Monday 27 May 2019

अर्जुन का अनेकों महारथियों से भीषण संग्राम तथा जयद्रथ का सिर काटना

राजा धृतराष्ट्र ने पूछा___ संजय ! भूरिश्रवा के मारे जाने पर फिर जिस प्रकार आगे युद्ध हुआ, वह मुझे सुनाओ।
संजय ने कहा___महाराज ! भूरिश्रवा  के परलोक को प्रस्थान करने पर महाबाहु अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा, ‘माधव ! अब जिधर राजा जयद्रथ है, उधर ही घोड़ों को बढ़ाइये। आज जयद्रथ के आगे तीन गतियाँ हैं___ यदि वह लड़ते_ लड़ते मारा गया तो तत्काल स्वर्ग प्राप्त करेगा, यदि पीठ दिखाकर भागते समय मेरे बाण का शिकार हो गया तो नर्क में पड़ेगा और यदि भाग गया, तो अपयश का भागी होगा। अब सूर्य बड़ी तेजी से अस्ताचल की ओर बढ़ रहा है। इसलिये आपको मेरी प्रतिज्ञा सफल कराने का प्रयत्न करना चाहिये। आप घोड़ों को ऐसी तेजी से ले चलिये जिसमें सूर्य अस्त न हो, मेरी प्रतिज्ञा पूरी हो जाय और मैं जयद्रथ को मार सकूँ।‘ अब अस्त्रविद्या में कुशल भगवान् कृष्ण ने घोड़ों को जयद्रथ के रथ की ओर हाँका। अर्जुन को जयद्रथ का वध करने के लिये बढते देख राजा दुर्योधन ने कर्ण से कहा, ‘ वीरवर ! अब थोड़ा ही दिन रह गया है। आज अपने बाणों से तुम शत्रु पर प्रहार करो। यदि किसी प्रकार आज का दिन बीत गया तो फिर निश्चय हमारी ही विजय होगी; क्योंकि सूर्यास्त तक जयद्रथ की रक्षा हो जाने पर अर्जुन की प्रतिज्ञा झूठी हो जायगी और वह स्वयं ही अग्नि में प्रवेश कर जायगा। फिर अर्जुन के न रहने पर तो इसके भाई और अनुयायी लोग एक मुहूर्त भी जीवित नहीं रह सकेंगे। इस प्रकार हम निष्कण्टक होकर पृथ्वी का राज्य भोगेंगे। अतः तुम, अश्त्थामा, कृपाचार्य, शल्य तथा मुझे और दूसरे योद्धाओं को भी साथ लेकर अर्जुन के साथ पूरी शक्ति से संग्राम करो।‘
दुर्योधन की यह बात सुनकर  कर्ण ने कहा, ‘ प्रचण्ड प्रहार करनेवाले, महान् धनुर्धर, वीरवर भीम ने,अपने बाणों से मेरे शरीर को बहुत ही जर्जरित कर दिया है। तो भी ‘युद्ध में डटा रहना चाहिये’ इस नियम के कारण मैं यहाँ खड़ा हुआ हूँ। भीम के विशाल बाणों से व्यथित होने के कारण मेरे अंगों में हिलने_डुलने की भी शक्ति नहीं है। तथापि अर्जुन जयद्रथ को न मार सके___ इस उद्देश्य से मैं यथाशक्ति युद्ध करूँगा; क्योंकि मेरा जीवन तो आपके ही लिये है।‘ जिस समय कर्ण और दुर्योधन इस प्रकार बातें कर रहे थे, अर्जुन अपने पैने बाणों से आपकी सेना का संहार करने लगे। अनेकों हाथी, घोड़े, ध्वजा, छत्र, धनुष, चँवर और योद्धाओं के सिर उनके बाणों से कट_कटकर सब ओर गिरने लगे। आग जिस प्रकार था_ फूस को जला डालती है, उसी प्रकार अर्जुन ने बात_की_बात में आपकी सेना की संहार कर डाला। इस प्रकार जब अधिकांश योद्धा मारे गये, तो वे बढ़ते_बढ़ते जयद्रथ के पास पहुँच गये। अर्जुन का यह पराक्रम आपके पक्ष के वीर न सह सके। अतः जयद्रथ की रक्षा के लिये दुर्योधन, कर्ण, वृषसेन, शल्य, अश्त्थामा, कृपाचार्य और स्वयं जयद्रथ ने भी उन्हें चारों ओर से घेर लिया। ये सब महारथी जयद्रथ को अपने पीछे रखकर श्रीकृष्ण और अर्जुन का वध करने की इच्छा से निर्भय होकर उनके चारों ओर घूमने लगे
