Friday 26 April 2019

भीमसेन और कर्ण का भीषण संग्राम, चौदह धृतराष्ट्रपुत्रों का संहार तथा कर्ण के द्वारा भीम का पराभव

संजय ने कहा___राजन् ! प्रतापी कर्ण आपके पुत्रों को मरते देख बड़ा ही कुपित हुआ; उसे अपना जीवन भी भारी_सा मालूम होने लगा। उसके देखते_देखते भीमसेन ने आपके पुत्रों को मार डाला, इससे वह अपने को अपराधी_ सा समझने लगा। इतने में ही भीमसेन कुपित होकर कर्ण पर तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। तब कर्ण ने मुस्कराकर भीमसेन को पहले पाँच और फिर सत्तर बाणों से घायल कर दिया। इसके जवाब में भीमसेन ने अत्यंत तीक्ष्ण पाँच बाणों से कर्ण के मर्मस्थानों को बींधकर एक भल्ल से उसका धनुष काट डाला। इससे कर्ण अत्यंत खिन्नचित्त हो दूसरा धनुष लेकर भीमसेन पर बाणों की वर्षा करने लगा। इतने में ही भीम ने उसके सारथि और घोड़ों का भी काम तमाम कर दिया तथा धनुष के दो टुकड़े कर डाले। अब महारथी कर्ण उस रथ से कूद पड़ा और एक गदा उठाकर उसे बड़े क्रोध से भरकर भीमसेन के ऊपर फेंका। किन्तु भीमसेन ने सारी सेना के सामने उसे बीच ही में बाणों से रोक दिया। अब कर्ण ने भीमसेन पर पच्चीस बाण छोड़े और भीम ने नौ बाणों से उसका जवाब दिया। वे बाण कर्ण के कवच को फोड़कर उसकी दायीं भुजा में लगे और फिर पृथ्वी पर जा पड़े। इस प्रकार भीमसेन के बाणों से निरंतर आच्छादित होकर कर्ण फिर युद्ध से पीछे हटने लगा। यह देखकर राजा दुर्योधन ने अपने भाइयों से कहा, ‘अरे ! सब ओर ये सावधान रहकर तुरंत ही कर्ण की ओर बढ़ो।‘ भाई की यह बात सुनकर आपके पुत्र चित्र, उपचित्र, चित्राक्ष, चारुचित्र, शरासन, चित्रायुध और चित्रवर्मा बाणों की वर्षा करते भीमसेन पर टूट पड़े। किन्तु भीमसेन ने उन्हें आते देख एक_एक बाण में ही धराशायी कर दिया। आपके महारथी पुत्रों को इस प्रकार मारे जाते देखकर कर्ण के नेत्रों में जल भर आया और उसे विदुरजी के वचन याद आने लगे। परन्तु थोड़ी ही देर में वह दूसरे रथ पर चढ़कर फिर भीमसेन के सामने आ गया और उन पर बाणों की वर्षा करने लगा। कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों से वे एकदम ढक गये और उनसे उनका शरीर घायल हो गया। इस समय कर्ण इतने वेग से बाण छोड़ रहा था कि उसके धनुष, ध्वजा, छत्र, ईषादण्ड और जुए से भी बाणों की वर्षा_सी होती जान पड़ती थी। उसके इस प्रबल वेग से सारा आकाश बाणों से छा गया। किन्तु जिस प्रकार कर्ण ने भीमसेन को बाणों से आच्छादित किया, उसी प्रकार भीम ने भी उसपर बाणों की झड़ी लगा दी। इस समय संग्राम में भीमसेन का अद्भुत पराक्रम देखकर आपके योद्धा भी उनकी प्रशंसा करने लगे। भूरिश्रवा, कृपाचार्य, अश्त्थामा, शल्य, जयद्रथ, उत्तमौजा, युधामन्यु, सात्यकि, श्रीकृष्ण और अर्जुन___ ये कौरव और पाण्डवपक्ष के दस महारथी साधु_साधु कहकर बड़े जोर से सिंहनाद करने लगे।
