Wednesday 1 May 2019

सात्यकि का राजा अलम्बुष तथा त्रिगर्त और शूरसेनदेशीय वीरों के परास्त करके अर्जुन के पास पहुँचना तथा अर्जुन का धर्मराज के लिये चिंतित होना

राजा धृतराष्ट्र कहने लगे____संजय ! मेरा देदीप्यमान यश दिनोंदिन मन्द पड़ता जा रहा है, मेरे अनेकों योद्धा मारे गये हैं। इसे मैं अपने समय का फेर ही समझता हूँ। अब मुझे यही अनुमान होता है कि जयद्रथ जीवित नहीं है। अच्छा, वह युद्ध जैसे_जैसे हुआ उसका यथावत् वर्णन करो। जो उस विशाल वाहिनी को अकेला ही मथित करके भीतर घुस गया था, उस सात्यकि के युद्ध का तुम यथावत् वर्णन करो। संजय ने कहा___ राजन् ! सात्यकि अपने श्वेत घोड़े से जुते हुए रथ पर बैठकर बड़ी गर्जना करता हुआ जा रहा था। आपके सब महारथी मिलकर भी उसे रोकने में सफल न हुए। इस समय राजा अलम्बुष उसके सामने आया और उसे रोकने का प्रयत्न करने लगा। महाराज ! उन दोनों वीरों का जैसा संग्राम हुआ, वैसा तो कोई भी नहीं हुआ। उस समय दोनों ओर के योद्धा उन्हीं का युद्ध देखने लगे। अलम्बुष ने सात्यकि पर बड़े जोर से दस बाणों द्वारा प्रहार किया, किन्तु सात्यकि ने उन्हें बीच में ही काट डाला। फिर उसने धनुष को कानतक खींचकर सात्यकि पर तीन तीखे बाण छोड़े, वे उसका कवच फेड़कर शरीर में घुस गये। फिर चार बाणों से अलम्बुष ने उसके चारों घोड़ों को भी घायल कर दिया। तब सात्यकि ने चार तेज बाणों से अलम्बुष के चारों घोड़ों को मार डाला तथा एक भल्ल से उसके सारथि की सिर काटकर अलम्बुष के कुण्डलमण्डित मस्तक को धड़ से अलग कर दिया।
इस प्रकार अलम्बुष का काम तमाम कर वह आपकी सेनाओं को चीरता हुआ अर्जुन की ओर बढ़ने लगा। उसने जैसे ही उस अपार सैन्यसमुद्र में प्रवेश किया कि अनेकों त्रिगर्तवीर उसपर टूट पड़े और उसे चारों ओर से घेरकर बाणों की वर्षा करने लगे। किन्तु सात्यकि ने भारतीसेना में घुसकर अकेले ही पचास राजकुमार को परास्त कर दिया। उस समय वह महान् शूरवीर नृत्य_सा कर रहा था और अकेला होने पर भी सौ रथियों के समान कभी पूर्व, कभी पश्चिम, कभी उत्तर और कभी दक्षिण दिशा में दिखायी देने लगता था। उसका यह अद्भुत पराक्रम देखकर त्रिगर्तवीर तो घबराकर भाग गये। अब शूरसेन देश के योद्धा बाणों की वर्षा करके उसे आगे बढ़ने से रोकने लगे। उनसे कुछ देर मुकाबला करके फिर वह कलिंगदेशीय वीरों से भिड़ गया फिर उस दुस्तर कलिंगसेना को पार करके वह अर्जुन के पास पहुँचा। जिस प्रकार जल में तैरनेवाला मनुष्य स्थल पर पहुँचकर सुस्ताने लगता है, उसी प्रकार अर्जुन को देखकर पुरुषसिंह सात्यकि को बड़ी शान्ति मिली।
उसे आते देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘ अर्जुन ! देखो, तुम्हारे पीछे सात्यकि आ रहा है। यह महापराक्रमी वीर तुम्हारा शिष्य और सखा है। इसने सब योद्धाओं को तिनके के समान समझकर परास्त कर दिया है। यह तुम्हें प्राणों से भी प्यारा है; इस समय यह कौरव योद्धाओं का भयंकर संहार करके यहाँ पहुँचा है। इसने अपने बाणों से द्रोणाचार्य और भोजवंशी कृतवर्मा को भी नीचा दिखा दिया है तथा तुम्हें देखने के लिये यह अनेकों अच्छे_ अच्छे योद्धाओं को मारकर यहाँ आया है। इसे धर्मराज ने तुम्हारी सुध लेने को भेजा है। इसी से यह अपने बाहुबल से शत्रु की सेना विदीर्ण करके यहाँ आ पहुँचा है। तब अर्जुन ने कुछ उदास होकर कहा, महाबाहो ! सात्यकि मेरे पास आ रहा है___ इससे मुझे प्रसन्नता नहीं है। अब मुझे यह निश्चय नहीं है कि इसके यहाँ चले आने पर धर्मराज जीवित भी होंगे या नहीं। इसे तो उन्हीं की रक्षा करनी चाहिये थी। इस समय यह उन्हें छोड़कर यहाँ किये आ रहा है ? अब धर्मराज द्रोण के लिये खुली स्थिति में है। अब सूर्य ढल चुका है और मुझे जयद्रथ का वध अवश्य करना है। इधर सात्यकि थका हुआ है तथा इसके सारथि और घोड़े भी शिथिल हो चुके हैं। किन्तु भूरिश्रवा को अभी कोई थकान नहीं है और इसके अनेकों सहायक भी मौजूद हैं। ऐसी स्थिति में क्या यह भूरिश्रवा के साथ भिड़कर कुशल से रह सकेगा ? धर्मराज ने द्रोण की ओर से निर्भय होकर इसे मेरे पास भेज दिया___ यह मैं उनकी भूल ही समझता हूँ। वे निरन्तर उन्हें पकड़ने की ताक में रहते हैं, सो क्या इस समय महाराज कुशल से होंगे ?’

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