़ों का सफाया कर अनेकों चमचमाते हुए बाण उसकी छाती में मारे। वे उसे घायल करके पृथ्वी पर जा पड़े। कर्ण को अपने पुरुषार्थ का बड़ा अभिमान था। किन्तु इस समय उसका धनुष कट चुका था, इसलिये वह बड़े असमंजस में पड़ गया। अन्त में वह एक दूसरे रथ पर चढ़ने के लिये दौड़ गया।

No comments:

Post a Comment