तब आपके पुत्र राजा दुर्योधन ने अपने पक्ष के राजा, राजकुमार और विशेषतः अपने भाइयों से कहा, ‘धनुर्धरों ! देखो, भीमसेन के धनुष से छूटते हुए बाण कर्ण को नष्ट करे, उसके पहले ही तुम उसे बचाने का प्रयत्न करो।‘ दुर्योधन की आज्ञा पाकर उसके सात भाई क्रोध में भरकर भीमसेन पर टूट पड़े और उन्हें चारों ओर से घेर लिया। वे भीमसेन पर बाणों की वर्षा करके उन्हें बहुत पीड़ित करने लगे। तब महाबली भीमसेन ने उनपर सूर्य की किरणों के समान चमचमाते हुए सात बाण छोड़े। वे उनके हृदय को चीरकर उनका रक्त पीकर पार निकल गये। इस प्रकार उनसे मर्मस्थल बिंध जाने के कारण वे सातों भाई अपने रथों से पृथ्वी पर गिर गये। राजन् ! इस तरह भीमसेन के हाथ से आपके सात पुत्र शत्रुंजय, शत्रुसह, चित्र, चित्रायुध, दृढ़, चित्रसेन और विकर्ण मारे गये। आपके इन मरे हुए पुत्रों में से पाण्डुनन्दन भीम अपने प्यारे भाई विकर्ण के लिये तो बहुत ही शोक करने लगे। वे बोले, ‘भैया विकर्ण ! मैंने यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं धृतराष्ट्र के सारे पुत्रों को मारूँगा, इसी से तुम भी मारे गये। ऐसा करके मैंने अपनी प्रतिज्ञा की ही रक्षा की है। भैया ! तुम तो विशेषतः राजा युधिष्ठिर और हमारे ही हित में तत्पर रहते थे। हाय ! युद्ध बड़ा ही कठोर धर्म है।‘
इसके बाद वे बड़े जोर से सिंहनाद करने लगे। भीमसेन का वह भीषण शब्द सुनकर धर्मराज को बड़ी प्रसन्नता हुई। इधर आपके इक्कीस पुत्रोंको देखकर दुर्योधन को विदुरजी के वचन याद आने लगे। वह मन_ही_मन रहने लगा, ‘विदुरजी ने तो हमारे हित के लिये ही कहा था, वह सब सामने आ गया।‘ बहुत विचार करने पर भी उसे इस समस्या का कोई समाधान न मिला। राजन् ! द्युतक्रीड़ा के समय द्रौपदी को सभा में बुलाकर आपके दुर्बुद्धि पुत्र और कर्ण ने जो कहा था कि ‘ कृष्णे ! पाण्डवलोग तो अब नष्ट होकर सदा के लिये दुर्गति में पड़ गये हैं, तू कोई दूसरा पति चुन ले’, यह उसी का फल सामने आ रहा है। विदुरजी ने बहुत गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की, परंतु फिर भी उन्हें आपसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। अब आप और दुर्योधन उस कुबुद्धि का फल भोगिये। वस्तुतः यह भारी अपराध आपका ही है। धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! इसमें विशेषतः मेरा ही अपराध अधिक है, सो आज उसका फल मेरे सामने आ रहा है___यह बात मुझे शोक के साथ स्वीकार करनी पड़ती है। किन्तु जो होना था, सो हो गया; अब इस विषय में क्या किया जाय ? अच्छा, मेरे अन्याय से इसके आगे वीरों का संहार किस प्रकार हुआ, सो मुझे सुनाओ। संजय ने कहा___महाराज ! महाबली कर्ण और भीम, मेघ जैसे जल बरसाते हैं उसी प्रकार बाणों की वर्षा कर रहे थे। भीम के नाम से अंकित अनेकों बाण कर्ण का प्राणांत_सा करते उसके शरीर में घुस जाते थे। इसी प्रकार कर्ण के छोड़े हुए सैकड़ों_ हजारों बाण