धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! कर्ण को तो साक्षात् महादेवजी के शिष्य के सभी गुण विद्यमान थे। फिर उसे भीमसेन ने इस प्रकार खेल ही में कैसे जीत लिया ? मेरे पुत्र तो सबसे अधिक कर्ण का ही भरोसा रखते थे। इस समय उसे भीम के सामने से भागता देखकर दुर्योधन ने क्या कहा ? और महाबली भीम ने इसके बाद किस प्रकार युद्ध किया तथा कर्ण ने उसे संग्रामभूमि में अग्नि के समान प्रज्वलित होते देखकर क्या किया ?
संजय ने कहा___राजन् ! अब दूसरे रथ पर चढ़कर कर्ण भीमसेन की ओर चला। उस समय कर्ण को कुपित देखकर आपके पुत्र तो यही समझने लगे कि अब भीमसेन आग की लपटों में गिरने ही वाला है। कर्ण ने धनुष की भयंकर टंकार और तालियों का शब्द करते हुए भीमसेन पर धावा किया। बस, दोनों वीर दो कुपित सिंहों के समान झपटते हुए दो बाजों के समान तथा क्रोध में भरे हुए दो शरभों के समान परस्पर युद्ध करने लगे। राजन् ! जूआ खेलने, वन में रहने और विराटनगर मे अज्ञातवास करते समय पाण्डवों को अनेकों क्लेश उठाने पड़े हैं; आपके पुत्रों ने उनका विस्तृत राज्य तथा रत्नादि हर लिये हैं; अपने पुत्रों की सलाह से आप भी उन्हें निरंतर तरह_तरह के क्लेश देते रहे हैं; आपने पुत्रों के सहित निरपराधिनी कुन्ती को लाक्षाभवन में भस्म करने का विचार किया था; आपके दुष्ट पुत्रों ने सभा के बीच में द्रौपदी को तरह_तरह से तंग किया था; दुःशासन ने उसके केश पकड़कर खींचने और कर्ण ने उससे यह कठोर बात कही कि ‘अब ये लोग तेरे पति नहीं हैं, तू कोई दूसरा पति चुन ले।‘ इन सभी बातों का इस समय भीमसेन को स्मरण हो आया। इसलिये वे अपने प्राणों का मोह छोड़कर धनुष की टंकार करते कर्ण पर टूट पड़े। उन्होंने अपने बाणों के जाल से कर्ण के रथ पर सूर्य की किरणों का पड़ना बन्द कर दिया। तब कर्ण ने अपने तीखे बाणों से उस जाल को काटा और नौ बाणों से भीमसेन पर भी चोट की। इसके जवाब में भीमसेन ने कर्ण को बाणों से आच्छादित कर दिया। उन दोनों का रणक्षेत्र उस समय यमलोक के समान भयंकर और दुर्दर्श हो रहा था। दूसरे महारथी तो उस संग्राम को बड़े विस्मय के साथ देख रहे थे। दोनों ही वीरों ने एक_दूसरे पर बाणों की वर्षा करते_करते सारे आकाश को बाणमय कर दिया था। उन बाणों की चमक से उसमें चमचमाहट_सी होने लगी थी। दोनों ही वीरों की भारी मार से घोड़े_हाथी और मनुष्य मर_मरकर धरती पर लोट_पोट हो रहे थे। राजन् ! उस समय आपके पुत्रों के अनेकों योद्धा मारे गये; उनमें से कोई तो प्राणहीन होकर गिर रहे थे और कोई गिर चुके थे। इस प्रकार बात_की_बात में वह सारी रणभूमि हाथी, घोड़े और मनुष्यों की लोथों से पट गयीं।राजन् ! अब क्रोध में भरे हुए कर्ण ने भीम पर तीस बाणों से चोट की। भीम ने तीन बाणों से उनका धनुष काट डाला और एक भल्ल से उसके सारथि को रथ से नीचे गिरा दिया। तब इन्द्र जैसे वज्र का प्रहार करते हैं, उसी प्रकार कर्ण ने एक महाशक्ति घुमाकर भीमसेन पर छोड़ी। किन्तु भीम ने सात बाणों से उसे बीच में ही काट डाला तथा कर्ण पर यमदण्ड के समान तीखे बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। कर्ण ने अपना विशाल धनुष खींचकर नौ बाण छोड़े। उन्हें भीमसेन ने नौ बाणों से काट डाला। फिर उन्होंने कर्ण के धनुष को भी काट दिया तथा अपने बाणों की बौछार से उसके घोड़ों मारकर सारथि को रथ से नीचे गिरा दिया।