।  कर्ण को रथहीन देखकर अश्त्थामा ने उसे अपने रथ पर चढ़ा लिया और फिर वह अर्जुन से भिड़ गया। इसी समय शल्य ने तीस बाणों से अर्जुन पर वार किया, कृपाचार्य ने  बीस बाणों से श्रीकृष्ण को और बारह से अर्जुन को बींधा तथा सिंधुराज ने चार से और वृषसेन  और सात बाणों से श्रीकृष्ण और अर्जुन को घायल कर दिया। इसी प्रकार अर्जुन ने भी चौंसठ बाणों से अश्त्थामा पर, सौ से शल्य पर, दस से जयद्रथ पर, तीन से वृषसेन पर और बीस से कृपाचार्य पर चोट की। फिर ये सब महारथी अर्जुन की प्रतिज्ञा भंग करने के विचार से एक साथ मिलकर उनपर टूट पड़े। उन्होंने भारी_ भारी गदाओं, लोहे के परिघों, शक्तियों तथा और भी तरह_तरह के शस्त्रों ये उनपर एक साथ चोट की। किन्तु अर्जुन इस प्रकार आक्रमण करती हुई इस कौरव_सेना को देखकर हँसे और आपके अनेकों वीरों का विध्वंस करते हुए आगे बढ़े। राजन् ! जिस समय अर्जुन अपने धनुष की डोरी खींचते थे, उस समय उससे इन्द्र के वज्र की_सी भयानक ध्वनि होती थी। उसे सुनकर आपकी सेना पागलों के समान चक्कर में पड़ जाती थी। वे इतनी फुर्ती से बाण छोड़ते थे कि यही नहीं जान पड़ता था कि वे कब बाण लेते हैं, कब उसे धनुष पर चढ़ाते हैं, कब धनुष की डोरी खींचते हैं और कब उसे छोड़ते हैं। अब उन्होंने कुपित होकर दुर्जय ऐन्द्रास्त्र का प्रयोग किया। उससे सैकड़ों_हजारों दिव्य बाण प्रकट हो गये। कौरवों ने भी शस्त्रों की वर्षा से आकाश में अन्धकार_ सा कर दिया था। उसे अपने दिव्यास्त्रों के मंत्रों से अभिमन्त्रित बाणों द्वारा अर्जुन ने नष्ट कर दिया। इस समय शूरवीरता का दम भरनेवाले आपके जो_जो वीर उनके सामने आये, वे सभी आग की लपटें पर गिरनेवाले पतंगों के समान नष्ट हो गये। इस प्रकार अनेकों शूरवीरों के जीवन और सुयश को नष्ट करते हुए वे युद्धस्थल में मूर्तिमान मृत्यु के समान विचर रहे थे। अर्जुन ने जो उस समय अति दुस्तर अस्त्रविद्या किया उसमें अनेकों अच्छे_ अच्छे वीर डूब गये। सिर कटे हुए शरीरों, बाहुहीन पिण्डों, हस्तहीन भुजाओं, बिना अंगुलियों के हाथों, सूँड़ कटे हुए हाथियों, दन्तहीन मातंगों, घायल ग्रीवावाले घोड़ों, टूटे_ फूटे रथों तथा जिनकी आँतें, पैर या दूसरे जोड़ कट गये हैं, ऐसे निश्चेष्ठ और तड़पते हुए सैकड़ों_ हजारों वीरों के कारण वह विशाल युद्धभूमि भीरु पुरुषों के लिये अत्यन्त भयावह हो रही थी। अर्जुन का ऐसा मूर्तिमान काल के समान अभूतपूर्व पराक्रम देखकर कौरवों में बड़ी सनसनी फैल गयी। इस प्रकार भयानक कर्म द्वारा अपनी भीषणता की छाप लगाकर वे बड़े_ बड़े महारथियों को लाँघकर आगे बढ़ गये। अर्जुन को जयद्रथ की ओर बढ़ते देखकर कौरवयोद्धा उसके जीवन से निराश होकर संग्रामभूमि से लौटने लगे। इस