भी वीरवर भीमसेन को आच्छादित कर रहे थे। भीम के धनुष से छूटे हुए बाणों से आपकी सेना का संहार हो रहा था। युद्ध में मरे हुए हाथी, घोड़े और मनुष्यों के कारण सारी रणभूमि आँधी से उखड़े हुए वृक्षों से पटी हुई जान पड़ती थी। आपके योद्धा भीमसेन के बाणों की मार से व्याकुल होकर मैदान छोड़कर भागने लगे। तब कर्ण और भीमसेन के बाणों से व्यथित होकर सिंधु_सौवीर और कौरवों की सेना युद्धस्थल से दूर जा खड़ी हुई। इस समय रण में मरे हुए हाथी, घोड़े और मनुष्यों के रुधिर से उत्पन्न हुईं भयंकर नदी बह निकली; उसमें मरे हुए हाथी, घोड़े और मनुष्य तैरने लगे। अब कर्ण ने,अपने अस्त्रकौशल से अनेकों बाण छोड़कर भीमसेन के तरकस, धनुष, प्रत्यंचा एवं घोड़ों की रास और जोतों को काट डाला तथा उनके घोड़ों को मारकर पाँच बाणों से सारथि को भी घायल कर दिया। वह सारथि तुरंत ही कूदकर युधामन्यु के रथ पर जा बैठा। कर्ण ने हँसते_हँसते भीमसेन के रथ की ध्वजा और पताकाएँ भी उड़ा दीं। इस प्रकार धनुष न रहने पर महाबाहु भीम ने एक शक्ति उठायी और उसे क्रोध में भरकर कर्ण के रथ पर छोड़ा। कर्ण ने दस बाण छोड़कर उसे बीच ही,में काट डाला। अब भीमसेन ने हाथ में ढाल_तलवार ले ली और तलवार को घुमाकर कर्ण के रथ पर फेंका। वह प्रत्यंचासहित कर्ण के धनुष को काटकर पृथ्वी पर जा पड़ी। तब कर्ण दूसरा धनुष लेकर भीम को मार डालने के विचार से उनपर बाणों की वर्षा करने लगा। कर्ण के बाणों से व्यथित होकर भीमसेन आकाश में उछले। उनका यह अद्भुत कर्म देखकर कर्ण बहुत घबराया और उसने रथ में छिपकर अपने को भीमसेन के वार से बचा लिया। भीम ने जब देखा कि कर्ण घबराकर रथ के पिछले भाग में छिपा हुआ है, तो वे उसकी ध्वजा पकड़कर खड़े हो गये और गरुड़ जैसे सर्प को खींचे, उसी प्रकार कर्ण को रथ से खींचने का प्रयत्न करने लगे। तब कर्ण ने उनपर बड़े वेग से धावा किया। भीमसेन के शस्त्र समाप्त जो चुके थे; इसलिये वे कर्ण के रथ के रास्ते से बचने के लिये अर्जुन के मारे हुए हाथियों की लोथों में छिप गये। फिर उसपर प्रहार करने के लिये उन्होंने एक हाथी की लोथ उठा ली। किन्तु कर्ण ने अपने बाणों से उसके टुकड़े_टुकड़े कर दिये। तब भीमसेन ने उन टुकड़ों को ही फेंकना शुरु कर दिया तथा और भी रथ के पहिये या घोड़े___ जो चीज दिखायी दी, उसी को उठाकर कर्ण पर फेंकने लगे। परंतु वे जो चीज फेंकते थे, कर्ण उसी को काट डालता था। अब भीमसेन ने घूँसा मारकर उसी से कर्ण का काम तमाम करना चाहा। परंतु फिर अर्जुन की प्रतिज्ञा याद आ जाने से उन्होंने, समर्थ होने पर भी, उसे मार डालने का विचार छोड़ दिया। इस समय कर्ण ने बार_बार अपने पैने बाणों की मार से भीमसेन को मूर्छित_सा कर दिया। किन्तु कुन्ती की बात याद करके इस शस्त्रहीन अवस्था में उसने भी उनका वध नहीं किया। फिर उसने पास जाकर उनके शरीर में अपने धनुष की नोक लगायी। उसका स्पर्श होते ही भीमसेन का क्रोध भड़क उठा और उन्होंने वह धनुष छीनकर कर्ण के मस्तक पर दे मारा। भीमसेन की चोट खाकर कर्ण की आँखें क्रोध ये लाल हो गयीं और वह उनसे कहने लगा, ‘ अरे निमूछिये ! अरे मूर्ख ! अरे पेटू !  