कर्ण को इस प्रकार आपत्ति में पड़ा देखकर राजा दुर्योधन ने अपने भाई दुर्जय से कहा, ‘अरे ! तुम शीघ्र ही इस निमूछिया भीम को मारकर कर्ण की सहायता कर।‘ तब दुर्जय ‘जो आज्ञा’ ऐसा कहकर बाणों की वर्षा करता हुआ भीमसेन की ओर चला। उसने नौ बाण भीमसेन पर और आठ उनके घोड़ों पर छोड़े तथा छः से उनके सारथि को, तीन से ध्वजा को और सात से स्वयं को बींध दिया। इससे भीमसेन का क्रोध बहुत भड़क उठा और उन्होंने अपने तेज बाणों से उसके मर्मस्थानों को बेधकर उसे सारथि और घोड़ों के सहित यमराज के हवाले कर दिया। दुर्जय की ऐसी दुर्दशा देखकर कर्ण की हृदय भर आया। उसने रोते_रोते उसकी प्रदक्षिणा की। इस बीच में भीमसेन ने कर्ण को रथ को तोड़_फोड़ डाला।इस प्रकार रथहीन और पुनः पराजित होने पर भी कर्ण एक दूसरे रथ पर चढ़कर फिर भीमसेन के सामने आ गया और उन्हें बाणों से बींधने लगा। भीमसेन ने उस पर दस बाण छोड़कर फिर सत्तर बाणों से चोट की। तब कर्ण ने नौ बाणों से भीमसेन की छाती छेदकर एक से उसकी ध्वजा काट डाली। फिर उसने सारे शरीर को फोड़कर निकल जानेवाला अत्यंत तीक्ष्ण बाण छोड़ा। वह भीमसेन को घायल करके पृथ्वी को चीरता हुआ भीतर घुस गया। तब भीमसेन ने एक वज्र के समान कठोर, चार हाथ लम्बी भारी गदा उठायी और उसे फेंककर कर्ण के घोड़ों को मार डाला। अब कर्ण अश्वहीन रथ को छोड़कर अपना धनुष तानकर खड़ा हो गया। इस समय हमने कर्ण का बड़ा ही अद्भुत पराक्रम देखा। वह रथहीन होने पर भी भीमसेन को रोके ही रहा। तब दुर्योधन ने दुर्मुख से कहा, ‘भैया दुर्मुख ! देखो, भीमसेन ने कर्ण को रथहीन कर दिया है, इसलिये तुम उसके पास रथ पहुँचा दो।‘ यह सुनकर दुर्मुख भीमसेन पर बाणों की वर्षा करता बड़ी तेजी से कर्ण की ओर चला। दुर्मुख को संग्रामभूमि में कर्ण की सहायता करते देख भीम बड़े प्रसन्न हुए और कर्ण को अपने बाणों से रोककर उसी की ओर अपना रथ ले गये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने उसी क्षण नौ बाणों से उसे यमराज के घर भेज दिया।
अब कर्ण ने कुछ भी आगा_पीछा न करके चौदह बाणों से भीमसेन पर वार किया। वे बाण उनकी दायीं भुजा को घायल करके पृथ्वी में घुस गये। तब भीमसेन ने तीन बाणों से कर्ण को और सात से उसके सारथि को बींध डाला। उन बाणों की चोट से कर्ण बहुत व्याकुल हो गया और अपने घोड़ों को तेजी से हाँककर युद्धक्षेत्र से चला गया। किन्तु अतिरथी भीमसेन अब भी अपना धनुष ताने वहीं खड़े रहे।