समय आपके पक्ष का जो वीर अर्जुन के सामने आता था, उसी के शरीर पर उनका प्राणान्तक बाण गिरता था। महारथी अर्जुन ने आपकी सारी सेना को कबन्धों से व्याप्त कर दिया। इस प्रकार आपकी चतुरंगिणी सेना को व्याकुल करके वे जयद्रथ के सामने आये। उन्होंने अश्त्थामा को पचास, वृषसेन को तीन, कृपाचार्य को नौ, शल्य को सोलह, कर्ण को बत्तीस और जयद्रथ को चौंसठ बाणों से बींधकर बड़ा सिंहनाद किया। जयद्रथ से अर्जुन के बाण न सहे गये। वह अंकुश खाये हुए हाथी के समान अत्यन्त क्रोध में भर गया। अतः उसने तीन बाणों से श्रीकृष्ण को और छः से अर्जुन को बींधकर आठ बाणों से उनके घोड़ों को घायल कर डाला तथा एक बाण उनकी ध्वजा पर छोड़ा। किन्तु अर्जुन ने उसके छोड़े हुए बाणों को व्यर्थ करके एक ही साथ दो बाण मारकर उसके सारथि के सिर और ध्वजा को काट डाला। इसी समय सूर्य को बड़ी तेजी से अस्ताचल के समीप जाते देख श्रीकृष्ण ने कहा, ‘पार्थ ! इस समय जयद्रथ को छः महारथियों ने अपने बीच में कर रखा है। अतः संग्राम में इन छहों को परास्त किये बिना जयद्रथ को मारना संभव नहीं है। इसलिये इस समय में सूर्य को छिपाने के लिये एक ऐसा उपाय करूँगा, जिससे जयद्रथ को साफ_साफ यही मालूम होगा कि सूर्य अस्त हो गया । इससे वह हर्षित होकर तुम्हें मारने के लिये बाहर निकल आवेगा और अपनी रक्षा के लिये किसी प्रकार का प्रयत्न नहीं करेगा। उस अवसर पर तुम उसपर प्रहार करना, सूर्य अस्त हो गया है___यह  समझकर उपेक्षा मत करना।‘ इस पर अर्जुन ने कहा, ‘आप जैसा कहते हैं, वही किया जायगा। तब योगीश्वर श्रीकृष्ण ने योगयुक्त होकर सूर्य को ढकने के लिये अन्धकार उत्पन्न कर दिया। अन्धकार फैलते ही आपके योद्धा यह समझकर कि सूर्य अस्त हो गया है अर्जुन के नाश की सद्भावना से बड़ी खुशी में भर गये। खुशी के मारे उन्हें सूर्य की ओर देखने का भी ध्यान नहीं रहा। इसी समय राजा जयद्रथ सिर ऊँचा करके सूर्य की ओर देखने लगा। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से फिर कहा, ‘ वीर ! देखो, सिंधुराज तुम्हारा भय छोड़कर सूर्य की ओर देख रहा है; इस दुष्ट को मारने की यही सबसे अच्छा अवसर है। फौरन ही इसका सिर उड़ाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।‘ श्रीकृष्ण की यह बात सुनकर प्रतापी पाण्डुनन्दन अपने प्रचंड बाणों से आपकी सेना का संहार करने लगे। उन्होंने कर्ण और वृषसेन के धनुष काटकर एक भल्ल से शल्य के सारथि को रथ से नीचे गिरा दिया तथा कृप और अश्त्थामा दोनों ही माना_भानजों को बहुत घायल कर डाला।