तुझे अस्त्र_ शस्त्र संभालने का शउर तो है नहीं, परन्तु युद्ध करने की उत्सुकता इतनी है कि मेरे साथ भिड़ने का चंचलता कर बैठता है। अरे दुर्बुद्धि ! जहाँ तरह_तरह की बहुत_ सी खाने_ पीने की चीजें हों, तुझे तो वहीं रहना चाहिये। तू फल, फूल और मूल आदि खाने तथा व्रत_ नियम आदि पालन करने में अवश्य कुशल है, किन्तु युद्ध करना तू नहीं जानता। भला कहाँ मुनिवृत्ति और कहाँ युद्ध ! भैया ! तुझे युद्ध करने की शऊर नहीं है, तू तो वन में रहकर ही प्रसन्न रह सकता है। इसलिये तू वन में ही चला जा और तुझे लड़ना ही हो तो दूसरे लोगों से भिड़ना चाहिये, मेरे जैसे वीरों के सामने आना तुझे शोभा नहीं देता। मेरे जैसों से भिड़ने पर तो ऐसी या इससे भी बढ़कर दुर्गति होती है। अब तू या तो कृष्ण और अर्जुन के पास चला जा, वे तेरी रक्षा कर लेंगे, या अपने घर चला जा। बच्चा ! युद्ध करके क्या लेगा ?’ कर्ण के ऐसे कठोर वचन सुनकर भीमसेन ने सब योद्धाओं के सामने हँसकर कहा, ‘ रे दुष्ट ! मैंने तुझे कई बार परास्त किया है, तू अपने मुँह से क्यों इतनी शेखी बघार रहा है ? हमारे प्राचीन पुरुष भी जय_पराजय तो इन्द्र की भी देखते आये हैं। रे अकुलीन ! अब भी तू मेरे साथ मल्लयुद्ध करके देख ले। जैसे मैंने महाबली और महाभोगी कीचक को पछाड़ा था, उसी प्रकार इन सब राजाओं के सामने तुझे भी काल के हवाले कर दूँगा?’ बुद्धिमान कर्ण भीमसेन के इन शब्दों से उनका अभिप्राय ताड़ गया और यह धनुर्धरों के सामने ही युद्ध से हट गया। भीमसेन को रथहीन करके जब कर्ण ने श्रीकृष्ण और अर्जुन के सामने ही ऐसी न कहने योग्य बातें कहीं तो, श्रीकृष्ण की प्रेरणा से अर्जुन ने उसपर कई बाण छोड़े। वे गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाण कर्ण के शरीर में घुस गये। उनसे पीड़ित होकर वह तुरंत ही बड़ी तेजी से भीमसेन के सामने से भाग गया। तब भीमसेन सात्यकि के रथ पर सवार होकर अपने भाई अर्जुन के पास आये। इसी समय अर्जुन ने बड़ी फुर्ती से कर्ण को लक्ष्य करके एक काल के समान कपाल बाण छोड़ा। किन्तु उसे अश्त्थामा ने बीच से ही काट डाला। इस पर अर्जुन ने कुपित होकर अश्त्थामा को चौंसठ बाणों से घायल कर दिया और चिल्लाकर कहा, ‘जरा खड़े रहो, भागो मत।‘ किन्तु अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर अश्त्थामा रथों से भरी हुई मतवाले हाथियों की सेना में घुस गया। अर्जुन ने अपने बाणों से उस सेना को व्यथित करते हुए कुछ दूर उसका पीछा भी किया। इसके बाद वे अनेकों हाथी, घोड़ों और मनुष्यों को विदीर्ण करते हुए सेना का संहार करने लगे।

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