धृतराष्ट्र कहने लगे___संजय ! पुरुषार्थ को धिक्कार है, यह तो व्यर्थ ही है; मैं तो दैव को ही मुख्य समझता हूँ। देखो, कर्ण ऐसी सावधानी से युद्ध कर रहा था, फिर भी भीम को काबू में नहीं कर सका। दुर्योधन के मुँह से मैंने कई बार सुना था कि कर्ण बलवान् है, शूरवीर है, बड़ा धनुर्धर है और परिश्रम को कुछ भी नहीं समझता है। इसकी सहायता रहने पर तो देवता भी मुझे संग्राम में नहीं जीत सकेंगे, फिर पाण्डवों की तो बात ही क्या है ? जब उसी को दुर्योधन ने भीम के हाथ से परास्त होकर युद्ध से भागते देखा तो क्या कहा ? संजय ! भला भीम के सामने टिकने का साहस कौन कर सकता है ? यह तो संभव है कि कोई पुरुष यमराज के घर से लौट आवे, किन्तु भीमसेन के सामने जाकर कोई पीछे नहीं फिर सकता। जो मूर्ख मोह के वशीभूत होकर क्रोध में भरे हुए भीम के सामने गये, वे तो,मानो पतिंगों के समान आग में ही जा पड़े। भीमसेन ने हमारी सभा में सारे कौरवों के सामने मेरे पुत्रों के वध की प्रतिज्ञा की थी। उसे याद करके कर्ण को पराजित देखने पर दुर्योधन और दुःशासन तो डर के मारे उसके आगे से भाग गये होंगे। कर्ण को रथहीन और भीम के हाथ से पराजित देखकर अवश्य ही दुर्योधन को श्रीकृष्ण का अपमान करने के लिये पश्चाताप हुआ होगा। युद्ध में भीमसेन के हाथ से अपने भाइयों का वध होता देख उसे अपने अपराध के लिये अवश्य ही बड़ा संताप हुआ होगा। भला, अपने जीवन की रक्षा चाहनेवाला ऐसा कौन प्राणी होगा जो साक्षात् काल के समान खड़े हुए भीमसेन के पास जायगा। मेरा तो यह निश्चय है कि बड़नावल की ज्वालाओं में पड़कर भले ही कोई बच जाय, किन्तु भीमसेन के सामने जाने पर कोई जीवित नहीं बच सकता। इसलिये भैया ! अब तो मेरे पुत्रों का जीवन संकट में ही है। संजय ने कहा___कुरुराज ! इस महाभयंकर संकट के उपस्थित होने पर आप चिंता करने चले हैं। किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि संसार के इस भीषण संहार के जड़ आप ही हैं। अपने पुत्रों के बातों में आकर आपही ने यह महान् वैर बाँधा है। आपसे बहुत कुछ कहा भी गया; किन्तु मरणासन्न पुरुष जैसे हितकारक औषध ग्रहण नहीं करता, उसी प्रकार आपने भी किसी की एक न सुनी। राजन् ! आपने स्वयं ही यह दुर्जर कालकूट विष पिया है, इसलिये अब आप ही इसका फल भोगिये।
अस्तु, अब आगे जैसे_जैसे युद्ध हुआ वह मैं सुनाता हूँ। कर्ण को भीमसेन के हाथ से परास्त हुआ देखकर आपके पाँच पुत्र दुर्मर्षण, दुःसह, दुर्मद, दुर्धर और जय सहन न कर सके और वे एक साथ भीमसेन पर टूट पड़े। वे उन्हें चारों ओर से घेरकर अपने बाणों से टिड्डीदल के समान सारी दिशाओं को व्याप्त करने लगे। भीमसेन वे उन्हें अकस्मात् आते देख हँसते_हँसते अगवानी की। जब कर्ण ने आपके पुत्रों को भीमसेन के सामने जाते देखा तो कर्ण भी वहीं लौट आया। अब कौरवलोग उन्हें चारों ओर से घेरकर बाणों की वर्षा करने लगे। किन्तु भीमसेन ने पच्चीस ही बाणों में सारथि और घोड़ों के सहित उन पाँचों भाइयों को यमराज के हवाले कर दिया। उस समय हमने भीमसेन का बड़ा ही अद्भुत पराक्रम देखा। वे एक ओर तो अपने बाणों से कर्ण को रोक रहे थे और दूसरी ओर आपके पुत्रों का संहार कर रहे थे।
Sunday 14 April 2019
भीमसेन के हाथ से कर्ण की पराजय तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध
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