इस प्रकार आपके सब महारथियों को अत्यंत व्याकुल कर उन्होंने एक दिव्यास्त्रों से अभिमन्त्रित तथा गन्ध और पुष्पादि से पीड़ित करके वज्र के समान प्रचण्ड बाण निकाला।  उसे विधिवत् वज्रास्त्र से अभिमन्त्रित कर बड़ी फुर्ती से गाण्डीव पर चढ़ाया। इस समय श्रीकृष्ण ने जल्दी करने का संकेत करते हुए फिर कहा, ‘धनंजय ! सूर्य अस्ताचल पर पहुँचने ही वाला है, दुष्ट जयद्रथ की सिर फौरन काट डालो। देखो, इसके वध के विषय में तुम्हें एक बात सुनाता हूँ। इसका पिता सुप्रसिद्ध राजा वृहद्धक्षत्र था। उसे आयु का बहुत अधिक भाग बीत जाने पर यह पुत्र प्राप्त हुआ था। इसके विषय में राजा वृद्धक्षत्र को यह आकाशवाणी हुई कि ‘राजन् ! आपका यह पुत्र कुल, शूल और जम आदि गुणों में सूर्य और चन्द्रवंशियों के समान होगा। इस क्षत्रियप्रवर का लोक में शूरवीर लोग सर्वदा सत्कार करेंगे। किन्तु संग्राम में युद्ध करते समय एक क्षत्रियश्रेष्ठ अचानक इसका सिर काट डालेगा।‘ यह सुनकर सिंधुराज वृद्धक्षत्र बहुत देर तक सोचता रहा, फिर उसने पुत्रस्नेह के पराभूत होकर अपने जातिबन्धुओं से कहा___ ‘जो पुरुष मेरे पुत्र का सिर पृथ्वी पर गिरावेगा, उसके मस्तक के भी अवश्य ही सौ टुकड़े हो जायेंगे।‘ ऐसा कहकर वह जयद्रथ का राज्याभिषेक कर वन को चला गया और बड़ी उग्र तपस्या करने लगा। इस समय वह समन्पंचक क्षेत्र के बाहर बड़ी घोर तपस्या कर रहा है। इसलिये तुम दिव्यास्त्र से इसका सिर काटकर वृद्धक्षत्र की गोद में गिरा दो। यदि तुमने इसे पृथ्वी पर गिराया तो निःसंदेह तुम्हारे सिर के भी सौ टुकड़े हो जायँगे। श्रीकृष्ण की यह बात सुनकर अर्जुन ने वह वज्रतुल्य बाण छोड़ दिया।। वह सिन्धुराज के मस्तक को काटकर उसे बाज की तरह लेकर आकाश में उड़ा और समन्तपंचक क्षेत्र से बाहर ले गया। इस समय आपके समधी राजा वृद्धक्षत्र संध्योपासन कर रहे थे। उस बाण ने वह सिर उनकी गोद में डाल दिया और उन्हें इसका पतातक न चला। जब वृद्धक्षत्र जप करके उठे, तो वह सिर उनकी गोद से पृथ्वी पर गिर गया और उसके गिरते ही उनके सिर के भी सौ टुकड़े हो गये।
राजन् ! इस प्रकार जब अर्जुन जयद्रथ को मार डाला, तो श्रीकृष्ण ने वह अन्धकार दूर कर दिया। अब आपके पुत्रों को मालूम हुआ कि यह सब तो,श्रीकृष्ण की रची हुई माया ही थी। इस प्रकार अर्जुन ने आठ अक्षौहिणी सेना का संहार करके आपके दामाद जयद्रथ का वध किया। जयद्रथ को मरा देखकर आपके पुत्र दुःख से आँसू बहाने लगे और अपनी विजय के विषय में निराश हो गये। इधर जयद्रथ का वध होने पर श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीमसेन, सात्यकि, युधामन्यु और उत्तमौजा ने अपने_ अपने शंख बजाये। उस महान् शंखनाद को सुनकर धर्मपुत्र युधिष्ठिर को निश्चय हो गया कि अर्जुन ने सिंधुराज को मार डाला है। तब उन्होंने बाजे बजवाकर अपने योद्धाओं को हर्षित किया तथा संग्राम में द्रोणाचार्य से युद्ध करने के लिये उनपर आक्रमण किया। अब सूर्यास्त के बाद सोमकों के साथ आचार्य का बड़ा रोमांचकारी युद्ध होने लगा। वे सब द्रोण के प्राणों के ग्राहक होकर उनके साथ लड़ने लगे। इधर वीरवर अर्जुन ने भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करके सब ओर से आपके योद्धाओं का संहार करने लगे।

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